प्रदर्शन और आभार कार्यक्रम तो बहुत हुए मगर इस तरह पहले कभी सरकार का आभार व्यक्त करने को कर्मचारियों का हुजूम नहीं उमड़ा। लाखों की संख्या में कर्मचारी सीएम सुक्खू का दिल की गहराईयों से आभार करने को पहुंचे और धर्मशाला का पुलिस ग्राउंड जय सुक्खू के नारो से गूँज उठा। ऐसा स्वागत या स्नेह, सरकार को कर्मचारियों से शायद ही पहले कभी मिला हो, और हो भी क्यों न सीएम सुक्खू के नेतृत्व की इस कांग्रेस सरकार ने कर्मचारियों की उस मांग को पूरा किया है जिसके लिए प्रदेश के लाखों कर्मचारी सालों तक नेताओं की दरों पर दस्तक देते रहे। सीएम सुक्खू ने कर्मचारियों के इस अनंत संघर्ष पर पूर्ण विराम लगाया है, जिसके लिए कर्मचारियों ने सीएम सुक्खू को सर माथे लगा लिया। कभी उन्हें नायक बताया तो कभी पेंशन पुरुष। आभार के जवाब में सीएम सुक्खू भी कह गए कि मैं आपका सेनापति हूँ और आप मेरी सेना हो। 11 दिसंबर को कर्मचारियों के आशीर्वाद से कांग्रेस सरकार बनी और आगे भी ऐसे ही हमारा साथ देते रहना। कर्मचारियों की ये मांग कोई आम मांग नहीं थी। ये वो मसला था जिससे प्रदेश के लाखों कर्मचारियों का भविष्य जुड़ा था, वो कर्मचारी जो एनपीएस के अंतर्गत आते थे और जिन्हें शायद सेवानिवृत होने के बाद अपने बुढ़ापे में किसी और का सहारा लेना पड़ता। एनपीएस के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों के ऐसे कई मामले सामने आए है, जब इन कर्मचारियों को सेवानिवृत होने के बाद नाम मात्र पेंशन मिली। पूरे जीवन सरकार की सेवा करने के बाद ये कर्मचारी बुढ़ापे में इतने लाचार हो गए की जीवन व्यापन कठिन हो गया। इसी के बाद से पुरानी पेंशन बहाली के लिए महासंघर्ष का आरम्भ हुआ। न जाने कितनी ही हड़तालें, प्रदर्शन, अनशन इन कर्मचारियों ने किये मगर एक लम्बे समय तक इनकी नहीं सुनी गई। अपने बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए संघर्षरत इन कर्मचारियों पर एफआईआर भी हुई, इन पर वाटर कैनन्स भी दागी गई और इनकी आवाज़ दबाने की कोशीश भी की गई, मगर संघर्ष थमने के बजाए और उग्र होता गया। आखिर जिस सरकार ने कर्मचारियों की नहीं सुनी वो सरकार सत्ता से बाहर हुई और सीएम सुक्खू के नेतृत्व की कांग्रेस सरकार कर्मचारियों के लिए मसीहा बन गई। वादे अनुसार पहली कैबिनेट की बैठक में ही पुरानी पेंशन को बहाल कर दिया गया। सरकार के इस फैसले से कर्मचारियों में केसा उत्साह है ये एक बार फिर धर्मशाला के पुलिस ग्राउंड में देखने को मिल गया।
कई रैलियां, विरोध प्रदर्शन, और दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद अब प्रदेश के जेबीटी प्रशिक्षु थक चुके है। पढ़ाई करने के साथ साथ इन प्रशिक्षुओं द्वारा सरकार तक अपनी आवाज़ पहुंचना भी अनिवार्य हो गया है। प्रदेश का युवा आए दिन सड़कों पर उतरने को मजबूर है। मगर अब जेबीटी भर्ती में बीएड डिग्री धारकों को शामिल करने के विरोध में जेबीटी डीएलएड प्रशिक्षित बेरोजगार संघ अब आर पार की लड़ाई के मूड में है। इन प्रशिक्षुओं को उम्मीद दी थी कि नई सरकार इनके लिए कुछ सोचेगी मगर नई सरकार ने भी इन्हें निराश किया है। आज इनके पास सड़कों पर उतरने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। रोज़गार के लिए संघर्ष करते इन प्रशिक्षुओं ने बीते दिनों शिमला शिक्षा निदेशालय पहुंच कर सरकार के इस निर्णय के खिलाफ अपना विरोध भी जाहिर किया है और आगे भी विरोध करने की बात कही है। प्रदेश सरकार एनसीईटी की 2018 की गाइडलाइन का हवाला देकर बैचवाइज जेबीटी भर्ती में बीएड डिग्री धारकों को शामिल कर रही है, जिससे जेबीटी की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है। बेरोजगार जेबीटी प्रशिक्षुओं ने बताया बीएड को जेबीटी भर्ती में शामिल करने के मामले को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट ने एनसीटीई की अधिसूचना को खारिज कर दिया है, जिसके बाद मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन हिमाचल सरकार ने पुराने आर एंड पी रूल के आधार पर ही एनसीटीई की अधिसूचना जारी कर बैचवाइज जेबीटी भर्ती में बीएड डिग्री धारकों को भर्ती के लिए शामिल किया है, जबकि इसके लिए नए आर एंड पी रूल बनाएं जाने थे। जेबीटी डीएलएड प्रशिक्षित बेरोजगार संघ का कहना है कि सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने दावा किया था कि इस मामले में वे जेबीटी के साथ खड़े होंगे मगर कांग्रेस के विचार सत्ता में आने के बाद बदल गए। जेबीटी प्रशिक्षुओं ने बताया कि वे कई बार शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री से मामले को लेकर मिले, लेकिन हर बार आश्वासन ही मिले हैं। सरकार ने अगर जेबीटी भर्ती में बीएड को मान्यता देनी है, तो जेबीटी ट्रेनिंग को बंद क्यों नहीं करती। जेबीटी अभ्यर्थियों के पास संघर्ष करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। इस पूरे मामले में प्रारंभिक शिक्षा निदेशक से हस्तक्षेप करने की भी मांग की जा रही है। प्रदेशाध्यक्ष मोहित ठाकुर ने कहा कि इससे पहले भी जेबीटी बैचवाइज भर्ती में जम्मू-कश्मीर से ईटीटी के नकली डिप्लोमा कर नौकरी लगे हैं, जो केस भी हाई कोर्ट में लंबित पड़ा है। भविष्य में भी अगर जेबीटी के जगह पर बीएड लग जाते हैं, तो जेबीटी छात्रों के साथ यह अन्याय होगा। आरएंडपी रूल्स से न हो छेड़छाड़ : जेबीटी प्रशिक्षुओं का मानना है कि बीएड डिग्रीधारकों को जेबीटी के लिए पात्र करने से उनके प्रशिक्षण का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा। प्रशिक्षण हासिल कर चुके हजारों बेरोजगारों के साथ वर्तमान में प्रशिक्षण हासिल कर रहे प्रशिक्षुओं का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पुराने भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के आधार पर ही भर्ती प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए। इन प्रशिक्षुओं की मांग है की बीएड वालों को जेबीटी का लाभ नहीं मिलना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो जेबीटी को समय पर इनके प्रशिक्षण का लाभ नहीं मिल पाएगा। प्रदेश में 40 हजार युवाओं ने जेबीटी और डीएलएड डिप्लोमा किया हुआ है। भर्ती में देरी की वजह से उन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली है। यदि बीएड भी जेबीटी भर्ती के लिए पात्र माने जाते हैं, तो उनका नंबर ही नहीं आएगा। भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में बदलाव होने से जिला के डाइट संस्थान व निजी शिक्षण संस्थानों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसके साथ ही बीएड अभ्यर्थी भी जेबीटी पदों में आएंगे, तो उनका नंबर कई सालों बाद आएगा। ऐसे में मांग की जा रही है कि आरएंडपी रूल्स से कतई छेड़छाड़ न की जाए।
प्रदेश में अभी नई सरकार को आए कुछ महीने ही हुए है मगर अभी से प्रदेश के कर्मचारियों ने सरकार के आगे अपनी मांगो का भंडार लगा दिया है। कर्मचारियों को उम्मीद है कि पिछली सरकार जो न कर पाई वो नई सरकार कर दिखाएगी। आशावान कर्मचारियों की लम्बी फेहरिस्त में एनएचएम कर्मचारी भी शामिल है। राज्य स्वास्थ्य समिति (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) अनुबंध कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों के अनुसार एनएचएम कर्मचारी विभिन्न स्वास्थ्य समितियों के तहत 24 वर्ष से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन आज तक किसी भी सरकार द्वारा इन कर्मचारियों के लिए नियमितिकरण की कोई स्थायी नीति नहीं बनाई गई है। एनएचएम कर्मचारियों ने मांग उठाई है कि इन कर्मचारियों को नियमित करने के लिए जल्द से जल्द मणिपुर की तर्ज पर पॉलिसी का निर्माण किया जाए। हाल ही में एनएचएम कर्मचारियों का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक सुदेश मोक्टा से मिला। इस दौरान उन्होंने मांग उठाई है कि कर्मचारियों को रेगुलर करने के लिए पॉलिसी का निर्माण किया जाए। गौरतलब है कि कर्मचारियों को रेगुलर करने के लिए बन रही पॉलिसी की फाइल एमडी एनएचएम के कार्यालय पहुंच चुकी है। ऐसे में कर्मचारियों ने मांग उठाई है कि जल्द से जल्द उनके लिए मणिपुर की तर्ज पर पॉलिसी तैयार की जाए। गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन हिमाचल प्रदेश में पिछले 24 वर्षों से तैनात करीब 1700 कर्मचारियों को अभी तक नियमित नहीं किया गया है। इनके नियमितीकरण के लिए पॉलिसी नहीं बनाई गई है। ऐसे में कर्मचारी पिछले कई सालों से राज्य सरकार से मांग उठा रहे हैं कि इनके नियमितीकरण के लिए पॉलिसी तैयार की जाए। राज्य स्वास्थ्य समिति (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) अनुबंध कर्मचारी संघ हिमाचल प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष सतीश कुमार ने यह मांग उठाई है। दरअसल यह कर्मचारी केंद्र व प्रदेश सरकार की ओर से स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए चलाई जाने वाली विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं और प्रदेश के सभी लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने का काम करते हैं। सतीश कुमार का कहना है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कार्यरत रहे इन कर्मचारियों में से लगभग चार कर्मचारियों की नौकरी के दौरान मौत हो चुकी है तथा लगभग 56 लोग बिना किसी बेनेफिट लिए रिटायर हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारियों द्वारा क्षय रोग, एचआईवी एड्स, शिशु स्वास्थ्य, कोविड-19 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के तहत अपना योगदान दिया जा रहा है। किसी सरकार ने न तो आज तक इन कर्मचारियों का नियमितीकरण किया और न ही इन्हें रेगुलर स्केल का लाभ दिया जा रहा है। प्रतिनिधिमंडल ने यह मांगें भी उठाईं प्रतिनिधिमंडल ने मांग उठाई है कि एनएचएम से रिटायर होने वाले कर्मचारियेां को ग्रेच्यूटी भी प्रदान की जाए। साथ ही एनएचएम मेें करीब 250 के करीब कर्मचारी ऐसे हैं, जिन कर्मचारियों का ईपीएफ नहीं कट रहा है। उन्होंने मांग उठाई है कि एनएचएम के तहत कार्य कर रहे सभी कर्मचारियों का ईपीएफ काटा जाए। वही मिशन निदेशक ने आश्वासन दिया है कि उनकी मांगो पर विचार किया जाएगा।
हिमाचल प्रदेश के कला अध्यापक सरकार से खासे नाराज चल रहे है। इन अध्यापकों को प्रशिक्षण लेने के बाद भी आज तक नियुक्ति नहीं मिल पाई है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार कला अध्यापक संघ का कहना है कि सरकार से बार -बार गुहार लगाने के बाद भी उनकी मांगों को अनदेखा कर रही है। संघ के अध्यक्ष नरेश ठाकुर ने कहा है कि वे सरकार द्वारा करवाए गए आर्ट्स एंड क्राफ्ट का डिप्लोमा करके नौकरी की आस लगाकर बैठे हैं। उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार अच्छी शिक्षा की गुणवत्ता देने की बात करती है, तो वहीं दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षकों से वंचित रख रही है। संघ ने कहा है कि 15 हजार बेरोजगार कला अध्यापकों ने कांग्रेस सरकार को तन-मन से परिवार सहित सरकार बनाने में सहयोग किया है और अब वे सरकार से नौकरी की आशा लेकर बैठे हैं। प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों के करीब 10 हजार पद खाली चल रहे हैं। इन पदों में से कला अध्यापकों के 881 और पीईटी शिक्षकों के 947 पद खाली चल रहे हैं। इन पदों को भरने के लिए स्कूलों में 100 बच्चों की संख्या की शर्त आफत बनी हुई है। दरअसल 100 विद्यार्थियों से कम संख्या वाले माध्यमिक स्कूलों में कला अध्यापकों की नियुक्ति नहीं की जाएगी। शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार ऐसे में स्कूलों में कला अध्यापक का पद भरा जाना अनिवार्य नहीं है। यानि जिन माध्यमिक स्कूलों में छात्र संख्या 100 से कम है, उन स्कूलों में स्वीकृत कला अध्यापकों के 881 रिक्त पदों को होल्ड में रखा गया है। छात्र संख्या बढऩे पर इन पदों को दोबारा बहाल कर अध्यापकों की नियुक्तियां की जाएंगी। ऐसे में प्रदेश सरकार से कई बार इस शर्त को हटाने की मांग की जा चुकी है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार कला अध्यापक संघ ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से अनुरोध किया है कि जल्द उनके लिए रोजगार का प्रावधान किया जाए। बेरोजगार कला अध्यापक संघ के समस्त सदस्यों ने कहा है कि जब से उन्होंने कला अध्यापक का डिप्लोमा किया है तब से डिप्रेशन में हैं। नौकरी की आस में उम्र भी 50 से 55 के बीच हो चुकी है। मिडल स्कूलों में लगाई गई 100 बच्चों की कंडीशन जो 2012 में आरटी एक्ट के तहत लगाई गई थी, उसे हटाने की भी मांग की गई है। संघ ने कहा है कला एक ऐसा विषय है जो किसी भी बच्चे को कलम चलाना सिखाता है और आगे उसके भविष्य को बनाता है। उन्होंने कहा कि स्कूलों में 100 बच्चों की शर्त को समाप्त किया जाए।
एक तरफ प्रदेश के सैकड़ो युवा एनटीटी भर्ती का इंतज़ार कर रहे है, वहीँ दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश में प्री प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती न होने से केंद्र सरकार से मंजूर 47 करोड़ का बजट लैप्स हो गया है। केंद्र सरकार ने इन शिक्षकों को मानदेय देने के लिए यह बजट मंजूर किया था। सरकार 31 मार्च तक प्रदेश में 4,700 शिक्षक भर्ती नहीं कर सकी। नर्सरी टीचर ट्रेनिंग के एक और दो वर्ष के कोर्स को लेकर बीते तीन वर्ष से विवाद चल रहा है। पूर्व की भाजपा सरकार समय रहते इस मामले को नहीं सुलझा पाया थे। अब अगर प्रदेश की सुक्खू सरकार भी प्री प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती नहीं कर सकी तो वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए मिला करीब 50 करोड़ का बजट भी लैप्स हो जाएगा। प्रदेश में करीब 58 हजार बच्चों ने नर्सरी और केजी कक्षा में दाखिले लिए हुए हैं। बीते तीन वर्षों से इन कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया चली हुई है। पूर्व की भाजपा सरकार ने शिक्षकों की भर्ती के लिए नीति बनाने का फैसला लिया था। नीति बनने तक इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन के माध्यम से शिक्षकों की भर्ती करने को मंजूरी दी थी। इसी बीच विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने से मामला फंस गया। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने पर सुक्खू सरकार ने इन भर्तियों को लेकर नए सिरे से मंथन शुरू किया है। शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और केंद्रीय शिक्षा सचिव के समक्ष भी नई दिल्ली में यह मामला उठाया है। हिमाचल सरकार इस मसले को हल करने के लिए एक विकल्प सामने रखना चाह रही है। जिन अभ्यार्थियों ने एक साल का एनटीटी कोर्स मान्यता प्राप्त संस्थान से किया है, वह भर्ती के लिए पात्र हो सकेंगे। नियुक्ति के एक साल के भीतर उन्हें 6 महीने का ब्रिज कोर्स करना होगा। ब्रिज कोर्स उत्तीर्ण करने के बाद उनकी शैक्षणिक योग्यता पूरी मानी जाएगी। जिन अभ्यार्थियों के एनटीटी कोर्स मान्यता प्राप्त संस्थान से नहीं हुए हैं या नियामक आयोग ने संस्थानों की मान्यता को रद्द कर दिया है। उन संस्थानों के छात्र ब्रिज कोर्स के लिए भी पात्र नहीं माने जाएंगे। अगर ये विपकलप स्वीकार्य हुआ तो एनटीटी प्रशिक्षुओं को नौकरी मिल पाएगी अन्यथा नौकरी का इंतज़ार जारी रहेगा।
एचआरटीसी को हिमाचल प्रदेश की जीवन रेखा माना जाता है। आज हिमाचल के लगभग हर कोने तक एचआरटीसी की बसें पहुँचती है जो हिमाचल की कठिन भौगौलिक परिस्थितयों के बावजूद भी जन-जन को मुख्यधारा से जोड़ती है। मगर हिमाचल के दूर दराज़ क्षेत्रों तक पहुँचने वाली इन बसों को सड़क तक पहुँचाने में जिन लोगों ने हम भूमिका निभाई आज वो ही सड़को पर उतरने को मजबूर हो गए है। हम बात कर रहे एचआरटीसी के 8000 सेवानिवृत कर्मचारियों की। पूरी उम्र सरकार के लिए जिन कर्मचारियों ने काम किया, आज बुढ़ापे में उन्हीं का साथ सरकारों ने छोड़ दिया। यह हालात है हर महीने अपनी पेंशन का इंतज़ार करने को मजबूर हुए एचआरटीसी के पेंशनरों का। हिमाचल पथ परिवहन के सेवानिवृत कर्मचारी अक्सर सरकार से गुहार लगाते हैं कि उन्हें समय पर उनकी पेंशन नहीं मिल रही। इन सेवानिवृत कर्मचारियों के लिए ये एक या दो नहीं बल्कि हर महीने की कहानी बनकर रह गई है। अपना पूरा जीवन एचआरटीसी को समर्पित करने वाले ये कर्मचारी अब बुढ़ापे में अपने एक मात्र सहारे पेंशन को लेकर हर महीने परेशान रहते हैं। इन पेंशनर्स का कहना हैं कि समय पर पेंशन न मिलने के कारण इनके लिए जीवन यापन तक करना मुश्किल हो गया है। ये पेंशनर इस बुढ़ापे में अपनी दवाई का खर्चा भी नहीं उठा पा रहे हैं। हालात ये है कि जब ये सेवानिवृत कर्मचारी अपनी मांगो के लिए सड़कों पर उतरे तो पिछली सरकार द्वारा इन पर एफआईआर दर्ज की गई। नई सरकार भी इनपर कुछ ख़ास मेहरबान नहीं दिखती, न तो इन पर दर्ज मामले वापस लिए गए और न ही इनके मसले हल किए गए। एचआरटीसी पेंशन कल्याण संगठन के अध्यक्ष सत्याप्रश शर्मा का कहना है कि फाइनेंसियल क्राइसिस के नाम पर हर बार उनकी पेंशन में विलम्ब कर दिया जाता है। जो पैसा आता है उससे पहले बाकि काम निपटाए जाते है, कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है और फिर कहीं जाकर सेवानिवृत कर्मचारियों की बारी आती है। उन्होंने कहा कि ऐसा एक भी महीना नहीं गुज़रता जब इन्हें बिना एमडी ऑफिस के चक्कर काटे पेंशन मिल जाए। समय पर पेंशन न मिलना तो महज़ एक समस्या है मगर इसके अलावा भी ये सेवानिवृत कर्मचारी कई परेशानियां झेल रहे है। सरकार ने अब तक उन्हें उनके एरिअर का भी भुगतान नहीं किया है। 2015 से डीए का एरियर पेंडिंग है। रिवाइज्ड पे स्केल भी इन कर्मचारियों को सात महीने बाद मिला और बीते सात महीनों का जो एरियर बना वो भी पेंडिंग है। रिवाइज्ड ग्रेचुटी और रिवाइज्ड लीव एकाश्मेंट जैसे और भी कई भुगतान बाकी है। रोडवेज बनाने की मांग : सेवानिवृत कर्मचारियों का मानना है कि यदि सरकार चाहे तो उनकी समस्या हल हो सकती है। उनके पेंशन के भुगतान के लिए एक अलग ट्रस्ट बनाया जा सकता है जो ये सुनिश्चित करे कि सेवानिवृत कर्मचारियों को समय पर उनकी पेंशन मिले। साथ ही कर्मचारियों की ये भी मांग है की एचआरटीसी को रोडवेज बनाया जाए ताकि प्रदेश सरकार के बाकि कर्मचारियों की तरह ही इन्हें सभी लाभ मिल पाए। सीएम की माता की पेंशन भी डिले ! एचआरटीसी पेंशनर कल्याण संगठन का कहना है कि खुद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के पिता एचआरटीसी में ड्राइवर रह चुके हैं, मगर इसके बावजूद भी एचआरटीसी पेंशनर्स के बारे में कोई सुध नहीं ले रहा। स्थिति इतनी खराब है कि मुख्यमंत्री की माता को मिलने वाली पेंशन भी समय पर नहीं आती है। हिमाचल पथ परिवहन निगम की सेवा में जिन लोगों ने पूरी जिंदगी लगा दी, उन्हें अब पेंशन के लिए तरसना पड़ रहा है। पेंशनरों की मुख्य मांगें : - महीने के पहले हफ्ते में जारी हो पेंशन - मेडिकल बिलों का समय पर भुगतान - 5, 10 और 15 फीसदी पेंशन वृद्धि का लाभ - 2015 से ग्रेच्युटी सहित अन्य भत्तों का भुगतान
प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में तैनात मुख्य शिक्षकों को पदोन्नति पर दी जाने वाली इंक्रीमेंट शीघ्र बहाल करने के राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने आवाज बुलंद की है। संघ का कहना है कि मुख्य शिक्षकों को पदोन्नति पर दी जाने वाली इंक्रीमेंट जो कि जेबीटी शिक्षक को 25-25 साल की सेवा उपरांत मुख्य शिक्षक बनने पर मिलती थी, जिसे जनवरी 2022 को लागू वेतनमान में छीना गया है, उसको तुरंत प्रभाव से बहाल किया जाए। इसके अलावा जेबीटी शिक्षकों के वेतनमान में भारी विसंगति है व राइडर पर रहे शिक्षकों पर कोई स्पष्ट निर्देश न होने के कारण 2016 के उपरांत नियमित जेबीटी शिक्षक नए वेतनमान के लाभ से वंचित रह गए हैं। संघ के प्रदेशाध्यक्ष जगदीश शर्मा का कहना है कि शीघ्र ही संघ का प्रतिनिधिमंडल प्राथमिक शिक्षकों की विभिन्न मांगों को लेकर मंत्री रोहित ठाकुर से मिलेगा व उन्हें अपनी मांगों से अवगत करवाएगा। इसके अलावा शिक्षा निदेशक को भी मांग पत्र प्रदान किया जाएगा। जेबीटी से एलटी की तर्ज पर अन्य सी एंड वी के पदों पर भी योग्यता पूरी करने वाले जेबीटी शिक्षकों को पदोन्नति लाभ प्रदान करने की संघ मांग करता है तथा इन सभी में जेबीटी से तुरंत पदोन्नति की जाए।
हिमाचल प्रदेश के जेबीटी प्रशिक्षुओं ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।जेबीटी प्रशिक्षु प्रदेश के अलग-अलग कोनों में प्रदर्शन कर रहे है। दरससल प्रदेश के जिन जिलों में पहली बार काउंसिलिंग के दौरान जेबीटी के पद खाली रह गए हैं वहां पर दूसरे राउंड में काउंसिलिंग शुरू कर दी गई है, लेकिन एक बार फिर से इस भर्ती का विरोध शुरू हो गया है। कारण यह है कि हमीरपुर, शिमला सहित अन्य जिलों में भर्ती के लिए जो नोटिफिकेशन जारी हुई है उसके मुताबिक बीएड को भी इसमें पात्र माना गया है।यानी जेबीटी के साथ बीएड वाले अभ्यर्थी भी इस काउंसिलिंग में भाग ले सकते हैं। ऐसे में एक बार फिर पूरे प्रदेश में इसका विरोध शुरू हो गया है और जेबीटी प्रशिक्षु इस नोटिफिकेशन के विरोध में खड़े हो गए हैं। जेबीटी प्रशिक्षुओं का कहना है कि अगर सरकार निर्णय को वापस नहीं लेती है तो पूरे प्रदेश में आंदोलन किया जाएगा। जेबीटी प्रशिक्षुओं ने बताया कि वर्तमान में चल रही जेबीटी भर्ती में बीएड को शामिल करने का निर्णय सरकार ने गलत तरीके से लिया है। यह निर्णय जेबीटी के अधिकारों का हनन करने के लिए लिया गया है। पिछले पांच साल से जेबीटी प्रशिक्षु शोषण का शिकार हो रहे हैं। प्रदेश में करीब 40 हजार जेबीटी प्रशिक्षित हैं और वर्तमान में 5000 प्रशिक्षु जेबीटी का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। सरकार का नकारात्मक रवैया जेबीटी प्रशिक्षुओं के लिए हानिकारक है। प्रशिक्षुओं का कहना है कि सरकार ने बीएड को जेबीटी के पदों पर नियुक्ति के लिए पात्र माना है, इस निर्णय को सरकार वापस ले। अगर सरकार इस निर्णय को वापस नहीं लेती है तो पूरे प्रदेश में व्यापक आंदोलन किया जाएगा और साथ ही पूरे प्रदेश में कक्षाओं का बहिष्कार कर प्रशिक्षण संस्थान बंद कर दिए जाएंगे।
