देश की चार बेटियाँ इतिहास रचने को तैयार है। यह पुरे देश के लिए गर्व की बात है। पहली बार चार महिला चालकों का दल 16 हजार किलोमीटर लंबी उड़ान पूरा करेगा। शनिवार को उत्तरी ध्रुव के ऊपर से दुनिया का सबसे लंबा हवाई सफर पूरा कर इतिहास रचेंगी। एयर इंडिया के दिल्ली बेस पर तैनात कैप्टन ज़ोया अग्रवाल सैन फ्रांसिस्को से बंगलूरू आने वाले इस विमान के महिला चालक दल का नेतृत्व करेंगी। इस दाल में उनके साथ कैप्टन तनमई पपागिरी, कैप्टन आकांक्षा सोनावने और कैप्टन शिवानी मन्हास शमिल है। एयर इंडिया के अधिकारी ने बताया कि उत्तरी ध्रुव के ऊपर से होकर गुजरने वाला पोलर रूट चुनौतियों से भरा है। विमानन कंपनियां इस पर अपने सबसे कुशल और अनुभवी पायलट को ही भेजती हैं। एयर इंडिया ने इस बार यह जिम्मेदारी बेटियों को सौंपी है। बता दें कि कैप्टन ज़ोया 2013 में बोइंग 777 उड़ाने वाली दुनिया की सबसे युवा महिला पायलट बनीं थीं। अब यह नया कीर्तिमान उनकी दूसरी बड़ी उपलब्धि होगी।
हिमाचल प्रदेश की शिमला जिला की एक युवा ऑलराउंडर भारतीय महिला क्रिकेट टीम में चुनी गई है। शिमला के ठियोग की रहने वाली तनुजा कंवर का चयन जनवरी 2021 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली वनडे श्रृंखला के लिए हुआ है। बता दें 2021 में जनवरी में या वनडे सीरीज खेली जाएंगी। आस्ट्रेलिया में जनवरी के अंतिम सप्ताह में तीन एकदिवसीय मुकाबले खेले जाएंगे। कौन है तनुजा? तनुजा जन्म 28 जनवरी 1998 में हुआ था और वह 22 साल की हैं। वह शिमला के ठियोग के बलग के साथ कुठार गांव की रहने वाली हैं। तनुजा के सपनों की शुरुआत एचपीसीए से हुई। उन्होंने क्रिकेट की बारीकियां यहां सीखी और इसके बाद उनका चयन धर्मशाला स्थित एचपीसीए की क्रिकेट एकेडमी के लिए हुआ। तनुजा ने अपनी दसवीं की पढ़ाई कुठार से की और 2011 में क्रिकेट अकादमी में आने के बाद जमा दो की पढ़ाई गर्ल्स स्कूल धर्मशाला से की। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई अमृतसर कॉलेज से की है। इससे पहले तनुजा, हिमाचल किक्रेट टीम, भारतीय महिला टीम-ए, इंडिया-बी जैसी टीमों का हिस्सा रह चुकी हैं। तुनजा दाहिने हाथ से बल्लेबाजी और मध्यम गति की गेंदबाद भी हैं।
MDH सिर्फ एक नाम नहीं हैं ये भारत के स्वाद की पहचान है। सालों से MDH का चेहरा महाशय धर्मपाल गुलाटी आज इस दुनिया को छोड़ कर चले गए हैं। उनके निधन से पूरा देश शोकाकुल है। आजादी के बाद भारत में वह शरणार्थी के रूप में आए थे और पिछले साल वह आईआईएफएल हुरुन इंडिया रिच 2020 की सूची में शामिल भारत के सबसे बुजुर्ग अमीर शख्स थे। उनका सफलता की ऊंचाइयों का सफर बहुत ही दिलचस्प है। MDH की शुअरुआत पाकिस्तान के सियालकोट में साल 1922 में एक छोटी सी दुकान से हुई। उनके पिता एमडीएच के संस्थापक महाशय चुन्नी लाल गुलाटी थे। महाशय धर्मपाल का जन्म 27 मार्च, 1923 को सियालकोट में हुआ था। साल 1933 में, उन्होंने 5वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड़ दी और दुकान में अपने पिता का हाथ बटाना शुरू कर दिया। फिर जब 1947 में देश का विभाजन हुआ, धर्मपाल गुलाटी परिवार सहित पाकिस्तान से भारत चले आए। परिवार ने कुछ समय अमृतसर में एक शरणार्थी शिविर में बिताया था, फिर काम की तलाश में वह दिल्ली आ गए थे। दिल्ली में परिवार का पेट पालना आसान नहीं था। कहा जाता है, जब वह भारत आए थे उस समय उनके पास केवल 1500 रुपए ही बचे थे। उन पैसों से उन्होंने 650 रूपए में घोड़ा और तांगा खरीदकर रेलवे स्टेशन पर चलाना शुरू किया। जब उन्होंने दुकान खोलने के लिए पर्याप्त पैसे बचा लिए तो