बरसों का इन्तजार खत्म हुआ और हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग पूरी हो गई। बीते दिनों हुई कैबिनेट बैठक में प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने का ऐलान कर दिया है। जिस मसले ने प्रदेश की चुनावी हवा का रुख बदल कर रख दिया था, अब वो मसला हल हो गया है। प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मानों कर्मचारियों के लिए मसीहा बनकर आए और उनकी पेंशन की सबसे बड़ी टेंशन को खत्म कर गए। कर्मचारी एक लम्बे अर्से से अपने बुढ़ापे की सुरक्षा की मांग रहे थे । पिछली सरकार ने जिन कर्मचारियों पर एफआईआर की इस सरकार ने उन्हीं कर्मचारियों को गले लगा लिया। जो कर्मचारी सचिवालय का घेराव किया करते थे, वो ही कर्मचारी सचिवालय के बाहर जश्न मनाते दिखाई दिए। नाचते गाते खुशियां मनाते दिखाई दिए। यही नहीं इन कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री को नायक की उपाधि भी दे दी। हिमाचल में करीब सवा लाख कर्मचारी इस समय एनपीएस के दायरे में आते हैं और ये सवा लाख कर्मचारी और इनके परिवार लगातार पुरानी पेंशन की मांग कर रहे थे। अब कर्मचारियों को पुरानी पेंशन के ऐलान के साथ ही एक लम्बे संघर्ष पर विराम लग गया है। इस संघर्ष की चिंगारी साल 2015 में भड़की थी और देखते ही देखते ये चिंगारी ज्वाला में बदल गई। जब प्रदेश में पुरानी पेंशन को हटा कर नई पेंशन लाई गई तो कर्मचारियों ने इसका स्वागत किया। लेकिन कुछ समय बाद जब इसके परिणाम सामने आए तो कर्मचारियों को समझ आ गया कि नई पेंशन स्कीम उनके लिए घाटे का सौदा है और फिर नई पेंशन को हटा पुरानी पेंशन की मांग की सुगबुगाहट तेज़ हो गई और साल 2015 तक कर्मचारी संगठित हो गए। साल 2017 से पहले जब भाजपा विपक्ष में थी तो पुरानी पेंशन कर्मचारियों को लौटाने के वादे किया करती थी। 2017 में जब भाजपा की सरकार बनी तो कर्मचारियों को उम्मीद थी कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए प्रदेश सरकार कुछ कदम उठाएगी। दरअसल कर्मचारियों का कहना था कि इससे पहले जब भाजपा विपक्ष में थी तो खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इस मांग की पैरवी किया करते थे। परन्तु सत्ता में आने के बाद जब कोई बदलाव होता नहीं दिखा तो शुरुआत हुई उस संघर्ष की जो आगे चल कर प्रदेश के कर्मचारियों के सबसे बड़े आंदोलन में तब्दील हो गया। उस वक्त किसी ने ये सोचा भी नहीं था कि कर्मचारियों की मांग आगे चलकर इतना विशाल आंदोलन बन जाएगी। कर्मचारियों ने पेंशन बहाली के लिए खूब जतन किए। शुरुआत में कर्मचारियों ने विधायकों से मिलकर अपनी मांग को उठाया। ये सिलसिला लम्बे समय तक चलता रहा और कर्मचारियों ने प्रदेश के हर बड़े नेता के दर पर दस्तक दी। फिर धीरे-धीरे मांग बढ़ती गई और नेताओं की नजरअंदाजी के चलते नाराज़ कर्मचारी सड़कों पर उतरने लगे। 25 जुलाई, 2017 को शिमला सचिवालय के बाहर पहली रैली हुई थी। फिर कई पेन डाउन स्ट्राइक हुई तो इस मुद्दे को और हवा मिल गई। मगर जब किसी ने सुनी नहीं तो प्रदेश के कर्मचारी और भी भड़क गए और मामला विधानसभा घेराव तक पहुंच गया। कभी भारी संख्या में कर्मचारी धर्मशाला पहुंचे तो कभी शिमला, पेंशन व्रत हुए, पेंशन संकल्प रैली हुई, पेंशन अधिकार रैली हुई। कर्मचारियों के इन प्रदर्शनों में उमड़ा जनसैलाब स्पष्ट संकेत देता रहा था कि कर्मचारी मानने को तैयार नहीं थे। मगर सरकार हर बार आर्थिक परिस्थितियों का हवाला देती रही। कर्मचारियों का ये संघर्ष बहुत कम समय में एक आंदोलन में बदल गया। जयराम सरकार द्वारा 2009 की अधिसूचना लागू कर प्रदेश के कर्मचारियों को मनाने का भी प्रयास हुआ मगर कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की मांग पर अड़े रहे। इस मसले पर लगातार भाजपा आर्थिक परिस्थितियों का हवाला देती रही। पूर्व सरकार ने कई बार स्पष्ट किया कि प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए, मगर संभावनाएं फिर भी तलाशी जाएंगी। पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी स्पष्टीकरण देते रहे कि हिमाचल सरकार अपने बलबूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। मगर ये सर्व विदित था की मसला सिर्फ आर्थिक स्थिति का नहीं है। दरअसल देश के 12 राज्यों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है, जबकि 4 राज्यों में भाजपा समर्थित सरकार है। यदि किसी एक भी राज्य में भाजपा पुरानी पेंशन बहाल करती है तो बाकि राज्यों के कर्मचारी भी चाहेंगे कि उन्हें भी पुरानी पेंशन दी जाए और अंततः केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए भी पुरानी पेंशन बहाल करनी होगी। ऐसे में हकीकत ये थी कि चाहकर भी जयराम सरकार के लिए ऐसा करना मुश्किल था। वहीं कांग्रेस के लिए परिस्थितियां अलग थी। तीन राज्यों में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है, हिमाचल, राजस्थान और छत्तीसगढ़। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी पहले ही पुरानी पेंशन लागू कर चुकी थी और अब हिमाचल में भी ऐलान कर दिया गया है। इसी के साथ झारखंड, तमिलनाडु और बिहार में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और झारखंड में भी पुरानी पेंशन की घोषणा हो चुकी है। जिस मुद्दे को भाजपा महज़ कर्मचारियों की एक मांग समझती रही कांग्रेस ने इस मुद्दे की गहराई को भांपा। कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए भी इस मुद्दे का समर्थन कर इसे खूब हवा दी और अपने चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस की पहली गारंटी भी पुरानी पेंशन की बहाली ही थी। उधर कर्मचारियों ने भी प्रदेश में 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान चलाया और स्पष्ट कर दिया की जो पेंशन की बात करेगा कर्मचारी उसी को वोट देंगे। आम आदमी पार्टी ने भी इस मसले की गहराई को समझते हुए पहले पंजाब में पेंशन बहाली की घोषणा की और फिर हिमाचल में भी पुरानी पेंशन बहाली का वादा किया। जबकि भाजपा के घोषणा पत्र से ये वादा नदारद रहा। नतीजा सभी के सामने है। इस चुनाव में कांग्रेस ने कर्मचारियों से वादा किया और कर्मचारियों ने कांग्रेस का समर्थन किया। आज प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार है और कर्मचारियों को भी उनकी पुरानी पेंशन मिलने का ऐलान हो चुका है। इस वर्ष 800 करोड़ रुपये होंगे खर्च : मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के अनुसार हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम देने के लिए इस साल करीब 800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले वक्त में इसका बजट और बढ़ जाएगा। यह मालूम रहे कि प्रदेश में नई पेंशन स्कीम वाले इस साल 1500 से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त होने हैं। छत्तीसगढ़ से मिलता-जुलता हो सकता है फार्मूला : हिमाचल प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने का फार्मूला छत्तीसगढ़ से मिलता-जुलता हो सकता है। छत्तीसगढ़ में कर्मचारी केंद्र से पैसा वापस लाकर पिछली रकम को खुद जमा कर रहे हैं। वहां पर कर्मचारियों को ओपीएस में आने या एनपीएस में बने रहने के दोनों ही विकल्प दिए गए हैं। जहां तक छत्तीसगढ़ के फार्मूले की बात है तो वहां पर निर्णय लिया गया था कि राज्य सरकार के कर्मचारी एक नवंबर 2004 के स्थान पर एक अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सामान्य भविष्य निधि के सदस्य बनेंगे। छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अप्रैल 2022 से पहले नियुक्त कर्मचारियों को एनपीएस में बने रहने या पुरानी पेंशन योजना में शामिल होने का विकल्प दिया था। इसके लिए कर्मचारियों से वहां शपथ पत्र भी मांगा जा रहा है। यदि कोई कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना का विकल्प चुनता है, तो उसे 1 नवंबर 2004 से 31 मार्च 2022 तक सरकार के योगदान और लाभांश को एनपीएस खाते में राज्य सरकार को जमा करना पड़ता है। वहीं, सरकारी कर्मचारियों को इस अवधि के दौरान एनपीएस में जमा कर्मचारी अंशदान और लाभांश एनपीएस नियमों के तहत देने की व्यवस्था की गई है। हालांकि, यह तो छत्तीसगढ़ की व्यवस्था है, पर मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने हिमाचल का अपना सर्वश्रेष्ठ मॉडल बताया है। ऐसे में लग रहा है कि यह छत्तीसगढ़ के मॉडल से कुछ भिन्न भी हो सकता है। खुद प्रियंका गांधी पहुंची थी मिलने प्रदेश में पुरानी पेंशन के मुद्दे की गहराई को समझते हुए खुद प्रियंका गांधी भी कर्मचारियों से मिलने पहुंची थी। दरअसल प्रदेश के कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग के लिए क्रमिक अनशन पर बैठे थे। इस अनशन के दौरान सरकार का कोई भी नुमाइंदा या भाजपा का कोई बड़ा नेता कर्मचारियों से मिलने नहीं पहुंचा। हालाँकि प्रियंका गाँधी सोलन में अपनी रैली के दौरान कर्मचारियों से मिलने पहुंची और उनसे उनका हाल जाना। पुरानी पेंशन लागू होने के बाद प्रियंका गाँधी ने कर्मचारियों को बधाई दी है। कर्मचारी इसलिए नहीं चाहते पुरानी पेंशन : साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशि अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिट कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशि इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल की गई है और एन्युटी राशि कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है। शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इक्कठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानी पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने पीएफआरडीए नाम की एक संस्था का गठन किया है। कर्मचारियों का कहना है कि उनका पैसा बाजार में जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी। पुरानी पेंशन योजना में ये हैं प्रावधान **इस योजना में सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है। **कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है। भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है। **20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है। सेवानिवृत्त कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन राशि मिलती है। **पुरानी योजना में जनरल प्रोविडेंट फंड यानी जीपीएफ का प्रावधान है। इसमें महंगाई भत्ते को भी शामिल किया जाता है। वापस होंगे एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज मामले ओल्ड पेंशन बहाल करने को लेकर संघर्षरत एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज तमाम केस वापस होंगे। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि संघर्ष के दौरान चाहे शिक्षक हों या अन्य कर्मचारी सभी हक की लड़ाई लड़ रहे थे। अब इन कर्मचारियों को उस समय बनाए गए मामलों से भी छूट दिलाई जाएगी। उधर, इस मौके पर जोइया मामा नारा लगाने से फेमस हुए सिरमौर के शिक्षक ओम प्रकाश ने कहा कि कांग्रेस सरकार बनने के बाद पेन किलर मिल गई है और अब धीरे-धीरे दर्द से राहत मिल रही है। ओम प्रकाश समेत अन्य शिक्षकों पर सचिवालय के बाहर नारेबाजी करने के आरोप में मामला दर्ज हुआ था। प्रदीप ठाकुर की रही अहम भूमिका पुरानी पेंशन की लड़ाई की शुरुआत नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले हुई। प्रदीप ठाकुर के नेतृत्व में इस संगठन ने कर्मचारियों को एकत्रित किया। उन्हें पुरानी पेंशन की एहमियत का एहसास करवाया, पुरानी पेंशन के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी । यूं तो प्रदेश में कई अन्य संगठन भी थे जो पुरानी पेंशन की मांग करते रहे, मगर जिस संगठन के लोगों ने तन-मन-धन से पुरानी पेंशन बहाली में योगदान दिया वो नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ ही है। पुरानी पेंशन देने वाला देश का छठा राज्य बना हिमाचल 2021 तक एकमात्र पश्चिम बंगाल ही वो राज्य था जहां कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दी जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब में वर्ष 2022 में पुरानी पेंशन बहाल कर दी गई। अब साल 2023 में हिमाचल प्रदेश पुरानी पेंशन बहाल करने वाला देश का पांचवां राज्य बन गया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की सरकारों ने अपने चुनावी वायदे निभा दिए हैं। भाजपा शासित राज्यों में अभी भी इस बहाली का इंतजार है। राजस्थान सरकार ने 23 फरवरी 2022 को पुरानी पेंशन बहाल करने का ऐलान किया था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने चौथे बजट में यह घोषणा पूरी की। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मार्च 2022 में पेश किए बजट में पुरानी पेंशन देने की घोषणा की। एक सितंबर 2022 से झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल की थी। पंजाब में 21 अक्टूबर 2022 को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मंत्रिमंडल की बैठक में ओपीएस बहाल करने का निर्णय लिया। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं।
प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन चुकी है और सरकार के सामने वादों की कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती है। कड़े संघर्ष और जद्दोजहद के बाद कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दोबारा से सत्ता कब्जा ली है। सत्ता में आने के लिए कांग्रेस ने जनता से बेतहाशा वादे किए है और जनता ने उन वादों पर ऐतबार भी किया है, जिसके बूते प्रदेश में आज सरकार कांग्रेस की है। अब जनता से जो वादे किये गए है उन्हें निभाने की बारी आ गई है। सत्ता का सुख तो अब कांग्रेस को मिलेगा ही मगर उसी के साथ -साथ अपेक्षाओं का बोझ भी कांग्रेस सरकार पर आ गया है। सुक्खू सरकार के एक कंधे पर प्रदेश की जनता की बेतहाशा उम्मीदों का बोझ है और दूसरी पर खाली सरकारी खजाने की चाबी। पिछले कुछ वर्षों से जो आर्थिक स्थिति बनी है, जाहिर है इस सरकार के लिए लगभग 70 हज़ार करोड़ के कर्ज तले दबी प्रदेश की आर्थिकी को संभालना सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है। इस पर जो वादे कांग्रेस ने जनता और खास तौर पर प्रदेश के कर्मचारियों से किये है वो कब तक पूरे होते है, इस पर भी सबकी निगाहें टिकी रहेगी। हिमाचल की राजनीति में कर्मचारियों के प्रभाव से सभी राजनीतिक दल भली भांति परिचित है और इसलिए चुनाव से पहले कर्मचारियों को रिझाने के लिए कांग्रेस ने वादों की बौछार भी की है। कांग्रेस ने कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करने के साथ- साथ लगभग हर लंबित मांग को पूरा करने का वादा किया है। अब नतीजे आने के बाद कर्मचारियों की उम्मीद भरी निगाहें सरकार पर टिकी है और हो भी क्यों ना, माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण कर्मचारियों का साथ है। अब कितने वादे पूरे होते है और कितने अधूरे रहते है ये तो वक्त ही बताएगा, बहरहाल आपको बताते है कि प्रदेश के कर्मचारियों की लंबित मांगें क्या है। क्या होगा ओपीएस बहाली का फार्मूला ? कांग्रेस मेनिफेस्टो में पहली गारंटी पुरानी पेंशन की बहाली थी। कांग्रेस के प्रचार प्रसार में पुरानी पेंशन के मुद्दे का इस्तेमाल भरपूर दिखा। कांग्रेस के हर प्रत्याशी की जुबां पर पुरानी पेंशन का मुद्दा था और उनके फोन के पीछे वोट फॉर ओपीएस का लोगो। वादा किया गया था कि पहली कैबिनेट में ही पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी। अब सरकार बनने के बाद सबसे पहले सरकार से सवाल भी पुरानी पेंशन को लेकर ही हो रहे है। हिमाचल एनपीएस कर्मचारी महासंघ ने कांग्रेस की जीत के बाद शिमला में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पूरी उम्मीद जताई है कि प्रदेश मंत्रिमंडल की पहली बैठक में पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी। एनपीएस के कर्मचारी नए मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं। नए सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी कहा है कि पहली कैबिनेट में हम पुरानी पेंशन स्कीम लागू करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि जिन राज्यों में पुरानी पेंशन दी जा चुकी है उनके मॉडल को स्टडी कर प्रदेश में भी सरकार पुरानी पेंशन देगी। अब कर्मचारियों को उम्मीद है कि जल्द उन्हें उनके संघर्ष का फल मिलेगा। दरअसल, हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मुद्दा पुरानी पेंशन की बहाली ही है। कर्मचारी लगातार इसकी मांग कर रहे है। पुरानी पेंशन वो मुद्दा है जिसने चाहे-अनचाहे हिमाचल प्रदेश के चुनावी समीकरण बदल कर रख दिए। इस चुनाव में महंगाई, बेरोज़गारी और विकास के मुद्दों की तो चर्चा हुई ही लेकिन इसी के साथ पुरानी पेंशन बहाली की मांग भी वो मुद्दा बनी जिसने भाजपा की नाक में दम कर दिया और प्रदेश के चुनावी समीकरणों को प्रभावित भी किया। अब कांग्रेस सरकार के लिए ऐसी विकट आर्थिक स्थिति में पुरानी पेंशन को बहाल करना बड़ी चुनौती है। इस योजना को लागू करने के लिए एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए और हर माह 500 करोड़ की जरूरत होगी। भाजपा सरकार कई बार ये स्पष्ट कर चुकी है कि प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए। हिमाचल सरकार अपने बल बूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। अब नई सरकार कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देती है या नहीं यह देखना रोचक होगा। यहाँ इस बात को ध्यान में रखना भी बेहद ज़रूरी है कि हाल ही में संसद में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने स्पष्ट किया है कि जिन राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल हो गई है उनके प्रस्तावों पर पीएफआरडीए की तरफ से सरकार के और कर्मचारी के अंशदान के रूप में जमा राशि को राज्य सरकार को लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है। पीएफआरडीए ने कहा है कि नेशनल पेंशन स्कीम के तहत जमा कर्मचारियों के पैसों को राज्यों को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों ने कर्मचारियों के एनपीएस डिपॉजिट को राज्यों को ट्रांसफर करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करके राज्य कर्मचारियों को पेंशन देंगे लेकिन पीएफआरडीए का कहना है कि इस योजना में एम्प्लॉयी के फंड को एम्प्लॉयर को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है जिससे पुरानी पेंशन देने वाले राज्यों की चिंता बढ़ गई है। नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों का अब तक जो पैसा काटा गया वह पीएफआरडीए में जमा होता था। कुछ राज्य सरकारों ने एनपीएस को खत्म करके ओपीएस लागू करने के लिए कर्मचारी और सरकार द्वारा जमा किए गए हजारों करोड़ वापस देने की मांग की जिसे देने से केंद्र सरकार की एजेंसी ने इंकार कर दिया है। क्या मिलेगा नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का लाभ ? नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता का लाभ देने का वादा भाजपा ने अपने 2017 के घोषणा पत्र में किया था। भाजपा सरकार तो बनी लेकिन सरकार इस वादे को भूल गई। हज़ारों कर्मचारियों में इस बात को लेकर टीस है। हालात ये है कि इसके चलते कई सीनियर कर्मचारी जूनियर हो चुके है और जूनियर सीनियर। जाहिर है ये मुद्दा कर्मचारियों के स्वाभिमान से जुड़ा भी है। दरअसल वर्ष 2008 में बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया और हाल ही में ये दो साल हो गया है। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंधकाल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, इसी को लेकर प्रभावित कर्मचारियों को आपत्ति है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती l अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के अनुसार पूर्व सरकार कर्मचारी की सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से करती रही, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। संगठन का कहना है कि ऐसा करना लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। दो वर्ष पूर्व नियुक्त हुए कर्मचारियों को दो वर्ष बाद सभी सेवा लाभ मिल रहे हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि जो कर्मचारी 7 साल पहले सेवा में आए हैं उनको वित्तीय और अन्य सेवा लाभों से वंचित रखा जा रहा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए, ना कि नियमितीकरण की तिथि से। एरियर का भुगतान सबसे बड़ी चुनौती नई सरकार के लिए सबसे एक और बड़ी चुनौती पे-कमिशन एरियर के भुगतान की होगी। राज्य में सरकारी विभागों और निगम-बोर्डों के सवा चार लाख कर्मचारियों और पेंशनरों को करीब 8000 करोड़ के एरियर का भुगतान अभी बाकी है। राज्य सरकार के पास इस देनदारी को चुकाने के लिए वित्तीय संसाधन अब नहीं बचे हैं। इस साल के लिए राज्य की लोन लिमिट 9700 करोड़ थी और इसमें से 7000 करोड़ लोन ले लिया गया है। सिर्फ 2700 करोड़ लोन ही लिया जा सकता है और इस राशि से भी इस वित्त वर्ष में 31 मार्च तक वेतन और अन्य देय जिम्मेदारियों का भुगतान