हिमाचल में चुनाव के दौरान पुरानी पेंशन बहाली के साथ साथ आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थाई नीति का मामला खूब गरमाया था। जयराम सरकार ने इन कर्मचारियों की मांग पूरी करने के लिए कैबिनेट सब कमेटी का गठन किया, कई दफा इन कर्मचारियों का डाटा मंगवाया, न जाने कितनी बैठकें की मगर आउटसोर्स कर्मचारियों का दामन खाली ही रहा। आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए पालिसी बनाने में पूर्व सरकार पूरी तरह नाकामयाब रही थी। अब इन कर्मचारियों को उम्मीद है कि नई सरकार इनके लिए कुछ करेगी और इनका भविष्य भी कुछ सुरक्षित होगा। हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के अनुसार नई सरकार के कार्यकाल में अब तक आउटसोर्स कर्मचारियों को सिर्फ निष्कासन ही मिला है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश जलशक्ति विभाग धर्मपुर मंडल में कार्यरत 169 आउटसोर्स कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। इन आउटसोर्स कर्मचारियों को पूर्व सरकार ने रखा था। बीते चार पांच साल से सेवाएं दे रहे थे। हैरानी की बात है कि निकालने से पहले उन्हें नोटिस भी नहीं दिए गए हैं। सिर्फ फ़ोन कर बताया गया कि उनका अनुबंध खत्म है और सरकार से कोई आदेश नहीं आए हैं कि उनका एग्रीमेंट आगे बढ़ाना है। ठेकेदार का टेंडर 31 दिसंबर 2022 को समाप्त हो गया है। ऐसा ही कुछ लोक निर्माण विभाग में भी किया गया। अचानक इतने लोगों की नौकरी चले जाने के बाद प्रदेश के आउटसोर्स कर्मचारी घबराए हुए है। हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के समक्ष भी ये मसला उठाया है। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा का कहना है कि आउटसोर्स कर्मचारियों का इस तरह निष्कासन अन्याय है। उन्होंने कहा कि नीति बनने तक किसी भी कर्मचारी को इस तरह नौकरी से नहीं निकाला जाना चाहिए। उन्होंने सरकार से मांग कि है कि इन सभी कर्मचारियों को वापस नौकरी पर रखा जाए और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थाई नीति बनाई जाए। प्रदेश में करीब 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारी: हिमाचल प्रदेश के करीब 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों को उम्मीद है कि प्रदेश सरकार उनके लिए कोई सशक्त नीति बनाएगी। प्रदेश के अधिकांश सरकारी विभागों में आउटसोर्स कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इनके लिए आज तक किसी सरकार ने कोई नीति का प्रावधान नहीं किया है। बता दें कि ये आउटसोर्स कर्मचारी वे कर्मचारी हैं जिनको सरकारी विभागों में कॉन्ट्रैक्ट आधार पर रखा जाता है। यानी कि ये सरकारी विभाग में तो हैं पर सरकारी नौकरी में नहीं हैं। इनकी नियुक्तियां या तो ठेकेदारों के माध्यम से की जाती है या किसी निजी कंपनी के माध्यम से। ये कर्मचारी काम तो सरकार का करते है मगर इन्हें वेतन ठेकेदार या कंपनी द्वारा मिलता है। न तो इन्हें सरकारी कर्मचारी होने का कोई लाभ प्राप्त होता है न ही एक स्थिर नौकरी। इन्हें जब चाहे नौकरी से निकाला जा सकता है। सरकार द्वारा वेतन तो दिया जाता है मगर ठेकेदार की कमिशन के बाद इन तक तक पहुंच पाता है। शोषण कम करने को सरकार बनाए ठोस नीति: महासंघ हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है कि प्रदेश के विभिन्न विभागों में हजारों कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा गया है लेकिन पिछली सरकार द्वारा इनके नियमतिकरण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और न ही इनके शोषण को कम करने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। नामात्र वेतन पे भी इनसे अधिक से अधिक काम लिया जाता हैं।
प्रदेश में अभी नई सरकार को आए कुछ समय ही बीता है मगर अभी से प्रदेश के कर्मचारियों ने सरकार के आगे अपनी मांगो का भंडार लगा दिया है। कर्मचारियों को उम्मीद है कि पिछली सरकार जो न कर पाई वो नई सरकार कर दिखाएगी। आशावान कर्मचारियों की लम्बी फेहरिस्त में एनएचएम कर्मचारी भी शामिल है।राज्य स्वास्थ्य समिति (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) अनुबंध कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों के अनुसार एनएचएम कर्मचारी विभिन्न स्वास्थ्य समितियों के तहत 24 वर्ष से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन आज तक किसी भी सरकार द्वारा इन कर्मचारियों के लिए नियमितिकरण की कोई स्थायी नीति नहीं बनाई गई है। राज्य स्वास्थ्य समिति (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) अनुबंध कर्मचारी संघ हिमाचल प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष सतीश कुमार एवं प्रदेश प्रेस सचिव राज महाजन ने संयुक्त बयान में बताया कि हाल ही में प्रदेश को स्वास्थ्य विभाग में राष्ट्रीय स्तर पर क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम में बेहतर कार्य करने के लिए प्रथम पुरस्कार मिला है। इसके लिए सरकार एवं विभाग दोनों ही बधाई के पात्र हैं, लेकिन इस बेहतर परिणाम के लिए सबसे पहले स्वास्थ्य विभाग में ब्लाक स्तर, जिला स्तर, प्रदेश स्तर पर एवं हर स्वास्थ्य संस्थान में रीढ़ की हड्डी की तरह कार्य करने वाले हर उस कर्मचारी का योगदान है, जो पिछले 24 वर्षों से अनुबंध पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत अपना कार्य पूरी निष्ठा एवं लगन से कर रहा है। सतीश कुमार का कहना है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कार्यरत रहे इन कर्मचारियों में से लगभग चार कर्मचारियों की नौकरी के दौरान मौत हो चुकी है तथा लगभग 56 लोग बिना किसी बैनेफिट के लिए रिटायर हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारियों द्वारा क्षय रोग, एचआईवी एड्स, शिशु स्वास्थ्य, कोविड-19 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के तहत अपना योगदान दिया जा रहा है। किसी सरकार ने न तो आज तक इन कर्मचारियों का नियमितीकरण किया और न ही इन्हें रेगुलर स्केल का लाभ दिया जा रहा है। केंद्र के कर्मचारी है तो सातवां वेतन आयोग क्यों नहीं मिला : राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ के उप प्रधान डॉ अनुराग शर्मा का कहना है कि सरकार हमारी मांगें ये कह कर टाल देती है कि हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है। पर अगर हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है तो हमें सातवां वेतन आयोग मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं है। हमें भले ही केंद्र प्रायोजित स्कीमों के अंतर्गत नियुक्ति दी गई हो मगर इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सिर्फ पैसा देता है। स्वास्थ्य राज्य का मसला होता है। हमें राज्य स्वास्थ्य समिति के तहत रखा गया था जिसके चेयरमैन मुख्य सचिव है। हमें राज्य सरकार के लिए नियुक्त किया गया है और हम काम भी राज्य सरकार का करते है न कि केंद्र सरकार के लिए, तो मसले भी राज्य सरकार को ही हल करने होंगे।
3 मार्च साल 2021, हिमाचल प्रदेश के कई कर्मचारी नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले पेंशन व्रत पर बैठे थे। मांग थी पुरानी पेंशन बहाली की। व्रत टूटा मगर पुरानी पेंशन बहाली की मांग पूरी नहीं हुई। संघर्ष जारी रहा और ठीक एक साल बाद 3 मार्च साल 2022 को हिमाचल में कर्मचारियों ने विशाल धरना प्रदर्शन किया, ऐसा धरना जो शायद ही हिमाचल में पहले कभी कर्मचारियों ने किया होगा। तीन मार्च को शिमला के टूटीकंडी में सभी कर्मचारी एकत्रित हुए और आगे बढ़ते हुए 103 टनल के पास एनपीएस कर्मचारियों ने हल्ला बोला। इस दौरान कर्मचारियों द्वारा यातायात बंद किया गया। पुलिस के जवानों ने कर्मचारियों को जब हटाने की कोशिश की तो कर्मचारियों और पुलिस के बीच धक्का-मुक्की हुई। इसके बाद प्रदर्शन में शामिल एनपीएस कर्मियों पर एफआईआर दर्ज की गई। कर्मचारियों की ये नाराजगी तत्कालीन सरकार को भारी पड़ी और विधानसभा चुनाव में तख़्त और ताज बदल गए। कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में ओपीएस बहाली का वादा किया और कर्मचरियों ने एतबार। अब 3 मार्च ही वो तारीख बन चुकी है जब प्रदेश की सुक्खू सरकार ने कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली संबंधित एसओपी को मंजूरी देकर कर्मचारियों को सबसे बड़ा तोहफा दिया है। आखिरकार एक लम्बे संघर्ष के बाद प्रदेश के कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग पूरी हो गई। प्रदेश सरकार द्वारा चौथी कैबिनेट की बैठक में पुरानी पेंशन बहाली की एसओपी को मंज़ूरी दे दी गई है। 1 अप्रैल, 2023 से पुरानी पेंशन लागू करने का फैसला लिया गया है। जिस मसले ने प्रदेश की चुनावी हवा का रुख बदल कर रख दिया था, अब वो मसला पूरी तरह हल हो गया है। चुनाव से पहले कांग्रेस द्वारा जनता को दी गई गारंटियों में से पुरानी पेंशन बहाली पहली गारंटी थी, जो अब पूरी हो गई है। प्रदेश की नई सरकार ने कर्मचारियों की पेंशन की सबसे बड़ी टेंशन को खत्म कर दिया है। हिमाचल में करीब सवा लाख कर्मचारी इस समय एनपीएस के दायरे में आते हैं और इनको इसका लाभ मिलने वाला है। इस फैसले से प्रदेश सरकार पर सालाना करीब 1,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। वहीँ हिमाचल के 1.36 लाख कर्मचारियों का एक अप्रैल से नेशनल पेंशन सिस्टम फंड कटना भी बंद हो जाएगा। इन कर्मचारियों को कैबिनेट ने जीपीएफ के तहत लाने का फैसला लिया है। एनपीएस में रहने के इच्छुक कर्मियों को लिखित में विकल्प देने की पेशकश की गई है। भविष्य में जो नए कर्मचारी सरकारी सेवा में नियुक्त होंगे, वे पुरानी पेंशन व्यवस्था में आएंगे। जिन एनपीएस कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति 15 मई, 2003 के बाद हुई है, उनको भावी तिथि से पुरानी पेंशन दी जाएगी। नियमों में आवश्यक संशोधन के बाद एनपीएस में सरकार और कर्मचारियों द्वारा जारी अंशदान 1 अप्रैल, 2023 से बंद हो जाएगा। कैबिनेट ने वित्त विभाग को इस संबंध में नियमों में बदलाव करने और आवश्यक निर्देश जारी करने को कहा है। कैबिनेट ने केंद्र सरकार से प्रदेश की 8,000 करोड़ रुपये एनपीएस राशि लौटाने का प्रस्ताव भी पारित किया है। सरकार ने लौटाया कर्मचारियों का आत्मसम्मान : प्रदीप ठाकुर पेंशन बहाल करने के लिए हिमाचल प्रदेश नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री व समस्त कैबिनेट का धन्यवाद किया है। संगठन के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर तथा अन्य सभी पदाधिकारियों ने सरकार का धन्यवाद करते हुए कहा कि पुरानी पेंशन बहाली का जो वादा कांग्रेस पार्टी ने चुनावों के वक्त कर्मचारियों के साथ किया था, वो अब पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व तक ने पेंशन बहाली का समर्थन किया था। प्रियंका गांधी, भूपेश बघेल व अन्य राष्ट्रीय नेताओं ने भी कर्मचारियों की पेंशन बहाली के वादे किये थे। प्रियंका गांधी तो स्वयं कर्मचारियों के धरने पर भी पहुंची थी। कांग्रेस ने कर्मचारियों को विश्वास दिलाया और कर्मचारियों ने भी कांग्रेस का साथ दिया। नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ द्वारा सरकार का धन्यवाद करते हुए कहा गया कि सरकार ने कर्मचारियों का बुढ़ापा सुरक्षित करके उन्हें जहां आर्थिक रूप से सुरक्षित किया है, वहीँ उनका आत्मसम्मान उन्हें वापस लौटाया है। उन्होंने कहा कि कर्मचारी भविष्य में प्रदेश में आने वाली हर चुनौती का सामना करने के लिए हमेशा सरकार के साथ खड़े रहेंगे और प्रदेश की प्रगति के लिए कर्मचारी हर संभव योगदान देंगे।
बरसों का इन्तजार खत्म हुआ और हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग पूरी हो गई। बीते दिनों हुई कैबिनेट बैठक में प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने का ऐलान कर दिया है। जिस मसले ने प्रदेश की चुनावी हवा का रुख बदल कर रख दिया था, अब वो मसला हल हो गया है। प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मानों कर्मचारियों के लिए मसीहा बनकर आए और उनकी पेंशन की सबसे बड़ी टेंशन को खत्म कर गए। कर्मचारी एक लम्बे अर्से से अपने बुढ़ापे की सुरक्षा की मांग रहे थे । पिछली सरकार ने जिन कर्मचारियों पर एफआईआर की इस सरकार ने उन्हीं कर्मचारियों को गले लगा लिया। जो कर्मचारी सचिवालय का घेराव किया करते थे, वो ही कर्मचारी सचिवालय के बाहर जश्न मनाते दिखाई दिए। नाचते गाते खुशियां मनाते दिखाई दिए। यही नहीं इन कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री को नायक की उपाधि भी दे दी। हिमाचल में करीब सवा लाख कर्मचारी इस समय एनपीएस के दायरे में आते हैं और ये सवा लाख कर्मचारी और इनके परिवार लगातार पुरानी पेंशन की मांग कर रहे थे। अब कर्मचारियों को पुरानी पेंशन के ऐलान के साथ ही एक लम्बे संघर्ष पर विराम लग गया है। इस संघर्ष की चिंगारी साल 2015 में भड़की थी और देखते ही देखते ये चिंगारी ज्वाला में बदल गई। जब प्रदेश में पुरानी पेंशन को हटा कर नई पेंशन लाई गई तो कर्मचारियों ने इसका स्वागत किया। लेकिन कुछ समय बाद जब इसके परिणाम सामने आए तो कर्मचारियों को समझ आ गया कि नई पेंशन स्कीम उनके लिए घाटे का सौदा है और फिर नई पेंशन को हटा पुरानी पेंशन की मांग की सुगबुगाहट तेज़ हो गई और साल 2015 तक कर्मचारी संगठित हो गए। साल 2017 से पहले जब भाजपा विपक्ष में थी तो पुरानी पेंशन कर्मचारियों को लौटाने के वादे किया करती थी। 2017 में जब भाजपा की सरकार बनी तो कर्मचारियों को उम्मीद थी कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए प्रदेश सरकार कुछ कदम उठाएगी। दरअसल कर्मचारियों का कहना था कि इससे पहले जब भाजपा विपक्ष में थी तो खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इस मांग की पैरवी किया करते थे। परन्तु सत्ता में आने के बाद जब कोई बदलाव होता नहीं दिखा तो शुरुआत हुई उस संघर्ष की जो आगे चल कर प्रदेश के कर्मचारियों के सबसे बड़े आंदोलन में तब्दील हो गया। उस वक्त किसी ने ये सोचा भी नहीं था कि कर्मचारियों की मांग आगे चलकर इतना विशाल आंदोलन बन जाएगी। कर्मचारियों ने पेंशन बहाली के लिए खूब जतन किए। शुरुआत में कर्मचारियों ने विधायकों से मिलकर अपनी मांग को उठाया। ये सिलसिला लम्बे समय तक चलता रहा और कर्मचारियों ने प्रदेश के हर बड़े नेता के दर पर दस्तक दी। फिर धीरे-धीरे मांग बढ़ती गई और नेताओं की नजरअंदाजी के चलते नाराज़ कर्मचारी सड़कों पर उतरने लगे। 25 जुलाई, 2017 को शिमला सचिवालय के बाहर पहली रैली हुई थी। फिर कई पेन डाउन स्ट्राइक हुई तो इस मुद्दे को और हवा मिल गई। मगर जब किसी ने सुनी नहीं तो प्रदेश के कर्मचारी और भी भड़क गए और मामला विधानसभा घेराव तक पहुंच गया। कभी भारी संख्या में कर्मचारी धर्मशाला पहुंचे तो कभी शिमला, पेंशन व्रत हुए, पेंशन संकल्प रैली हुई, पेंशन अधिकार रैली हुई। कर्मचारियों के इन प्रदर्शनों में उमड़ा जनसैलाब स्पष्ट संकेत देता रहा था कि कर्मचारी मानने को तैयार नहीं थे। मगर सरकार हर बार आर्थिक परिस्थितियों का हवाला देती रही। कर्मचारियों का ये संघर्ष बहुत कम समय में एक आंदोलन में बदल गया। जयराम सरकार द्वारा 2009 की अधिसूचना लागू कर प्रदेश के कर्मचारियों को मनाने का भी प्रयास हुआ मगर कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की मांग पर अड़े रहे। इस मसले पर लगातार भाजपा आर्थिक परिस्थितियों का हवाला देती रही। पूर्व सरकार ने कई बार स्पष्ट किया कि प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए, मगर संभावनाएं फिर भी तलाशी जाएंगी। पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी स्पष्टीकरण देते रहे कि हिमाचल सरकार अपने बलबूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। मगर ये सर्व विदित था की मसला सिर्फ आर्थिक स्थिति का नहीं है। दरअसल देश के 12 राज्यों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है, जबकि 4 राज्यों में भाजपा समर्थित सरकार है। यदि किसी एक भी राज्य में भाजपा पुरानी पेंशन बहाल करती है तो बाकि राज्यों के कर्मचारी भी चाहेंगे कि उन्हें भी पुरानी पेंशन दी जाए और अंततः केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए भी पुरानी पेंशन बहाल करनी होगी। ऐसे में हकीकत ये थी कि चाहकर भी जयराम सरकार के लिए ऐसा करना मुश्किल था। वहीं कांग्रेस के लिए परिस्थितियां अलग थी। तीन राज्यों में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है, हिमाचल, राजस्थान और छत्तीसगढ़। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी पहले ही पुरानी पेंशन लागू कर चुकी थी और अब हिमाचल में भी ऐलान कर दिया गया है। इसी के साथ झारखंड, तमिलनाडु और बिहार में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और झारखंड में भी पुरानी पेंशन की घोषणा हो चुकी है। जिस मुद्दे को भाजपा महज़ कर्मचारियों की एक मांग समझती रही कांग्रेस ने इस मुद्दे की गहराई को भांपा। कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए भी इस मुद्दे का समर्थन कर इसे खूब हवा दी और अपने चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस की पहली गारंटी भी पुरानी पेंशन की बहाली ही थी। उधर कर्मचारियों ने भी प्रदेश में 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान चलाया और स्पष्ट कर दिया की जो पेंशन की बात करेगा कर्मचारी उसी को वोट देंगे। आम आदमी पार्टी ने भी इस मसले की गहराई को समझते हुए पहले पंजाब में पेंशन बहाली की घोषणा की और फिर हिमाचल में भी पुरानी पेंशन बहाली का वादा किया। जबकि भाजपा के घोषणा पत्र से ये वादा नदारद रहा। नतीजा सभी के सामने है। इस चुनाव में कांग्रेस ने कर्मचारियों से वादा किया और कर्मचारियों ने कांग्रेस का समर्थन किया। आज प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार है और कर्मचारियों को भी उनकी पुरानी पेंशन मिलने का ऐलान हो चुका है। इस वर्ष 800 करोड़ रुपये होंगे खर्च : मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के अनुसार हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम देने के लिए इस साल करीब 800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले वक्त में इसका बजट और बढ़ जाएगा। यह मालूम रहे कि प्रदेश में नई पेंशन स्कीम वाले इस साल 1500 से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त होने हैं। छत्तीसगढ़ से मिलता-जुलता हो सकता है फार्मूला : हिमाचल प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने का फार्मूला छत्तीसगढ़ से मिलता-जुलता हो सकता है। छत्तीसगढ़ में कर्मचारी केंद्र से पैसा वापस लाकर पिछली रकम को खुद जमा कर रहे हैं। वहां पर कर्मचारियों को ओपीएस में आने या एनपीएस में बने रहने के दोनों ही विकल्प दिए गए हैं। जहां तक छत्तीसगढ़ के फार्मूले की बात है तो वहां पर निर्णय लिया गया था कि राज्य सरकार के कर्मचारी एक नवंबर 2004 के स्थान पर एक अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सामान्य भविष्य निधि के सदस्य बनेंगे। छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अप्रैल 2022 से पहले नियुक्त कर्मचारियों को एनपीएस में बने रहने या पुरानी पेंशन योजना में शामिल होने का विकल्प दिया था। इसके लिए कर्मचारियों से वहां शपथ पत्र भी मांगा जा रहा है। यदि कोई कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना का विकल्प चुनता है, तो उसे 1 नवंबर 2004 से 31 मार्च 2022 तक सरकार के योगदान और लाभांश को एनपीएस खाते में राज्य सरकार को जमा करना पड़ता है। वहीं, सरकारी कर्मचारियों को इस अवधि के दौरान एनपीएस में जमा कर्मचारी अंशदान और लाभांश एनपीएस नियमों के तहत देने की व्यवस्था की गई है। हालांकि, यह तो छत्तीसगढ़ की व्यवस्था है, पर मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने हिमाचल का अपना सर्वश्रेष्ठ मॉडल बताया है। ऐसे में लग रहा है कि यह छत्तीसगढ़ के मॉडल से कुछ भिन्न भी हो सकता है। खुद प्रियंका गांधी पहुंची थी मिलने प्रदेश में पुरानी पेंशन के मुद्दे की गहराई को समझते हुए खुद प्रियंका गांधी भी कर्मचारियों से मिलने पहुंची थी। दरअसल प्रदेश के कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग के लिए क्रमिक अनशन पर बैठे थे। इस अनशन के दौरान सरकार का कोई भी नुमाइंदा या भाजपा का कोई बड़ा नेता कर्मचारियों से मिलने नहीं पहुंचा। हालाँकि प्रियंका गाँधी सोलन में अपनी रैली के दौरान कर्मचारियों से मिलने पहुंची और उनसे उनका हाल जाना। पुरानी पेंशन लागू होने के बाद प्रियंका गाँधी ने कर्मचारियों को बधाई दी है। कर्मचारी इसलिए नहीं चाहते पुरानी पेंशन : साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशि अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिट कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशि इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल की गई है और एन्युटी राशि कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है। शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इक्कठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानी पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने पीएफआरडीए नाम की एक संस्था का गठन किया है। कर्मचारियों का कहना है कि उनका पैसा बाजार में जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी। पुरानी पेंशन योजना में ये हैं प्रावधान **इस योजना में सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है। **कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है। भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है। **20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है। सेवानिवृत्त कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन राशि मिलती है। **पुरानी योजना में जनरल प्रोविडेंट फंड यानी जीपीएफ का प्रावधान है। इसमें महंगाई भत्ते को भी शामिल किया जाता है। वापस होंगे एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज मामले ओल्ड पेंशन बहाल करने को लेकर संघर्षरत एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज तमाम केस वापस होंगे। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि संघर्ष के दौरान चाहे शिक्षक हों या अन्य कर्मचारी सभी हक की लड़ाई लड़ रहे थे। अब इन कर्मचारियों को उस समय बनाए गए मामलों से भी छूट दिलाई जाएगी। उधर, इस मौके पर जोइया मामा नारा लगाने से फेमस हुए सिरमौर के शिक्षक ओम प्रकाश ने कहा कि कांग्रेस सरकार बनने के बाद पेन किलर मिल गई है और अब धीरे-धीरे दर्द से राहत मिल रही है। ओम प्रकाश समेत अन्य शिक्षकों पर सचिवालय के बाहर नारेबाजी करने के आरोप में मामला दर्ज हुआ था। प्रदीप ठाकुर की रही अहम भूमिका पुरानी पेंशन की लड़ाई की शुरुआत नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले हुई। प्रदीप ठाकुर के नेतृत्व में इस संगठन ने कर्मचारियों को एकत्रित किया। उन्हें पुरानी पेंशन की एहमियत का एहसास करवाया, पुरानी पेंशन के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी । यूं तो प्रदेश में कई अन्य संगठन भी थे जो पुरानी पेंशन की मांग करते रहे, मगर जिस संगठन के लोगों ने तन-मन-धन से पुरानी पेंशन बहाली में योगदान दिया वो नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ ही है। पुरानी पेंशन देने वाला देश का छठा राज्य बना हिमाचल 2021 तक एकमात्र पश्चिम बंगाल ही वो राज्य था जहां कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दी जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब में वर्ष 2022 में पुरानी पेंशन बहाल कर दी गई। अब साल 2023 में हिमाचल प्रदेश पुरानी पेंशन बहाल करने वाला देश का पांचवां राज्य बन गया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की सरकारों ने अपने चुनावी वायदे निभा दिए हैं। भाजपा शासित राज्यों में अभी भी इस बहाली का इंतजार है। राजस्थान सरकार ने 23 फरवरी 2022 को पुरानी पेंशन बहाल करने का ऐलान किया था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने चौथे बजट में यह घोषणा पूरी की। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मार्च 2022 में पेश किए बजट में पुरानी पेंशन देने की घोषणा की। एक सितंबर 2022 से झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल की थी। पंजाब में 21 अक्टूबर 2022 को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मंत्रिमंडल की बैठक में ओपीएस बहाल करने का निर्णय लिया। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं।