उन्होंने तांगा अपने भाई को दे दिया और खुद करोलबाग की अजमल खां रोड पर मसाले बेचना शुरू कर दिया। धर्मपाल के मसाले की दुकान के बारे में जब लोगों को यह पता चला कि सियालकोट के देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में हैं, उनका कारोबार फैलता चला गया। बता दें सियालकोट में महाशियन दी हट्टी नाम से उनका पारिवारिक कारोबार, देगी मिर्च वाले के नाम से भी मशहूर था। फिर 1953 में उन्होंने तांगा बेचकर चांदनी चौक में एक दुकान किराए पर ले ली। इस दुकान का नाम उन्होंने महाशिया दी हट्टी (एमडीएच) रखा था। 1959, गुलाटी परिवार ने राजधानी दिल्ली के कीर्ति नगर में मसालों की सबसे पहली फैक्ट्री खोली। इसके बाद उन्होंने करोल बाग में अजमल खां रोड पर ऐसी ही एक और फैक्ट्री डाली। 60 के दशक में एमडीएच करोल बाग में मसालों की मशहूर दुकान बन चुकी थी। यहां से इनका बिजनेस बढ़ने लगा था। धीरे-धीरे धर्मपाल गुलाटी के मसाले लोगों को इतने पसंद आने लगे कि इनका निर्यात दुनियाभर में होने लगा। आज यह 100 से भी अधिक देशों में इस्तेमाल किया जाता है। 5400 करोड़ की संपत्ति के साथ धर्मपाल गुलाटी आईआईएफएल हुरुन इंडिया रिच 2020 की सूची में शामिल भारत के सबसे बुजुर्ग अमीर शख्स थे। इस सूची में उन्हें 216 वें स्थान पर रखा गया था। 25 करोड़ का वेतन पाने वाले धर्मपाल गुलाटी यूरोमॉनिटर के मुताबिक एफएमसीजी सेक्टर में सबसे अधिक वेतन पाने वाले सीईओ बन चुके थे। उम्र के इस पड़ाव पर भी वह बहुत सक्रिय थे और हर दिन एमडीएच के कारखाने, बाजार और डीलर के पास हर रोज जाते थे।
भारत की वो पहली महिला जो समाज की बंदिशों को पीछे छोड़ अपने सपनों को छूने में कामयाब हुई, वो महिला जो आने वाली कई पीढ़ियों के लिए मिसाल बनी, वो महिला जिन्हे भारत की पहली महिला वकील बनने का गौरव प्राप्त है l आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी महिला की कहानी जिन्हे आज भी महिलाओं के लिए एक आदर्श के तौर पर याद किया जाता है l भारत की पहली महिला वकील,(वास्तव में, किसी भी ब्रिटिश विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाली पहली भारतीय राष्ट्रीय) कॉर्नेलिया सोराबजी l कॉर्नेलिया सोराबजी ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद ऑक्सपोर्ड से वकालत की पढ़ाई की थी l खास बात तो ये है कि आजादी के पहले जब कॉर्नेलिया ने वकालत की उस समय भारत में किसी भी महिला का उच्च शिक्षा में पढ़ना इतना आसान नहीं था। लेकिन कॉर्लेनिया ने वकालत की पढ़ाई कर सारे बंधनों को तोड़ा। जनम व शुरूआती जीवन कार्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवम्बर 1866 को नासिक के एक पारसी परिवार में हुआ था। सोराबजी समाज सुधारक होने के साथ-साथ एक लेखिका भी थीं। कार्नेलिया के लिए कहा जाता है कि इनकी वजह से देश में महिलाओं को वकालत का अधिकार मिला था। 1892 में नागरिक कानून की पढ़ाई के लिए विदेश गयीं और 1894 में भारत लौटीं. उस समय समाज में महिलाएं मुखर नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था, मगर कॉर्नेलिया में वकील बनने के जूनून को कोई नहीं दबा पाया l सोराबजी के पिता एक मिशनरी थे, कहते है कि बंबई विविद्यालय को एक महिला को डिग्री कार्यक्रम में दाखिला देने के लिए मनाने में उनके पिता की अहम भूमिका थी l सोराबजी की मां एक प्रभावशाली महिला थीं और उन्होंने कई सामाजिक कार्यों में हिस्सा लिया था l उन्होंने पुणे में कई गर्ल्स स्कूल भी खोले l सोराबजी के कई शैक्षिक और करियर संबंधी फैसलों पर उनकी मां का प्रभाव रहा l सोराबजी का छह जुलाई 1954 को देहांत हो गया. अपने अधिकार के लिए किया संघर्ष परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक पाने के बावजूद उन्हें महिला होने के नाते स्कॉलरशिप से दूर रखा गया। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके लिए ऑक्सफोर्ड जाकर पढ़ना मुश्किलों भरा था। तब कुछ अंग्रेज महिलाओं की मदद से उनके लिए फंड का इंतजाम किया गया और कॉर्नेलिया वकालत की पढाई के ऑक्सफोर्ड पहुंची। 1892 में कॉर्नेलिया ने बैचलर ऑफ सिविल लॉ की परीक्षा पास करने वाली पहली महिला बनीं। लेकिन कॉलेज ने उन्हें डिग्री देने से मना कर दिया। क्योंकि उस काल में महिलाओं को वकालत के लिए रजिस्टर करने और प्रेक्टिस की इजाजत नहीं थी। लेकिन कॉर्नेलिया ने हार नही मानी। भारत लौटकर वापस आने के बाद वो महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए मदद करने लगीं। काफी अथक परिश्रम के बाद कार्नेलिया को सफलता हाथ लगीं। वकालत के दौरान कार्नेलिया ने 600 से ज्यादा महिलाओं को कानूनी सलाह दी। 1922 में लंदन बार ने महिलाओं को कानून की प्रैक्टिस करने की आज्ञा दी। तब कार्नेलिया को कानून की डिग्री हासिल हुई। कार्नेलिया कलकत्ता हाईकोर्ट में बैरिस्टर बन कानून की प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला बनीं। कानूनी करियर 1894 में भारत लौटने पर, सोराबजी ने पर्दानाशीन महिलाओं की ओर से सामाजिक और सलाहकार कार्य में शामिल हो गयीं, जिन्हें बाहर पुरुष दुनिया के साथ संवाद करने से मना किया गया था, कई मामलों में इन महिलाओं की काफी संपत्ति होती थी, लेकिन उनकी रक्षा के लिए आवश्यक कानूनी विशेषज्ञता तक पहुंच नहीं थी। सोराबजी को काठियावाड़ और इंदौर के शासकों के ब्रिटिश एजेंटों से पर्दानशीन की ओर से अनुरोध करने के लिए विशेष अनुमति दी गई थी, लेकिन वह एक महिला के तौर पर अदालत में उनकी रक्षा करने में असमर्थ थीं, उन्हें भारतीय कानूनी व्यवस्था में पेशेवर ओहदा प्राप्त नहीं था। इस स्थिति का समाधान करने की उम्मीद में, सोराबजी ने 1897 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी की एलएलबी परीक्षा के लिए खुद को प्रस्तुत किया और 1899 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील की परीक्षा में भाग लिया। फिर भी, उनकी सफलताओं के बावजूद, सोरबजी को वकील के तौर पर मान्यता नहीं मिली l एक लम्बी जद्दोजहद के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया। 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं। यद्यपि 1954 में कार्नेलिया का देहावसान हो गया, पर आज भी उनका नाम वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में महिलाओं की बुनियाद है। लंदन में है प्रतिमा 2012 में, लंदन के लिंकन इन में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया था l
लाहौल स्पीति। लाहौल के रलिंग गाँव के किसान सुनील कुमार पेशे से किसान और शिक्षा ग्रेजुएट है। जैविक खेती के जरिए कुछ नए प्रयोगों की बदौलत सुनील कुमार ने 17.2 किलो की एक गोभी तैयार किया। उनके प्रयोगों से 17 किलो की एक गोभी की खबर ने देश के कृषि विश्वविद्यालय और कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों को भी हैरान परेशान कर दिया है। किसान कहते हैं की उनके परिवार ने शुरुआत से ही जैविक खेती पर ध्यान दिया। अमूमन गोभी का फूल दो किलो का होता है, लेकिन उन्होंने इस साल 17.2 किलो का उगाया है।