किया जाना है। यही वजह है कि एरियर और महंगाई भत्ते को चुकाने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं दिख रहे। राज्य के कर्मचारियों को सात फीसदी महंगाई भत्ता अभी बकाया है और 31 फीसदी डीए ही अभी दिया जा रहा है, जबकि भारत सरकार ने 38 फीसदी तक भुगतान कर दिया है। बहुत से कर्मचारी-अधिकारी वर्ग ऐसे हैं, जिनका एरियर ही 10 लाख तक का है। ऐसे कर्मचारियों को भी पहली किस्त में सिर्फ 50 हजार मिले हैं। इस हिसाब से गणना करें, तो 10 लाख का भुगतान कितनी किस्तों में होगा, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। मजबूत आउटसोर्स नीति की दरकार राज्य के सरकारी विभागों में काम कर रहे 28000 आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति बनाने की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाई। जाते-जाते भाजपा सरकार ने ऐलान ज़रूर किया था मगर अब तक मांग पूरी नहीं हो पाई है। इसकी वजह यह है कि चुनाव से पहले फाइनेंस सेक्रेटरी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में कुछ प्वाइंट तय किए गए थे, लेकिन इसके बाद दूसरी बैठक अब तक नहीं हो पाई है। विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले कैबिनेट ने यह फैसला किया था कि आउटसोर्स कर्मचारियों को अब कौशल विकास निगम के तहत ही लाया जाएगा और बीच में से ठेकेदारों को हटा दिया जाएगा। इससे इन्हें जॉब सिक्योरिटी मिल जानी थी, जबकि वित्तीय मसलों पर कैबिनेट ने कुछ स्पष्ट नहीं कहा था। इसके लिए कौशल विकास निगम को कौशल विकास एवं रोजगार निगम के रूप में बदलने और इसे कंपनी बनाने का फैसला हुआ था। इसके बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव फाइनेंस प्रबोध सक्सेना ने तकनीकी शिक्षा और श्रम विभाग के सचिवों के साथ एक बैठक कर इनसे कुछ डॉक्यूमेंटेशन सबमिट करने को कहा था। इस बैठक में तकनीकी शिक्षा विभाग के सचिव अमिताभ अवस्थी और श्रम एवं रोजगार विभाग के सचिव अक्षय सूद मौजूद थे। ये डॉक्यूमेंट तैयार हैं, लेकिन अभी दूसरी बैठक की डेट तय नहीं हुई है। पिछली बैठक में तकनीकी शिक्षा विभाग को कौशल विकास निगम के मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग और मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट के नियम और शर्तों पर रिपोर्ट देने को कहा गया था। अब जब तक दूसरी बैठक नहीं हो जाती, तब तक यह तय नहीं है कि आउटसोर्सिंग को लेकर कैबिनेट में हुए फैसले के अनुसार पॉलिसी कब बनेगी। श्रम विभाग से यह डिटेल मांगी गई थी कि पूरे प्रदेश में अब तक कितने आउटसोर्स कर्मचारी हैं। हालांकि यह डाटा इससे पहले कैबिनेट सब कमेटी ने तैयार कर लिया था और पहले से ही सरकार के पास मौजूद था। अब सवाल यह है कि नई सरकार आगे क्या करती है। पे रिवीजन रूल्स से अब भी संतुष्ट नहीं कर्मचारी हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू किए गए नए वेतन आयोग को लेकर पे-रिवीजन रूल्स से कर्मचारी अब तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। राइडर में फंसे कर्मचारियों के लिए हायर ग्रेड-पे जारी करने की अधिसूचना के बाद से कुछ कर्मचारी फिक्सेशन का विरोध करते रहे। कुछ कर्मचारी संगठन अब भी यह विरोध कर रहे हैं कि राइडर की नोटिफिकेशन में सभी 19 कैटेगरी की फिक्सेशन बढ़ी हुई ग्रेड-पे के इनिशियल पर 2.25 का गुणांक लगाकर की गई है। यह गलत है, क्योंकि मनमर्जी से बढ़ी हुई ग्रेड-पे के इनिशियल में फिक्सेशन कैसे हो सकती है? दूसरी ओर जेबीटी भी अपनी फिक्सेशन गलत करने का आरोप लगा रहे थे। वेतन संशोधन के मामले में शिक्षा विभाग में टीजीटी आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें इससे कोई फायदा नहीं हुआ है। इसी तरह की कुछ आपत्तियां ऐसे कर्मचारियों की हैं, जिनका लेवल एक ही है, लेकिन फिक्सेशन की राशि अलग-अलग है। मल्टीपर्पज हेल्थ वर्कर की फिक्सेशन में भी विसंगतियों के आरोप हैं। स्टाफ नर्स, क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर, टीजीटी इत्यादि में भी अलग-अलग स्तरों से फीडबैक नेगेटिव है। अब आने वाली सरकार कितनी जल्दी ये विसंगतियां दूर करती है इसपर सबकी निगाहें टिकी हुई है। क्या एचआरटीसी को रोडवेज का दर्जा देगी सरकार ? एचआरटीसी के कर्मचारी सरकार बनने से पहले ही अपनी लंबित मांगें सामने रख चुके है। एचआरटीसी की संयुक्त समन्वय समिति के महासचिव खेमेंद्र गुप्ता ने सरकार से आग्रह किया है कि प्रदेश एचआरटीसी कर्मचारियों की समस्याओं को प्रमुखता से सुलझाया जाए। उन्होंने मांग उठाई है कि पिछले काफी समय से चली आ रही एचआरटीसी कर्मचारियों की मुख्य मांग एचआरटीसी को रोडवेज का दर्जा दिया जाए। एचआरटीसी कर्मचारियों की समस्याओं को समाप्त करने का यही एक समाधान हैं। रोडवेज का दर्जा मिलने से एचआरटीसी कर्मचारियों को उनका वेतन व अन्य भत्तों का भुगतान ट्रेजरी के माध्यम से किया जाना चाहिए, ताकि वेतन व अन्य भत्तों के भुगतान में उन्हें देरी न हो। इसके अलावा उन्होंने यह मांग भी उठाई कि नई सरकार में एचआरटीसी कंडक्टरों की वेतन विसंगति को प्रमुखता से दूर किया जाए। परिचालकों को जारी किए नए ग्रेड पे में 2400 से 1900 ग्रेड पे पर ला कर रख दिया है, इससे हर परिचालक को वेतन में करीब दस से पंद्रह हजार का आर्थिक नुकसान हो रहा है। इसके अलावा उन्होंने 36 महीनों से लंबित नाइट ओवर टाइम को जारी करने की मांग उठाई हैं। परिचालकों के अलावा एचआरटीसी कर्मचारियों की और भी कई समस्याएं लंबित है। चुनाव आचार संहिता लगने से ठीक पहले परिवहन मंत्री की अगुवाई में हुई बीओडी की बैठक में एरियर सैलरी के साथ देने का वादा हुआ था, लेकिन यह अधर में लटक गया है। पिछले महीने से कर्मचारी इसकी इंतजार कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि अभी इसकी पहली किस्त के लिए तो इंतजार करना ही पड़ेगा। वहीं एचआरटीसी में 100 पीस मील कर्मचारियों ने अनुबंध पर लिए जाने के लिए पांच से छह वर्ष का कार्यकाल पूरा कर दिया है, लेकिन यह कार्यकाल पूरा करने के बाद भी निगम प्रबंधन पीस मील कर्मियों को अनुबंध पर लेने को नहीं लाया गया। पीस मील कर्मचारियों का कहना है कि अन्य पीस मील कर्मियों को अनुबंध पर लिए जाने के बाद प्रदेश में 230 पीस मील कर्मचारी बाकी रह गऐ थे, जिनमें सितंबर माह में 100 ने अनुबंध के लिए पांच और छह वर्ष समयबद्ध नीति के मुताबिक अपनी समय अवधि को पूर्ण किया है, लेकिन इन सभी पात्र पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध में लेने के लिए निगम मुख्यालय से निगम प्रबंधन द्वारा निगम की कर्मशालाओं के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई। एचआरटीसी पेंशनर्स ने भी मांग उठाई है कि अगले महीने समय पर एचआरटीसी पेंशनर्स को पेंशन प्रदान की जाए और 2016 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों की पे फिक्सेशन भी कर दी जाए। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच ने चेताया है कि अगर अगले महीने एचआरटीसी पेंशनर्स को समय पर वेतन नहीं मिलता है और 2016 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों की पे-फिक्सेशन नहीं होती हैं तो फिर नई सरकार का स्वागत एचआरटीसी पेंशनर्स नए तरीके से करेंगे। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच के प्रदेशाध्यक्ष बलराम पुरी का कहना है कि एचआरटीसी में 2016 के उपरांत सेवानिवृत्त हुए लगभग 2500 कर्मचारियों को अभी तक नया वेतनमान नहीं मिला है। जबकि इससे पहले रिटायर हुए कर्मचारियों को सितंबर माह में नया वेतनमान मिल चुका हैं। पुलिस जवानों को मिलती है सात रुपये प्रतिदिन डाइट मनी चुनाव से पहले पुलिस जवान सरकार से मांग करते रहे मगर पुलिस जवानों की न ही डाइट मनी बढ़ी है और न ही अतिरिक्त वेतन बढ़ाया गया है। पुलिस जवानों को आज भी 24 घंटे सेवाएं देने के लिए दिया जा रहा अतिरिक्त वेतन वर्ष 2012 के स्केल के हिसाब से दिया जा रहा है। ऐसे में पुलिस जवानों को 30 से 35 हजार रुपए का हर वर्ष वित्तीय नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसके अलावा पुलिस जवानों को मिलने वाली डाइट मनी इतनी कम है कि डाइट मनी की राशि में चाय का कप तक नहीं लिया जा सकता है। प्रदेश के पुलिस जवानों को 210 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से डाइट मनी दी जा रही है, जो प्रतिदिन के हिसाब से सात रुपए है। आज के समय में चाय का एक कप की कीमत भी बाजार में दस से 15 रुपए है। कुछ समय पहले पुलिस जवानों ने प्रदेश सरकार से वेतन विसंगति के साथ-साथ डाइट मनी की समस्या हल करने की मांग उठाई थी। इसके अलावा पुलिस जवानों ने अतिरिक्त वेतन को नए पे स्केल के हिसाब से देने की मांग उठाई थी, लेकिन प्रदेश सरकार पुलिस जवानों की दोनों मांगों को पूरा नहीं कर पाई। होमगार्ड की मांग, मिले स्थायी रोजगार करीब 6 दशक के लगातार संघर्ष के बावजूद आज तक प्रदेश के होमगार्ड जवानों को उनका हक नहीं मिल पाया है। पुलिस की तर्ज पर गृहरक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी निभाते हैं, वर्दी भी खाकी पहनते है, ट्रेनिंग भी उतनी ही कठोर होती है, मगर सरकारी कर्मचारी होने के नाते इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए, स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। गृह रक्षकों ने अपने हक की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। इसका लाभ यह हुआ कि उनका वेतन बेहतर हो गया, मगर ये अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं। होमगार्ड एसोसिएशन का कहना है कि पूर्व सरकार इनके लिए नियमितीकरण की नीति तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल में हर वर्ग को सहायता पहुंचाने की कोशिश में थी। चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कर्मचारी फैक्टर को साधने के पूरे प्रयास किए जा रहे थे, मगर होमगार्ड जवानों का कहना है कि एक उनका वर्ग ही ऐसा है जिसकी अब तक अनदेखी की गई है। अब देखना होगा क्या नई सरकार इनकी मांगें पूरी करेगी। कॉर्पोरेट सेक्टर कर्मचारी मांगे पेंशन हिमाचल प्रदेश सरकार के विभिन्न कॉर्पोरेट सेक्टर से सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अब नई सरकार से उम्मीदें हैं। सभी सेवानिवृत्त कर्मचारी भी नई सरकार के समक्ष अपनी मांगें रखेंगे और उन्हें उम्मीद है कि नई सरकार प्रदेश के 5000 सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन का लाभ देगी। निगमित क्षेत्र के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अनुसार उन्हें 2004 तक पेंशन की सुविधा मिलती थी लेकिन उसके बाद से पेंशन नहीं मिल रही है। वर्ष 1999 में भाजपा सरकार ने बोर्डों और निगमों के कर्मचारियों को पेंशन देने के संबंध में अधिसूचना जारी की थी ,मगर उन्हें पेंशन नहीं मिली। हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड, परिवहन निगम, शिक्षा बोर्ड, नगर निगम जैसे मंडलों व निगमों से सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अब भी पेंशन मिल रही है, लेकिन, पर्यटन निगम समेत 20 ऐसे मंडल हैं जिनके कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन की सुविधा नहीं मिल रही है। एमसीएच से काटे गए पैसे में से उन्हें 1000 से 3000 ही मिल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने वर्ष 2017 में अपने घोषणा पत्र में निगम के कर्मचारियों को पेंशन सुविधा देने का वादा किया था, लेकिन निगम व बोर्ड के सेवानिवृत्त कर्मचारियों से किए गए वादे को सभी भूल गए हैं। अब इन कर्मचारियों को उम्मीद है कि कांग्रेस सरकार इनकी पेंशन भी बहाल करेगी।