प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन चुकी है और सरकार के सामने वादों की कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती है। कड़े संघर्ष और जद्दोजहद के बाद कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दोबारा से सत्ता कब्जा ली है। सत्ता में आने के लिए कांग्रेस ने जनता से बेतहाशा वादे किए है और जनता ने उन वादों पर ऐतबार भी किया है, जिसके बूते प्रदेश में आज सरकार कांग्रेस की है। अब जनता से जो वादे किये गए है उन्हें निभाने की बारी आ गई है। सत्ता का सुख तो अब कांग्रेस को मिलेगा ही मगर उसी के साथ -साथ अपेक्षाओं का बोझ भी कांग्रेस सरकार पर आ गया है। सुक्खू सरकार के एक कंधे पर प्रदेश की जनता की बेतहाशा उम्मीदों का बोझ है और दूसरी पर खाली सरकारी खजाने की चाबी। पिछले कुछ वर्षों से जो आर्थिक स्थिति बनी है, जाहिर है इस सरकार के लिए लगभग 70 हज़ार करोड़ के कर्ज तले दबी प्रदेश की आर्थिकी को संभालना सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है। इस पर जो वादे कांग्रेस ने जनता और खास तौर पर प्रदेश के कर्मचारियों से किये है वो कब तक पूरे होते है, इस पर भी सबकी निगाहें टिकी रहेगी। हिमाचल की राजनीति में कर्मचारियों के प्रभाव से सभी राजनीतिक दल भली भांति परिचित है और इसलिए चुनाव से पहले कर्मचारियों को रिझाने के लिए कांग्रेस ने वादों की बौछार भी की है। कांग्रेस ने कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करने के साथ- साथ लगभग हर लंबित मांग को पूरा करने का वादा किया है। अब नतीजे आने के बाद कर्मचारियों की उम्मीद भरी निगाहें सरकार पर टिकी है और हो भी क्यों ना, माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण कर्मचारियों का साथ है। अब कितने वादे पूरे होते है और कितने अधूरे रहते है ये तो वक्त ही बताएगा, बहरहाल आपको बताते है कि प्रदेश के कर्मचारियों की लंबित मांगें क्या है। क्या होगा ओपीएस बहाली का फार्मूला ? कांग्रेस मेनिफेस्टो में पहली गारंटी पुरानी पेंशन की बहाली थी। कांग्रेस के प्रचार प्रसार में पुरानी पेंशन के मुद्दे का इस्तेमाल भरपूर दिखा। कांग्रेस के हर प्रत्याशी की जुबां पर पुरानी पेंशन का मुद्दा था और उनके फोन के पीछे वोट फॉर ओपीएस का लोगो। वादा किया गया था कि पहली कैबिनेट में ही पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी। अब सरकार बनने के बाद सबसे पहले सरकार से सवाल भी पुरानी पेंशन को लेकर ही हो रहे है। हिमाचल एनपीएस कर्मचारी महासंघ ने कांग्रेस की जीत के बाद शिमला में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पूरी उम्मीद जताई है कि प्रदेश मंत्रिमंडल की पहली बैठक में पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी। एनपीएस के कर्मचारी नए मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं। नए सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी कहा है कि पहली कैबिनेट में हम पुरानी पेंशन स्कीम लागू करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि जिन राज्यों में पुरानी पेंशन दी जा चुकी है उनके मॉडल को स्टडी कर प्रदेश में भी सरकार पुरानी पेंशन देगी। अब कर्मचारियों को उम्मीद है कि जल्द उन्हें उनके संघर्ष का फल मिलेगा। दरअसल, हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मुद्दा पुरानी पेंशन की बहाली ही है। कर्मचारी लगातार इसकी मांग कर रहे है। पुरानी पेंशन वो मुद्दा है जिसने चाहे-अनचाहे हिमाचल प्रदेश के चुनावी समीकरण बदल कर रख दिए। इस चुनाव में महंगाई, बेरोज़गारी और विकास के मुद्दों की तो चर्चा हुई ही लेकिन इसी के साथ पुरानी पेंशन बहाली की मांग भी वो मुद्दा बनी जिसने भाजपा की नाक में दम कर दिया और प्रदेश के चुनावी समीकरणों को प्रभावित भी किया। अब कांग्रेस सरकार के लिए ऐसी विकट आर्थिक स्थिति में पुरानी पेंशन को बहाल करना बड़ी चुनौती है। इस योजना को लागू करने के लिए एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए और हर माह 500 करोड़ की जरूरत होगी। भाजपा सरकार कई बार ये स्पष्ट कर चुकी है कि प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए। हिमाचल सरकार अपने बल बूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। अब नई सरकार कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देती है या नहीं यह देखना रोचक होगा। यहाँ इस बात को ध्यान में रखना भी बेहद ज़रूरी है कि हाल ही में संसद में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने स्पष्ट किया है कि जिन राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल हो गई है उनके प्रस्तावों पर पीएफआरडीए की तरफ से सरकार के और कर्मचारी के अंशदान के रूप में जमा राशि को राज्य सरकार को लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है। पीएफआरडीए ने कहा है कि नेशनल पेंशन स्कीम के तहत जमा कर्मचारियों के पैसों को राज्यों को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों ने कर्मचारियों के एनपीएस डिपॉजिट को राज्यों को ट्रांसफर करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करके राज्य कर्मचारियों को पेंशन देंगे लेकिन पीएफआरडीए का कहना है कि इस योजना में एम्प्लॉयी के फंड को एम्प्लॉयर को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है जिससे पुरानी पेंशन देने वाले राज्यों की चिंता बढ़ गई है। नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों का अब तक जो पैसा काटा गया वह पीएफआरडीए में जमा होता था। कुछ राज्य सरकारों ने एनपीएस को खत्म करके ओपीएस लागू करने के लिए कर्मचारी और सरकार द्वारा जमा किए गए हजारों करोड़ वापस देने की मांग की जिसे देने से केंद्र सरकार की एजेंसी ने इंकार कर दिया है। क्या मिलेगा नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का लाभ ? नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता का लाभ देने का वादा भाजपा ने अपने 2017 के घोषणा पत्र में किया था। भाजपा सरकार तो बनी लेकिन सरकार इस वादे को भूल गई। हज़ारों कर्मचारियों में इस बात को लेकर टीस है। हालात ये है कि इसके चलते कई सीनियर कर्मचारी जूनियर हो चुके है और जूनियर सीनियर। जाहिर है ये मुद्दा कर्मचारियों के स्वाभिमान से जुड़ा भी है। दरअसल वर्ष 2008 में बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया और हाल ही में ये दो साल हो गया है। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंधकाल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, इसी को लेकर प्रभावित कर्मचारियों को आपत्ति है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती l अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के अनुसार पूर्व सरकार कर्मचारी की सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से करती रही, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। संगठन का कहना है कि ऐसा करना लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। दो वर्ष पूर्व नियुक्त हुए कर्मचारियों को दो वर्ष बाद सभी सेवा लाभ मिल रहे हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि जो कर्मचारी 7 साल पहले सेवा में आए हैं उनको वित्तीय और अन्य सेवा लाभों से वंचित रखा जा रहा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए, ना कि नियमितीकरण की तिथि से। एरियर का भुगतान सबसे बड़ी चुनौती नई सरकार के लिए सबसे एक और बड़ी चुनौती पे-कमिशन एरियर के भुगतान की होगी। राज्य में सरकारी विभागों और निगम-बोर्डों के सवा चार लाख कर्मचारियों और पेंशनरों को करीब 8000 करोड़ के एरियर का भुगतान अभी बाकी है। राज्य सरकार के पास इस देनदारी को चुकाने के लिए वित्तीय संसाधन अब नहीं बचे हैं। इस साल के लिए राज्य की लोन लिमिट 9700 करोड़ थी और इसमें से 7000 करोड़ लोन ले लिया गया है। सिर्फ 2700 करोड़ लोन ही लिया जा सकता है और इस राशि से भी इस वित्त वर्ष में 31 मार्च तक वेतन और अन्य देय जिम्मेदारियों का भुगतान किया जाना है। यही वजह है कि एरियर और महंगाई भत्ते को चुकाने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं दिख रहे। राज्य के कर्मचारियों को सात फीसदी महंगाई भत्ता अभी बकाया है और 31 फीसदी डीए ही अभी दिया जा रहा है, जबकि भारत सरकार ने 38 फीसदी तक भुगतान कर दिया है। बहुत से कर्मचारी-अधिकारी वर्ग ऐसे हैं, जिनका एरियर ही 10 लाख तक का है। ऐसे कर्मचारियों को भी पहली किस्त में सिर्फ 50 हजार मिले हैं। इस हिसाब से गणना करें, तो 10 लाख का भुगतान कितनी किस्तों में होगा, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। मजबूत आउटसोर्स नीति की दरकार राज्य के सरकारी विभागों में काम कर रहे 28000 आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति बनाने की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाई। जाते-जाते भाजपा सरकार ने ऐलान ज़रूर किया था मगर अब तक मांग पूरी नहीं हो पाई है। इसकी वजह यह है कि चुनाव से पहले फाइनेंस सेक्रेटरी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में कुछ प्वाइंट तय किए गए थे, लेकिन इसके बाद दूसरी बैठक अब तक नहीं हो पाई है। विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले कैबिनेट ने यह फैसला किया था कि आउटसोर्स कर्मचारियों को अब कौशल विकास निगम के तहत ही लाया जाएगा और बीच में से ठेकेदारों को हटा दिया जाएगा। इससे इन्हें जॉब सिक्योरिटी मिल जानी थी, जबकि वित्तीय मसलों पर कैबिनेट ने कुछ स्पष्ट नहीं कहा था। इसके लिए कौशल विकास निगम को कौशल विकास एवं रोजगार निगम के रूप में बदलने और इसे कंपनी बनाने का फैसला हुआ था। इसके बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव फाइनेंस प्रबोध सक्सेना ने तकनीकी शिक्षा और श्रम विभाग के सचिवों के साथ एक बैठक कर इनसे कुछ डॉक्यूमेंटेशन सबमिट करने को कहा था। इस बैठक में तकनीकी शिक्षा विभाग के सचिव अमिताभ अवस्थी और श्रम एवं रोजगार विभाग के सचिव अक्षय सूद मौजूद थे। ये डॉक्यूमेंट तैयार हैं, लेकिन अभी दूसरी बैठक की डेट तय नहीं हुई है। पिछली बैठक में तकनीकी शिक्षा विभाग को कौशल विकास निगम के मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग और मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट के नियम और शर्तों पर रिपोर्ट देने को कहा गया था। अब जब तक दूसरी बैठक नहीं हो जाती, तब तक यह तय नहीं है कि आउटसोर्सिंग को लेकर कैबिनेट में हुए फैसले के अनुसार पॉलिसी कब बनेगी। श्रम विभाग से यह डिटेल मांगी गई थी कि पूरे प्रदेश में अब तक कितने आउटसोर्स कर्मचारी हैं। हालांकि यह डाटा इससे पहले कैबिनेट सब कमेटी ने तैयार कर लिया था और पहले से ही सरकार के पास मौजूद था। अब सवाल यह है कि नई सरकार आगे क्या करती है। पे रिवीजन रूल्स से अब भी संतुष्ट नहीं कर्मचारी हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू किए गए नए वेतन आयोग को लेकर पे-रिवीजन रूल्स से कर्मचारी अब तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। राइडर में फंसे कर्मचारियों के लिए हायर ग्रेड-पे जारी करने की अधिसूचना के बाद से कुछ कर्मचारी फिक्सेशन का विरोध करते रहे। कुछ कर्मचारी संगठन अब भी यह विरोध कर रहे हैं कि राइडर की नोटिफिकेशन में सभी 19 कैटेगरी की फिक्सेशन बढ़ी हुई ग्रेड-पे के इनिशियल पर 2.25 का गुणांक लगाकर की गई है। यह गलत है, क्योंकि मनमर्जी से बढ़ी हुई ग्रेड-पे के इनिशियल में फिक्सेशन कैसे हो सकती है? दूसरी ओर जेबीटी भी अपनी फिक्सेशन गलत करने का आरोप लगा रहे थे। वेतन संशोधन के मामले में शिक्षा विभाग में टीजीटी आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें इससे कोई फायदा नहीं हुआ है। इसी तरह की कुछ आपत्तियां ऐसे कर्मचारियों की हैं, जिनका लेवल एक ही है, लेकिन फिक्सेशन की राशि अलग-अलग है। मल्टीपर्पज हेल्थ वर्कर की फिक्सेशन में भी विसंगतियों के आरोप हैं। स्टाफ नर्स, क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर, टीजीटी इत्यादि में भी अलग-अलग स्तरों से फीडबैक नेगेटिव है। अब आने वाली सरकार कितनी जल्दी ये विसंगतियां दूर करती है इसपर सबकी निगाहें टिकी हुई है। क्या एचआरटीसी को रोडवेज का दर्जा देगी सरकार ? एचआरटीसी के कर्मचारी सरकार बनने से पहले ही अपनी लंबित मांगें सामने रख चुके है। एचआरटीसी की संयुक्त समन्वय समिति के महासचिव खेमेंद्र गुप्ता ने सरकार से आग्रह किया है कि प्रदेश एचआरटीसी कर्मचारियों की समस्याओं को प्रमुखता से सुलझाया जाए। उन्होंने मांग उठाई है कि पिछले काफी समय से चली आ रही एचआरटीसी कर्मचारियों की मुख्य मांग एचआरटीसी को रोडवेज का दर्जा दिया जाए। एचआरटीसी कर्मचारियों की समस्याओं को समाप्त करने का यही एक समाधान हैं। रोडवेज का दर्जा मिलने से एचआरटीसी कर्मचारियों को उनका वेतन व अन्य भत्तों का भुगतान ट्रेजरी के माध्यम से किया जाना चाहिए, ताकि वेतन व अन्य भत्तों के भुगतान में उन्हें देरी न हो। इसके अलावा उन्होंने यह मांग भी उठाई कि नई सरकार में एचआरटीसी कंडक्टरों की वेतन विसंगति को प्रमुखता से दूर किया जाए। परिचालकों को जारी किए नए ग्रेड पे में 2400 से 1900 ग्रेड पे पर ला कर रख दिया है, इससे हर परिचालक को वेतन में करीब दस से पंद्रह हजार का आर्थिक नुकसान हो रहा है। इसके अलावा उन्होंने 36 महीनों से लंबित नाइट ओवर टाइम को जारी करने की मांग उठाई हैं। परिचालकों के अलावा एचआरटीसी कर्मचारियों की और भी कई समस्याएं लंबित है। चुनाव आचार संहिता लगने से ठीक पहले परिवहन मंत्री की अगुवाई में हुई बीओडी की बैठक में एरियर सैलरी के साथ देने का वादा हुआ था, लेकिन यह अधर में लटक गया है। पिछले महीने से कर्मचारी इसकी इंतजार कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि अभी इसकी पहली किस्त के लिए तो इंतजार करना ही पड़ेगा। वहीं एचआरटीसी में 100 पीस मील कर्मचारियों ने अनुबंध पर लिए जाने के लिए पांच से छह वर्ष का कार्यकाल पूरा कर दिया है, लेकिन यह कार्यकाल पूरा करने के बाद भी निगम प्रबंधन पीस मील कर्मियों को अनुबंध पर लेने को नहीं लाया गया। पीस मील कर्मचारियों का कहना है कि अन्य पीस मील कर्मियों को अनुबंध पर लिए जाने के बाद प्रदेश में 230 पीस मील कर्मचारी बाकी रह गऐ थे, जिनमें सितंबर माह में 100 ने अनुबंध के लिए पांच और छह वर्ष समयबद्ध नीति के मुताबिक अपनी समय अवधि को पूर्ण किया है, लेकिन इन सभी पात्र पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध में लेने के लिए निगम मुख्यालय से निगम प्रबंधन द्वारा निगम की कर्मशालाओं के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई। एचआरटीसी पेंशनर्स ने भी मांग उठाई है कि अगले महीने समय पर एचआरटीसी पेंशनर्स को पेंशन प्रदान की जाए और 2016 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों की पे फिक्सेशन भी कर दी जाए। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच ने चेताया है कि अगर अगले महीने एचआरटीसी पेंशनर्स को समय पर वेतन नहीं मिलता है और 2016 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों की पे-फिक्सेशन नहीं होती हैं तो फिर नई सरकार का स्वागत एचआरटीसी पेंशनर्स नए तरीके से करेंगे। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच के प्रदेशाध्यक्ष बलराम पुरी का कहना है कि एचआरटीसी में 2016 के उपरांत सेवानिवृत्त हुए लगभग 2500 कर्मचारियों को अभी तक नया वेतनमान नहीं मिला है। जबकि इससे पहले रिटायर हुए कर्मचारियों को सितंबर माह में नया वेतनमान मिल चुका हैं। पुलिस जवानों को मिलती है सात रुपये प्रतिदिन डाइट मनी चुनाव से पहले पुलिस जवान सरकार से मांग करते रहे मगर पुलिस जवानों की न ही डाइट मनी बढ़ी है और न ही अतिरिक्त वेतन बढ़ाया गया है। पुलिस जवानों को आज भी 24 घंटे सेवाएं देने के लिए दिया जा रहा अतिरिक्त वेतन वर्ष 2012 के स्केल के हिसाब से दिया जा रहा है। ऐसे में पुलिस जवानों को 30 से 35 हजार रुपए का हर वर्ष वित्तीय नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसके अलावा पुलिस जवानों को मिलने वाली डाइट मनी इतनी कम है कि डाइट मनी की राशि में चाय का कप तक नहीं लिया जा सकता है। प्रदेश के पुलिस जवानों को 210 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से डाइट मनी दी जा रही है, जो प्रतिदिन के हिसाब से सात रुपए है। आज के समय में चाय का एक कप की कीमत भी बाजार में दस से 15 रुपए है। कुछ समय पहले पुलिस जवानों ने प्रदेश सरकार से वेतन विसंगति के साथ-साथ डाइट मनी की समस्या हल करने की मांग उठाई थी। इसके अलावा पुलिस जवानों ने अतिरिक्त वेतन को नए पे स्केल के हिसाब से देने की मांग उठाई थी, लेकिन प्रदेश सरकार पुलिस जवानों की दोनों मांगों को पूरा नहीं कर पाई। होमगार्ड की मांग, मिले स्थायी रोजगार करीब 6 दशक के लगातार संघर्ष के बावजूद आज तक प्रदेश के होमगार्ड जवानों को उनका हक नहीं मिल पाया है। पुलिस की तर्ज पर गृहरक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी निभाते हैं, वर्दी भी खाकी पहनते है, ट्रेनिंग भी उतनी ही कठोर होती है, मगर सरकारी कर्मचारी होने के नाते इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए, स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। गृह रक्षकों ने अपने हक की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। इसका लाभ यह हुआ कि उनका वेतन बेहतर हो गया, मगर ये अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं। होमगार्ड एसोसिएशन का कहना है कि पूर्व सरकार इनके लिए नियमितीकरण की नीति तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल में हर वर्ग को सहायता पहुंचाने की कोशिश में थी। चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कर्मचारी फैक्टर को साधने के पूरे प्रयास किए जा रहे थे, मगर होमगार्ड जवानों का कहना है कि एक उनका वर्ग ही ऐसा है जिसकी अब तक अनदेखी की गई है। अब देखना होगा क्या नई सरकार इनकी मांगें पूरी करेगी। कॉर्पोरेट सेक्टर कर्मचारी मांगे पेंशन हिमाचल प्रदेश सरकार के विभिन्न कॉर्पोरेट सेक्टर से सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अब नई सरकार से उम्मीदें हैं। सभी सेवानिवृत्त कर्मचारी भी नई सरकार के समक्ष अपनी मांगें रखेंगे और उन्हें उम्मीद है कि नई सरकार प्रदेश के 5000 सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन का लाभ देगी। निगमित क्षेत्र के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अनुसार उन्हें 2004 तक पेंशन की सुविधा मिलती थी लेकिन उसके बाद से पेंशन नहीं मिल रही है। वर्ष 1999 में भाजपा सरकार ने बोर्डों और निगमों के कर्मचारियों को पेंशन देने के संबंध में अधिसूचना जारी की थी ,मगर उन्हें पेंशन नहीं मिली। हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड, परिवहन निगम, शिक्षा बोर्ड, नगर निगम जैसे मंडलों व निगमों से सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अब भी पेंशन मिल रही है, लेकिन, पर्यटन निगम समेत 20 ऐसे मंडल हैं जिनके कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन की सुविधा नहीं मिल रही है। एमसीएच से काटे गए पैसे में से उन्हें 1000 से 3000 ही मिल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने वर्ष 2017 में अपने घोषणा पत्र में निगम के कर्मचारियों को पेंशन सुविधा देने का वादा किया था, लेकिन निगम व बोर्ड के सेवानिवृत्त कर्मचारियों से किए गए वादे को सभी भूल गए हैं। अब इन कर्मचारियों को उम्मीद है कि कांग्रेस सरकार इनकी पेंशन भी बहाल करेगी।
