नशा निवारण पर कवि संगोष्ठी का आयोजन

भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय बिलासपुर संस्कृति भवन के बैठक कक्ष में नशा निवारण पर कवि संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम भाषा विभाग के प्रतिनिधि इन्द्र सिंह चन्देल द्वारा संगोष्ठी में आए सभी साहित्यकारों का धन्यवाद किया। इसके साथ ही संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार नरैणू राम हितैषी ने की तथा मंच का संचालन साहित्यकार एवं पत्रकार ए डी रीतू द्वारा किया गया। इस संगोष्ठी में नशे से होने वाले दुष्प्रभावों पर साहित्यकारों द्वारा अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। सर्वप्रथम साहित्यकारों द्वारा मां सरस्वती की ज्योति प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम के आरम्भ में सभी साहित्यकारों द्वारा हाल ही में रामलाल पुण्डीर के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रधांजली अर्पित की। इसके उपरान्त सन्देश शर्मा द्वारा सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। जीतराम सुमन ने ‘‘ नसेयां मुक्कवाणे गबरू म्हारे शीर्षक से रचना प्रस्तुत की। बुद्धि सिंहं चन्देल ने , छडी देवा लोको इस नशे वाले टबडे.. । कविता सिसोदिया ने तन मन हो जब धीरे -ंधीरे आने लगी आपकी। गोबिन्द घोष ने निदा फाज़ली की गज़ल सुनाई , पंक्तियां थीं सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो। रामपाल डोगरा ने -यादें जो मुझे अक्सर हिजोडे जाती है। सुरेेन्द्र मिन्हास ने दपैरां तकर धुई, कम्म रोकदी मुंई, हत्थ रख काहला, आई ग्या स्याला। अमरनाथ धीमान ने पहाड़ी रचना ‘‘बन्दले रीए धारे मुईए तूने मांह इक गल गलाणी, हरी-हरी चिल्लां होर खजूरी ने भरूरी तेरिया गोद्धा ते बगदा पाणी ,। रविन्द्र चन्देल ने ‘‘ वीरों की इस पावन धरा पर, हर पग आगे हूं। नरैणु राम हितैषी ने ‘‘बैहरे बन बैठे हैं हुक्कमरान। अरूण डोगरा रीतू ने कलियुग का रावण शीर्षक से रचना प्रस्तुत की। प्रदीप गुप्ता ने - खुदा ने जो दिया लाजबाब दिया, चलो शुक्रिया उसका बार-बार करते है‘‘। रविन्द्र शर्मा ने - सुन ओ मेरी सरकार, हऊं आ इक बेरोजगार, मिन्जो
नौकरी देईदे, हऊं आं बड़ा भारी लाचार, । डॉ0 अनेक राम सांख्यान ने आई गई ठण्डी-ठण्डी रूत सयाले री। सोनू देवी ने बचपन है ऐसा खजाना, आता है ना दोबारा मुशिकल है इसको भूल पाना,। सन्देश शर्मा की रचना की पंक्तियां थीं- कुछ फैसलों से फासले ब-सते गए ऐसे, महफिल में साथ-साथ थे पर मिल नहीं पाए। शिवपाल गर्ग ने - जाणे क्या ग्लाया, शीर्षक से रचना प्रस्तुत की। लश्करी राम ने - म्हाचला रे माणुआं री बखरी नुवार ऐ, ठण्डा-ठण्डा पानी कन्नें बड़ा करे प्यार ए। पूनम शर्मा ने कहा आखिर क्यूं चुप.रहता है समाज। इस अवसर पर विभागीय कर्मचारी इन्द्र सिंह चन्देल, रविन्द्र कुमार दुर्वासा, अमर सिंह भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे। अन्त में कार्यक्रम के अध्यक्ष नरैणू राम हितैषी ने सभी कवियों एवं साहित्यकारों द्वारा नशे के ऊपर तथा सम सामयिक रचनाएं संगोष्ठी में प्रस्तुत करने के लिए आभार व्यक्त किया।
भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय बिलासपुर संस्कृति भवन के बैठक कक्ष में नशा निवारण पर कवि संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम भाषा विभाग के प्रतिनिधि इन्द्र सिंह चन्देल द्वारा संगोष्ठी में आए सभी साहित्यकारों का धन्यवाद किया। इसके साथ ही संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार नरैणू राम हितैषी ने की तथा मंच का संचालन साहित्यकार एवं पत्रकार ए डी रीतू द्वारा किया गया। इस संगोष्ठी में नशे से होने वाले दुष्प्रभावों पर साहित्यकारों द्वारा अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। सर्वप्रथम साहित्यकारों द्वारा मां सरस्वती की ज्योति प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम के आरम्भ में सभी साहित्यकारों द्वारा हाल ही में रामलाल पुण्डीर के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रधांजली अर्पित की। इसके उपरान्त सन्देश शर्मा द्वारा सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। जीतराम सुमन ने ‘‘ नसेयां मुक्कवाणे गबरू म्हारे शीर्षक से रचना प्रस्तुत की। बुद्धि सिंहं चन्देल ने , छडी देवा लोको इस नशे वाले टबडे.. । कविता सिसोदिया ने तन मन हो जब धीरे -ंधीरे आने लगी आपकी। गोबिन्द घोष ने निदा फाज़ली की गज़ल सुनाई , पंक्तियां थीं सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो। रामपाल डोगरा ने -यादें जो मुझे अक्सर हिजोडे जाती है। सुरेेन्द्र मिन्हास ने दपैरां तकर धुई, कम्म रोकदी मुंई, हत्थ रख काहला, आई ग्या स्याला। अमरनाथ धीमान ने पहाड़ी रचना ‘‘बन्दले रीए धारे मुईए तूने मांह इक गल गलाणी, हरी-हरी चिल्लां होर खजूरी ने भरूरी तेरिया गोद्धा ते बगदा पाणी ,। रविन्द्र चन्देल ने ‘‘ वीरों की इस पावन धरा पर, हर पग आगे हूं। नरैणु राम हितैषी ने ‘‘बैहरे बन बैठे हैं हुक्कमरान। अरूण डोगरा रीतू ने कलियुग का रावण शीर्षक से रचना प्रस्तुत की। प्रदीप गुप्ता ने - खुदा ने जो दिया लाजबाब दिया, चलो शुक्रिया उसका बार-बार करते है‘‘। रविन्द्र शर्मा ने - सुन ओ मेरी सरकार, हऊं आ इक बेरोजगार, मिन्जो
नौकरी देईदे, हऊं आं बड़ा भारी लाचार, । डॉ0 अनेक राम सांख्यान ने आई गई ठण्डी-ठण्डी रूत सयाले री। सोनू देवी ने बचपन है ऐसा खजाना, आता है ना दोबारा मुशिकल है इसको भूल पाना,। सन्देश शर्मा की रचना की पंक्तियां थीं- कुछ फैसलों से फासले ब-सते गए ऐसे, महफिल में साथ-साथ थे पर मिल नहीं पाए। शिवपाल गर्ग ने - जाणे क्या ग्लाया, शीर्षक से रचना प्रस्तुत की। लश्करी राम ने - म्हाचला रे माणुआं री बखरी नुवार ऐ, ठण्डा-ठण्डा पानी कन्नें बड़ा करे प्यार ए। पूनम शर्मा ने कहा आखिर क्यूं चुप.रहता है समाज। इस अवसर पर विभागीय कर्मचारी इन्द्र सिंह चन्देल, रविन्द्र कुमार दुर्वासा, अमर सिंह भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे। अन्त में कार्यक्रम के अध्यक्ष नरैणू राम हितैषी ने सभी कवियों एवं साहित्यकारों द्वारा नशे के ऊपर तथा सम सामयिक रचनाएं संगोष्ठी में प्रस्तुत करने के लिए आभार व्यक्त किया।