प्रदेश में चुनावी अखाड़ा पूरी तरह सज चूका है। आचार सहिंता लग चुकी है। सत्ता पक्ष अपने विकास कार्य गिना रहा है तो विपक्ष, सरकार की हर उस नाकामी को भुनाने का प्रयास कर रहा है जो भाजपा की डगर कठिन कर दे। कोशिश तो पूरी थी मगर इसके बावजूद भी प्रदेश के कुछ ऐसे मुद्दे है जो सरकार सुलझा नहीं पाई। ऐसे ही अनसुलझे मसलों में प्रदेश के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मुद्दा भी शेष है। ये वो मुद्दा है जो सत्ता हिलाने की कुव्वत रखता है। हम बात कर रहे है प्रदेश के करीब एक लाख कर्मचारियों के सबसे बड़े मुद्दे, पुरानी पेंशन बहाली की। कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ होती है और जब कर्मचारी ही अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे है, तो ऐसे में किसी भी सरकार की डगर मुश्किल हो सकती हैं। एनपीएस कर्मचारी महासंघ से जुड़े हिमाचल के एक लाख से अधिक कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली के लिए लगातार संघर्ष करते रहे परन्तु वर्तमान सरकार के राज में पुरानी पेंशन बहाल नहीं हुई। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के बैनर तले आंदोलन लगातार तीव्र होता गया। कर्मचारियों ने आचार सहिंता लगने तक क्रमिक अनशन भी किया और खुलकर 'वोट फॉर ओपीएस' का नारा दिया। तो कर्मचारी क्या भाजपा के मिशन रिपीट के लक्ष्य में सबसे बड़ी बाधा बनेंगे, ये सवाल फिलहाल बना हुआ है। निसंदेह सरकार के खिलाफ कर्मचारियों का ये प्रदर्शन विपक्ष में बैठी कांग्रेस के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकता है। उधर भाजपा बार-बार ये याद दिला रही है कि प्रदेश में नई पेंशन स्कीम कांग्रेस की वीरभद्र सरकार ने लागू की थी। अब कर्मचारियों का क्या रुख रहता है, ये देखना रोचक होगा। क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ के आह्वान पर प्रदेश का कर्मचारी 'वोट फॉर ओपीएस' मुहीम का हिस्सा बनेगा, इसी सवाल के जवाब में सम्भवः अगली सरकार की तस्वीर छिपी है। गौरतलब है कि नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ द्वारा 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान चलाया जा रहा है, जहां कर्मचारियों को ओपीएस के नाम पर वोट देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। संघ की दो टूक है की जो भी पुरानी पेंशन बहाल करेगा वोट उसी को मिलेगा। जाहिर है पुरानी पेंशन बहाली का वादा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी कर रहे है, जबकि भाजपा अभी भी इस मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपनाएं हुए है। तो क्या भाजपा के मिशन रिपीट में 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान खलनायक की भूमिका निभा सकता है, या इस अभियान से व्यापक तौर पर प्रदेश का आम कर्मचारी दूर रहता है, इस पर निगाहें जरूर रहने वाली है। हर मंच से वचन दे रही कांग्रेस कांग्रेस के तमाम बड़े नेता बार -बार दोहरा रहे है कि सरकार बनने पर पहली कैबिनेट में ओपीएस बहाल होगी। हर मंच से इस बात को दोहराया जा रहा है। प्रियंका गाँधी की परिवर्तन प्रतिज्ञा रैली में उन्होंने भी पहली कैबिनेट में पुरानी पेंशन बहाली का वचन दिया। प्रियंका खुद क्रमिक अनशन पर बैठे कर्मचारियों से मिलने पहुंची और उन्हें आश्वस्त किया। ऐसे में क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ खुलकर कांग्रेस के लिए काम करेगा, ये देखना रोचक होगा। वैसे इसमें कोई संशय नहीं है कि यदि इनका 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान कामयाब रहा तो इसका स्वाभाविक लाभ कांग्रेस को हो सकता है। पर मूल सवाल ये ही है कि क्या 'वोट फॉर ओपीएस' मुहीम का बड़ा असर दिखेगा या प्रदेश का आम कर्मचारी अन्य मुद्दों को वोट का मुख्य आधार बनाएगा। कांग्रेस दे रही राजस्थान-छत्तीसगढ़ का उदाहरण देश के दो राज्यों में कांग्रेस शासित सरकार है, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस पुरानी पेंशन बहाल कर चुकी है। झारखंड में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और वहाँ भी पुरानी पेंशन बहाल हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस इन तीन राज्यों का हवाला देते हुए पुरानी पेंशन बहाल करने का वादा कर रही है। पार्टी का कहना है कि यदि वो सत्ता में लौटी तो पहली कैबिनेट में पुरानी पेंशन बहाल होगी। प्रियंका गाँधी ने भी अपनी परिवर्तन प्रतिज्ञा रैली में इसका जिक्र किया। जयराम देते रहे है आर्थिक हालात का हवाला वैसे आपको याद दिला दें की भाजपा के 2017 विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी ये कहा गया था कि सरकारी विभागों में कर्मचारियों की पेंशन हेतु केंद्र सरकार से परामर्श के लिए सीएम की अगुवाई में पेंशन योजना समिति का गठन किया जाएगा। समिति तो बनी मगर कर्मचारियों को पुरानी पेंशन नहीं मिल पाई। दरअसल इस योजना को लागू करने के लिए एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए और हर माह 500 करोड़ की जरूरत होगी। जयराम सरकार ने कई बार ये स्पष्ट किया कि फिलवक्त प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जा सके। हिमाचल सरकार अपने बलबूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। 'आप' ने भी किया वादा आम आदमी पार्टी ने भी प्रदेश में ओपीएस बहाल करने का वादा किया है। बीते दिनों पार्टी में घर वापसी करने वाले वरिष्ठ नेता डॉ राजन सुशांत तो इस मुद्दे पर लम्बे समय से खुलकर बोलते रहे है। ऐसे में यदि कर्मचारी ओपीएस के नाम पर वोट करता है तो उसके पास आम आदमी पार्टी भी एक विकल्प होगा। जाने आखिर NPS का विरोध क्यों करते है कर्मचारी साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। कुछ ही समय बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी सरकारी क्षेत्र में नियुक्त होने वाले कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू कर दी गई। शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब NPS का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। दरअसल एनपीएस कर्मचारी के अंतिम मूल वेतन के मुताबिक न्यूनतम पेंशन की गारंटी नहीं देती। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और DA जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इक्कठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानि पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। कर्मचारियों का कहना है की उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी। NPS अच्छी है तो माननीयों के लिए क्यों नहीं ! मई 2003 के बाद से माननीय (सांसद व विधायकों ) को तो पेंशन का लाभ मिल रहा है, जबकि सरकारी कर्मचारी को एनपीएस का झुनझुना थमा दिया गया है। यदि यह योजना इतनी बढ़िया है तो सांसद व विधायकों को भी पेंशन के स्थान पर एनपीएस का ही लाभ देना चाहिए। यदि एक नेता पहले विधायक हो और फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बन जाए तो उसे दोनों तरफ से पेंशन मिलती है। इस देश में ये सुविधा सिर्फ और सिर्फ नेताओं को ही उपलब्ध है। क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ को हल्के में लेने की भूल कर बैठी भाजपा ? जयराम सरकार ने प्रदेश के कर्मचारियों की कई मांगे पूरी की। पर पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा हमेशा भाजपा के गले की फांस बना रहा। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के बैनर तले ये मांग आहिस्ता-आहिस्ता आंदोलन का रूप लेती गई। विशेषकर पिछले दो साल में एनपीएस कर्मचारी महासंघ से काफी कर्मचारी जुड़ते गए। दूसरी ओर प्रदेश कर्मचारी महासंघ अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर की अगुवाई में सरकार के साथ कदमताल करता चला। क्या भाजपा के रणनीतिकारों ओर निष्ठावानों ने एनपीएस कर्मचारी महासंघ को हल्के में लेने की भूल की, ये सवाल माहिरों के जहाँ में जरूर है। हालांकि इसका फैसला को चुनाव के नतीजे ही करेंगे। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर इस वक्त प्रदेश के प्रभवशाली कर्मचारी नेताओं में शुमार है। यदि इनका 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान सफल रहा तो निसंदेह बतौर कर्मचारी नेता प्रदीप ठाकुर का रुतबा भी बढ़ेगा। एनपीएस के क्रमिक अनशन में शामिल हुईं प्रियंका गांधी परिवर्तन प्रतिज्ञा महारैली से पहले प्रियंका गांधी 14 दिन से पुरानी पेंशन बहाली को लेकर क्रमिक अनशन पर बैठे कर्मचारियों से मिली। वह कर्मचारियों के अनशन में शामिल हुई और न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के 'वोट फॉर ओपीएस का समर्थन' किया। उन्होंने कर्मचारियों को आश्वासन दिया कि कांग्रेस सरकार बनते ही पुरानी पेंशन योजना लागू की जाएगी। न्यू पेंशन स्कीम के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर भी मौजूद रहे। न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के पदाधिकारी ओल्ड डीसी कार्यालय के बाहर पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली को लेकर क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष अशोक ठाकुर ने कहा कि बार-बार पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर पत्र लिखे जा रहे हैं, लेकिन कोई निर्णय नहीं ले रही। छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में सरकार ने कर्मचारियों की मांग को मान लिया है। 1,35,000 कर्मचारी प्रदेश भर में हैं। करीब 10,000 कर्मचारी उसमें सोलन जिले के हैं। अब एसोसिएशन ने निर्णय लिया है कि उसी पार्टी को वोट दिया जाएगा, जो ओल्ड पेंशन की बहाली करेगी।