प्रदेश में चुनावी अखाड़ा पूरी तरह सज चूका है। आचार सहिंता लग चुकी है। सत्ता पक्ष अपने विकास कार्य गिना रहा है तो विपक्ष, सरकार की हर उस नाकामी को भुनाने का प्रयास कर रहा है जो भाजपा की डगर कठिन कर दे। कोशिश तो पूरी थी मगर इसके बावजूद भी प्रदेश के कुछ ऐसे मुद्दे है जो सरकार सुलझा नहीं पाई। ऐसे ही अनसुलझे मसलों में प्रदेश के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मुद्दा भी शेष है। ये वो मुद्दा है जो सत्ता हिलाने की कुव्वत रखता है। हम बात कर रहे है प्रदेश के करीब एक लाख कर्मचारियों के सबसे बड़े मुद्दे, पुरानी पेंशन बहाली की। कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ होती है और जब कर्मचारी ही अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे है, तो ऐसे में किसी भी सरकार की डगर मुश्किल हो सकती हैं। एनपीएस कर्मचारी महासंघ से जुड़े हिमाचल के एक लाख से अधिक कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली के लिए लगातार संघर्ष करते रहे परन्तु वर्तमान सरकार के राज में पुरानी पेंशन बहाल नहीं हुई। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के बैनर तले आंदोलन लगातार तीव्र होता गया। कर्मचारियों ने आचार सहिंता लगने तक क्रमिक अनशन भी किया और खुलकर 'वोट फॉर ओपीएस' का नारा दिया। तो कर्मचारी क्या भाजपा के मिशन रिपीट के लक्ष्य में सबसे बड़ी बाधा बनेंगे, ये सवाल फिलहाल बना हुआ है। निसंदेह सरकार के खिलाफ कर्मचारियों का ये प्रदर्शन विपक्ष में बैठी कांग्रेस के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकता है। उधर भाजपा बार-बार ये याद दिला रही है कि प्रदेश में नई पेंशन स्कीम कांग्रेस की वीरभद्र सरकार ने लागू की थी। अब कर्मचारियों का क्या रुख रहता है, ये देखना रोचक होगा। क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ के आह्वान पर प्रदेश का कर्मचारी 'वोट फॉर ओपीएस' मुहीम का हिस्सा बनेगा, इसी सवाल के जवाब में सम्भवः अगली सरकार की तस्वीर छिपी है। गौरतलब है कि नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ द्वारा 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान चलाया जा रहा है, जहां कर्मचारियों को ओपीएस के नाम पर वोट देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। संघ की दो टूक है की जो भी पुरानी पेंशन बहाल करेगा वोट उसी को मिलेगा। जाहिर है पुरानी पेंशन बहाली का वादा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी कर रहे है, जबकि भाजपा अभी भी इस मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपनाएं हुए है। तो क्या भाजपा के मिशन रिपीट में 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान खलनायक की भूमिका निभा सकता है, या इस अभियान से व्यापक तौर पर प्रदेश का आम कर्मचारी दूर रहता है, इस पर निगाहें जरूर रहने वाली है। हर मंच से वचन दे रही कांग्रेस कांग्रेस के तमाम बड़े नेता बार -बार दोहरा रहे है कि सरकार बनने पर पहली कैबिनेट में ओपीएस बहाल होगी। हर मंच से इस बात को दोहराया जा रहा है। प्रियंका गाँधी की परिवर्तन प्रतिज्ञा रैली में उन्होंने भी पहली कैबिनेट में पुरानी पेंशन बहाली का वचन दिया। प्रियंका खुद क्रमिक अनशन पर बैठे कर्मचारियों से मिलने पहुंची और उन्हें आश्वस्त किया। ऐसे में क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ खुलकर कांग्रेस के लिए काम करेगा, ये देखना रोचक होगा। वैसे इसमें कोई संशय नहीं है कि यदि इनका 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान कामयाब रहा तो इसका स्वाभाविक लाभ कांग्रेस को हो सकता है। पर मूल सवाल ये ही है कि क्या 'वोट फॉर ओपीएस' मुहीम का बड़ा असर दिखेगा या प्रदेश का आम कर्मचारी अन्य मुद्दों को वोट का मुख्य आधार बनाएगा। कांग्रेस दे रही राजस्थान-छत्तीसगढ़ का उदाहरण देश के दो राज्यों में कांग्रेस शासित सरकार है, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस पुरानी पेंशन बहाल कर चुकी है। झारखंड में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और वहाँ भी पुरानी पेंशन बहाल हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस इन तीन राज्यों का हवाला देते हुए पुरानी पेंशन बहाल करने का वादा कर रही है। पार्टी का कहना है कि यदि वो सत्ता में लौटी तो पहली कैबिनेट में पुरानी पेंशन बहाल होगी। प्रियंका गाँधी ने भी अपनी परिवर्तन प्रतिज्ञा रैली में इसका जिक्र किया। जयराम देते रहे है आर्थिक हालात का हवाला वैसे आपको याद दिला दें की भाजपा के 2017 विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी ये कहा गया था कि सरकारी विभागों में कर्मचारियों की पेंशन हेतु केंद्र सरकार से परामर्श के लिए सीएम की अगुवाई में पेंशन योजना समिति का गठन किया जाएगा। समिति तो बनी मगर कर्मचारियों को पुरानी पेंशन नहीं मिल पाई। दरअसल इस योजना को लागू करने के लिए एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए और हर माह 500 करोड़ की जरूरत होगी। जयराम सरकार ने कई बार ये स्पष्ट किया कि फिलवक्त प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जा सके। हिमाचल सरकार अपने बलबूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। 'आप' ने भी किया वादा आम आदमी पार्टी ने भी प्रदेश में ओपीएस बहाल करने का वादा किया है। बीते दिनों पार्टी में घर वापसी करने वाले वरिष्ठ नेता डॉ राजन सुशांत तो इस मुद्दे पर लम्बे समय से खुलकर बोलते रहे है। ऐसे में यदि कर्मचारी ओपीएस के नाम पर वोट करता है तो उसके पास आम आदमी पार्टी भी एक विकल्प होगा। जाने आखिर NPS का विरोध क्यों करते है कर्मचारी साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। कुछ ही समय बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी सरकारी क्षेत्र में नियुक्त होने वाले कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू कर दी गई। शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब NPS का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। दरअसल एनपीएस कर्मचारी के अंतिम मूल वेतन के मुताबिक न्यूनतम पेंशन की गारंटी नहीं देती। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और DA जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इक्कठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानि पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। कर्मचारियों का कहना है की उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी। NPS अच्छी है तो माननीयों के लिए क्यों नहीं ! मई 2003 के बाद से माननीय (सांसद व विधायकों ) को तो पेंशन का लाभ मिल रहा है, जबकि सरकारी कर्मचारी को एनपीएस का झुनझुना थमा दिया गया है। यदि यह योजना इतनी बढ़िया है तो सांसद व विधायकों को भी पेंशन के स्थान पर एनपीएस का ही लाभ देना चाहिए। यदि एक नेता पहले विधायक हो और फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बन जाए तो उसे दोनों तरफ से पेंशन मिलती है। इस देश में ये सुविधा सिर्फ और सिर्फ नेताओं को ही उपलब्ध है। क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ को हल्के में लेने की भूल कर बैठी भाजपा ? जयराम सरकार ने प्रदेश के कर्मचारियों की कई मांगे पूरी की। पर पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा हमेशा भाजपा के गले की फांस बना रहा। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के बैनर तले ये मांग आहिस्ता-आहिस्ता आंदोलन का रूप लेती गई। विशेषकर पिछले दो साल में एनपीएस कर्मचारी महासंघ से काफी कर्मचारी जुड़ते गए। दूसरी ओर प्रदेश कर्मचारी महासंघ अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर की अगुवाई में सरकार के साथ कदमताल करता चला। क्या भाजपा के रणनीतिकारों ओर निष्ठावानों ने एनपीएस कर्मचारी महासंघ को हल्के में लेने की भूल की, ये सवाल माहिरों के जहाँ में जरूर है। हालांकि इसका फैसला को चुनाव के नतीजे ही करेंगे। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर इस वक्त प्रदेश के प्रभवशाली कर्मचारी नेताओं में शुमार है। यदि इनका 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान सफल रहा तो निसंदेह बतौर कर्मचारी नेता प्रदीप ठाकुर का रुतबा भी बढ़ेगा। एनपीएस के क्रमिक अनशन में शामिल हुईं प्रियंका गांधी परिवर्तन प्रतिज्ञा महारैली से पहले प्रियंका गांधी 14 दिन से पुरानी पेंशन बहाली को लेकर क्रमिक अनशन पर बैठे कर्मचारियों से मिली। वह कर्मचारियों के अनशन में शामिल हुई और न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के 'वोट फॉर ओपीएस का समर्थन' किया। उन्होंने कर्मचारियों को आश्वासन दिया कि कांग्रेस सरकार बनते ही पुरानी पेंशन योजना लागू की जाएगी। न्यू पेंशन स्कीम के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर भी मौजूद रहे। न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के पदाधिकारी ओल्ड डीसी कार्यालय के बाहर पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली को लेकर क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष अशोक ठाकुर ने कहा कि बार-बार पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर पत्र लिखे जा रहे हैं, लेकिन कोई निर्णय नहीं ले रही। छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में सरकार ने कर्मचारियों की मांग को मान लिया है। 1,35,000 कर्मचारी प्रदेश भर में हैं। करीब 10,000 कर्मचारी उसमें सोलन जिले के हैं। अब एसोसिएशन ने निर्णय लिया है कि उसी पार्टी को वोट दिया जाएगा, जो ओल्ड पेंशन की बहाली करेगी।
हिमाचल प्रदेश न्यायिक कर्मचारी कल्याण संघ की राज्य कार्यकारिणी की वर्चुअल बैठक सोमवार को संपन्न हुई। इस बैठक में राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों के अतिरिक्त सभी जिलों के पदाधिकारी भी शामिल हुए। बैठक में जिला न्यायपालिका के कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान जारी न करने को लेकर सरकार के ढुलमुल रवैए पर गहरा रोष प्रकट किया गया। राज्य अध्यक्ष परमानंद शर्मा ने बताया कि इस बैठक में न्यायिक कर्मचारियों के रोष पर ज्वाइंट एक्शन कमेटी का गठन किया गया है और उसकी आगामी रणनीति भी तय कर ली गई है। उन्होंने कहा कि समस्त जिला न्यायपालिका के कर्मचारियों के सब्र का बांध टूट चुका है और सभी कर्मचारी 21 सितंबर से काले बिल्ले लगाकर रोष प्रदर्शन शुरू कर देंगे। उन्होंने कहा कि कर्मचारी 26 सितंबर से गेट मीटिंग नारेबाजी व वर्क टू रूल के अंतर्गत कार्य करना शुरू कर देंगे। इसके अतिरिक्त 11 अक्टूबर से सभी जिला न्यायपालिका के कर्मचारी सामूहिक अवकाश पर जाएंगे तथा अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। राज्य अध्यक्ष ने सरकार द्वारा जिला न्यायपालिका कर्मचारियों के साथ किए जा रहे सौतेले व्यवहार पर गहरा रोष व्यक्त किया। उन्होंने यह भी बताया कि कर्मचारियों को पुराने वेतनमान पर डीए तक नहीं मिल रहा है। उन्होंने राज्य सरकार से एक बार फिर अपील की कि सरकार न्यायपालिकाओं के कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार ना करें तथा अतिशीघ्र संशोधित वेतनमान जारी करें। वहीं बैठक में गठित की गई ज्वाइंट एक्शन कमेटी के अध्यक्ष पवन ठाकुर ने बताया कि यह कमेटी राज्य कार्यकारिणी के हर निर्देश का मजबूती से पालन करेगी।
धरने के दौरान एचआरटीसी पेंशनरों और पुलिस के बीच हुई धक्कामुक्की के बाद लगे जाम के मामले में 10 पेंशनरों के खिलाफ एफआईआर होने पर परिवहन पेंशनर कल्याण संगठन भड़क गया है। संगठन के पदाधिकारियों ने कहा है कि सरकार पेंशनरों की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है। संगठन के प्रधान सत्यप्रकाश शर्मा, अध्यक्ष केसी चौहान, महासचिव सत्यप्रकाश शर्मा और महासचिव सुरिंद्र कुमार गौतम ने कहा है कि एफआईआर दर्ज कर वरिष्ठ नागरिकों को डराने की कोशिश की जा रही है लेकिन वे बिलकुल भी नहीं डरेंगे । पेंशनर संगठन का कहना है की उन्होंने ने 12 मई को एचआरटीसी मुख्यालय के सामने धरना देकर अपनी मांगें उठाई थी और आठ जून को सचिवालय मार्च का ऐलान किया था। 13 मई को सरकार और निगम प्रबंधन को नोटिस देकर सचिवालय मार्च को लेकर अवगत करवाया। बावजूद इसके सरकार और प्रबंधन ने संगठन को कानूनी बाध्यता के विषय में अवगत नहीं करवाया। उन्होंने कहा की अगर हमें सूचित किया जाता तो प्रदर्शन स्थल बदला जा सकता था लेकिन प्रशासन ने ऐसा नहीं किया। संगठन के पदाधिकारियों ने कहा की पेंशनरों पर ट्रैफिक रोकने के निराधार आरोप लगाए जा रहे हैं। जबकि पुलिस ने बैरिकेड लगाकर और पुलिस बस और जीप सड़क पर तिरछी लगाकर ट्रैफिक रोका। टॉलैंड में लगे सीसीटीवी कैमरों में भी इसकी रिकॉर्डिंग है। पुलिस ने न सिर्फ ट्रैफिक रोका बल्कि वरिष्ठ नागरिकों के ऊपर बल प्रयोग भी किया। जिसमें कई बुजुर्ग चोटिल भी हुए। संगठन ने कहा की बुज़ुर्ग पेंशनरों के साथ ऐसा व्यवहार बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है। उन्होंने कहा की अगर पेंशनरों के साथ इस तरह का व्यवहार होता रहा तो प्रदर्शन और भी उग्र होगा।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला यूजीसी पे-स्केल जारी न करने के विरोध में अब प्रदेश विश्वविद्यालय का शिक्षक कल्याण संघ भी आंदोलन पर उतर आया है। प्रदेश विश्वविद्यालय शिक्षक कल्याण संघ के महासचिव डा. जोगिंद्र सकलानी ने प्रदेश सरकार से यूजीसी के सातवें वेतन आयोग को जल्द जारी करने की मांग की है। उनका कहना है कि सात वर्षों के बाद भी इसे लागू न करना शिक्षक समुदाय के साथ धोखा है। इस बारे में प्रदेश विश्वविद्यालय शिक्षक कल्याण संघ ने कई बार मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के समक्ष अपनी बात रखी हैं, परंतु हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा। सरकार ने अपने सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को नया वेतनमान लागू कर दिया है केवल विश्वविद्यालय व कालेज प्राध्यापक वर्ग को इस से वंचित रखा गया है, जो इस समुदाय के सरासर अन्याय है। संघ की मांग है कि यदि जल्द से जल्द नए वेतनमान को लागू नहीं किया जाता है तो आने वाले समय में शिक्षक आंदोलन करने पर विवश होंगे और इसकी जिम्मेदारी पूर्ण रूप से सरकार की होगी। डा. जोगिंद्र सकलानी ने कहा है कि जल्दी ही प्रदेश विश्वविद्यालय शिक्षक कल्याण संघ की आम सभा बुलाकर आगे की रणनीति तय की जाएगी।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) ड्राइवर यूनियन ने निगम प्रबंधन के खिलाफ फिर मोर्चा खोल दिया है। यूनियन ने चेतावनी दी है कि यदि 29 मई तक सरकार व निगम प्रबंधन ने उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वे 30 मई को बसें नहीं चलाएंगे। यानी हिमाचल प्रदेश में एक दिन के लिए 4000 सरकारी बसों के पहिए थम जाएंगे। शिमला में प्रदर्शन करते हुए एचआरटीसी ड्राइवर यूनियन ने प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए 'काम छोड़ों' आंदोलन का ऐलान किया है। ड्राइवर यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष मान सिंह ठाकुर ने बताया कि 29 मई की रात 12 बजे से 30 मई की रात 12 बजे तक एचआरटीसी का कोई भी चालक बस नहीं चलाएगा। उन्होंने बताया कि यूनियन ने 25 अप्रैल को ही एचआरटीसी प्रबंधन को मांगे पूरी करने के लिए 12 मई तक का अल्टीमेटम दे दिया था, लेकिन एचआरटीसी प्रबंधन ने मांगे मानना तो दूर अब तक वार्ता के लिए भी नहीं बुलाया है। दरससल एचआरटीसी कर्मचारी राज्य सरकार के कर्मचारियों की तर्ज पर छठे वेतनमान के लाभ की मांग कर रहे हैं। राज्य सरकार अपने लगभग सभी कर्मचारियों को छठे वेतनमान के लाभ दे चुकी है लेकिन एचआरटीसी कर्मचारियों को अब तक इसके लाभ नहीं दिए गए। इसी तरह एचआरटीसी कर्मचारी 36 महीनों के लंबित पड़े ओवर टाइम के भुगतान, डीए का 2006 से लंबित पड़े एरियर के भुगतान और वरिष्ठ चालकों के पद सृजित करने की मांग कर रहे हैं। वरिष्ठ चालकों के पद सृजन की मांग को एचआरटीसी की निदेशक मंडल बैठक में भी पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। जाहिर है कि एचआरटीसी चालकों की हड़ताल से प्रदेशभर में आम आदमी को आवाजाही में कठिनाईयां झेलनी पड़ेगी क्योंकि प्रदेश में आवाजाही का एकमात्र साधन सड़कें ही है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इससे लोगों को कठिनाईया झेलनी पड़ेगी।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला प्रदेश के स्कूलों में प्री-प्राइमरी में भर्ती को लेकर चल रही देरी पर प्रशिक्षत अध्यापिका संघ ने नाराजगी जताई है। लम्बे समय से नियुक्ति का इंतजार कर रही एन.टी.टी. अध्यापिकाओं ने एक बार फिर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आरोप लग रहे है कि नर्सरी टीचर की भर्तियां न करने के लिए सरकार अलग-अलग बहाने ढूंढ रही है। प्री प्राइमरी स्कूलों में भर्ती न होने से ये अध्यापिकाएं काफी परेशान है। हिमाचल में राज्य सरकार ने 4000 से ज्यादा स्कूलों में प्री नर्सरी की कक्षाएं शुरू कर दी हैं। इनमें 700 स्कूल और जोड़े जा रहे हैं। अब तक 55,000 बच्चों का एनरोलमेंट यहां हो चुका है, लेकिन इन्हें संभालने और पढ़ाने के लिए टीचर की भर्ती अब तक नहीं हो पाई है। वर्तमान में सरकार ने जेबीटी को ही ये काम दे रखा है। प्री नर्सरी कक्षाएं अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा हैं, इसके बावजूद अब तक शिक्षकों की भर्ती के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए है। इसके लिए समग्र शिक्षा अभियान ने बजट भी दे रखा है, लेकिन भर्ती नीति फाइनल नहीं हो पा रही। एन.टी.टी. अध्यापिकाएं इस देरी से काफी परेशान है और सरकार से खफा भी। एन.टी.टी. प्रशिक्षित अध्यापिका महासंघ का कहना है कि पूरे भारत में प्री-प्राइमरी कक्षाएं सरकारी स्कूलों में चलाई जा रही हैं और हिमाचल प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में भी प्री-प्राइमरी कक्षाएं शुरू की गई हैं, पर हिमाचल में अध्यापकों की नियुक्ति नहीं हो पा रही। उनका कहना है कि एनरोलमेंट नंबर की संख्या भी बढ़ रही है, लेकिन इन विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए अध्यापकों की नियुक्ति करने में सरकार रूचि नहीं दिखा रही। महासंघ का कहना है की पूरे प्रदेश में 15000 से ज्यादा नर्सरी ट्रेंड टीचर पिछले 23 वर्षों से रोजगार की राह ताक रहे हैं, परंतु सरकार इनकी कोई सुध नहीं ले रही। एनटीटी प्रशिक्षित महासंघ की महासचिव कल्पना शर्मा का कहना है कि इन महिलाओं ने नर्सरी अध्यापिका का प्रशिक्षण यह सोचकर प्राप्त किया था कि भविष्य में उन्हें रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। इनमें से अधिकतर महिला गरीब परिवार से संबंधित है और कुछ महिलाएं विधवा है। सभी महिलाओं ने मिलकर बार-बार हिमाचल सरकार से रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए आग्रह किया हैं, लेकिन प्रदेश सरकार सुध लेने को तैयार नहीं। यहां 1997 के बाद इन नर्सरी ट्रेन्ड टीचर्स की कोई भर्ती आज तक नहीं की गई है। ये है एन.टी.टी. की मुख्य मांगे : - प्री प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं को नियुक्त किया जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति आरएंडपी रूल्स बनाकर की जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति नियमित आधार पर की जाए। - आयु सीमा में छूट दी जाए। - योग्यता प्लस टू पास हो व नर्सरी का विशेष प्रमाण पत्र रखा जाए। - वार्ड ऑफ़ एक्स सर्विस मैन का कोटा दिया जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति बैच वाइज की जाए। - उच्च शिक्षा प्राप्त प्रार्थी को शिक्षा योग्यता के अनुसार प्राथमिकता दी जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिका की नियुक्ति बिना किसी शर्त के की जाए।
कांग्रेस, कहीं नहीं जाऊंगा छोड़ कर - कहा पार्टी में पुराने लोगों को तवज्जो दिए जाने की जरूरत पंकज सिंगटा। धर्मशाला जिला कांगड़ा के ज्वाली विधानसभा क्षेत्र से पूर्व में विधायक रहे और पूर्व में सीपीएस रहे नीरज भारती का विवादों से पुराना नाता रहा है। अपनी बेबाकी के चलते नीरज भारती अक्सर चर्चा में रहते है। नीरज भारती के बोल विपक्ष को तो चुभते ही है, लेकिन कई बार अपनी पार्टी को भी कठघरे में ला खड़ा करते है। पर नीरज भारती ताल ठोक कर कहते है कि कांग्रेस उनके खून में है। इस पर भी कोई सवाल नहीं है कि नीरज भारती के समर्थकों की खासी तादाद है। आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका, पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा के साथ उनकी तल्खियां और कांग्रेस की वर्तमान स्थिति जैसे कई विषयों पर फर्स्ट वर्डिक्ट ने नीरज भारती से खास चर्चा की। पेश है इस चर्चा के मुख्य अंश .... सवाल : हो सकता है आप इस सवाल से ऊब गए हो परन्तु हम सर्व प्रथम ये ही जानना चाहते है कि आपके सुधीर शर्मा के साथ क्या मतभेद है ? जवाब : इस सवाल से मैं तो नहीं ऊबा हूँ लेकिन हो सकता है जो लोग मुझे सुनते है, वो इस बात से ऊब गए हो, लेकिन आपने यह सवाल किया है तो मैं जरूर जवाब दूंगा। ऐसी कोई गंभीर घटना नहीं थी, लेकिन छोटा मोटा मन मुटाव है और वह आगे भी रहेगा, क्योंकि मुझसे धोखेबाज़ी बर्दाश्त नहीं होती है। मैं यारी दोस्ती में जान देने और लेने के लिए भी तैयार हूँ। ऐसी ही धोखेबाज़ी धर्मशाला के पूर्व विधायक सुधीर शर्मा ने भी की थी। मैं फेसबुक पर बहुत सारी ऐसी चीजें लिखता रहता हूँ जो मुझे पसंद नहीं आती क्योंकि फेसबुक खुद ही पूछता है कि " व्हाट्स ऑन योर माइंड"। तो मैं लिख देता हूँ। उस समय जब धर्मशाला में यह घटना हुई थी उसका कारण यह था कि मैंने सुधीर के लिए कुछ लिखा था, लेकिन उनके जो समर्थक थे उन्हें वह बात पसंद नहीं आई। इस वजह से उनके साथ थोड़ा मन मुटाव हो गया था। उन लोगों से मेरी कोई निजी दुश्मनी नहीं है, सुधीर शर्मा से है और वह आगे भी जारी रहेगी। सवाल : आपने कहा कि सुधीर शर्मा ने धोखेबाज़ी की है, धर्मशाला में जो भी घटना हुई वह सबके सामने है। उस घटना से आपके निजी मतभेद सबके सामने आए। कांग्रेस में एक डिसीप्लेनेरी कमेटी बनाई गयी है, क्या इस घटना के बारे में वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई? जवाब : इस घटना में पार्टी के खिलाफ कोई भी बात नहीं हुई है। यह मेरा और सुधीर का निजी मामला है, हालाँकि वह कुछ नहीं बोलता क्योंकि उसे मंद मंद मुस्कुराने की आदत है। वह दूसरों के कन्धों पर बन्दुक रख कर चलाने वाला इंसान है, लेकिन मैं खुद सामने खड़ा होता हूँ। मेरे साथ कोई गलत करेगा तो मैं उससे खुद निपटना जानता हूँ। पार्टी में डिसीप्लेनेरी कमेटी है लेकिन वह तभी बोलती है, यदि हम पार्टी के खिलाफ कुछ बोलेंगे या पार्टी के खिलाफ कुछ गलत करें। सुधीर के साथ मेरी जो निजी रंजिश है वह तो रहेगी ही, फिर चाहे पार्टी मुझे स्वीकार करे या न करे। सवाल : आगामी चुनावों की बात करे तो यह बातें निकल कर आ रही है कि आपके पिता चौधरी चंद्र कुमार ज्वाली से चुनाव लड़ने वाले है, आप नहीं। यदि आपके पिता चुनाव लड़ते है तो आपने अपने लिए किस तरह की भूमिका तय की है? जवाब : ज्वाली, चौधरी चंद्र कुमार की कर्म भूमि रही है। पिछले दो चुनावों से ही हमें ज्वाली नाम सुनने को मिल रहा है, उससे पहले इस विधानसभा क्षेत्र का नाम गुलेर हुआ करता था। चौधरी चंद्र कुमार ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत इसी क्षेत्र से की है। हालांकि मैंने वहां से 3 चुनाव लड़े है। जब चौधरी चंद्र कुमार जी ने शांता कुमार को हराकर लोकसभा चुनाव जीता, उस समय 2004 में उपचुनाव हुआ। मैंने वह चुनाव लड़ा था लेकिन उस समय मैं जीत नहीं पाया था। इसके बाद 2007 में पार्टी ने मुझ पर विश्वास जताया और मुझे फिर से टिकट दिया और मैं वहां से चुनाव जीत गया। 