पहले यह 6 साल में बनने वाली थी ये टनल, पर वक्त 4 साल और बढ़ गया अटल टनल की नीव पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 23 मई, 2002 को रखी थी और बाद में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा जून 2010 को पुनर्निर्मित किया गया। मनाली में अटल रोहतांग का निर्माण कार्य 28 जून 2010 को शुरू हुआ था। उस समय मनाली के उत्तर में 30 किमी दक्षिण पोर्टल पर हिमालय पर्वतमाला के माध्यम से रोहतांग सुरंग की ड्रिलिंग शुरू हुई। जून 2012 तक, सुरंग की खुदाई 0.56 किमी तक हो चुकी थी पर अगले एक साल में पानी की भारी कमी के कारण अटल सुरंग की खुदाई में थोड़ी ही प्रगति हो पाई। सितम्बर 2014 तक पहुंचते-पहुंचते अटल टनल की आधी खुदाई हो चुकी थी। 2014 में रोहतांग टनल को 5 किलोमीटर तक खोद लिया गया। फिर 13 अक्टूबर 2017 को सुरंग के दोनों छोर मिल गए। वह सर्दियों का समय था व रोहतांग दर्रा भारी बर्फबारी और बर्फानी तूफान के कारन बंद था। 22 नवंबर 2017 को फैसला लिया गया की अटल टनल को केवल गंभी स्थितियों में एम्बुलेंस की आवाजाही के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। फिर 2019 में अटल टनल में बस सेवा का ट्रायल शुरू हुआ। 44 यात्रियों को लेकर हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की बस ने दक्षिण पोर्टल से सुरंग में प्रवेश किया और उत्तरी पोर्टल से निकली। लाहौल और स्पीति घाटियों के निवासियों के लिए अगले पांच सर्दियों के महीनों में यह बस सेवा दिन में एक बार चली। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर 2019 को वाजपेयी के जन्मदिन पर उनके सम्मान में इस सुरंग का नाम रोहतांग टनल से बदलकर अटल सुरंग रखा। 3 अक्टूबर 2020, आखिरकार यह टनल बन कर तैयार हो गई और प्रधानमंत्री ने इसे देश को समर्पित कर दिया। 2010 में शुरू हुए इस अटल टनल प्रोजेक्ट की लागत 1,700 रुपये थी जो 2020 तक पहुंचते-पहुंचते 3,200 करोड़ रुपये हो गई। 10,000 फीट से ज्यादा लंबी है अटल सुरंग यह टनल 10,000 फीट से ज्यादा लंबी है। मनाली से लेह को जोड़ने वाली यह अटल टनल दुनिया की सबसे लंबी हाइवे टनल है। 9.02 किमी की लंबाई पर, सुरंग भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंगों में से एक है और मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किमी तक कम कर देगी जिससे आवाजाही 4 घंटे के समय की बचत होगी। क्या है सुरक्षा के उपाय इसमें हर 60 मीटर की दूरी पर CCTV कैमरे लगाए गए हैं और दोनों छोरों पर निगरानी कक्ष भी हैं। इतना ही नहीं सुरंग के भीतर हर 500 मीटर की दूरी पर इमर्जेंसी एग्जिट भी बनाए गए हैं। एक और सुरक्षा विशेषता यह है कि सुरंग के अंदर आग को 200 मीटर के क्षेत्र में नियंत्रित किया जाएगा। किसी भी प्रकार की अनहोनी से बचने के लिए इसमें फायर हाइड्रेंट लगाए गए हैं। इसमें दोनों ओर 1-1 मीटर के फुटपाथ भी बनाए गए हैं। सुरंग में आपातकालीन स्थितियों में एक महत्वपूर्ण घोषणा करने के लिए एक सार्वजनिक घोषणा प्रणाली भी है, जिसके लिए नियमित दूरी पर लाउडस्पीकर लगाए गए है।
जिला मण्डी की लेखिका नर्बदा ठाकुर को हाल ही में "काव्य सरिता" में इनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें "काव्य रथी साहित्य सम्मान" से नवाजा गया। इस काव्य संग्रह में पूरे भारत के 48 चयनित रचनाकारों की रचनाएँ लखनऊ उत्तर प्रदेश से प्रकाशित की गई है जिसमें इनकी रचनाएँ भी संकलित है। इससे पहले इनको कोरोना 'साँझा काव्य संग्रह' में योगदान के लिए "कोरोना वरियर" से सम्मानित किया गया है जो आगरा से छप कर आया है। इस काव्य संग्रह में पूरे भारतवर्ष के साथ अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित 108 रचनकारों की काव्य कृतियाँ संकलित है। साथ ही "रेडियो मेरी आवाज" हर हाथ कलम अभियान के ऑनलाइन कवि सम्मेलन में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करने के लिए "अभिनंदन" पत्र से सम्मानित किया गया। अभी जल्द ही इनका तीसरा काव्य संग्रह "एकाक्ष" भी आने वाला है। वर्तमान में रावमावि कोट-तुँगल मे भाषा अध्यापिका के पद पर कार्यरत है और हरघर पाठशाला के माध्यम से कक्षा छठी, सातवीं और कक्षा आठवीं के पूरे हिमाचल से सरकारी विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों को ऑनलाइन हिन्दी पढ़ा रही है। इस उपलब्धि के लिए उन्हें इलाके के पूर्व विधायक डी.डी.ठाकुर, ग्राम पंचायत प्रधान कोट काहन सिंह, उप-प्रधान हरि सिंह, इनकी पैतृक ग्राम पंचायत तरनोह के प्रधान चन्द्रमणि, उप-प्रधान रोहित ठाकुर, विद्यालय प्रधानाचार्य पवन कुमार, प्रतिमा कपूर प्रवक्ता रासायन विज्ञान, सूरज भाटिया प्रवक्ता जीव विज्ञान, स्वप्न कुमार प्रवक्ता भौतिक विज्ञान, यशोदा प्रवक्ता हिन्दी, सत्य अध्यापिका कला स्नात्तक, रवि सिंह प्रवक्ता राजनीति विज्ञान, वरिष्ठ सहायक मान सिंह व विद्यालय के समस्त स्टाफ ने बधाई दी है। इन उपलब्धियों के लिए लेखिका नर्बदा ठाकुर ने अपने पिता तुल्य ससुर सेवानिवृत्त रेंज ऑफिसर दलीप सिंह, सासु माँ राजकुमारी, पति दिनेश चौहान का जिन्होने इन कार्य के लिए इन्हे समय दिया, का विशेष धन्यवाद व आभार व्यक्त किया है। साथ ही उन्होंने "काव्य सरिता" की सम्पादकीय टीम, "कोरोना काव्य" की सम्पादकीय, लेखकीय और पाठकीय टीम का, अपने समस्त गुरुजनों, साथियों और भाई-बहनों का विशेष आभार व धन्यवाद किया।
Vandana Yadav, the engineer-turned journalist and writer from Paonta Sahib, Sirmaur, bagged the Her Rising Award 2020. One of the 27 awardees at the mega event organised and hosted online by the Jobs For Her platform, Vandana was acknowledged and celebrated for being a rising leader in the field of education. While accepting her award at the virtual event, Vandana spoke about how women can support each other unconditionally in their professional and personal journeys. She shared how making unconventional choices comes easily to oneself if he/she has identified their passion and are willing to pursue it relentlessly. She added, “Learning must never cease in life because if that happens, life loses all its purpose. Jobs for Her is a profound initiative which has taken a lead in this area and is bringing together wonderful women and helping them rise in their careers.” Currently based in Chandigarh, Vandana comes with a rich journalistic experience with respect to an academic setting. She has been working with top-tier institutes like IIT Gandhinagar, IIM Ahmedabad, EDII, ISB Mohali and more over the past eight years. This is not the first time that she has made the state proud. This year in March, she was also bestowed with the prestigious WEF Exceptional Woman of Excellence Award, 2020 at the annual WEF event held in Cairo, Egypt. The event was held under the auspices of H.E. Abdelfattah El Sisi, President of Egypt, and had brought together over 1,000 women from more than 75 countries who exchanged their experiences and knowledge with each other. Previously, she has been awarded with The Lioness Inspiring Young Woman title by a Hyderabad-based NGO.