हिमाचल प्रदेश न्यायिक कर्मचारी कल्याण संघ की राज्य कार्यकारिणी की वर्चुअल बैठक सोमवार को संपन्न हुई। इस बैठक में राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों के अतिरिक्त सभी जिलों के पदाधिकारी भी शामिल हुए। बैठक में जिला न्यायपालिका के कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान जारी न करने को लेकर सरकार के ढुलमुल रवैए पर गहरा रोष प्रकट किया गया। राज्य अध्यक्ष परमानंद शर्मा ने बताया कि इस बैठक में न्यायिक कर्मचारियों के रोष पर ज्वाइंट एक्शन कमेटी का गठन किया गया है और उसकी आगामी रणनीति भी तय कर ली गई है। उन्होंने कहा कि समस्त जिला न्यायपालिका के कर्मचारियों के सब्र का बांध टूट चुका है और सभी कर्मचारी 21 सितंबर से काले बिल्ले लगाकर रोष प्रदर्शन शुरू कर देंगे। उन्होंने कहा कि कर्मचारी 26 सितंबर से गेट मीटिंग नारेबाजी व वर्क टू रूल के अंतर्गत कार्य करना शुरू कर देंगे। इसके अतिरिक्त 11 अक्टूबर से सभी जिला न्यायपालिका के कर्मचारी सामूहिक अवकाश पर जाएंगे तथा अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। राज्य अध्यक्ष ने सरकार द्वारा जिला न्यायपालिका कर्मचारियों के साथ किए जा रहे सौतेले व्यवहार पर गहरा रोष व्यक्त किया। उन्होंने यह भी बताया कि कर्मचारियों को पुराने वेतनमान पर डीए तक नहीं मिल रहा है। उन्होंने राज्य सरकार से एक बार फिर अपील की कि सरकार न्यायपालिकाओं के कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार ना करें तथा अतिशीघ्र संशोधित वेतनमान जारी करें। वहीं बैठक में गठित की गई ज्वाइंट एक्शन कमेटी के अध्यक्ष पवन ठाकुर ने बताया कि यह कमेटी राज्य कार्यकारिणी के हर निर्देश का मजबूती से पालन करेगी।
धरने के दौरान एचआरटीसी पेंशनरों और पुलिस के बीच हुई धक्कामुक्की के बाद लगे जाम के मामले में 10 पेंशनरों के खिलाफ एफआईआर होने पर परिवहन पेंशनर कल्याण संगठन भड़क गया है। संगठन के पदाधिकारियों ने कहा है कि सरकार पेंशनरों की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है। संगठन के प्रधान सत्यप्रकाश शर्मा, अध्यक्ष केसी चौहान, महासचिव सत्यप्रकाश शर्मा और महासचिव सुरिंद्र कुमार गौतम ने कहा है कि एफआईआर दर्ज कर वरिष्ठ नागरिकों को डराने की कोशिश की जा रही है लेकिन वे बिलकुल भी नहीं डरेंगे । पेंशनर संगठन का कहना है की उन्होंने ने 12 मई को एचआरटीसी मुख्यालय के सामने धरना देकर अपनी मांगें उठाई थी और आठ जून को सचिवालय मार्च का ऐलान किया था। 13 मई को सरकार और निगम प्रबंधन को नोटिस देकर सचिवालय मार्च को लेकर अवगत करवाया। बावजूद इसके सरकार और प्रबंधन ने संगठन को कानूनी बाध्यता के विषय में अवगत नहीं करवाया। उन्होंने कहा की अगर हमें सूचित किया जाता तो प्रदर्शन स्थल बदला जा सकता था लेकिन प्रशासन ने ऐसा नहीं किया। संगठन के पदाधिकारियों ने कहा की पेंशनरों पर ट्रैफिक रोकने के निराधार आरोप लगाए जा रहे हैं। जबकि पुलिस ने बैरिकेड लगाकर और पुलिस बस और जीप सड़क पर तिरछी लगाकर ट्रैफिक रोका। टॉलैंड में लगे सीसीटीवी कैमरों में भी इसकी रिकॉर्डिंग है। पुलिस ने न सिर्फ ट्रैफिक रोका बल्कि वरिष्ठ नागरिकों के ऊपर बल प्रयोग भी किया। जिसमें कई बुजुर्ग चोटिल भी हुए। संगठन ने कहा की बुज़ुर्ग पेंशनरों के साथ ऐसा व्यवहार बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है। उन्होंने कहा की अगर पेंशनरों के साथ इस तरह का व्यवहार होता रहा तो प्रदर्शन और भी उग्र होगा।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला यूजीसी पे-स्केल जारी न करने के विरोध में अब प्रदेश विश्वविद्यालय का शिक्षक कल्याण संघ भी आंदोलन पर उतर आया है। प्रदेश विश्वविद्यालय शिक्षक कल्याण संघ के महासचिव डा. जोगिंद्र सकलानी ने प्रदेश सरकार से यूजीसी के सातवें वेतन आयोग को जल्द जारी करने की मांग की है। उनका कहना है कि सात वर्षों के बाद भी इसे लागू न करना शिक्षक समुदाय के साथ धोखा है। इस बारे में प्रदेश विश्वविद्यालय शिक्षक कल्याण संघ ने कई बार मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के समक्ष अपनी बात रखी हैं, परंतु हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा। सरकार ने अपने सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को नया वेतनमान लागू कर दिया है केवल विश्वविद्यालय व कालेज प्राध्यापक वर्ग को इस से वंचित रखा गया है, जो इस समुदाय के सरासर अन्याय है। संघ की मांग है कि यदि जल्द से जल्द नए वेतनमान को लागू नहीं किया जाता है तो आने वाले समय में शिक्षक आंदोलन करने पर विवश होंगे और इसकी जिम्मेदारी पूर्ण रूप से सरकार की होगी। डा. जोगिंद्र सकलानी ने कहा है कि जल्दी ही प्रदेश विश्वविद्यालय शिक्षक कल्याण संघ की आम सभा बुलाकर आगे की रणनीति तय की जाएगी।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) ड्राइवर यूनियन ने निगम प्रबंधन के खिलाफ फिर मोर्चा खोल दिया है। यूनियन ने चेतावनी दी है कि यदि 29 मई तक सरकार व निगम प्रबंधन ने उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वे 30 मई को बसें नहीं चलाएंगे। यानी हिमाचल प्रदेश में एक दिन के लिए 4000 सरकारी बसों के पहिए थम जाएंगे। शिमला में प्रदर्शन करते हुए एचआरटीसी ड्राइवर यूनियन ने प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए 'काम छोड़ों' आंदोलन का ऐलान किया है। ड्राइवर यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष मान सिंह ठाकुर ने बताया कि 29 मई की रात 12 बजे से 30 मई की रात 12 बजे तक एचआरटीसी का कोई भी चालक बस नहीं चलाएगा। उन्होंने बताया कि यूनियन ने 25 अप्रैल को ही एचआरटीसी प्रबंधन को मांगे पूरी करने के लिए 12 मई तक का अल्टीमेटम दे दिया था, लेकिन एचआरटीसी प्रबंधन ने मांगे मानना तो दूर अब तक वार्ता के लिए भी नहीं बुलाया है। दरससल एचआरटीसी कर्मचारी राज्य सरकार के कर्मचारियों की तर्ज पर छठे वेतनमान के लाभ की मांग कर रहे हैं। राज्य सरकार अपने लगभग सभी कर्मचारियों को छठे वेतनमान के लाभ दे चुकी है लेकिन एचआरटीसी कर्मचारियों को अब तक इसके लाभ नहीं दिए गए। इसी तरह एचआरटीसी कर्मचारी 36 महीनों के लंबित पड़े ओवर टाइम के भुगतान, डीए का 2006 से लंबित पड़े एरियर के भुगतान और वरिष्ठ चालकों के पद सृजित करने की मांग कर रहे हैं। वरिष्ठ चालकों के पद सृजन की मांग को एचआरटीसी की निदेशक मंडल बैठक में भी पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। जाहिर है कि एचआरटीसी चालकों की हड़ताल से प्रदेशभर में आम आदमी को आवाजाही में कठिनाईयां झेलनी पड़ेगी क्योंकि प्रदेश में आवाजाही का एकमात्र साधन सड़कें ही है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इससे लोगों को कठिनाईया झेलनी पड़ेगी।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला प्रदेश के स्कूलों में प्री-प्राइमरी में भर्ती को लेकर चल रही देरी पर प्रशिक्षत अध्यापिका संघ ने नाराजगी जताई है। लम्बे समय से नियुक्ति का इंतजार कर रही एन.टी.टी. अध्यापिकाओं ने एक बार फिर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आरोप लग रहे है कि नर्सरी टीचर की भर्तियां न करने के लिए सरकार अलग-अलग बहाने ढूंढ रही है। प्री प्राइमरी स्कूलों में भर्ती न होने से ये अध्यापिकाएं काफी परेशान है। हिमाचल में राज्य सरकार ने 4000 से ज्यादा स्कूलों में प्री नर्सरी की कक्षाएं शुरू कर दी हैं। इनमें 700 स्कूल और जोड़े जा रहे हैं। अब तक 55,000 बच्चों का एनरोलमेंट यहां हो चुका है, लेकिन इन्हें संभालने और पढ़ाने के लिए टीचर की भर्ती अब तक नहीं हो पाई है। वर्तमान में सरकार ने जेबीटी को ही ये काम दे रखा है। प्री नर्सरी कक्षाएं अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा हैं, इसके बावजूद अब तक शिक्षकों की भर्ती के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए है। इसके लिए समग्र शिक्षा अभियान ने बजट भी दे रखा है, लेकिन भर्ती नीति फाइनल नहीं हो पा रही। एन.टी.टी. अध्यापिकाएं इस देरी से काफी परेशान है और सरकार से खफा भी। एन.टी.टी. प्रशिक्षित अध्यापिका महासंघ का कहना है कि पूरे भारत में प्री-प्राइमरी कक्षाएं सरकारी स्कूलों में चलाई जा रही हैं और हिमाचल प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में भी प्री-प्राइमरी कक्षाएं शुरू की गई हैं, पर हिमाचल में अध्यापकों की नियुक्ति नहीं हो पा रही। उनका कहना है कि एनरोलमेंट नंबर की संख्या भी बढ़ रही है, लेकिन इन विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए अध्यापकों की नियुक्ति करने में सरकार रूचि नहीं दिखा रही। महासंघ का कहना है की पूरे प्रदेश में 15000 से ज्यादा नर्सरी ट्रेंड टीचर पिछले 23 वर्षों से रोजगार की राह ताक रहे हैं, परंतु सरकार इनकी कोई सुध नहीं ले रही। एनटीटी प्रशिक्षित महासंघ की महासचिव कल्पना शर्मा का कहना है कि इन महिलाओं ने नर्सरी अध्यापिका का प्रशिक्षण यह सोचकर प्राप्त किया था कि भविष्य में उन्हें रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। इनमें से अधिकतर महिला गरीब परिवार से संबंधित है और कुछ महिलाएं विधवा है। सभी महिलाओं ने मिलकर बार-बार हिमाचल सरकार से रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए आग्रह किया हैं, लेकिन प्रदेश सरकार सुध लेने को तैयार नहीं। यहां 1997 के बाद इन नर्सरी ट्रेन्ड टीचर्स की कोई भर्ती आज तक नहीं की गई है। ये है एन.टी.टी. की मुख्य मांगे : - प्री प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं को नियुक्त किया जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति आरएंडपी रूल्स बनाकर की जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति नियमित आधार पर की जाए। - आयु सीमा में छूट दी जाए। - योग्यता प्लस टू पास हो व नर्सरी का विशेष प्रमाण पत्र रखा जाए। - वार्ड ऑफ़ एक्स सर्विस मैन का कोटा दिया जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति बैच वाइज की जाए। - उच्च शिक्षा प्राप्त प्रार्थी को शिक्षा योग्यता के अनुसार प्राथमिकता दी जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिका की नियुक्ति बिना किसी शर्त के की जाए।