2012 में एक बार फिर मुझे चुनाव लड़ने का मौका मिला और स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की सरकार बनी और मुझे मुख्य संसदीय सचिव के रूप में कार्य करने का मौका मिला और मुझे शिक्षा विभाग में जिम्मेवारी सौंपी गयी थी। मैंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए कई कार्य किये थे। अपने क्षेत्र के स्कूलों के विकास के लिए मैंने कई कार्य किये थे। जहाँ तक बात है 2017 के विधानसभा चुनावों की, तो मेरी ख्वाईश थी की मेरे पिता यहाँ से चुनाव लड़े और जीते और उसके बाद रिटायरमेंट ले ले, लेकिन 2017 का चुनाव हम नहीं जीत पाए। ज्वाली मेरे पिता की कर्मभूमि है और मैं चाहता हूँ कि वह यहाँ से विधायक बने और उसके बाद वह रिटायरमेंट ले। सवाल : हाल ही में कांग्रेस में परिवर्तन हुआ है। नए अध्यक्ष नियुक्त किए गए है और चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए है। ऐसे में यदि इस बार कांग्रेस की सरकार बन कर आती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा। इस बारे में आप अपनी निजी राय क्या रखते है ? जवाब : मुख्यमंत्री बनने के लिए सबसे पहले तो अपनी अपनी सीटें जितनी पड़ेगी और सरकार बनानी पड़ेगी। अगर आप अपनी सीटें जीत भी जाते हैं और दूसरों को हराने की कोशिश करते हैं और सरकार नहीं बना पाते हैं तो मुख्यमंत्री बनने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के जाने के बाद कांग्रेस पार्टी में एक बड़ा रिक्त स्थान आ गया है और उनके जैसा नेता हिमाचल को मिलना बहुत ही मुश्किल है। सभी लोग कोशिश कर रहे है कि वह मुख्यमंत्री बने और सरकार बनाएं, लेकिन सबसे पहली बात यह है कि यदि जीतेंगे तभी सरकार बना पाएंगे। सबसे पहले अपनी सीटें जितनी होगी और उसके साथ साथ दूसरों की सीटें जितवानी होगी, तभी सरकार बनाएंगे। फिलहाल नाम तो मैं नहीं ले सकता क्योंकि जितने भी लोग इस दौड़ में है, सभी माननीय सम्मानीय है और सभी लोग योग्य भी है, लेकिन इसके बारे में आने वाला वक्त ही फैसला करेगा। सवाल : कांग्रेस को एक छोटे से राज्य में 4 कार्यकारी अध्यक्ष बनाने पड़े है। कांगड़ा जिला से भी पवन काजल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। आपको क्या लगता है कि यह फार्मूला कितना सही साबित हो सकता है ? जवाब : ऐसा फार्मूला तब बनाया जाता है जब कोई भाग रहा हो और उस पर बेड़ियाँ डालनी हो। ऐसी किसी पोस्ट से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि आखिर में फैसले तो अध्यक्ष ही करता है। आज कल तो वैसे भी पार्टियों को छोड़ने का रिवाज़ सा ही चल पड़ा है। इतने लोग कपड़े नहीं बदलते है जितनी लोग आज कल पार्टियां बदल रहे है। मैं बस यही कहना चाहूंगा कि जिन्हें भी पार्टी द्वारा कार्यकारी अध्यक्ष या अन्य जिम्मेवारियां दी गयी है, वह इसे अच्छे से निभाएं और अच्छा कार्य करें। मैं बस आलाकमान से एक आग्रह करना चाहूंगा कि पुराने लोगो को नज़रअंदाज़ न किया जाएं और उनके साथ विश्वासघात न किया जाएं। पुराने लोगों ने अपनी पूरी जवानी, अपनी पूरी उम्र पार्टी को बनाने में लगाई है और पार्टी के साथ स्तम्भ की तरह खड़े रहे है। आप पंजाब का ही हाल देख लीजिए, सुनील जाखड़ बीते दिनों पार्टी छोड़ कर चले गए और अब वह भाजपा में शामिल हो गए है। इससे पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह पार्टी छोड़ गए है और इनके जैसे कई नेता पार्टी को छोड़ कर जा चुके है। मैं बस चाहता हूँ कि पुराने लोगों को नज़रअंदाज़ न किया जाए और उन्हें तवज्जो दी जाए। पुराने लोगों ने ही पार्टी के लिए कार्य किया है और पार्टी के लिए हमेशा आगे खड़े रहे है। सवाल : क्या आप मानते है कि चूक वहां हो रही है जहाँ पुराने लोगों को मौका नहीं दिया जा रहा है ? जवाब : बिल्कुल मैं यह बात मानता हूं क्योंकि पुराने लोग पार्टी के स्तंभ है। पुराने लोग पार्टी को इतना आगे लेकर आए है। हालांकि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उन लोगों को भी पार्टी की वजह से ही सम्मान मिला है, लेकिन पार्टी भी उन्हीं लोगों की वजह से मजबूत हुई है। मैं कुछ दिन पहले सुन रहा था, राहुल गांधी बोल रहे थे कि हम अपनी विचारधारा की लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन विचारधारा की लड़ाई तो आप तब लड़ेंगे जब आपके पास अपनी विचारधारा रहेगी। कांग्रेस पार्टी की विचारधारा भाजपा, जनसंघ और आरएसएस से बिल्कुल अलग है। वह लोग कट्टरपंथी है लेकिन कांग्रेस सब को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी है। लेकिन भाजपा, आरएसएस और जनसंघ के कट्टरपंथी लोग पार्टी में आएंगे तो विचारधारा को कैसे बचाएंगे। पार्टी में पुराने लोगों को पूछे बिना पार्टी के अंदर फैसले लिए जाएंगे, और ऐसे लोगों की बातों पर फैसले लिए जाएंगे जो आज यहाँ है और कल वहां है तो विचारधारा कैसे बचेगी। सवाल : आरोप लगाने के बावजूद भी आप कांग्रेस पार्टी में टिके है, ऐसा क्या लगाव है पार्टी के साथ ? जवाब : मेरे तो खून में कांग्रेस पार्टी है। मेरे पिताजी कांग्रेस विचारधारा, गांधीवादी विचारधारा के आदमी है। उस समय इस विधानसभा क्षेत्र का नाम गुलेर हुआ करता था और उस वक्त दूर-दूर के इलाकों के विधायक बनते थे। भाजपा के हो या कांग्रेस के हो ज्वाली से कोई भी विधायक नहीं बनता था। मेरे पिता सरकारी नौकरी में थे और हमारे इलाके की नज़रअंदाजगी को लेकर उन्होंने सरकारी नौकरी का त्याग कर दिया। वह कांग्रेस विचारधारा के थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने 1977 में पहला चुनाव बतौर आजाद उम्मीदवार लड़ा और वह बहुत ही कम अंतर से चुनाव हार गए। इसके बाद जनता पार्टी के लोगों ने मेरे पिता को पार्टी में शामिल होने और टिकट देने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने जनता दल का टिकट लेने से इंकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि मैं एक बार कांग्रेस पार्टी के टिकट के लिए फिर से कोशिश करूंगा यदि मुझे टिकट मिलती है तो मैं चुनाव लडूंगा, और यदि नहीं मिलती है तो मैं चुनाव नहीं लडूंगा। नौकरी से इस्तीफा देने के बाद वे शिमला के मशहूर कॉलेज सेंड बीट्स में बतौर जियोग्राफी के प्रोफेसर के रूप में नौकरी करने लगे। इसके बाद 1982 में उन्हें कांग्रेस का टिकट मिला और उन्होंने चुनाव लड़ा। तब से लेकर मेरे पिता कांग्रेस में है। मेरे खून में कांग्रेस है, हमने कांग्रेस पार्टी ही देखी है। यदि कांग्रेस पार्टी नज़रअंदाज़ करेगी तो, मैं भाजपा में या कहीं और नहीं जा सकता। मैं अपना विरोध दर्ज करता रहूंगा लेकिन कांग्रेस छोड़ किसी और पार्टी में नहीं जाऊंगा। अगर ज्यादा नज़रअंदाज किया जाता है तो पहला चुनाव भी पिता जी ने बतौर आज़ाद उमीदवार लड़ा था और अगला भी ऐसे ही लड़ लेंगे, लेकिन भाजपा या आम आदमी पार्टी में जाने का कोई मतलब नहीं बनता है। आम आदमी पार्टी ने तो वैसे भी ड्रामा बना के रखा है। उनसे दिल्ली अभी संभाली नहीं जा रही है |
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला प्रदेश के विज्ञान अध्यापक टीजीटी से मुख्याध्यापक पदोन्नति के नियमों में बदलाव के खिलाफ है। प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ ने सरकार से मांग की है कि टीजीटी से मुख्याध्यापक पदोन्नति के नियमों में कोई छेड़छाड़ न करते हुए माननीय न्यायालय के निर्णय को यथावत रखा जाए। प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ का मानना है कि इससे टीजीटी से मुख्याध्यापक बनने के लिए लगभग 22 वर्षों से पदोन्नति का इंतजार कर रहे अध्यापकों के साथ अन्याय नहीं होगा। संघ का मानना है कि यदि नियमों में कोई बदलाव किया जाता है तो मुख्याध्यापक के पद पर पदोन्नति का इंतजार कर रहे प्रदेश भर के टीजीटी शिक्षक, टीजीटी पद से ही सेवानिवृत्त होने को मजबूर हो जाएंगे। प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र ठाकुर, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुधीर चंदेल, प्रदेश महामंत्री अवनीश कुमार, कोषाध्यक्ष लवलीन, मीडिया प्रभारी सुनील का कहना है कि इस मांग को पहले भी कई बार मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव प्रदेश के समक्ष उठाया जा चुका है। मुख्यमंत्री द्वारा अपने बजट भाषण में 26 अप्रैल 2010 के बाद टीजीटी से पदोन्नत लेक्चरर की ऑप्शन एकमुश्त बहाल कर मुख्याध्यापक बनाने की घोषणा की है, इसके लागू होने से टीजीटी काडर के एक बहुत बड़े वर्ग के साथ अन्याय न हो, इसलिए जो पदोन्नति की स्थिति लगभग 10 वर्षों से चली आ रही है, उसी को यथावत रखा जाए।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला "मैं प्रखर राष्ट्रवादी हूँ। खालिस्तानियों के साथ सम्बन्ध रखने वालों के साथ मेरा दूर- दूर तक कोई लेना देना नहीं हो सकता। मैं देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना आदर्श मानता हूं। एकात्मवाद व राष्ट्रवाद मेरी आत्मा में बसा है। उप चुनाव में हमारा झंडा भगवा ही था और भविष्य में भी भगवा ही लहराएगा, यही हमारा संकल्प है ", ये शब्द है जुब्बल कोटखाई से निर्दलीय चुनाव लड़ चुके चेतन बरागटा के। चेतन बरागटा ने खुद ये स्पष्ट कर दिया की वो किसी भी हालात में आम आदमी पार्टी में शामिल नहीं होंगे। चेतन ये सन्देश हल्के अंदाज में भी दे सकते थे लेकिन उन्होंने कठोर शब्दों का चयन किया, जाहिर है उनका इरादा अटकलों पर विराम लगाना नहीं अपितु पूर्ण विराम लगाने का है। दरअसल अब भी जुब्बल कोटखाई भाजपा का एक बड़ा धड़ा चेतन के साथ खड़ा है और चेतन अपने इन निष्ठावानों को हर हाल में साध कर रखना चाहते है। उधर, भाजपा ने अब तक चेतन की घर वापसी में प्रत्यक्ष तौर पर कोई रूचि नहीं दिखाई है। हालांकि पार्टी के भीतर अधिकांश लोगों का उन्हें लेकर सकारात्मक रवैया है। ऐसे में उनकी घर वापसी तो लगभग तय है , पर सवाल ये है कि आखिर कब ? जुब्बल कोटखाई में भाजपा की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। उपचुनाव में पार्टी जमानत तक नहीं बचा सकी थी और तब से अब तक भी जमीनी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं दिखता। फिर भाजपा किस बात का इन्तजार कर रही है, यह समझना फिलवक्त कठिन है।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला आंगनबाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन ने केंद्र सरकार पर आईसीडीएस विरोधी कार्य करने का आरोप लगाया है। यूनियन अध्यक्ष नीलम जसवाल व महासचिव वीना शर्मा ने कहा कि यूनियन केंद्र सरकार की आंगनबाड़ी व जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन तेज करेगी। यूनियन अपनी मांगों को लेकर 10 से 17 जून के मध्य हिमाचल प्रदेश के सातों लोकसभा व राज्यसभा सदस्यों को मांग-पत्र सौंपेगी। साथ ही अपनी मांगों को लेकर आंगनबाड़ी कर्मी 11 जुलाई को प्रदेशभर में मांग दिवस मनाएंगे। यूनियन अपनी मांगों को लेकर 25 से 29 जुलाई तक दिल्ली में महापड़ाव भी करेगी। उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार आईसीडीएस विरोधी कार्य कर रही है व उसका निजीकरण कर रही है। इसे वेदांता कम्पनी के हवाले किया जा रहा है। नंद घर भी निजीकरण की प्रक्रिया का ही हिस्सा है। उन्होंने निजीकरण पर तुरन्त रोक लगाने की मांग की। उन्होंने भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार आंगनबाड़ी कर्मियों को नियमित करने की मांग की। साथ ही हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन देने व माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अनुसार ग्रेच्युटी देने की मांग की। उन्होंने कर्मियों को प्री प्राइमरी में सौ प्रतिशत नियुक्ति देने,सेवानिवृति आयु 65 वर्ष करने,वर्ष 2013 की एनएचआरएम की बकाया राशि का भुगतान करने व मिनी आंगनबाड़ी कर्मियों को बराबर वेतन देने की भी मांग की।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पीईटी की बैचवाइज भर्ती पिछले पांच सालों से नहीं हो पाई है जिससे बेरोजगार शारीरिक शिक्षक खासे नाराज है। अब इन शिक्षकों ने आमरण अनशन की चेतावनी दी है। शिक्षक संघ ने सरकार को चेतावनी दी है कि 30 मई से पहले यदि भर्ती प्रक्रिया को शुरू नहीं की गई तो विधानसभा के बाहर हजारों बेरोजगार आमरण अनशन पर बैठेंगे। इसके लिए राज्य सरकार पूर्ण रूप से जिम्मेदार होगी। शारीरिक शिक्षक संघ ने प्रदेश भाजपा सरकार से शारीरिक शिक्षकों के 870 पदों को 30 मई तक भरने की प्रक्रिया पूर्ण करने का आग्रह किया है, ताकि स्कूली बच्चे शारीरिक शिक्षा विषय पढ़ने से वंचित न रहें और साथ ही इन शिक्षकों को भी रोज़गार मिल पाए। शारीरिक अध्यापक संघ के प्रधान सतीश शर्मा का कहना है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर सहित मंत्रिमंडल की ओर से पहली बार सीएंडवी के पदों को भरने की पहल की गई। इसमें कला अध्यापकों के 820 पदों को भर कर बेरोजगारों को सरकार ने न्याय प्रदान किया है। उन्होंने कहा की कला अध्यापकों के पदों को भरने के बाद अब शारीरिक शिक्षकों के स्कूलों में खाली पड़े पदों को शीघ्र भरा जाए। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर 870 शारीरिक शिक्षकों के पदों को भरने के निर्देश शिक्षा निदेशक प्रारंभिक व प्रदेश भर के सभी प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशकों को जारी करें। शारीरिक शिक्षक कई वर्षों से सरकार से स्कूलों में खाली पड़े पदों को भरने की गुहार लगा रहे हैं और अब कई बेरोजगार शारीरिक शिक्षक 47 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं। शर्मा ने कहा कि अधिकतर बेरोजगार शारीरिक शिक्षक अब हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से परीक्षा में बैठने के लिए अधिक उम्र के कारण पात्र नहीं रहे हैं। ज्यादा उम्र के इन बेरोजगारों को भाजपा सरकार से एक ही आशा बची है कि उन्हें बैचवाइज भर्ती के आधार पर शीघ्र स्कूलों में नियुक्ति प्रदान की जाए।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला गृहरक्षकों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि उन्हें भी संशोधित वेतनमान का लाभ दिया जाए। अगर सरकार छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करती है तो उससे हर गृहरक्षक के वेतन में पांच हजार रुपये की वृद्धि होगी। इस संबंध में गृह रक्षक कल्याण संघ ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को मांग पत्र सौंपा है। संगठन के पदाधिकारियों ने महासचिव जगदीश ठाकुर की अगुवाई में मुख्यमंत्री से शिमला स्थित उनके सरकारी आवास ओकओवर में मुलाकात की। उन्होंने उन्हें मांग पत्र भी सौंपा। संघ के महासचिव ने कहा कि गृह रक्षक हाईकोर्ट से भी केस जीत चुके हैं। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि उन्हें छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ प्रदान किया जाए। अभी प्रदेश में गृहरक्षकों की संख्या करीब छह हजार है, लेकिन इन्हें संशोधित वेतनमान का लाभ नहीं मिला है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने आश्वासन दिया है कि इन्हें नए वेतनमान का लाभ प्रदान किया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार कर्मचारी हितेषी हैं और हर वर्ग के हितों का ख्याल रखा जा रहा है। गृह रक्षकों को उम्मीद है कि सरकार उनका भी ख्याल रखेगी।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला पूरी उम्र सरकार के लिए जिन कर्मचारियों ने काम किया, आज बुढ़ापे में उन्हीं का साथ सरकार ने छोड़ दिया। ये कहना है हर महीने अपनी पेंशन का इंतज़ार करने को मजबूर हुए एचआरटीसी के पेंशनरों का। लम्बे समय तक सरकारी दफ्तरों और विधायकों - मंत्रियों के कार्यालयों के चक्कर काटने के बाद अब ये पेंशनर अपनी मांगों को मनवाने के लिए इस उम्र में धरना देने को मजबूर है। इन पेंशनरों ने अब सरकार व निगम प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हाल ही में प्रदेश भर से आए पेंशनरों ने वित्तीय लाभ जारी न करने को लेकर एचआरटीसी मुख्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन और जमकर नारेबाजी की। इस दौरान पेशनरों ने धरना प्रदर्शन कर निगम प्रबंधन व सरकार को चेताया कि यदि मांगे पूरी नहीं होती तो आंदोलन तेज होगा, वहीं यह भी कहा कि यदि मांगे पूरी नहीं की तो आगामी आठ जून को प्रदेश भर से हजारों पैंशनर्ज व उनके परिवार सदस्य सचिवालय का घेराव करेंगे। एचआरटीसी संयुक्त समन्वय समिति ने भी पेंशनरों के आंदोलन को समर्थन का ऐलान किया है। ऐसे में निगम के 13,000 सेवारत और 7,000 सेवानिवृत्त सहित 20,000 कर्मियों के मांगों को लेकर एक मंच पर आ गए है। दरअसल एचआरटीसी के पेंशनरों को समय पर उनकी पेंशन नहीं मिल पा रही है जिससे पेंशनर काफी परेशान चल रहे है। पेंशनर्स कल्याण संगठन के अध्यक्ष केसी चमन ने कहा कि एचआरटीसी पेंशनर्स के साथ निगम प्रबंधन व सरकार द्वारा वित्तीय लाभ नहीं दिए जा रहे हैं। निगम के पेंशनरों ने कई सालों तक प्रदेश के लोगों की सेवा की है और कठिन परिस्थितियों में भी अपनी सेवाएं जारी रखी है। लेकिन जब आज सरकार से अपने हक की कमाई का पैसा मांगा जा रहा है, तो सरकार आश्वासन पर आश्वासन दे रही है। उन्होंने कहा कि वित्तीय लाभ जारी न करने पर दो अक्टूबर, 2021 को अतिरिक्त मुख्य सचिव परिवहन के साथ बैठक हुइ थी। बैठक में समझौता हुआ था कि जल्द से जल्द पेंशनरों को वित्तीय लाभ दिए जाएंगे, पर सरकार अपने वादों को पूरा नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि पेंशनरों के सब्र का बाँध अब टूट गया है। विधानसभा चुनाव में भुगतना होगा खामियाजा : सत्यप्रकाश संगठन के प्रांतीय प्रधान सत्य प्रकाश शर्मा ने कहा कि पेंशनरों की हालत दिन-प्रतिदिन खराब हो रही है। जहां कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा है, वहीं पेंशनरों को समय पर पेंशन नहीं मिल रही है, जिससे प्रदेश के 7500 पेंशनरों को खराब आर्थिक स्थिति से जूझना पड़ रहा है। उन्होंने कहा की निगम प्रशासन और सरकार उनकी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है। उन्होंने सरकार को चेताया कि पेंशनरों की अनदेखी विधानसभा चुनाव में सरकार पर भारी पड़ेगी। सरकार की उपेक्षा के कारण पेंशनरों का शोषण हो रहा है और वरिष्ठ नागरिकों को आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। एचआरटीसी पर पेंशनरों की 350 करोड़ों की वित्तीय देनदारियां लंबित हैं। पेंशनरों की मुख्य मांगें : - महीने के पहले हफ्ते में जारी हो पेंशन - मेडिकल बिलों का समय पर भुगतान - 5, 10 और 15 फीसदी पेंशन वृद्धि का लाभ - 2015 से ग्रेच्युटी सहित अन्य भत्तों का भुगतान
कर्मचारी लहर : होमगार्ड जवानों के लिए नहीं बनाई गई अब तक कोई ठोस नीति करीब 6 दशक के लगातार संघर्ष के बावजूद आज तक प्रदेश के होमगार्ड जवानों को उनका हक नहीं मिल पाया है। पुलिस की तर्ज पर गृहरक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी निभाते हैं, वर्दी भी खाकी पहनते है, ट्रेनिंग भी उतनी ही कठोर होती है, मगर सरकारी कर्मचारी होने के नाते इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। अब होमगार्ड जवानों ने एक बार फिर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। होमगार्ड जवानों का कहना है कि सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। गृह रक्षकों ने अपने हक की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। इसका लाभ यह हुआ कि उनका वेतन बेहतर हो गया, मगर ये अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं। होमगार्ड एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि सरकार आज तक इनके लिए नियमितीकरण की नीति तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हर वर्ग को सहायता पहुंचाने की कोशिश में है। चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कर्मचारी फैक्टर को साधने के पूरे प्रयास किए जा रहे है। ऋण लेकर कर्मचारियों को खुश किया जा रहा है, मगर होमगार्ड जवानों का कहना है कि एक उनका वर्ग ही ऐसा है जिसकी अब तक अनदेखी की गई है। एसोसिएशन ने एक बार फिर सरकार से होमगार्ड के लिए स्थायी नीति बनाने की गुहार लगाई है। एसोसिएशन ने हाल ही में राज्य स्तरीय बैठक का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता एसोसिएशन अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा ने की और गृहरक्षकों को उनका हक़ दिलाने के लिए रणनीति बनाई। होमगार्ड एसोसिएशन का कहना है कि कोरोना संकट में सेवाएं देने के लिए विभिन्न विभागों के कर्मचारियों की सरकार द्वारा खूब प्रशंसा की गई, मगर होमगार्ड जवानों का नाम तक नहीं लिया गया। महिला सशक्तिकरण के नारे तो बहुत दिए जा रहे हैं परंतु अस्पतालों में तैनात की गई महिला होमगार्ड जवानों की सेवाएं अब अस्पतालों में खत्म कर दी गई हैं। होमगार्ड जवानों की ठेका प्रथा के अनुरूप सेवाएं लेते हुए कभी होमगार्ड जवानों को पुलिस, कभी वन विभाग तो कभी अन्य विभागों के साथ अटैच किए जाने के बाद संबंधित विभागों का काम पूरा हो जाने के बाद घर पर बिठा दिया जाता है। स्थायी रोजगार न होने व ठोस नीति न होने के कारण होमगार्ड जवानों सहित उनके परिवारों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। सेवानिवृत्ति के बाद खाली हाथ घरों को लौटने पर होमगार्ड जवानों को दिहाड़ी मजदूरी करके परिवारों का भरण पोषण करना पड़ता है। लिहाजा सरकार प्रदेश में सेवारत होमगार्ड जवानों से न्याय करते हुए उन्हें जल्द 12 माह का स्थायी रोजगार दे। वहीं होमगार्ड जवानों के लिए ठोस नीति बनाए। एकाध को छोड़कर किसी नेता नहीं उठाई आवाज : प्रदेश में एक-दो विधायकों को छोड़कर किसी भी विधायक व मंत्री ने होमगार्ड जवानों की बात आज तक नही सुनी है। 58 वर्षों से होमगार्ड जवान सरकार से होमगार्ड जवानों के लिए अन्य विभागों के कर्मचारियों की तरह ठोस नीति बनाने व 12 माह का स्थायी रोजगार देने की मांग कर रहे हैं, मगर सरकार उनकी मांग को नजरअंदाज कर रही है। होमगार्ड जवान सभी विधायकों से लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक को मांगपत्र सौंप चुके है, मगर आज तक किसी ने उनकी नहीं सुनी। -जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा, पदेश अध्यक्ष, हिमाचल होमगार्ड एसोसिएशन