For the first time, two women officers have been selected to join as ‘Observers’ (Airborne Tacticians) in the Indian Navy’s helicopter warships stream. This will ultimately pave the way for women in frontline warships. Sub Lieutenant (SLt) Kumudini Tyagi and SLt Riti Singh will be the first women in India to operate from the deck of warships. The two are a part of a group of 17 officers of the Navy, including four women officers and three officers of the Indian Coast Guard, who were awarded ‘Wings’ on graduating as ‘Observers’ at a ceremony held today at INS Garuda. Meanwhile, the Indian Air Force, the first branch of the armed forces to put women in combat roles, is set to deploy a woman pilot to the Ambala-based 17 Squadron that has recently been equipped with the new Rafale aircraft, reports said. The Navy said in a statement that they will, in effect, be the first set of woman airborne combatants to operate from warships. So far, woman officers in the Navy have been restricted to fixed wing aircraft that took off and landed ashore.
The animal trials of Indian Covid19 vaccine ‘COVAXIN’ are successful. The Hyderabad based firm Bharat Biotech announced promising results of tests seen in monkeys given COVAXIN vaccine. The vaccine promises to have a good response to the immune system. The vaccine has now reached the phase 1/2 trials and is now ready for clinical trials. The volunteers have been selected for the clinical trials and the trial will begin AIIMS (Patna). Eighteen volunteers at AIIMS Patna will undergo these checkups before being trialed with the vaccine dosage. Worldwide, a total of 155 vaccines are in different stages of development, of which 22 have reached human trial stage, with Bharat Biotech’s COVAXIN being one among them.
सोलन। हिमाचल की बेटी वंशिता ने प्रदेश में अपना और बद्दी क्षेत्र का नाम रौशन किया है। वंशिता ने ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (JEE) मेन 2020 में हिमाचल प्रदेश में टॉप किया है। वंशिता ने 99.83 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं। वंशिता ने 12वीं तक की पढ़ाई नवज्योति सेंचुरी स्कूल बद्दी से की है और चंडीगढ़ से कोचिंग ले रही थी। वंशिता के पिता राकेश ठाकुर HPSEBL सोलन में बतौर SE कार्यरत है जबकि उनकी माँ आरती ठाकुर शिक्षिका है। वंशिता ने बताया कि उनको बचपन से ही अध्यापकों व माता पिता ने सही दिशा दिखा कर हर क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके बुते ज़िंदगी का पहला सपना सच हुआ और मेहनत रंग लाई। वंशिता ने अपनी इस सफलता का श्रेय माता-पिता और टीचर्स को दिया है। टॉपर लिस्ट में शामिल होने पर वंशिता ठाकुर ने कहा कि उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनती की थी। वह अपनी तैयारी को लेकर काफी आश्वस्त थी और परीक्षा में सफलता को लेकर उनके मन में संदेह नहीं था। वंशिता ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह बिल्कुल सच है कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में किसी से कम नहीं है, और शिक्षा व संस्कारों की मजबूत नींव हो तो हर सपने को साकार किया जा सकता है।
भारतीय क्रिकेट में हमेशा से ही बल्लेबाज़ों का दबदबा रहा है, पर कुछ ऐसे भी गेंदबाज़ हैं जिन्होंने क्रिकेट के इतिहास में अपनी छाप छोड़ दी। एक ऐसा ही नाम है जवागल श्रीनाथ (Javagal Srinath)। श्रीनाथ भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के चहेते हैं। उनके नाम, एक ऐसा रिकॉर्ड दर्ज है जो किसी भी खिलाड़ी के लिए मुश्किल है। वह भारत के ऐसे पहले तेज गेंदबाज रहे हैं जो लगभग 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद फेंकने की क्षमता रखते थे। उन्होंने किसी भी अन्य गेंदबाज़ से ज़्यादा 4 वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया। क्रिकेट