कांग्रेस, कहीं नहीं जाऊंगा छोड़ कर - कहा पार्टी में पुराने लोगों को तवज्जो दिए जाने की जरूरत पंकज सिंगटा। धर्मशाला जिला कांगड़ा के ज्वाली विधानसभा क्षेत्र से पूर्व में विधायक रहे और पूर्व में सीपीएस रहे नीरज भारती का विवादों से पुराना नाता रहा है। अपनी बेबाकी के चलते नीरज भारती अक्सर चर्चा में रहते है। नीरज भारती के बोल विपक्ष को तो चुभते ही है, लेकिन कई बार अपनी पार्टी को भी कठघरे में ला खड़ा करते है। पर नीरज भारती ताल ठोक कर कहते है कि कांग्रेस उनके खून में है। इस पर भी कोई सवाल नहीं है कि नीरज भारती के समर्थकों की खासी तादाद है। आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका, पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा के साथ उनकी तल्खियां और कांग्रेस की वर्तमान स्थिति जैसे कई विषयों पर फर्स्ट वर्डिक्ट ने नीरज भारती से खास चर्चा की। पेश है इस चर्चा के मुख्य अंश .... सवाल : हो सकता है आप इस सवाल से ऊब गए हो परन्तु हम सर्व प्रथम ये ही जानना चाहते है कि आपके सुधीर शर्मा के साथ क्या मतभेद है ? जवाब : इस सवाल से मैं तो नहीं ऊबा हूँ लेकिन हो सकता है जो लोग मुझे सुनते है, वो इस बात से ऊब गए हो, लेकिन आपने यह सवाल किया है तो मैं जरूर जवाब दूंगा। ऐसी कोई गंभीर घटना नहीं थी, लेकिन छोटा मोटा मन मुटाव है और वह आगे भी रहेगा, क्योंकि मुझसे धोखेबाज़ी बर्दाश्त नहीं होती है। मैं यारी दोस्ती में जान देने और लेने के लिए भी तैयार हूँ। ऐसी ही धोखेबाज़ी धर्मशाला के पूर्व विधायक सुधीर शर्मा ने भी की थी। मैं फेसबुक पर बहुत सारी ऐसी चीजें लिखता रहता हूँ जो मुझे पसंद नहीं आती क्योंकि फेसबुक खुद ही पूछता है कि " व्हाट्स ऑन योर माइंड"। तो मैं लिख देता हूँ। उस समय जब धर्मशाला में यह घटना हुई थी उसका कारण यह था कि मैंने सुधीर के लिए कुछ लिखा था, लेकिन उनके जो समर्थक थे उन्हें वह बात पसंद नहीं आई। इस वजह से उनके साथ थोड़ा मन मुटाव हो गया था। उन लोगों से मेरी कोई निजी दुश्मनी नहीं है, सुधीर शर्मा से है और वह आगे भी जारी रहेगी। सवाल : आपने कहा कि सुधीर शर्मा ने धोखेबाज़ी की है, धर्मशाला में जो भी घटना हुई वह सबके सामने है। उस घटना से आपके निजी मतभेद सबके सामने आए। कांग्रेस में एक डिसीप्लेनेरी कमेटी बनाई गयी है, क्या इस घटना के बारे में वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई? जवाब : इस घटना में पार्टी के खिलाफ कोई भी बात नहीं हुई है। यह मेरा और सुधीर का निजी मामला है, हालाँकि वह कुछ नहीं बोलता क्योंकि उसे मंद मंद मुस्कुराने की आदत है। वह दूसरों के कन्धों पर बन्दुक रख कर चलाने वाला इंसान है, लेकिन मैं खुद सामने खड़ा होता हूँ। मेरे साथ कोई गलत करेगा तो मैं उससे खुद निपटना जानता हूँ। पार्टी में डिसीप्लेनेरी कमेटी है लेकिन वह तभी बोलती है, यदि हम पार्टी के खिलाफ कुछ बोलेंगे या पार्टी के खिलाफ कुछ गलत करें। सुधीर के साथ मेरी जो निजी रंजिश है वह तो रहेगी ही, फिर चाहे पार्टी मुझे स्वीकार करे या न करे। सवाल : आगामी चुनावों की बात करे तो यह बातें निकल कर आ रही है कि आपके पिता चौधरी चंद्र कुमार ज्वाली से चुनाव लड़ने वाले है, आप नहीं। यदि आपके पिता चुनाव लड़ते है तो आपने अपने लिए किस तरह की भूमिका तय की है? जवाब : ज्वाली, चौधरी चंद्र कुमार की कर्म भूमि रही है। पिछले दो चुनावों से ही हमें ज्वाली नाम सुनने को मिल रहा है, उससे पहले इस विधानसभा क्षेत्र का नाम गुलेर हुआ करता था। चौधरी चंद्र कुमार ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत इसी क्षेत्र से की है। हालांकि मैंने वहां से 3 चुनाव लड़े है। जब चौधरी चंद्र कुमार जी ने शांता कुमार को हराकर लोकसभा चुनाव जीता, उस समय 2004 में उपचुनाव हुआ। मैंने वह चुनाव लड़ा था लेकिन उस समय मैं जीत नहीं पाया था। इसके बाद 2007 में पार्टी ने मुझ पर विश्वास जताया और मुझे फिर से टिकट दिया और मैं वहां से चुनाव जीत गया। 2012 में एक बार फिर मुझे चुनाव लड़ने का मौका मिला और स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की सरकार बनी और मुझे मुख्य संसदीय सचिव के रूप में कार्य करने का मौका मिला और मुझे शिक्षा विभाग में जिम्मेवारी सौंपी गयी थी। मैंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए कई कार्य किये थे। अपने क्षेत्र के स्कूलों के विकास के लिए मैंने कई कार्य किये थे। जहाँ तक बात है 2017 के विधानसभा चुनावों की, तो मेरी ख्वाईश थी की मेरे पिता यहाँ से चुनाव लड़े और जीते और उसके बाद रिटायरमेंट ले ले, लेकिन 2017 का चुनाव हम नहीं जीत पाए। ज्वाली मेरे पिता की कर्मभूमि है और मैं चाहता हूँ कि वह यहाँ से विधायक बने और उसके बाद वह रिटायरमेंट ले। सवाल : हाल ही में कांग्रेस में परिवर्तन हुआ है। नए अध्यक्ष नियुक्त किए गए है और चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए है। ऐसे में यदि इस बार कांग्रेस की सरकार बन कर आती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा। इस बारे में आप अपनी निजी राय क्या रखते है ? जवाब : मुख्यमंत्री बनने के लिए सबसे पहले तो अपनी अपनी सीटें जितनी पड़ेगी और सरकार बनानी पड़ेगी। अगर आप अपनी सीटें जीत भी जाते हैं और दूसरों को हराने की कोशिश करते हैं और सरकार नहीं बना पाते हैं तो मुख्यमंत्री बनने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के जाने के बाद कांग्रेस पार्टी में एक बड़ा रिक्त स्थान आ गया है और उनके जैसा नेता हिमाचल को मिलना बहुत ही मुश्किल है। सभी लोग कोशिश कर रहे है कि वह मुख्यमंत्री बने और सरकार बनाएं, लेकिन सबसे पहली बात यह है कि यदि जीतेंगे तभी सरकार बना पाएंगे। सबसे पहले अपनी सीटें जितनी होगी और उसके साथ साथ दूसरों की सीटें जितवानी होगी, तभी सरकार बनाएंगे। फिलहाल नाम तो मैं नहीं ले सकता क्योंकि जितने भी लोग इस दौड़ में है, सभी माननीय सम्मानीय है और सभी लोग योग्य भी है, लेकिन इसके बारे में आने वाला वक्त ही फैसला करेगा। सवाल : कांग्रेस को एक छोटे से राज्य में 4 कार्यकारी अध्यक्ष बनाने पड़े है। कांगड़ा जिला से भी पवन काजल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। आपको क्या लगता है कि यह फार्मूला कितना सही साबित हो सकता है ? जवाब : ऐसा फार्मूला तब बनाया जाता है जब कोई भाग रहा हो और उस पर बेड़ियाँ डालनी हो। ऐसी किसी पोस्ट से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि आखिर में फैसले तो अध्यक्ष ही करता है। आज कल तो वैसे भी पार्टियों को छोड़ने का रिवाज़ सा ही चल पड़ा है। इतने लोग कपड़े नहीं बदलते है जितनी लोग आज कल पार्टियां बदल रहे है। मैं बस यही कहना चाहूंगा कि जिन्हें भी पार्टी द्वारा कार्यकारी अध्यक्ष या अन्य जिम्मेवारियां दी गयी है, वह इसे अच्छे से निभाएं और अच्छा कार्य करें। मैं बस आलाकमान से एक आग्रह करना चाहूंगा कि पुराने लोगो को नज़रअंदाज़ न किया जाएं और उनके साथ विश्वासघात न किया जाएं। पुराने लोगों ने अपनी पूरी जवानी, अपनी पूरी उम्र पार्टी को बनाने में लगाई है और पार्टी के साथ स्तम्भ की तरह खड़े रहे है। आप पंजाब का ही हाल देख लीजिए, सुनील जाखड़ बीते दिनों पार्टी छोड़ कर चले गए और अब वह भाजपा में शामिल हो गए है। इससे पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह पार्टी छोड़ गए है और इनके जैसे कई नेता पार्टी को छोड़ कर जा चुके है। मैं बस चाहता हूँ कि पुराने लोगों को नज़रअंदाज़ न किया जाए और उन्हें तवज्जो दी जाए। पुराने लोगों ने ही पार्टी के लिए कार्य किया है और पार्टी के लिए हमेशा आगे खड़े रहे है। सवाल : क्या आप मानते है कि चूक वहां हो रही है जहाँ पुराने लोगों को मौका नहीं दिया जा रहा है ? जवाब : बिल्कुल मैं यह बात मानता हूं क्योंकि पुराने लोग पार्टी के स्तंभ है। पुराने लोग पार्टी को इतना आगे लेकर आए है। हालांकि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उन लोगों को भी पार्टी की वजह से ही सम्मान मिला है, लेकिन पार्टी भी उन्हीं लोगों की वजह से मजबूत हुई है। मैं कुछ दिन पहले सुन रहा था, राहुल गांधी बोल रहे थे कि हम अपनी विचारधारा की लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन विचारधारा की लड़ाई तो आप तब लड़ेंगे जब आपके पास अपनी विचारधारा रहेगी। कांग्रेस पार्टी की विचारधारा भाजपा, जनसंघ और आरएसएस से बिल्कुल अलग है। वह लोग कट्टरपंथी है लेकिन कांग्रेस सब को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी है। लेकिन भाजपा, आरएसएस और जनसंघ के कट्टरपंथी लोग पार्टी में आएंगे तो विचारधारा को कैसे बचाएंगे। पार्टी में पुराने लोगों को पूछे बिना पार्टी के अंदर फैसले लिए जाएंगे, और ऐसे लोगों की बातों पर फैसले लिए जाएंगे जो आज यहाँ है और कल वहां है तो विचारधारा कैसे बचेगी। सवाल : आरोप लगाने के बावजूद भी आप कांग्रेस पार्टी में टिके है, ऐसा क्या लगाव है पार्टी के साथ ? जवाब : मेरे तो खून में कांग्रेस पार्टी है। मेरे पिताजी कांग्रेस विचारधारा, गांधीवादी विचारधारा के आदमी है। उस समय इस विधानसभा क्षेत्र का नाम गुलेर हुआ करता था और उस वक्त दूर-दूर के इलाकों के विधायक बनते थे। भाजपा के हो या कांग्रेस के हो ज्वाली से कोई भी विधायक नहीं बनता था। मेरे पिता सरकारी नौकरी में थे और हमारे इलाके की नज़रअंदाजगी को लेकर उन्होंने सरकारी नौकरी का त्याग कर दिया। वह कांग्रेस विचारधारा के थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने 1977 में पहला चुनाव बतौर आजाद उम्मीदवार लड़ा और वह बहुत ही कम अंतर से चुनाव हार गए। इसके बाद जनता पार्टी के लोगों ने मेरे पिता को पार्टी में शामिल होने और टिकट देने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने जनता दल का टिकट लेने से इंकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि मैं एक बार कांग्रेस पार्टी के टिकट के लिए फिर से कोशिश करूंगा यदि मुझे टिकट मिलती है तो मैं चुनाव लडूंगा, और यदि नहीं मिलती है तो मैं चुनाव नहीं लडूंगा। नौकरी से इस्तीफा देने के बाद वे शिमला के मशहूर कॉलेज सेंड बीट्स में बतौर जियोग्राफी के प्रोफेसर के रूप में नौकरी करने लगे। इसके बाद 1982 में उन्हें कांग्रेस का टिकट मिला और उन्होंने चुनाव लड़ा। तब से लेकर मेरे पिता कांग्रेस में है। मेरे खून में कांग्रेस है, हमने कांग्रेस पार्टी ही देखी है। यदि कांग्रेस पार्टी नज़रअंदाज़ करेगी तो, मैं भाजपा में या कहीं और नहीं जा सकता। मैं अपना विरोध दर्ज करता रहूंगा लेकिन कांग्रेस छोड़ किसी और पार्टी में नहीं जाऊंगा। अगर ज्यादा नज़रअंदाज किया जाता है तो पहला चुनाव भी पिता जी ने बतौर आज़ाद उमीदवार लड़ा था और अगला भी ऐसे ही लड़ लेंगे, लेकिन भाजपा या आम आदमी पार्टी में जाने का कोई मतलब नहीं बनता है। आम आदमी पार्टी ने तो वैसे भी ड्रामा बना के रखा है। उनसे दिल्ली अभी संभाली नहीं जा रही है |