इस वर्ष हिमाचल में चुनाव होने है और चुनावी वादों के इस दौर में कांग्रेस आए दिन ये ऐलान कर रही है कि सत्ता वापसी होते ही पुरानी पेंशन बहाल की जाएगी। कांग्रेस कर्मचारियों के इस मुद्दे का पूर्णतः समर्थन करती नज़र आ रही है। उधर, वार -पलटवार के इस दौर में भाजपा का पक्ष ये है कि कांग्रेस के सबसे बड़े नेता यानी वीरभद्र सिंह ही प्रदेश में नई पेंशन योजना लागू करने वाले नेता थे और आज यही कांग्रेस अपने नेता के निर्णय पर सवाल उठा उसे बदलने की कोशिश कर रही है। चुनाव है तो राजनीति होती रहेगी, मगर इस वक्त पुरानी पेंशन की बहाली प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में अधिकतम राज्यों के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मसला है। कई बड़े संघर्ष और कई बड़े आंदोलन प्रदेश में इस मांग को लेकर कर्मचारी कर चुके है, मगर हल अब तक नहीं मिल पाया। हालांकि ये भी सत्य है कि जयराम सरकार इस मांग को पूरा करने से पूरी तरह पीछे नहीं हट रही। पुरानी पेंशन बहाली के लिए कमेटी बनाई गई है और बैठकों का दौर भी जारी है, मगर मुख्यमंत्री ये स्थिति पहले ही स्पष्ट कर चुके है कि कमेटी जो भी निर्णय लेगी उसे केंद्र भेजा जाएगा और अंत में हरी झंडी प्रधानमंत्री ही दिखाएंगे। पर क्या जयराम सरकार पुरानी पेंशन बहाल कर सकती है, ये असल सवाल है। दरअसल इस वक्त देश के 12 राज्यों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है, जबकि 4 राज्यों में भाजपा समर्थित सरकार है। यदि किसी एक भी राज्य में भाजपा पुरानी पेंशन बहाल करती है तो बाकि राज्यों के कर्मचारी भी चाहेंगे की उन्हें भी पुरानी पेंशन दी जाए और अंततः केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए भी पुरानी पेंशन बहाल करनी होगी। ऐसे में हकीकत ये है कि चाहकर भी जयराम सरकार के लिए ऐसा करना मुश्किल होगा। हिमाचल में करीब सवा लाख कर्मचारी इस समय एनपीएस के दायरे में हैं और ये खुद के लिए ओल्ड पेंशन मांग रहे हैं। ये सवा लाख कर्मचारी और इनके परिवार लगातार पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। चुनाव के लिहाज़ से ये संख्या काफी महत्वपूर्ण है और वैसे भी हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी फैक्टर का असर सभी जानते है। भाजपा सरकार भी इस बात से भली भांति अवगत है और इसीलिए चुनावी वर्ष में कर्मचारियों की कई लंबित मांगें पूरी भी हुई है, लेकिन पुरानी पेंशन का मसला जस का तस है। आर्थिक स्थिति भी बाधा : इस योजना को लागू करने के लिए एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए और हर माह 500 करोड़ की जरूरत होगी। सरकार पहले भी कई बार ये स्पष्ट कर चुकी है कि फिलवक्त [प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए, मगर संभावनाएं फिर भी तलाशी जा रही है। हिमाचल सरकार अपने बलबूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। अब देखना यह होगा कि चुनावी वर्ष में जयराम सरकार ओल्ड पेंशन के मसले को किस तरह हल करती है। सरकार के पास एक विकल्प केंद्र से सहायता लेना भी है। कांग्रेस ने दो राज्यों में की बहाल : कांग्रेस की बात करें तो देश में सिर्फ दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस पुरानी पेंशन लागू कर चुकी है। ऐसे में हिमाचल में यदि सरकार बनती है तो संभवतः कांग्रेस यहाँ भी इसे लागू करे।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं दिख रहे। नई भर्ती न होने से बेरोजगार अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश सरकार से खासा नाराज़ है। संघ ने सरकार से कहा कि प्रदेश सरकार को 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर जल्दी से जल्दी नियमित शिक्षक भेजने चाहिए। प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान ने कहा कि दिल्ली, चंडीगढ़ के सरकारी स्कूलों तथा नवोदय विद्यालयों में पार्ट टाइम कांट्रैक्ट टीचरों को पक्का करने का कोई प्रावधान नहीं है। गौर हो कि 2555 एसएमसी शिक्षक भी पार्ट टाईम कांट्रैक्ट टीचर है, क्योंकि इन्हें प्रदेश सरकार हर साल सेवाविस्तार देती है। शिक्षा में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए पार्ट टाईम कांट्रैक्ट टीचरों को नियमित नहीं किया जाता है। भर्ती नियम संविधान की धारा 309 के अनुसार बनते हैं, जिनके अनुसार नियमित शिक्षकों की भर्तियां या तो कमीशन से हो सकती है या बैचवाइज प्रक्रिया के तहत हो सकती है। बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी, उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए। संघ ने कहा कि नियमों का पालन करने के लिए पंजाब सरकार ने आउटसोर्स भर्तीयों पर रोक लगा दी है। इसका बेरोजगार अध्यापक संघ ने जोरदार स्वागत किया है । संघ ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि एनटीटी शिक्षकों की भर्तियां आउटसोर्स से न करके भर्ती नियमों के अनुसार करे। संघ ने ये भी कहा कि यदि 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमानुसार जल्दी शिक्षक न भेजे गए तो रोष रैली की जाएंगी। उसके पश्चात यह रोष रैलियां हर जिला में निकाली जाएंगी।
हिमाचल प्रदेश में घोषणा के तीन महीने बाद भी छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं हो पाई है। अब सरकार ने एक बार फिर अवधि को बढ़ा कर पंजाब की तर्ज पर वेतनमान का विकल्प चुनने के लिए कर्मचारियों को 15 अप्रैल तक का वक्त दिया है। वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना की तरफ से डेट बढ़ाने का पत्र जारी हुआ है। ऐसे में कर्मचारियों को नए वेतनमान के लिए अभी और इंतजार करना होगा। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बीते साल ही छठे वेतनमान के लाभ देने का ऐलान कर दिया था। सरकार ने पहले कर्मचारियों को 2.25 व 2.59 के गुणांक के तहत वेतन वृद्धि का विकल्प चुनने का ऑप्शन दिया। इसका अधिकतर कर्मचारियों ने विरोध किया। कर्मचारियों का कहना था कि इन गुणांक को चुनने से कई कर्मचारियों से रिकवरी बन रही है, क्योंकि सरकार ने अपने कर्मचारियों को आईएआर की दो किश्त दे रखी है। मांग उठी तो सरकार ने कर्मचारियों को तीसरा विकल्प भी दे दिया। सरकारी कर्मचारियों के पास अब कुल तीन विकल्प पे-कमीशन को लेकर हैं, जिनमें 2.59 और 2.25 का गुणांक या फिर तीसरा विकल्प 15 फीसदी वेतन वृद्धि का है। अभी तक लगभग 75 फीसदी कर्मचारियों ने यह विकल्प चुन लिया है, लेकिन 25 फीसदी कर्मचारी अभी भी इंतजार कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में जनवरी 2016 से ही कर्मचारियों व पेंशनरों को छठे वेतन आयोग के लाभ देय है। फिर भी इसके लिए कर्मचारियों का इंतजार लंबा होता जा रहा है। दरससल कर्मचारियों के विरोध के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कर्मचारियों को 15 फीसदी वेतन बढ़ोतरी का विकल्प तो दिया लेकिन 15 फीसदी बढ़ोतरी के विकल्प में ऐरियर नहीं देने का प्रावधान किया गया। इससे भी कुछ कर्मचारी खुश नहीं है और पंजाब की तर्ज पर वेतनमान की मांग पर अड़े हुए हैं। इस वजह से बहुत से कर्मचारियों ने सरकार द्वारा बार-बार वेतन वृद्धि का विकल्प मांगने के बावजूद ऑप्शन नहीं दिया। इसके अतिरिक्त दो साल के राइडर में फंसे कर्मचारी राइडर खत्म होने का इंतज़ार कर रहे है। दो साल पहले रेगुलर हुए कर्मचारियों की पे-फिक्सेशन कम ग्रेड पे पर हो रही है। इसी वजह से यह राइडर पर फैसला होने का इंतजार जारी हैं। सभी विभागाध्यक्षों को दिए निर्देश : सरकार ने एक बार फिर से ऑप्शन देने का समय दिया है। जाहिर है कि अब सभी कर्मचारियों से विकल्प मिलने के बाद ही सरकार छठे वेतनमान के लाभ अपने कर्मचारियों एवं पेंशनर को देने को लेकर फैसला लेगी। वित्त विभाग ने सभी विभागाध्यक्षों को निर्देश दिए है कि हर एक कर्मचारी से वेतन वृद्धि को लेकर ऑप्शन मांग कर विभाग को सूचित किया जाए।
पंजाब में अब पूर्व विधायकों को सिर्फ एक टर्म की पेंशन मिलेगी। इसके साथ-साथ पूर्व विधायकों को मिलने वाले फैमिली भत्तों में भी कटौती की जाएगी। किसी भी पार्टी का उम्मीदवार चाहे कितनी भी बार का विधायक रहा हो उसे एक ही पेंशन मिलेगी। इसी अनुपात में फैमिली पेंशन भी कम होगी। पंजाब की भगवंत मान सरकार के इस फैसले की कहीं प्रशंसा हो रही है तो कहीं निंदा। कोई इस फैसले को ऐतिहासिक फैसला बता रहा है तो किसी का मानना है कि इस फैसले से सरकार को ज्यादा लाभ नहीं मिलने वाला। बहरहाल, ये निर्णय अच्छा है या बुरा, इसे लेकर विश्लेषण जारी है। मगर ये स्पष्ट है कि पंजाब सरकार के इस फैसले के बाद बाकी राज्य सरकारों पर भी दबाव बनना शुरू हो गया है। इस फैसले का प्रभाव हिमाचल में भी देखने को मिल रहा है। यहां भी जनता कुछ ऐसा ही चाहती है, खासतौर पर प्रदेश के कर्मचारी ये मांग करने लगे है। दरअसल, पंजाब सरकार द्वारा ये फैसला पंजाब की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लिया गया है। फिलवक्त पंजाब की आर्थिक स्थिति बदहाल है। पंजाब पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। इसका जिक्र सीएम भगवंत मान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान भी कर चुके हैं। सरकार का मानना है कि इस फैसले के बाद विधायकों की पेंशन पर खर्च हो रहे पैसे को युवाओं व अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर खर्चा जा सकेगा। बता दें कि छह बार विधायक रहीं पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्ठल, लाल सिंह, सरवन सिंह फिल्लौर को हर महीने तीन लाख 25 हजार रुपये मिलते हैं। रवि इंद्र सिंह, बलविंदर सिंह को हर महीने दो लाख 75 हजार रुपये की राशि मिलती है। वहीं 10 बार के विधायक की पेंशन छह लाख 62 हजार प्रतिमाह है। अब सभी पूर्व व मौजूदा विधायकों को सिर्फ 75 हजार रुपये पेंशन मिलेगी। मान सरकार पांच साल में 80 करोड़ रुपये की बचत करेगी और यह राशि जन कल्याणकारी कार्यों में खर्च की जाएगी। इस फैसले में एक और पेच भी अटका हुआ है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस फैसले का पंजाब को कोई वित्तीय लाभ नहीं होगा क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब रिटायर होता है तो उसे उस समय के नियमों के मुताबिक ही पेंशन मिलती है। जब 2004 में सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की तो यह केवल नए कर्मचारियों पर ही लागू हुई न की पुराने कमचारियों पर। यही फार्मूला विधायकों की पेंशन पर भी लागू हो सकता है। हालांकि सरकार कानून बना कर ऐसा कर सकती है और विधानसभा में बहुमत होने के चलते आम आदमी पार्टी के लिए ये बिल्कुल भी मुश्किल नहीं होने वाला। क्या ये पुरानी पेंशन बहाल न करने का संकेत है ! नेताओं को मिलने वाली एक से अधिक पेंशन को लेकर लंबे समय से देश में बहस छिड़ी हुई है। वन पर्सन वन पेंशन की मांग कई संगठन उठाते रहे है। वहीं पिछले कुछ समय से देश के कई राज्यों में नई पेंशन के विरोध में भी कर्मचारी लामबंद होते दिखे है। कर्मचारियों का अक्सर ये सवाल रहा है कि जहां उन्हें नए पेंशन सिस्टम के जरिये एक पेंशन भी ढंग से नहीं मिल पाती वहीं नेताओं को दो तीन पुरानी पेंशन आखिर क्यों दी जाती है। कर्मचारियों को मनाने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने तो पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा भी कर दी। ऐसे में कई राज्यों पर पुरानी पेंशन बहाली को लेकर दबाव है। इस बीच अब पंजाब ने विधायकों की पेंशन और भत्तों में कटौती कर दी है। अब एक तरफ कर्मचारी इसे बड़ा निर्णय बता खुश हो रहे है तो दूसरी तरफ कुछ का मानना है कि सरकार द्वारा उनका एक बड़ा मुद्दा खत्म कर दिया गया है और शायद ये कर्मचारियों को पुरानी पेंशन न देने का एक संकेत हो सकता है।
हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने एक दफे फिर सरकार से नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का लाभ देने की गुजारिश की है। संगठन का कहना है कि सरकार अपना वादा पूरा नहीं कर रही है। चार साल पहले यह वादा कर्मचारियों के साथ किया गया था, लेकिन अभी तक सरकार ने इस वादे को पूरा करने की जहमत नहीं उठाई है। संगठन का आरोप है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने सत्ता में आते ही कर्मचारियों की मांग को पूरा करने का आश्वासन दिया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा ने उनकी मांग को पूरा नहीं किया है। वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष भी इस मांग को कई बार उठाया जा चुका है। जेसीसी की बैठक में भी इस मांग पर कमेटी गठन की बात कही गई थी, लेकिन अभी तक कोई कमेटी नहीं बनाई गई है। इससे कर्मचारियों में निराशा है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वर्तमान सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को हल्के में ना लें, क्योंकि उनकी संख्या 70 हजार के करीब है और यदि उनके परिवार के सदस्यों की संख्या को भी गिन लिया जाए तो यह 3 लाख के करीब हो जाती हैl यह संख्या मिशन रिपीट में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है l यदि सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता देती है व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ती है तभी मिशन रिपीट होगा l संगठन का दो टूक कहना है कि यदि नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता नहीं तो मिशन रिपीट भी नहीं। चार महीने में कमेटी तक नहीं बनी : 27 नवंबर 2021 को शिमला में हुई संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के डिमांड चार्टर में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को नंबर चार पर रखा गया था l बैठक में इस हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने व संगठन के पदाधिकारियों को भी इसमें शामिल किये जाने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन चार माह बीत जाने पर भी कमेटी का गठन नहीं हो पाया है l 2008 में शुरू हुआ ये मसला : संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार तत्कालीन भाजपा सरकार ने लोक सेवा आयोग,अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया था। निश्चित वैधानिक प्रक्रिया को पूरा करने के बाद भी कमीशन पास कर्मचारियों को प्रदेश के इतिहास का सबसे लंबा अनुबन्ध काल दिया गया। उसके बाद आई सरकारों ने अनुबंध अवधि को कम जरूर किया, लेकिन कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से अपना कर्मचारी नहीं माना। सरकार कर्मचारी के सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से कर रही है, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। संघ का कहना है कि यह लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रोमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए ना की नियमितीकरण की तिथि से। पूर्व में भी सरकार ने एडहॉक और टेन्योर बेसिस पर नियुक्त कर्मचारियों की सेवाओं को प्रमोशन के लिए योग्य माना है तो अनुबंध पर दी गई सेवाओं को क्यों योग्य नहीं माना जा रहा? 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान का प्रश्न : गर्ग हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग का कहना है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं। कर्मचारियों का चयन भर्ती एवम पद्दोनत्ति नियमों के अनुसार हुआ है, इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है। सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे।
कर्मचारी लहर : बोले क्या लोन लेकर नई बसें खरीदने के लिए बुलाई गई थी बैठक ? हिमाचल परिवहन निगम के 12 हजार कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरेंगे। हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम के निदेशक मंडल (बीओडी) में कर्मचारियों की सुनवाई न होने से संयुक्त समन्वय समिति के नेता भड़क गए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि एचआरटीसी निदेशक मंडल की बैठक से निगम कर्मचारियों को निराशा हाथ लगी है। कर्मचारी बहुत लंबे समय से अपने देय वित्तीय भुगतानों की अदायगी की आस लगाए बैठे थे परंतु इससे संबंधित एक मामला भी बैठक में नहीं उठाया गया। इससे कर्मचारियों में रोष है। कर्मचारियों ने सरकार से सवाल किया है कि क्या यह बैठक केवल लोन लेकर नई बसें खरीदने के लिए बुलाई गई थी ? निगम में पहले ही बसों का भारी भरकम बेड़ा उपलब्ध है उनमें से सैकड़ों बसें अभी भी बिना प्रयोग के वर्षो से खड़ी है। पहले इन खड़ी बसों को संपूर्ण उपयोग में लाने की योजना पर कार्य किया जाना चाहिए था। विदित रहे कि निगम प्रबंधन से कर्मचारी संशोधित वेतनमान और भत्ते मांग रहे हैं। साथ ही अनुबंध में चालक-परिचालकों को दो साल में रेगुलर करने का मामला भी गरमाया हुआ है। इस बीच हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम कर्मचारी संघों की संयुक्त समन्वय समिति ने साफ शब्दों में ऐलान कर दिया है कि अप्रैल के दूसरे हफ्ते में समिति के नेताओं की अहम बैठक बुलाकर भावी रणनीति बनाकर निगम प्रबंधन पर दबाव बनाया जाएगा। संयुक्त समन्वय समिति के सचिव खेमेंद्र गुप्ता ने कहा कि बीओडी में निगम के कर्मचारियों की मांगों पर कोई गौर नहीं किया गया। इस कारण से समिति की बैठक अप्रैल दूसरे हफ्ते में बुलाकर आंदोलन की रणनीति बनेगी। 36 माह का ओवर टाइम नहीं मिला : पथ परिवहन निगम के कर्मचारियों का कहना है कि संशोधन वेतनमान और भत्ते देने का मामला निगम प्रबंधन से उठाया गया था परंतु बीओडी में इस अहम मसले पर कोई फैसला नहीं लिया गया। इसके अलावा अनुबंध पर लगे चालकों और परिचालकों ने दो साल की अवधि सितंबर में पूरी कर ली है और उनको मार्च अंत तक रेगुलर नहीं किया गया है। निगम कर्मचारियों को 36 माह का ओवर टाइम नहीं मिला है। निगम के पेंशनरों को भी वित्तीय लाभ देने से वंचित रखा गया है। एचआरटीसी को विभाग का दर्जा दिया जाए : संयुक्त समन्वय समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि नई बसें खरीद कर बेड़े में वृद्धि तो की जा रही है और नए डिपो भी राजनीतिक उद्देश्य के लिए धड़ाधड़ खोले जा रहे हैं। परंतु मूलभूत संसाधन तथा सुविधाओं के नाम पर वर्तमान संसाधनों के धागे को ही खींचा जा रहा है। परिवहन मंत्री ने स्वयं माना कि एचआरटीसी की 90 प्रतिशत बसें घाटे में जनहित में चलाई जा रही है। इस घाटे के लिए कर्मचारियों को उनके अधिकारियों से वंचित किया जा रहा है। क्या घाटे के लिए कर्मचारियों को भूखे पेट कार्य करने को मजबूर किया जा सकता है? परिवहन मंत्री मानते है कि यह परिवहन निगम (एचआरटीसी) जनहित में कार्य कर रहा है, तो एचआरटीसी को भी अन्य जनहित में चलाए जा रहे विभागों की भांति विभाग का दर्जा देकर रोडवेज बना दिया जाना चाहिए, ताकि कर्मचारियों के देय वित्तीय लाभों की अदायगी समयानुसार की जा सके।
पंजाब की भगवंत मान सरकार ने राज्य में ग्रुप सी और डी के 35,000 अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने का फैसला किया है। सीएम मान ने कहा कि इस संबंध में मुख्य सचिव को निर्देशित कर दिया गया है। ऐसी संविदात्मक और आउटसोर्सिंग भर्तियों को समाप्त करने का निर्देश दिया गया है। सीएम भगवंत मान ने कहा कि उन्होंने मुख्य सचिव को कहा है कि अगले विधानसभा के सत्र से पहले इस कानून का मसौदा बनाकर भेजा जाए, ताकि सरकार विधानसभा में उसे मंजूर करके लागू कर सके। पंजाब की सत्ता संभालने के बाद भगवंत मान लगातार फैसले ले रहे हैं। अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में मान सरकार ने 25 हजार सरकारी पदों को भरने को हरी झंडी दे दी थी। 15000 पद बोर्ड, निगमों व विभागों के भरे जाएंगे, जबकि 10 हजार पद पंजाब पुलिस में भरे जाएंगे। इसके अलावा आज मान सरकार ने शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर हर वर्ष सार्वजनिक अवकाश की भी घोषणा की है। भगवंत मान ने आज विधानसभा में कहा कि पहले सिर्फ नवांशहर में छुट्टी होती थी। कहा कि भगत सिंह पूरे देश के हैं। उनके शहीदी दिवस पर पूरे पंजाब में छुट्टी होगी। वहीं, भगवंत मान सरकार अब भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की तैयारी में है। शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर मान एक नंबर जारी करेंगे। यह नंबर उनका खुद का होगा। इस नंबर पर कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकारी दे सकता है। भगवंत मान ने कहा कि इस नंबर पर आने वाली शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में किसी भी तरह का भ्रष्टाचार सहन नहीं किया जाएगा। इससे पहले पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी कह चुके हैं कि आप की सरकार में और कुछ सहन हो सकता है भ्रष्टाचार नहीं।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास (एचपीटीडीसी) निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने जयराम सरकार से 2004 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार द्वारा बंद की गई कारपोरेट सेक्टर के कर्मचारियों की पेंशन को बहाल करने की मांग की है। एसोसिएशन का कहना है कि उस समय कारपोरेट सेक्टर के लेफ्टआउट 6730 रिटायर कर्मचारी सालों से पेंशन बहाली की राह ताक रहे हैं, लेकिन आज दिन तक निराशा ही हाथ लगी है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जयराम सरकार उनकी इस महत्वपूर्ण मांग को समझेगी और पूरा करने का प्रयत्न करेगी। एसोसिएशन ने कहा कि पेंशन के अलावा रिटायरमेंट पर इस वर्ग को न तो ग्रेच्युटी मिलती है और न ही अन्य देय लाभ। सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए और 2007 व 2017 के चुनावी वादों को पूरा करे। एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार मनमोहन धनी ने बताया कि इस समय बचे हुए कर्मचारियों की संख्या 6730 है, जो पेंशन न मिलने के कारण बुढ़ापे में आर्थिक तंगी के कारण अनेकों समस्याओं से जूझ रहे हैं।