की दुनिया के रजनीकांत के नाम से जाने जाने वाले श्रीनाथ चाहने वालों के बीच 'मैसूर एक्सप्रेस' के नाम से भी मशहूर थे। श्रीनाथ का जन्म श्रीनाथ का जन्म 31 अगस्त 1969 का कर्णाटक के मैसूर जिला में हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई मैसूर के मारीमल्लप्पा हाई स्कूल से हुई। क्रिकेट में रूची रखने वाले श्रीनाथ ने छोटी उम्र से ही खेलना शुरू कर दिया था। उन्होंने मैसूर के श्री जयचामाराजेंद्र कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की। श्रीनाथ ने दो बार प्रेम विवाह किया। उनकी पहली शादी 1999 में ज्योत्सना नाम की लड़की के साथ हुई। बाद में दोनों ने सहमति से तलाक ले लिया। फिर उन्होंने ने 2008 में माधवी पत्रावली नाम के एक पत्रकार से शादी की। श्रीनाथ का करियर श्रीनाथ ने भारत की ओर से खेलते हुए 67 मैचों में 236 विकेट लिए। इसके अलावा उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में 1,009 रन भी बनाए। श्रीनाथ ने 229 वनडे मैचों में 315 विकेट लिए। भारत की ओर से वनडे में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाजों में श्रीनाथ की नाम पूर्व लेग स्पिनर अनिल कुंबले (337) के बाद दूसरे नंबर पर आता है। इसके अलावा वनडे क्रिकेट में उन्होंने 883 रन भी बनाए। जवागल श्रीनाथ ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 533 जबकि लिस्ट ए क्रिकेट में 407 विकेट लिए। श्रीनाथ ने साल 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ ईडन गार्डन्स के मैदान पर मैच में 132 रन देते हुए कुल 13 विकेट हासिल किए थे पर दुर्भाग्यपूर्ण भारतीय टीम वो मैच हार गई। टेस्ट मैचों में श्रीनाथ ने 8 बार चार, 10 बार 5 और एक बार 10 विकेट अपने नाम किए हैं।
शख्सियत: कुल भूषण गुप्ता ... वर्ष 1962 में एक युवक रोजगार की तलाश में सोलन पहुँचता है। सामान्य कद काठी पर आसमान सा हौसला। शुरूआती वर्षों में तो दो वक्त की रोटी जुटाना भी उसके लिए अपने आप में संघर्ष था। इस पर वर्ष 1967 में एक दुर्घटना के कारण उस युवक को चोटें आती है, पर हौंसला नहीं डगमगाता। वर्ष 1967 में वो युवक स्वरोजगार को चुनता है और एक आटा चक्की स्थापित करता है। और आज शायद ही सोलन में ऐसा कोई घर होगा जहां उस चक्की के आटा का स्वाद न पहुंचा हो। ये कहानी है भूषण परिवार के मुखिया कुलभूषण गुप्ता की। कुलभूषण गुप्ता सादे व्यक्तित्व व आदर्श जीवन के कारण जनमानस के हृदय में विशेष जगह बनाए हुए हैं। अपने मेहनत के बुते उन्होंने आगामी पीढ़ियों को इस योग्य बनाया कि आज भूषण परिवार किसी पहचान का मोहताज नहीं है। गुप्ता सयुंक्त परिवार को अपनी सफलता का आधार मानते है और यही संस्कार उनके पुत्रों में भी है जो वर्तमान में पिता के शुरू किये व्यवसाय को क्षितिज पर ले जाने का कार्य कर रहे है। राजनीति को बनाया जनसेवा का माध्यम: कुलभूषण गुप्ता राजनीति में भी सक्रिय एवं लोकप्रिय रहे हैं। कुल भूषण गुप्ता वर्ष 2000 से 2010 तक नगर परिषद सोलन में पार्षद रहें। इसके उपरांत इनकी छोटी पुत्रवधु रुचि गुप्ता भी वर्ष 2010 से 2014 तक नगर परिषद की पार्षद चुनी गई, जो भूषण परिवार की जन मानस में लोकप्रियता का परिचायक है । आभूषण जगत के क्षितिज पर विराजमान भूषण ज्वेलर्स: भूषण परिवार की तीन महिलाएं वर्ष 2007 में घर की चारदीवारी से आभूषण का व्यवसाय आरम्भ किया था। परिवार की तीन महिलाओं मीना गुप्ता, रीमा गुप्ता और रुचि गुप्ता ने राह बनाई तो परिवार के बाकी सदस्य भी धीरे- धीरे उनके स्वप्न को साकार करने में जुट गए। नतीजन, तब मेहनत और भरोसे की नीव पर, महज एक लाख की लागत से शुरू किया गया वो व्यवसाय आज भूषण ज्वेलर्स का प्रारूप ले चूका है। परिवार की मेहनत और भूषण नाम की प्रतिष्ठा के बुते भूषण के आभूषणों की चमक न सिर्फ सोलन अपितु समस्त प्रदेश में बिखरने लगी है। घर से शुरू किये गए व्यवसाय के उपरांत वर्ष 2014 में राम बाजार में भूषण ज्वेलर्स की नींव रखी गई थी और अब तक के अपने पांच वर्ष के अल्प सफर में ही भूषण ज्वेलर्स विश्वसनीयता और भरोसे का पर्याय बन चुका है। आलम ये है कि प्रदेश में जब भी स्वर्ण आभूषणों की बात होती है तो भूषण ज्वेलर्स का नाम खुद ही जुबां पर आ जाता है।