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला प्रदेश के विज्ञान अध्यापक टीजीटी से मुख्याध्यापक पदोन्नति के नियमों में बदलाव के खिलाफ है। प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ ने सरकार से मांग की है कि टीजीटी से मुख्याध्यापक पदोन्नति के नियमों में कोई छेड़छाड़ न करते हुए माननीय न्यायालय के निर्णय को यथावत रखा जाए। प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ का मानना है कि इससे टीजीटी से मुख्याध्यापक बनने के लिए लगभग 22 वर्षों से पदोन्नति का इंतजार कर रहे अध्यापकों के साथ अन्याय नहीं होगा। संघ का मानना है कि यदि नियमों में कोई बदलाव किया जाता है तो मुख्याध्यापक के पद पर पदोन्नति का इंतजार कर रहे प्रदेश भर के टीजीटी शिक्षक, टीजीटी पद से ही सेवानिवृत्त होने को मजबूर हो जाएंगे। प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र ठाकुर, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुधीर चंदेल, प्रदेश महामंत्री अवनीश कुमार, कोषाध्यक्ष लवलीन, मीडिया प्रभारी सुनील का कहना है कि इस मांग को पहले भी कई बार मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव प्रदेश के समक्ष उठाया जा चुका है। मुख्यमंत्री द्वारा अपने बजट भाषण में 26 अप्रैल 2010 के बाद टीजीटी से पदोन्नत लेक्चरर की ऑप्शन एकमुश्त बहाल कर मुख्याध्यापक बनाने की घोषणा की है, इसके लागू होने से टीजीटी काडर के एक बहुत बड़े वर्ग के साथ अन्याय न हो, इसलिए जो पदोन्नति की स्थिति लगभग 10 वर्षों से चली आ रही है, उसी को यथावत रखा जाए।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला "मैं प्रखर राष्ट्रवादी हूँ। खालिस्तानियों के साथ सम्बन्ध रखने वालों के साथ मेरा दूर- दूर तक कोई लेना देना नहीं हो सकता। मैं देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना आदर्श मानता हूं। एकात्मवाद व राष्ट्रवाद मेरी आत्मा में बसा है। उप चुनाव में हमारा झंडा भगवा ही था और भविष्य में भी भगवा ही लहराएगा, यही हमारा संकल्प है ", ये शब्द है जुब्बल कोटखाई से निर्दलीय चुनाव लड़ चुके चेतन बरागटा के। चेतन बरागटा ने खुद ये स्पष्ट कर दिया की वो किसी भी हालात में आम आदमी पार्टी में शामिल नहीं होंगे। चेतन ये सन्देश हल्के अंदाज में भी दे सकते थे लेकिन उन्होंने कठोर शब्दों का चयन किया, जाहिर है उनका इरादा अटकलों पर विराम लगाना नहीं अपितु पूर्ण विराम लगाने का है। दरअसल अब भी जुब्बल कोटखाई भाजपा का एक बड़ा धड़ा चेतन के साथ खड़ा है और चेतन अपने इन निष्ठावानों को हर हाल में साध कर रखना चाहते है। उधर, भाजपा ने अब तक चेतन की घर वापसी में प्रत्यक्ष तौर पर कोई रूचि नहीं दिखाई है। हालांकि पार्टी के भीतर अधिकांश लोगों का उन्हें लेकर सकारात्मक रवैया है। ऐसे में उनकी घर वापसी तो लगभग तय है , पर सवाल ये है कि आखिर कब ? जुब्बल कोटखाई में भाजपा की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। उपचुनाव में पार्टी जमानत तक नहीं बचा सकी थी और तब से अब तक भी जमीनी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं दिखता। फिर भाजपा किस बात का इन्तजार कर रही है, यह समझना फिलवक्त कठिन है।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला आंगनबाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन ने केंद्र सरकार पर आईसीडीएस विरोधी कार्य करने का आरोप लगाया है। यूनियन अध्यक्ष नीलम जसवाल व महासचिव वीना शर्मा ने कहा कि यूनियन केंद्र सरकार की आंगनबाड़ी व जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन तेज करेगी। यूनियन अपनी मांगों को लेकर 10 से 17 जून के मध्य हिमाचल प्रदेश के सातों लोकसभा व राज्यसभा सदस्यों को मांग-पत्र सौंपेगी। साथ ही अपनी मांगों को लेकर आंगनबाड़ी कर्मी 11 जुलाई को प्रदेशभर में मांग दिवस मनाएंगे। यूनियन अपनी मांगों को लेकर 25 से 29 जुलाई तक दिल्ली में महापड़ाव भी करेगी। उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार आईसीडीएस विरोधी कार्य कर रही है व उसका निजीकरण कर रही है। इसे वेदांता कम्पनी के हवाले किया जा रहा है। नंद घर भी निजीकरण की प्रक्रिया का ही हिस्सा है। उन्होंने निजीकरण पर तुरन्त रोक लगाने की मांग की। उन्होंने भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार आंगनबाड़ी कर्मियों को नियमित करने की मांग की। साथ ही हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन देने व माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अनुसार ग्रेच्युटी देने की मांग की। उन्होंने कर्मियों को प्री प्राइमरी में सौ प्रतिशत नियुक्ति देने,सेवानिवृति आयु 65 वर्ष करने,वर्ष 2013 की एनएचआरएम की बकाया राशि का भुगतान करने व मिनी आंगनबाड़ी कर्मियों को बराबर वेतन देने की भी मांग की।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पीईटी की बैचवाइज भर्ती पिछले पांच सालों से नहीं हो पाई है जिससे बेरोजगार शारीरिक शिक्षक खासे नाराज है। अब इन शिक्षकों ने आमरण अनशन की चेतावनी दी है। शिक्षक संघ ने सरकार को चेतावनी दी है कि 30 मई से पहले यदि भर्ती प्रक्रिया को शुरू नहीं की गई तो विधानसभा के बाहर हजारों बेरोजगार आमरण अनशन पर बैठेंगे। इसके लिए राज्य सरकार पूर्ण रूप से जिम्मेदार होगी। शारीरिक शिक्षक संघ ने प्रदेश भाजपा सरकार से शारीरिक शिक्षकों के 870 पदों को 30 मई तक भरने की प्रक्रिया पूर्ण करने का आग्रह किया है, ताकि स्कूली बच्चे शारीरिक शिक्षा विषय पढ़ने से वंचित न रहें और साथ ही इन शिक्षकों को भी रोज़गार मिल पाए। शारीरिक अध्यापक संघ के प्रधान सतीश शर्मा का कहना है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर सहित मंत्रिमंडल की ओर से पहली बार सीएंडवी के पदों को भरने की पहल की गई। इसमें कला अध्यापकों के 820 पदों को भर कर बेरोजगारों को सरकार ने न्याय प्रदान किया है। उन्होंने कहा की कला अध्यापकों के पदों को भरने के बाद अब शारीरिक शिक्षकों के स्कूलों में खाली पड़े पदों को शीघ्र भरा जाए। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर 870 शारीरिक शिक्षकों के पदों को भरने के निर्देश शिक्षा निदेशक प्रारंभिक व प्रदेश भर के सभी प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशकों को जारी करें। शारीरिक शिक्षक कई वर्षों से सरकार से स्कूलों में खाली पड़े पदों को भरने की गुहार लगा रहे हैं और अब कई बेरोजगार शारीरिक शिक्षक 47 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं। शर्मा ने कहा कि अधिकतर बेरोजगार शारीरिक शिक्षक अब हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से परीक्षा में बैठने के लिए अधिक उम्र के कारण पात्र नहीं रहे हैं। ज्यादा उम्र के इन बेरोजगारों को भाजपा सरकार से एक ही आशा बची है कि उन्हें बैचवाइज भर्ती के आधार पर शीघ्र स्कूलों में नियुक्ति प्रदान की जाए।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला गृहरक्षकों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि उन्हें भी संशोधित वेतनमान का लाभ दिया जाए। अगर सरकार छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करती है तो उससे हर गृहरक्षक के वेतन में पांच हजार रुपये की वृद्धि होगी। इस संबंध में गृह रक्षक कल्याण संघ ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को मांग पत्र सौंपा है। संगठन के पदाधिकारियों ने महासचिव जगदीश ठाकुर की अगुवाई में मुख्यमंत्री से शिमला स्थित उनके सरकारी आवास ओकओवर में मुलाकात की। उन्होंने उन्हें मांग पत्र भी सौंपा। संघ के महासचिव ने कहा कि गृह रक्षक हाईकोर्ट से भी केस जीत चुके हैं। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि उन्हें छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ प्रदान किया जाए। अभी प्रदेश में गृहरक्षकों की संख्या करीब छह हजार है, लेकिन इन्हें संशोधित वेतनमान का लाभ नहीं मिला है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने आश्वासन दिया है कि इन्हें नए वेतनमान का लाभ प्रदान किया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार कर्मचारी हितेषी हैं और हर वर्ग के हितों का ख्याल रखा जा रहा है। गृह रक्षकों को उम्मीद है कि सरकार उनका भी ख्याल रखेगी।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला पूरी उम्र सरकार के लिए जिन कर्मचारियों ने काम किया, आज बुढ़ापे में उन्हीं का साथ सरकार ने छोड़ दिया। ये कहना है हर महीने अपनी पेंशन का इंतज़ार करने को मजबूर हुए एचआरटीसी के पेंशनरों का। लम्बे समय तक सरकारी दफ्तरों और विधायकों - मंत्रियों के कार्यालयों के चक्कर काटने के बाद अब ये पेंशनर अपनी मांगों को मनवाने के लिए इस उम्र में धरना देने को मजबूर है। इन पेंशनरों ने अब सरकार व निगम प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हाल ही में प्रदेश भर से आए पेंशनरों ने वित्तीय लाभ जारी न करने को लेकर एचआरटीसी मुख्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन और जमकर नारेबाजी की। इस दौरान पेशनरों ने धरना प्रदर्शन कर निगम प्रबंधन व सरकार को चेताया कि यदि मांगे पूरी नहीं होती तो आंदोलन तेज होगा, वहीं यह भी कहा कि यदि मांगे पूरी नहीं की तो आगामी आठ जून को प्रदेश भर से हजारों पैंशनर्ज व उनके परिवार सदस्य सचिवालय का घेराव करेंगे। एचआरटीसी संयुक्त समन्वय समिति ने भी पेंशनरों के आंदोलन को समर्थन का ऐलान किया है। ऐसे में निगम के 13,000 सेवारत और 7,000 सेवानिवृत्त सहित 20,000 कर्मियों के मांगों को लेकर एक मंच पर आ गए है। दरअसल एचआरटीसी के पेंशनरों को समय पर उनकी पेंशन नहीं मिल पा रही है जिससे पेंशनर काफी परेशान चल रहे है। पेंशनर्स कल्याण संगठन के अध्यक्ष केसी चमन ने कहा कि एचआरटीसी पेंशनर्स के साथ निगम प्रबंधन व सरकार द्वारा वित्तीय लाभ नहीं दिए जा रहे हैं। निगम के पेंशनरों ने कई सालों तक प्रदेश के लोगों की सेवा की है और कठिन परिस्थितियों में भी अपनी सेवाएं जारी रखी है। लेकिन जब आज सरकार से अपने हक की कमाई का पैसा मांगा जा रहा है, तो सरकार आश्वासन पर आश्वासन दे रही है। उन्होंने कहा कि वित्तीय लाभ जारी न करने पर दो अक्टूबर, 2021 को अतिरिक्त मुख्य सचिव परिवहन के साथ बैठक हुइ थी। बैठक में समझौता हुआ था कि जल्द से जल्द पेंशनरों को वित्तीय लाभ दिए जाएंगे, पर सरकार अपने वादों को पूरा नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि पेंशनरों के सब्र का बाँध अब टूट गया है। विधानसभा चुनाव में भुगतना होगा खामियाजा : सत्यप्रकाश संगठन के प्रांतीय प्रधान सत्य प्रकाश शर्मा ने कहा कि पेंशनरों की हालत दिन-प्रतिदिन खराब हो रही है। जहां कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा है, वहीं पेंशनरों को समय पर पेंशन नहीं मिल रही है, जिससे प्रदेश के 7500 पेंशनरों को खराब आर्थिक स्थिति से जूझना पड़ रहा है। उन्होंने कहा की निगम प्रशासन और सरकार उनकी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है। उन्होंने सरकार को चेताया कि पेंशनरों की अनदेखी विधानसभा चुनाव में सरकार पर भारी पड़ेगी। सरकार की उपेक्षा के कारण पेंशनरों का शोषण हो रहा है और वरिष्ठ नागरिकों को आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। एचआरटीसी पर पेंशनरों की 350 करोड़ों की वित्तीय देनदारियां लंबित हैं। पेंशनरों की मुख्य मांगें : - महीने के पहले हफ्ते में जारी हो पेंशन - मेडिकल बिलों का समय पर भुगतान - 5, 10 और 15 फीसदी पेंशन वृद्धि का लाभ - 2015 से ग्रेच्युटी सहित अन्य भत्तों का भुगतान