पुलिस जवानों से किया गया वादा सरकार अब तक पूरा नहीं कर पाई है। पुलिस पे बैंड की अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई है, जिससे प्रदेश के पुलिस जवान निराश है। पुलिस जवानों का कहना है कि वे अब हताश हो चुके हैं, उनका मनोबल पूरी तरह टूट चुका है। बता दें कि पूर्ण राज्यत्व दिवस के समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ये घोषणा कि थी कि पुलिस कांस्टेबल को अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों के समकक्ष हायर पे बैंड के लिए पात्र माना जाएगा, यानि हायर पे बैंड के लिए समय अवधि को घटाकर 8 से 5 साल किया जाएगा, हालांकि अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। सीएम की घोषणा के बाद भी अभी तक पुलिस पे-बैंड की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। पुलिस पे-बैंड की फाइल अभी तक विभागों में ही घूम रही है। पुलिस जवानों का कहना है कि सरकार को पुलिस पे बैंड स्केल की नोटिफिकेशन जल्द जारी करनी चाहिए।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं दिख रहे। नई भर्ती न होने से बेरोजगार अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश सरकार से खासा नाराज़ है और संघ ने कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च निकालने का फैसला लिया है। संघ का कहना है कि यह रोष मार्च नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गलत नीतियों के खिलाफ निकाला जा रहा है। संघ ने आरोप लगाया है कि ये दोनों नेता पिछले दरवाजे से हुई शिक्षकों की भर्तियों का समर्थन कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, महासचिव राजेश धीमान तथा मीडिया प्रभारी प्रकाश चंद ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 176 कमीशन पास भाषा अध्यापकों को एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नहीं भेजा है, जो कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है। उन्होंने कहा कि 2555 एसएमसी शिक्षकों की भर्तियां कांग्रेस एवं भाजपा सरकारो ने ही की थी। ये दोनों सरकारें एसएमसी पॉलिसी की क्लाज नंबर 9 और 10 का उल्लंघन करके एसएमसी शिक्षकों को सेवा विस्तार देती रही। यही कारण है कि बेरोजगार अध्यापक संघ कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च रैली निकाल रहा है। यह रोष मार्च सुबह 11 बजे और शाम तीन बजे के बीच होगा। रोष मार्च हर जिला में तब तक जारी रहेंगे, जब तक 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक नहीं पहुंच जाते। इस मार्च में बेरोजगारों के अभिभावक भी हिस्सा लेंगे। बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी, उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए।
बिजली बोर्ड के 33 उप केंद्रों को निजी हाथों में देने का विरोध शुरू हो गया है। बिजली बोर्ड यूनियन के महासचिव हीरा लाल वर्मा ने कहा बोर्ड ने पिछले दिनों ऊना वृत्त के तहत 33 केवी विद्युत उपकेंद्रों को ठेके पर देने के लिए निविदा मांगी है। इससे कर्मचारियों में आक्रोश है। यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप खरवाड़ा ने कहा कि विद्युत उपकेंद्रों के रखरखाव व मरम्मत का कार्य ठेके पर देने से इसकी सही मरम्मत नहीं होती है और लागत भी तीन गुना अधिक होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि बोर्ड प्रबंधन संपत्तियों को संभालने में विफल रहा है। 35-40 लाख रुपये अधिक खर्च कर जो मानव रहित विद्युत उपकेंद्र बनाए गए हैं, उन्हें स्काडा साफ्टवेयर न चलने से मानवयुक्त विद्युत उपकेंद्र मे बदल दिया है। परिचालन-रखरखाव के लिए विद्युत उप केंद्र अब ठेके पर दिए जा रहे हैं। इससे प्रबंधन वर्ग की लापरवाही साफ झलकती है। उन्होंने बोर्ड प्रबंधन से नई भर्ती कर इन उपकेंद्रों को स्वयं चलाने की मांग की है। यूनियन विद्युत उपकेंद्रों को ठेके पर देने का विरोध करेगी। बोर्ड प्रबंधन ने फैसला वापस नहीं लिया तो यूनियन आंदोलन करने से गुरेज नहीं करेगी।
प्रदेश के एनएचएम कर्मचारियों में एक दफे फिर सरकार के प्रति रोष उभर आया है। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का मानना है कि प्रदेश सरकार लगातार उन्हें ठग रही है। आश्वासनों के बावजूद भी प्रदेश सरकार अपने ही वायदे से मुकर जाती है, जिसके चलते एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों में प्रदेश सरकार से नाराज है। राज्य स्वास्थ्य समिति (एनएचएम) अनुबंध कर्मचारी संघ के महासचिव गुलशन कुमार व प्रेस सचिव अनमोल राज कौंडल ने जारी बयान में प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव सहजल से नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि हरियाणा सरकार एनएचएम के कर्मचारियों को पहली जनवरी 2018 से रेगुलर पे स्केल दे रही है। मणिपुर सरकार ने भी इन कर्मचारियों को जनवरी 2022 से नियमित कर दिया है। पर हिमाचल प्रदेश सरकार उनकी अनदेखी कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार विधानसभा सत्र में इसका प्रावधान कर सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि तीन फरवरी को एनएचएम अनुबंध कर्मचारी संघ की राज्य सचिवालय में स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया था कि जब तक वे नियमित नहीं हो जाते तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिलाने की बात सरकार के समक्ष रखेंगे। साथ ही सर्व शिक्षा अभियान की तर्ज पर कमेटी के माध्यम से प्रस्ताव बनाकर सरकार को 90 दिन के अंदर भेजने का भी फैसला हुआ था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि वह एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों के लिए कोई स्थायी पॉलिसी नहीं बना रहे हैं। सिर्फ अपनी पीठ थपथपा रही सरकार : संघ के पदाधिकारियों के अनुसार एनएचएम कर्मचारी विभिन्न स्वास्थ्य समितियों के तहत 23 वर्ष से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत सेवाएं दे रहे हैं। सरकार ने न तो आज तक इन कर्मचारियों का नियमितीकरण किया और न ही रेगुलर स्केल का लाभ दिया जा रहा है। हिमाचल में यह कर्मचारी लगभग दो वर्ष से करोना काल में अपनी सेवाएं पूरी निष्ठा से दी है। सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है, मगर जो लोग इसके लिए दिन रात मेहनत कर रहे है, उनका ज़िक्र भी नहीं हो रहा। राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने कहा कि अन्य विभागों के कर्मचारियों की तर्ज पर इन कर्मचारियों के लिए भी सरकार को जल्द स्थायी नीति बनानी चाहिए। इन कर्मचारियों द्वारा क्षय रोग, एचआईवी एड्स, शिशु स्वास्थ्य, कोविड-19 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के तहत अपना योगदान दिया जा रहा है। इन कर्मचारियों की नियमितीकरण की मांग जायज है। केंद्र के कर्मचारी है तो सातवां वेतन आयोग क्यों नहीं मिला : राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ के उप प्रधान डॉ अनुराग शर्मा का कहना है कि सरकार हमारी मांगें ये कह कर टाल देती है की हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है, अगर हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है तो हमें सातवां वेतन आयोग मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं है। हमें भले ही केंद्र प्रायोजित स्कीमों के अंतर्गत नियुक्ति दी गई हो मगर इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सिर्फ पैसा देता है। स्वास्थ्य राज्य का मसला होता है। हमें राज्य स्वास्थ्य समिति के तहत रखा गया था जिसके चेयरमैन मुख्य सचिव है। हमें राज्य सरकार के लिए नियुक्त किया गया है और हम काम भी राज्य सरकार का करते है न कि केंद्र सरकार के लिए, तो मसले भी राज्य सरकार को ही हल करने होंगे।
A committee would be constituted to look in to the matter of re-designating the Silai Adhiyapika (Tailoring Teachers) and to frame a policy for regularizing of their services. This was stated by the Chief Minister Jai Ram Thakur while addressing the delegation of Silai-Kataye Adhiyapika that called on the Chief Minister at Oak Over here today to thank him for increasing their honorarium by Rs. 900 per month. The delegation was led by the President of Bharatiya Mazdoor Sangh Madan Rana. Chief Minister said that the present State Government was committed for the welfare of the employees, particularly the para-workers employees in various departments. He said that the State Government would also ensure that 20 per cent of the seats of Panchayat Secretaries be filled amongst the Silai Teachers, for which notification would be issued soon. Jai Ram Thakur said that the Government was also ensuring women empowerment at all levels. He said that Mukhyamantri Grihini Suvidha Yojna, Beti Hai Anmol, Shagun Yojna etc. were aimed at this direction. He said that for the first time Gender Budgeting Component has been introduced in the budget for the financial year 2022-23. He said that honorarium of Asha Workers, Anganwari Workers, and mid day meal workers have been increased considerably in the budget 2022-23. Chief Minister said that with the increase of Rs. 900 per month, the Silai Teachers would now get honorarium of Rs. 7950 per month. He said that with this, the total increase of Rs. 1650 has been made in the honorarium of the Silai teachers during the tenure of the present State Government. He said that the daily wages of the daily wagers has also been enhanced by Rs. 50 per day. He said that with this the daily wagers would now get Rs. 1500 more every month. President BMS Madan Rana thanked the Chief Minister for being considerate towards the various demands of the working class. He said that the working class of the State would always remain indebted to the Chief Minister for the historic hike made by him in the honorarium of the para-worker and the daily wagers of the State. Deputy Speaker HP Vidhan Sabha Hans Raj, General Secretary BMS Yash Pal, President of Silai Teacher Association Sunita Rana was also present on the occasion among others.
पुलिस जवानों से किया गया वादा सरकार अब तक पूरा नहीं कर पाई है। पुलिस पे बैंड की अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई है, जिससे प्रदेश के पुलिस जवान निराश है। पुलिस जवानों का कहना है कि वे अब हताश हो चुके हैं, उनका मनोबल पूरी तरह टूट चुका है। बता दें कि पूर्ण राज्यत्व दिवस के समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ये घोषणा कि थी कि पुलिस कांस्टेबल को अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों के समकक्ष हायर पे बैंड के लिए पात्र माना जाएगा, यानि हायर पे बैंड के लिए समय अवधि को घटाकर 8 से 5 साल किया जाएगा, हालांकि अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। सीएम की घोषणा के बाद भी अभी तक पुलिस पे-बैंड की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। पुलिस पे-बैंड की फाइल अभी तक विभागों में ही घूम रही है। पुलिस जवानों का कहना है कि सरकार को पुलिस पे बैंड स्केल की नोटिफिकेशन जल्द जारी करनी चाहिए।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास (एचपीटीडीसी) निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने जयराम सरकार से 2004 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार द्वारा बंद की गई कारपोरेट सेक्टर के कर्मचारियों की पेंशन को बहाल करने की मांग की है। एसोसिएशन का कहना है कि उस समय कारपोरेट सेक्टर के लेफ्टआउट 6730 रिटायर कर्मचारी सालों से पेंशन बहाली की राह ताक रहे हैं, लेकिन आज दिन तक निराशा ही हाथ लगी है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जयराम सरकार उनकी इस महत्वपूर्ण मांग को समझेगी और पूरा करने का प्रयत्न करेगी। एसोसिएशन ने कहा कि पेंशन के अलावा रिटायरमेंट पर इस वर्ग को न तो ग्रेच्युटी मिलती है और न ही अन्य देय लाभ। सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए और 2007 व 2017 के चुनावी वादों को पूरा करे। एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार मनमोहन धनी ने बताया कि इस समय बचे हुए कर्मचारियों की संख्या 6730 है, जो पेंशन न मिलने के कारण बुढ़ापे में आर्थिक तंगी के कारण अनेकों समस्याओं से जूझ रहे हैं।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं दिख रहे। नई भर्ती न होने से बेरोजगार अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश सरकार से खासा नाराज़ है और संघ ने कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च निकालने का फैसला लिया है। संघ का कहना है कि यह रोष मार्च नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गलत नीतियों के खिलाफ निकाला जा रहा है। संघ ने आरोप लगाया है कि ये दोनों नेता पिछले दरवाजे से हुई शिक्षकों की भर्तियों का समर्थन कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, महासचिव राजेश धीमान तथा मीडिया प्रभारी प्रकाश चंद ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 176 कमीशन पास भाषा अध्यापकों को एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नहीं भेजा है, जो कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है। उन्होंने कहा कि 2555 एसएमसी शिक्षकों की भर्तियां कांग्रेस एवं भाजपा सरकारो ने ही की थी। ये दोनों सरकारें एसएमसी पॉलिसी की क्लाज नंबर 9 और 10 का उल्लंघन करके एसएमसी शिक्षकों को सेवा विस्तार देती रही। यही कारण है कि बेरोजगार अध्यापक संघ कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च रैली निकाल रहा है। यह रोष मार्च सुबह 11 बजे और शाम तीन बजे के बीच होगा। रोष मार्च हर जिला में तब तक जारी रहेंगे, जब तक 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक नहीं पहुंच जाते। इस मार्च में बेरोजगारों के अभिभावक भी हिस्सा लेंगे। बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी, उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए।
प्रदेश के एनएचएम कर्मचारियों में एक दफे फिर सरकार के प्रति रोष उभर आया है। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का मानना है कि प्रदेश सरकार लगातार उन्हें ठग रही है। आश्वासनों के बावजूद भी प्रदेश सरकार अपने ही वायदे से मुकर जाती है, जिसके चलते एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों में प्रदेश सरकार से नाराज है। राज्य स्वास्थ्य समिति (एनएचएम) अनुबंध कर्मचारी संघ के महासचिव गुलशन कुमार व प्रेस सचिव अनमोल राज कौंडल ने जारी बयान में प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव सहजल से नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि हरियाणा सरकार एनएचएम के कर्मचारियों को पहली जनवरी 2018 से रेगुलर पे स्केल दे रही है। मणिपुर सरकार ने भी इन कर्मचारियों को जनवरी 2022 से नियमित कर दिया है। पर हिमाचल प्रदेश सरकार उनकी अनदेखी कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार विधानसभा सत्र में इसका प्रावधान कर सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि तीन फरवरी को एनएचएम अनुबंध कर्मचारी संघ की राज्य सचिवालय में स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया था कि जब तक वे नियमित नहीं हो जाते तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिलाने की बात सरकार के समक्ष रखेंगे। साथ ही सर्व शिक्षा अभियान की तर्ज पर कमेटी के माध्यम से प्रस्ताव बनाकर सरकार को 90 दिन के अंदर भेजने का भी फैसला हुआ था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि वह एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों के लिए कोई स्थायी पॉलिसी नहीं बना रहे हैं। सिर्फ अपनी पीठ थपथपा रही सरकार संघ के पदाधिकारियों के अनुसार एनएचएम कर्मचारी विभिन्न स्वास्थ्य समितियों के तहत 23 वर्ष से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत सेवाएं दे रहे हैं। सरकार ने न तो आज तक इन कर्मचारियों का नियमितीकरण किया और न ही रेगुलर स्केल का लाभ दिया जा रहा है। हिमाचल में यह कर्मचारी लगभग दो वर्ष से करोना काल में अपनी सेवाएं पूरी निष्ठा से दी है। सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है, मगर जो लोग इसके लिए दिन रात मेहनत कर रहे है, उनका ज़िक्र भी नहीं हो रहा। राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने कहा कि अन्य विभागों के कर्मचारियों की तर्ज पर इन कर्मचारियों के लिए भी सरकार को जल्द स्थायी नीति बनानी चाहिए। इन कर्मचारियों द्वारा क्षय रोग, एचआईवी एड्स, शिशु स्वास्थ्य, कोविड-19 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के तहत अपना योगदान दिया जा रहा है। इन कर्मचारियों की नियमितीकरण की मांग जायज है। केंद्र के कर्मचारी है तो सातवां वेतन आयोग क्यों नहीं मिला ? राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ के उप प्रधान डॉ अनुराग शर्मा का कहना है कि सरकार हमारी मांगें ये कह कर टाल देती है की हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है, अगर हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है तो हमें सातवां वेतन आयोग मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं है। हमें भले ही केंद्र प्रायोजित स्कीमों के अंतर्गत नियुक्ति दी गई हो मगर इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सिर्फ पैसा देता है। स्वास्थ्य राज्य का मसला होता है। हमें राज्य स्वास्थ्य समिति के तहत रखा गया था जिसके चेयरमैन मुख्य सचिव है। हमें राज्य सरकार के लिए नियुक्त किया गया है और हम काम भी राज्य सरकार का करते है न कि केंद्र सरकार के लिए, तो मसले भी राज्य सरकार को ही हल करने होंगे।
प्रदेश की राजधानी शिमला में 3 मार्च को पुरानी पेंशन बहाली के लिए हुए प्रदर्शन के न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के कई कर्मचारी नेताओं पर पुलिस द्वारा मामले दर्ज किये गए है, जिसकी कई कर्मचारी संगठन निंदा कर रहे है। तीन मार्च को शिमला टूटीकंडी में सभी कर्मचारी एकत्रित हुए थे और आगे बढ़ते हुए 103 टनल के पास एनपीएस कर्मचारियों ने हल्ला बोला। इस दौरान कर्मचारियों द्वारा यातायात बंद किया गया। पुलिस के जवानों ने कर्मचारियों को जब हटाने की कोशिश की तो कर्मचारियों और पुलिस के बीच धक्का-मुक्की हुई। इसके बाद प्रदर्शन में शामिल एनपीएस कर्मियों पर एफआईआर दर्ज की गई थी। प्रदेश के विभिन्न कर्मचारी संगठन एफआईआर का विरोध कर रहे है और एनपीएस कर्मचारियों का समर्थन। -राज्य बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष कुलदीप सिंह खरवाड़ा ने न्यू पेंशन कर्मचारी महासंघ के कर्मचारी नेताओं पर पुलिस मामले दर्ज करने की निंदा की है। उन्होंने सरकार से मांग की कि इन मामलों को तुरंत वापस लिया जाए। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि इन मामलों को वापस नहीं लिया गया तो प्रदेश स्तर पर कर्मचारी बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होंगे। - हिमाचल प्रदेश संयुक्त कर्मचारी महासंघ ने भी कर्मचारियों पर एफआईआर की निंदा की हैl महासंघ ने मांग की है की सरकार इसे तुरंत वापस करें और पुरानी पेंशन बहाली के लिए बात करें l -हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए किए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया है। समिति ने कर्मचारी नेताओं पर दर्ज किए केस की कड़े शब्दों में निंदा की है तथा मांग की हैं कि सरकार द्वारा मुकदमों को तुरन्त वापिस लिया जाए। इनका कहना है कि कर्मचारी अपनी जायज मांग को लोकतांत्रिक व शांतिपूर्ण तरीके से उठा रहे थे तथा उन्होंने किसी सम्पत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, इसके बावजूद भी कर्मचारियों पर मुकदमे दायर करना निंदनीय है। -राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज एफआईआर वापस लेने की आवाज उठाई। संघ के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने एफआईआर की कड़े शब्दों में निंदा की है। खंड अध्यक्ष बलदेव सिंह ने कहा कि कर्मचारी बड़े शांतिपूर्वक पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर एकत्रित होकर प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन फिर भी उनके खिलाफ केस दर्ज किए गए। -हिमाचल प्रदेश न्यू पेंशन स्कीम रिटायर्ड कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजीव गुलेरीया ने संघ की ओर से पुरानी पेंशन बहाली के लिए किए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया है। गुलेरिया ने कर्मचारी नेताओं पर दर्ज की गई एफआईआर की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को डराने-धमकाने के उद्देश्य से किए जा रहे मुकदमों को सरकार जल्द वापस ले। -ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टीचर ऑर्गेनाइजेशन ने भी एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज एफआईआर का विरोध किया है। संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अश्वनी कुमार ने बताया कि एनपीएस कर्मचारियों द्वारा पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर किया गया प्रदर्शन एक शांतिपूर्ण आंदोलन था। हिमाचल प्रदेश सरकार को चाहिए कि वे कर्मचारियों की मांग को माने और पुरानी पेंशन बहाल करें।