महज 12 वर्ष की उम्र में ब्रह्मांड के रहस्यों पर किताब लिख सबको अचंभित करने वाले ओजस की किताब 'क्लीयरिंग दी कौस्मिक मैसेज' का विमोचन हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने किया हैं। जो जानकारियां इंटरनेट पर भी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें ओजस ने इस किताब में शामिल किया है।10 हजार शब्दों और 19 चैप्टर वाली क्लीयरिंग दी कौस्मिक मैसेज किताब को ओजस ने कंप्यूटर पर टाइप किया हैं, जिसे व्हाइट फॉल्कन पब्लिशर्स ने प्रकाशित किया है। इस किताब के लिए देश-विदेश से ऑनलाइन ऑर्डर भी आ रहे हैं। ओजस ने बताया कि उसने पहले थियोरी लिखने का सोचा। इसके लिए उसने खगोल शास्त्र से जुड़े रहस्यों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया, जिसे बाद में किताब का रूप दे दिया। ओजस ने बताया कि इस किताब में बच्चों को खगोल से संबंधित लॉजिक मिलेंगे। ओजस के अनुसार उसकी किताब को सोलन ही नहीं बल्कि पंजाब, आयरलैंड व अन्य राज्यों से भी ऑर्डर आए हैं। ओजस अपनी थियोरी और स्मार्ट फोन के डिजाइन को पैटेंट करवाना चाहता है, जिसके लिए वह विवो कंपनी से संपर्क में हैं। ओजस फिलहाल सैनिक स्कूल सुजानपुर में शिक्षा ले रहा है। माता-पिता को हैं गर्व ओजस की माता सरिता शर्मा और पिता रामानंद शर्मा ने कहा कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व हैं। आज जब ज्यादातर छात्र मोबाइल से घिरे रहते हैं, ऐसे दौर में उनके बेटे ने ऐसे विषय पर किताब लिखी है, जो काफी मुश्किल है। उन्होंने कहा कि वह पहले तो अपने बेटे के इस हुनर पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब बेटे के जोर देने पर वह पब्लिशर के पास गए, तब उन्हें विश्वास हुआ।
Her name is the synonym for courage, her name is the synonym for determination, her name is the synonym for fearlessness and her name is the synonym for nerve. She actually need no introduction, she is Malala. The youngest ever Nobel Peace Prize receiver and Girl’s Education Activist. In words of Malala “I tell my story not because it is unique, but because it is the story of many girls.” Today is her birthday and today is the day of hope for ton many girls like Malala, today is Malala Day. First Verdict salutes Malala for her contribution in attracting the attention of world on situation of girl’s education, particularly in Pakistan and Taliban dominant areas. The Journey of Malala 1997 - Malala Yousafzai was born in Mingora, Pakistan on July 12, 1997. 2008 - Taliban took over Swat Valley and Malala had to left her school after Taliban threat. 2008 -Malala Yousafzai was only 11 years old when she blogged for the BBC about living in Pakistan and girl eduction n Pakistan. 2012 - Malala publicly spoke out about girl’s right to Education. As a result she was shot in head by Taliban Gunman, but fortunately survived. 2013- Malala was nominated for the Nobel Prize in 2013 but did not win; she was renominated in March 2014. 2013 - On 12 July 2013, Yousafzai's 16th birthday, she spoke at the UN to call for worldwide access to education. The UN dubbed the event "Malala Day." 2013 -On October 10, 2013, in acknowledgement of her work, the European Parliament awarded Yousafzai the Sakharov Prize for Freedom of Thought 2014 -In October 2014,Malala Yousafzai became the youngest recipient of the Nobel Peace Prize. She was awarded the Nobel along with Indian children's rights activist Kailash Satyarthi. 2017- In April 2017, United Nations Secretary-General Antonio Guterres appointed Yousafzai as a U.N. Messenger of Peace to promote girls education. 2017- Yousafzai was also given honorary Canadian citizenship in April 2017. She is the sixth person and the youngest in the country’s history to receive the honor.