नौकरियां : 30 हजार नए पद भरे जायेंगे मानदेय : करीब डेढ़ लाख लोगों का बढ़ा मानदेय नीति : आउटसोर्स और एसएमसी के लिए नहीं बनी नीति सीएम जयराम ठाकुर ने अपने कार्यकाल के अंतिम बजट में कर्मचारी वर्ग को साधने की भी भरपूर कोशिश की है। बजट से जितना मांगा उतना भले न मिला हो, लेकिन कर्मचारियों की झोली खाली रही ऐसा नहीं कहा जा सकता। प्रदेश के पौने तीन लाख कर्मचारी हर बार की तरह इस बार भी बजट से कई उम्मीदें लगाए बैठे थे। कोई स्थाई नीति मांग रहा था, कोई पेंशन, कोई वेतन में बढ़ोतरी, तो किसी को पूर्णतः सरकारी कर्मचारी बनने की आस थी। मोटे तौर पर देखा जाए तो इस बजट में एक भी घोषणा ऐसी नहीं थी जो प्रदेश के हर कर्मचारी पर असर डालती, लेकिन अलग-अलग सभी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई। विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे लगभग 65 हजार अस्थाई कर्मचारियों के मानदेय में जयराम ठाकुर ने इजाफा कर राहत देने की कोशिश की है। पिछले कुछ समय में कर्मचारियों को काफी कुछ मिला है, नया वेतनमान, डीए, फैमिली पेंशन, दो साल का अनुबंध काल इत्यादि, शायद इसीलिए बजट में इस बार असंगठित वर्ग को राहत पहुंचाने का प्रयास रहा। कई कर्मचारी इस बजट की खुले दिल से प्रशंसा कर रहे है, तो कई अब भी दिल में मलाल लिए बैठे है। कर्मचारियों को क्या व कितना मिला और क्या नहीं, इस पर पेश है ये विश्लेषण आउटसोर्स कर्मचारी : न्यूनतम वेतन बढ़ा पर नीति नहीं बनी हिमाचल प्रदेश के 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों को बजट से काफी उम्मीदें थी। दरससल आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याएं हल करने के लिए बनाई गई कैबिनेट सब कमेटी की बैठक के दौरान कर्मचारियों को ये आश्वासन मिला था की उनके लिए बजट में पॉलीसी का प्रावधान किया जाएगा। ये बैठक कमेटी के अध्यक्ष व जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में हुई थी। आउटसोर्स कर्मचारी काफी हद तक आश्वस्त थे कि जैसा कहा गया है वैसा ही होगा। परन्तु इस बजट से प्रदेश के आउटसोर्स कर्मचारियों को झटका लगा है। बजट में इनके लिए न तो पॉलीसी का प्रावधान हुआ और न उस पर कोई चर्चा। हालाँकि, नीति तो नहीं मिली लेकिन आउटसोर्स कर्मियों के वेतन में न्यूनतम 4,200 रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी करने का प्रावधान जरूर किया गया है, जिसके बाद आउटसोर्स कर्मियों का न्यूनतम वेतन 10,500 रुपये प्रतिमाह हुआ है। बजट में कंपनियों द्वारा आउटसोर्स कर्मियों का शोषण कम करने के लिए पे-स्लिप देना अनिवार्य कर दिया गया है। इस पे-स्लिप में सर्विस प्रोवाइडर कर्मी को लिखित रूप से समस्त कटौतियां जैसे ईपीएफ इत्यादि एवं कर्मी को प्राप्त होने वाले कुल भुगतान को दिखाना होगा। श्रम विभाग इन दिशा निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करेगा। उधर,आउटसोर्स कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं है। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है कि उन्होंने हमेशा ही वित्तीय लाभ से अधिक नौकरी की सुरक्षा मांगी है। संघ का कहना है कि हमने प्रदेश सरकार से स्थायी नीति बनाने, समयावधि पूर्ण होने पर नियमित करने व समान वेतनमान की मांग की थी, जो पूरी नहीं हुई। आउटसोर्स कर्मचारी कई वर्षों से लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं, परंतु सरकार अभी तक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं बना पाई है। अलग-अलग विभागों में अलग-अलग नीतियां हैं। वेतन और मानदेय के मामले में भी असमानता की स्थिति बनी हुई है। बता दें की प्रदेश के विभिन्न विभागों में आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती न केवल पिछली सरकार ने की, बल्कि जयराम सरकार ने भी यह सिलसिला जारी रखा, लेकिन इनके लिए स्थायी नीति नहीं बनाई गई। शास्त्री व भाषाध्यापक को टीजीटी पदनाम, सरकार से खुश : इस बजट में शास्त्री व भाषाध्यापक को टीजीटी पदनाम देने का निर्णय लिया गया है जिससे ये शिक्षक काफी खुश है। 2010 के बाद नियुक्त सभी प्रवक्ताओं को पीजीटी नाम दिया गया था, जिसका प्रवक्ता संघ ने लंबे समय तक विरोध किया। हिमाचल प्रदेश सरकार ने पहली मार्च, 2019 को कैबिनेट में निर्णय कर स्कूल प्रवक्ता का पदनाम प्रवक्ता स्कूल न्यू किया। प्रवक्ताओं का नाम प्रवक्ता न कर प्रवक्ता स्कूल न्यू करने पर प्रवक्ता वर्ग में असंतोष था। अध्यापक लगातार न्यू शब्द हटाने की मांग कर रहे था। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के प्रदेश अध्यक्ष केसर सिंह ठाकुर ने बताया कि इस निर्णय से हिमाचल प्रदेश के 18000 शिक्षकों में खुशी की लहर है। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद, संयुक्त समिति शास्त्री व भाषाध्यापक ने भी प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का बजट में शास्त्री एवं भाषाध्यापकों को टीजीटी पदनाम की घोषणा का स्वागत किया है। इससे शास्त्री एवं भाषाध्यापकों का वनवास समाप्त होगा। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डा. मनोज शैल संयुक्त समिति ने कहा कि शास्त्री एवं भाषाध्यापकों की लंबित मांग को पूरा करने की ऐतिहासिक घोषणा मुख्यमंत्री ने बजट भाषण में की है। शास्त्री एवं भाषाध्यापक एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार पात्र होते हुए भी इससे वंचित थे और लगातार इसके लिए वर्षों से निवेदन कर रहे थे। एसएमसी शिक्षक : नहीं मिली नीति, नाखुश है शिक्षक : बजट में एसएमसी शिक्षकों का मानदेय 1000 रुपये प्रतिमाह बढ़ाने की घोषणा की गई है। इनकी सेवाएं पहले की तरह जारी रखी जाएंगी। इन्हें नहीं हटाया जाएगा। 1000 रु की वृद्धि से ये शिक्षक भी पूर्णतः संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे। 2555 एसएमसी शिक्षकों को भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बजट से कई उम्मीदें थी। यह कर्मचारी यह आस लगाए बैठे थे कि वे एसएमसी शिक्षकों के लिए अनुबंध या नियमित नीति लाई जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बता दें कि शिक्षा विभाग में एसएमसी शिक्षकों की नियुक्ति वर्ष 2012 में भाजपा की पिछली सरकार में हुई थी। ये नियुक्तियां वीरभद्र सरकार ने भी जारी रखी। 2017 में फिर भाजपा सरकार बनी और इसको चार साल पूरे हो चुके हैं पर अब तक इस सरकार में भी एसएमसी शिक्षकों के लिए कुछ खास नहीं हुआ, बस हर वर्ष इनके कार्यकाल को बढ़ा दिया जाता है। कंप्यूटर शिक्षक नाखुश, 1000 रुपये वेतन वृद्धि ऊंट के मुँह में जीरा : प्रदेश में तैनात कम्प्यूटर शिक्षकों ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया था कि पंजाब सरकार के फार्मूले पर उनकी सेवाएं भी अब रेगुलर की जाए, क्योंकि उन्हें बहुत वर्ष आउटसोर्स पर सेवाएं देते हुए हो गए हैं। पंजाब सरकार ने सोसायटी बनाकर ऐसे शिक्षकों की सेवाएं सोसायटी में ही रेगुलर कर दी है परन्तु हिमाचल में ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि इनके वेतन में 1000 रुपए की वृद्धि की गई है। प्रदेशभर के स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा प्रदान कर रहे अध्यापकों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बजट को निराशाजनक बताया है। प्रदेश कंप्यूटर शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष रोशन मेहता, महासचिव राकेश शर्मा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से स्थायी नीति की मांग की थी। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग में सबसे शोषित वर्ग में कम्प्यूटर अध्यापक आते हैं। सरकार ने 1000 रुपए की घोषणा करके ऊंट के मुंह में जीरा के समान कार्य किया हैं। पुरानी पेंशन : मिला सिर्फ समस्या सुलझाने का वादा कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग पुरानी पेंशन पर बजट में तो कोई प्रवधान नहीं हुआ, मगर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदन में ओल्ड पेंशन स्कीम पर समस्या सुलझाने का वादा कर कर्मचारियों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास किया है। उन्होंने सदन में कहा कि कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम के लिए आंदोलित हैं। वह कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार होगा। उन्होंने कर्मचारियों से बातचीत के लिए भी अपील की। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए। उधर, पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन में एनपीएस कर्मचारी नेताओं सहित आधा दर्जन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चूका है। इतने बड़े प्रदर्शन के बावजूद मुख्यमंत्री कर्मचारियों से मिलने नहीं गए। नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता : अधूरी रही मांग, हज़ारों कर्मचारी निराश नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग करने वाले कर्मचारी इस बजट से निराश नजर आ रहे है। हर बार की तरह इस बार भी उनकी मांग अधूरी रह गई। बजट से पहले हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने मांग की थी कि सरकार भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता देने के वायदे को पूरा करे। संगठन ने कहा की भाजपा ने चुनाव से पूर्व अनुबंध नियमित कर्मचारियों से वरिष्ठता का जो वादा किया था, उसे चार साल बीत जाने पर भी पूरा नहीं किया है। उन्होंने कहा की मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष इस मांग को 50 से अधिक बार उठाया जा चुका है। मुख्यमंत्री खुद भी कह चुके हैं कि आपकी यह मांग जायज है। जेसीसी की बैठक में भी इस मांग पर कमेटी गठन की बात कही गयी, लेकिन उस पर भी कोई कमेटी नहीं बनी। संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार तत्कालीन भाजपा सरकार ने लोक सेवा आयोग, अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया। निश्चित वैधानिक प्रक्रिया को पूरा करने के बाद भी कमीशन पास कर्मचारियों को प्रदेश के इतिहास का सबसे लंबा अनुबन्ध काल दिया गया। उसके बाद आई सरकार ने अनुबंध अवधि को कम किया लेकिन कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से अपना कर्मचारी नहीं माना। सरकार कर्मचारी के सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से कर रही है, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। यह लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विस को प्रमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए न कि नियमितीकरण की तिथि से। कर्मचारियों की ये मांग इस बजट में भी अधूरी ही रही। अच्छी पहल : 500 चिकित्सकों के पद भरेगी सरकार हिमाचल के स्वास्थ्य संस्थानों को सुदृढ़ करने के लिए चिकित्सा अधिकारियों के विशेषज्ञ काडर को बढ़ाने का फैसला लिया गया है। नए मेडिकल कॉलेज नाहन, चंबा, नेरचौक, और हमीरपुर में फैकल्टी और अन्य श्रेणियों के पद भरे जाएंगे। सीएम ने चिकित्सा अधिकारियों के 500 नए पदों को भरने की घोषणा की है। इससे प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधा तो सुधरेगी ही, साथ ही प्रदेश के मेडिकल संस्थानों से पास हुए डॉक्टरों को नौकरी भी मिल पाएगी। ये आम जनता की ही नहीं बल्कि प्रदेश के चिकित्सक संगठनों की भी मांग थी। फिलवक्त प्रदेश में करीब 2600 चिकित्सकों का काडर था, जो अब बढ़ा दिया गया है। ...................... इस बजट का मुख्य आकर्षण कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी रहा। सीएम ने करीब डेढ़ लाख कर्मियों, श्रमिकों, पैरा वर्करों आदि का मानदेय बढ़ाने की घोषणा की है। -आउटसोर्स कर्मियों के वेतन में न्यूनतम 4,200 रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी। प्रत्येक आउटसोर्स कर्मी को अब न्यूनतम 10,500 रुपये प्रतिमाह मिलेंगे। -दिहाड़ीदारों को 50 रूपए की बढ़ोतरी के साथ अब 350 रूपए प्रतिदिन दिहाड़ी मिलेगी। पंचायत चौकीदार के लिए नीति भी जल्द आएगी। -एसएमसी शिक्षकों के मानदेय में 1000 रूपए की बढ़ोतरी, यथावत रहेगी सेवाएं, बनेगी नीति। -आईटी टीचर्स के मानदेय में 1000 रूपए की बढ़ोतरी। पद बढ़ोतरी प्रतिमाह मानदेय आशा वर्कर 1825 4700 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता 1700 9000 मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता 900 6100 आंगनबाड़ी सहायिका 900 4700 सिलाई अध्यापिका 900 7950 मिड डे मील वर्कर 900 3500 राजस्व नम्बरदार 900 3200 जल रक्षक 900 4500 वाटर कैरियर 900 3900 पैरा फिटर / पंप ऑपरेटर 900 5500 पंचायत चौकीदार 900 6500 राजस्व चौकीदार 900 5000 मल्टी पर्पस वर्कर 900 3900 ............................................................................................................... खुला नौकरियों का पिटारा highlights आशा कार्यकर्ता : 780 पद - गृहरक्षकों की होगी भर्ती - भरे जायेंगे चतुर्थ श्रेणी के पद कर्मचारियों के साथ - साथ सरकार ने बजट में बेरोज़गारों का भला करने का प्रयास किया है। कुल 30 हजार पदों को भरने की बात कही गई है। स्वास्थ्य विभाग में विषेशज्ञ डॉक्टर, डॉक्टर, नर्सें, रेडियोग्राफर,ओटी सहायक, लैब तकनीशियन, डेंटल हाइजीनिस्ट, फार्मासिस्ट, एमआरआई तकनीशियन, ईसीजी तकनीशियन व अन्य तकनीशियनों के 500 से अधिक पद भरे जाएंगे। 780 आशा कार्यकर्ताओं के नए पद भरे जाएंगे। साथ ही 437 पद आशा फैसिलिटेटर व सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी के 870 पद भी भरे जाएंगे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत विभिन्न श्रेणियों के 264 पद भरे जाएंगे। हमीरपुर, नाहन, चंबा तथा नेरचौक में स्थित नए आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में समुचित फैकल्टी व अन्य श्रेणियों के पद भरे जाएंगे। इसके अतिरिक्त विभिन्न विभागों में खाली फंक्शनल पदों को भी सरकार भरेगी। जलशक्ति विभाग में पैरा फिटर, पंप ऑपरेटर तथा मल्टी टास्क पार्ट टाइम वर्कर के पद भरे जाएंगे। इसमें शिक्षा विभाग में विभिन्न शिक्षकों की भर्ती, पुलिस आरक्षी भर्ती, बिजली बोर्ड के तकनीकी पद जैसे लाइनमैन, जूनियर टी मेट इत्यादि, एचआरटीसी में ड्राइवर तथा कंडक्टर इत्यादि की आवश्यक भर्तियां, राजस्व विभाग के कर्मी, पशुपालन विभाग के डॉक्टर व कर्मी, शहरी निकायों के लिए स्टाफ, पंचायत सचिव, पंचायतों के लिए तकनीकी सहायक और ग्राम रोजगार सहायक, विभिन्न विभागों में लिपिक, जेओए आईटी, तकनीकी शिक्षा विभाग में विभिन्न श्रेणियों के अध्यापक एवं इंस्ट्रक्टर, रेशम विभाग के इंस्पेक्टर तथा विभिन्न विभागों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद भी भरे जाएंगे । आगामी वर्ष में शिक्षा एवं लोक निर्माण विभाग में अंशकालीन मल्टी टास्क वर्करों की भर्ती प्रक्रिया को पूर्ण किया जाएगा। गृह रक्षकों की आवश्यक भर्ती करने का भी सरकार ने निर्णय लिया है।
शिमला की कड़कड़ाती ठंड के बीच, हाथ में तिरंगा, सर पर सफेद टोपी और जुबां पर पुरानी पेंशन बहाली का नारा लिए कर्मचारी आगे बढ़ते जा रहे थे। मौसम पहले ही सर्द था और वाटर कैनन्स से हल्की बौछार भी हो रही थी। पुलिस के जवानों के साथ धक्का -मुक्की भी खूब हुई, पर अपने बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए वो आगे बढ़ते रहे। विपक्ष का जुबानी साथ तो मिला मगर सत्तासीन हुक्मरान इस दफे पिघले नहीं। हालांकि विधानसभा के बाहर कर्मचारियों ने और सदन के भीतर विपक्ष ने सरकार को घेरे रखा। खूब हो हल्ला हुआ, जमकर प्रदर्शन हुआ। ऐसा प्रदर्शन जैसा शायद ही कर्मचारियों ने प्रदेश में पहले किया हो। शहर में चार जगह बैरिकेड लगाए गए थे, भारी पुलिस बल तैनात था, इसके बावजूद प्रदर्शनकारियों को रोकने में सरकार का खुफिया तंत्र और सुरक्षा इंतजाम फेल हो गया। इस बीच मुख्यमंत्री कर्मचारियों को वार्ता के लिए बुलाते रहे लेकिन कर्मचारी वार्ता के लिए नहीं पहुंचे और प्रदर्शन जारी रखा। कर्मचारियों का कहना था कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अगर उनसे बात करनेे आते हैं, तो वह वापस चले जाएंगे, नहीं तो वहीं पर बैठे रहेंंगे। न तुम कम न हम ज्यादा होता रहा और हल नहीं निकला। देर रात तक कर्मचारी डटे रहे। फिर जब वापस लौटे तो हाथ में पुरानी पेंशन तो नहीं थी मगर एनपीएस कर्मचारी नेताओं सहित दो दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चुका था। इन कर्मचारियों की माने तो अब बस दिल में मलाल है और चुनाव का इंतजार है। पहले से ही स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि बजट में भी पुरानी पेंशन के लिए कोई बड़ा ऐलान नहीं होगा, और हुआ भी ऐसा ही। पुरानी पेंशन को लेकर बजट में कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई। मगर बजट के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ओल्ड पेंशन स्कीम पर कुछ शब्द जरूर कहे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जाएगी, ये आश्वासन दिया गया। साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा कि वह कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार होगा। उन्होंने कर्मचारियों से बातचीत के लिए भी अपील की। सरकार अब भी चाहती है कि कर्मचारी आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाएं। वित्तीय मजबूरी, वरना सरकार रिस्क क्यों लेगी : पुरानी पेंशन सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि पुरे देश का एक बड़ा मसला बन गई है। हर तरफ कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। जब केंद्र सरकार नए पेंशन सिस्टम को भारत में लागु कर रही थी तो शायद ही किसी ने सोचा हो कि ये पेंशन केंद्र और प्रदेश की सरकारों के लिए इतना बड़ा सरदर्द बनेगी। आज वित्तीय परिस्तिथि ऐसी है कि अगर सरकारें चाहे तो भी एक दम जिन्न की तरह कर्मचारियों की इस चाह को पूरा नहीं कर पा रही। हिमाचल की भी वित्तीय स्थिति कुछ ऐसी ही है, वरना सरकार चुनावी वर्ष में कर्मचारियों की नाराजगी का इतना बड़ा रिस्क लेने की स्तिथि में कतई नहीं दिखाई देती। गहलोत के निर्णय से जगी आस : देश के सिर्फ दो राज्यों में पुरानी पेंशन है, इस बात से ये स्पष्ट होता है कि इसे लागू करना उतना आसान नहीं है। कुछ दिनों पहले तक पश्चिम बंगाल देश का इकलौता राज्य था जो पुरानी पेंशन दे रहा था। वहीँ वित्त वर्ष 2022 -23 के बजट में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ओपीएस लागू करके ये दिखा दिया कि सरकारें चाहे तो ये नामुमकिन भी नहीं हैं। गहलोत के इस निर्णय ने देशभर में कर्मचारियों में नई आस जगा दी है। हालांकि राजस्थान की वित्तीय स्थिति भी बेहतर नहीं है और राज्य पर करीब सवा चार लाख करोड़ का लोन है। माननीयों के लिए पेंशन क्यों ? सरकार की खराब वित्तीय स्तिथि का तर्क कर्मचारियों के गले से नहीं उतरता, वो भी तब जब माननीय खुद पुरानी पेंशन ले रहे हो। कर्मचारियों की घड़ी की सुई हर बार इसी बात पर आकर अटकती है कि अगर नई पेंशन अच्छी है तो माननीय खुद क्यों पुरानी पेंशन ले रहे है। जब सरकार ने कर्मचारियों को नई पेंशन देने का सोचा तो खुद क्यों नई पेंशन नहीं ली। ये तर्क - वितर्क का सिलसिला जारी है और तब तक जारी रहेगा जब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को मिल नहीं जाती। पुरानी पेंशन लिए बिना कर्मचारी मानेंगे नहीं, ये प्रदेश में हुए प्रदर्शनों से स्पष्ट हो गया है। अब ये देखना होगा कि इस निर्णय का सेहरा किसके सिर बंधता है। क्या जयराम सरकार कर्मचारियों की इस मांग को मानती है या नहीं, चुनावी वर्ष में इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों के शिमला जिला संयुक्त मंच इकाई ने 28-29 मार्च की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सिलसिले में कालीबाड़ी हॉल शिमला में जिलाधिवेशन का आयोजन किया। अधिवेशन में फैसला लिया गया कि अपनी मांगों को पूर्ण करने के लिए मजदूर व कर्मचारी हिमाचल प्रदेश में दो दिन की ऐतिहासिक हड़ताल करेंगे। मंच ने केंद्र सरकार को चेताया है कि अगर मजदूरों व कर्मचारियों की मांगों को पूर्ण न किया गया तो आंदोलन तेज होगा। अधिवेशन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,जिलाध्यक्ष कुलदीप डोगरा,महासचिव अजय दुलटा,रमाकांत मिश्रा,बालक राम,हिमी देवी,विनोद बिरसांटा,दलीप सिंह,सुनील मेहता,पूर्ण चंद,रंजीव कुठियाला,इंटक प्रदेश उपाध्यक्ष राहुल मेहरा,महासचिव बी एस चौहान,गौरव चौहान,नरेंद्र चंदेल,पूर्ण चंद,राहुल नेगी,एटक प्रदेश प्रेस सचिव संजय शर्मा,इंद्र सिंह डोगरा,मस्सी लाल,प्रेम सिंह,शिव राम,एचपीएमआरए प्रदेशाध्यक्ष हुक्म चंद शर्मा,केंद्रीय कर्मचारी समन्वय समिति वाइस चेयरमैन बलबीर सूरी,एजी ऑफिस एसोसिएशन उपाध्यक्ष राजेन्द्र,ऑडिट एंड अकाउंट्स पेंशनर एसोसिएशन के अध्यक्ष भारत भूषण आदि शामिल रहे। अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा एनपीएस कर्मियों के शांतिपूर्वक आंदोलन को पुलिस बल के ज़रिए कुचलने के घटनाक्रम की कड़ी निंदा की है व इसे प्रदेश सरकार की तानाशाही करार दिया है। उन्होंने एनपीएस कर्मियों से एकजुटता प्रकट की है व ऐलान किया कि 28-29 जनवरी की हड़ताल में ओल्ड पेंशन स्कीम एक प्रमुख मुद्दा बनेगा। उन्होंने केंद्र सरकार की मज़दूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों की खुली आलोचना की। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया कि अगर उसने पूँजीपतिपरस्त नीतियों को बन्द न किया तो आंदोलन तेज होगा। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की है कि मजदूर विरोधी चार लेबर कोड निरस्त किये जाएं। वर्ष 2003 से नियुक्त सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल की जाए। सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण बन्द किया जाए व नेशनल मोनेटाइजेशन पाइप लाइन योजना को वापिस लिया जाए। मजदूरों का न्यूनतम वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील कर्मियों को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में दो सौ दिन का रोजगार दिया जाए व छः सौ रुपये दिहाड़ी लागू की जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। आउटसोर्स व ठेका प्रथा पर रोक लगाई जाए। आउटसोर्स के लिए ठोस नीति बनाई जाए। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी बदलाव बन्द किये जाएं।
पुरानी पेंशन स्कीम बहाली को लेकर कर्मचारियों का प्रदर्शन उग्र होता दिख रहा है। प्रदेशभर से हजारों कर्मचारी विधानसभा का घेराव करने शिमला पहुंचे है और प्रदर्शन करते हुए विधानसभा के गेट तक पहुंच गए हैं। स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और एतिहातन विधानसभा के गेट पर ताला लगा दिया गया है। इससे पहले पुलिस ने कर्मचारियों को 103 टनल के पास रोकने के लिए पानी की बौछार की लेकिन कर्मचारी आगे बढ़ते चले गए। इससे पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर प्रदेशभर से शिमला पहुंचे कर्मचारी शिमला की टूटीकंडी क्रॉसिंग में जुटे और विधानसभा की तरफ कूच किया। कर्मचारियों ने ढोल नगाड़ों के साथ जमकर नारेबाजी की और चेताया की 'जो ओपीएस बहाल करेगा वो ही प्रदेश पर राज करेगा'। प्रदर्शन के चलते शिमला में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है और चौड़ा मैदान में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई। हालाँकि पुलिस बल भी कर्मचारियों को विधानसभा तक पहुँचने से नहीं रोक पाया।
प्रदेश के कॉलेजों में व्यावसायिक शिक्षा देने वाले वोकेशनल शिक्षक भी सरकार से पॉलिसी बनाने की मांग कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि हरियाणा व असम की तर्ज पर इन शिक्षकों के लिए भी हिमाचल में पॉलिसी तैयार की जाए, ताकि वोकेशनल शिक्षकों को भविष्य में नियमित किया जा सके और इन शिक्षकों को पदोन्नति के अवसर मिले। शिक्षकों का कहना है कि इस बजट सत्र में उन्हें उम्मीद ही नहीं बल्कि भरोसा है कि गठित कमेटी उनके भविष्य के बारे में सोचकर स्थायी नीति बनाएगी। हिमाचल प्रदेश बी. वॉक वोकेशनल संघ के अध्यक्ष कुश भारद्वाज ने आउटसोर्स पर कार्यरत हजारों वोकेशनल प्रशिक्षकों के लिए स्थायी नीति बनाने हेतु कमेटी का गठन करने हेतु सरकार का आभार जताया। उन्होंने कहा कि स्थायी नीति बनाने से प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ-साथ उनके परिवार भी लाभान्वित होंगे जिससे बढ़ती हुई महंगाई के दौर में आसानी से गुजारा कर पाएंगे। उन्होंने मांग की है की इस बजट सत्र के दौरान उनके लिए स्थाई नीति की घोषणा की जाए।