कर्मचारी लहर : होमगार्ड जवानों के लिए नहीं बनाई गई अब तक कोई ठोस नीति करीब 6 दशक के लगातार संघर्ष के बावजूद आज तक प्रदेश के होमगार्ड जवानों को उनका हक नहीं मिल पाया है। पुलिस की तर्ज पर गृहरक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी निभाते हैं, वर्दी भी खाकी पहनते है, ट्रेनिंग भी उतनी ही कठोर होती है, मगर सरकारी कर्मचारी होने के नाते इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। अब होमगार्ड जवानों ने एक बार फिर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। होमगार्ड जवानों का कहना है कि सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। गृह रक्षकों ने अपने हक की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। इसका लाभ यह हुआ कि उनका वेतन बेहतर हो गया, मगर ये अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं। होमगार्ड एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि सरकार आज तक इनके लिए नियमितीकरण की नीति तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हर वर्ग को सहायता पहुंचाने की कोशिश में है। चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कर्मचारी फैक्टर को साधने के पूरे प्रयास किए जा रहे है। ऋण लेकर कर्मचारियों को खुश किया जा रहा है, मगर होमगार्ड जवानों का कहना है कि एक उनका वर्ग ही ऐसा है जिसकी अब तक अनदेखी की गई है। एसोसिएशन ने एक बार फिर सरकार से होमगार्ड के लिए स्थायी नीति बनाने की गुहार लगाई है। एसोसिएशन ने हाल ही में राज्य स्तरीय बैठक का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता एसोसिएशन अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा ने की और गृहरक्षकों को उनका हक़ दिलाने के लिए रणनीति बनाई। होमगार्ड एसोसिएशन का कहना है कि कोरोना संकट में सेवाएं देने के लिए विभिन्न विभागों के कर्मचारियों की सरकार द्वारा खूब प्रशंसा की गई, मगर होमगार्ड जवानों का नाम तक नहीं लिया गया। महिला सशक्तिकरण के नारे तो बहुत दिए जा रहे हैं परंतु अस्पतालों में तैनात की गई महिला होमगार्ड जवानों की सेवाएं अब अस्पतालों में खत्म कर दी गई हैं। होमगार्ड जवानों की ठेका प्रथा के अनुरूप सेवाएं लेते हुए कभी होमगार्ड जवानों को पुलिस, कभी वन विभाग तो कभी अन्य विभागों के साथ अटैच किए जाने के बाद संबंधित विभागों का काम पूरा हो जाने के बाद घर पर बिठा दिया जाता है। स्थायी रोजगार न होने व ठोस नीति न होने के कारण होमगार्ड जवानों सहित उनके परिवारों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। सेवानिवृत्ति के बाद खाली हाथ घरों को लौटने पर होमगार्ड जवानों को दिहाड़ी मजदूरी करके परिवारों का भरण पोषण करना पड़ता है। लिहाजा सरकार प्रदेश में सेवारत होमगार्ड जवानों से न्याय करते हुए उन्हें जल्द 12 माह का स्थायी रोजगार दे। वहीं होमगार्ड जवानों के लिए ठोस नीति बनाए। एकाध को छोड़कर किसी नेता नहीं उठाई आवाज : प्रदेश में एक-दो विधायकों को छोड़कर किसी भी विधायक व मंत्री ने होमगार्ड जवानों की बात आज तक नही सुनी है। 58 वर्षों से होमगार्ड जवान सरकार से होमगार्ड जवानों के लिए अन्य विभागों के कर्मचारियों की तरह ठोस नीति बनाने व 12 माह का स्थायी रोजगार देने की मांग कर रहे हैं, मगर सरकार उनकी मांग को नजरअंदाज कर रही है। होमगार्ड जवान सभी विधायकों से लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक को मांगपत्र सौंप चुके है, मगर आज तक किसी ने उनकी नहीं सुनी। -जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा, पदेश अध्यक्ष, हिमाचल होमगार्ड एसोसिएशन
इस वर्ष हिमाचल में चुनाव होने है और चुनावी वादों के इस दौर में कांग्रेस आए दिन ये ऐलान कर रही है कि सत्ता वापसी होते ही पुरानी पेंशन बहाल की जाएगी। कांग्रेस कर्मचारियों के इस मुद्दे का पूर्णतः समर्थन करती नज़र आ रही है। उधर, वार -पलटवार के इस दौर में भाजपा का पक्ष ये है कि कांग्रेस के सबसे बड़े नेता यानी वीरभद्र सिंह ही प्रदेश में नई पेंशन योजना लागू करने वाले नेता थे और आज यही कांग्रेस अपने नेता के निर्णय पर सवाल उठा उसे बदलने की कोशिश कर रही है। चुनाव है तो राजनीति होती रहेगी, मगर इस वक्त पुरानी पेंशन की बहाली प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में अधिकतम राज्यों के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मसला है। कई बड़े संघर्ष और कई बड़े आंदोलन प्रदेश में इस मांग को लेकर कर्मचारी कर चुके है, मगर हल अब तक नहीं मिल पाया। हालांकि ये भी सत्य है कि जयराम सरकार इस मांग को पूरा करने से पूरी तरह पीछे नहीं हट रही। पुरानी पेंशन बहाली के लिए कमेटी बनाई गई है और बैठकों का दौर भी जारी है, मगर मुख्यमंत्री ये स्थिति पहले ही स्पष्ट कर चुके है कि कमेटी जो भी निर्णय लेगी उसे केंद्र भेजा जाएगा और अंत में हरी झंडी प्रधानमंत्री ही दिखाएंगे। पर क्या जयराम सरकार पुरानी पेंशन बहाल कर सकती है, ये असल सवाल है। दरअसल इस वक्त देश के 12 राज्यों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है, जबकि 4 राज्यों में भाजपा समर्थित सरकार है। यदि किसी एक भी राज्य में भाजपा पुरानी पेंशन बहाल करती है तो बाकि राज्यों के कर्मचारी भी चाहेंगे की उन्हें भी पुरानी पेंशन दी जाए और अंततः केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए भी पुरानी पेंशन बहाल करनी होगी। ऐसे में हकीकत ये है कि चाहकर भी जयराम सरकार के लिए ऐसा करना मुश्किल होगा। हिमाचल में करीब सवा लाख कर्मचारी इस समय एनपीएस के दायरे में हैं और ये खुद के लिए ओल्ड पेंशन मांग रहे हैं। ये सवा लाख कर्मचारी और इनके परिवार लगातार पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। चुनाव के लिहाज़ से ये संख्या काफी महत्वपूर्ण है और वैसे भी हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी फैक्टर का असर सभी जानते है। भाजपा सरकार भी इस बात से भली भांति अवगत है और इसीलिए चुनावी वर्ष में कर्मचारियों की कई लंबित मांगें पूरी भी हुई है, लेकिन पुरानी पेंशन का मसला जस का तस है। आर्थिक स्थिति भी बाधा : इस योजना को लागू करने के लिए एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए और हर माह 500 करोड़ की जरूरत होगी। सरकार पहले भी कई बार ये स्पष्ट कर चुकी है कि फिलवक्त [प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जाए, मगर संभावनाएं फिर भी तलाशी जा रही है। हिमाचल सरकार अपने बलबूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है। अब देखना यह होगा कि चुनावी वर्ष में जयराम सरकार ओल्ड पेंशन के मसले को किस तरह हल करती है। सरकार के पास एक विकल्प केंद्र से सहायता लेना भी है। कांग्रेस ने दो राज्यों में की बहाल : कांग्रेस की बात करें तो देश में सिर्फ दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस पुरानी पेंशन लागू कर चुकी है। ऐसे में हिमाचल में यदि सरकार बनती है तो संभवतः कांग्रेस यहाँ भी इसे लागू करे।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं दिख रहे। नई भर्ती न होने से बेरोजगार अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश सरकार से खासा नाराज़ है। संघ ने सरकार से कहा कि प्रदेश सरकार को 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर जल्दी से जल्दी नियमित शिक्षक भेजने चाहिए। प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान ने कहा कि दिल्ली, चंडीगढ़ के सरकारी स्कूलों तथा नवोदय विद्यालयों में पार्ट टाइम कांट्रैक्ट टीचरों को पक्का करने का कोई प्रावधान नहीं है। गौर हो कि 2555 एसएमसी शिक्षक भी पार्ट टाईम कांट्रैक्ट टीचर है, क्योंकि इन्हें प्रदेश सरकार हर साल सेवाविस्तार देती है। शिक्षा में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए पार्ट टाईम कांट्रैक्ट टीचरों को नियमित नहीं किया जाता है। भर्ती नियम संविधान की धारा 309 के अनुसार बनते हैं, जिनके अनुसार नियमित शिक्षकों की भर्तियां या तो कमीशन से हो सकती है या बैचवाइज प्रक्रिया के तहत हो सकती है। बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी, उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए। संघ ने कहा कि नियमों का पालन करने के लिए पंजाब सरकार ने आउटसोर्स भर्तीयों पर रोक लगा दी है। इसका बेरोजगार अध्यापक संघ ने जोरदार स्वागत किया है । संघ ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि एनटीटी शिक्षकों की भर्तियां आउटसोर्स से न करके भर्ती नियमों के अनुसार करे। संघ ने ये भी कहा कि यदि 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमानुसार जल्दी शिक्षक न भेजे गए तो रोष रैली की जाएंगी। उसके पश्चात यह रोष रैलियां हर जिला में निकाली जाएंगी।
हिमाचल प्रदेश में घोषणा के तीन महीने बाद भी छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं हो पाई है। अब सरकार ने एक बार फिर अवधि को बढ़ा कर पंजाब की तर्ज पर वेतनमान का विकल्प चुनने के लिए कर्मचारियों को 15 अप्रैल तक का वक्त दिया है। वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना की तरफ से डेट बढ़ाने का पत्र जारी हुआ है। ऐसे में कर्मचारियों को नए वेतनमान के लिए अभी और इंतजार करना होगा। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बीते साल ही छठे वेतनमान के लाभ देने का ऐलान कर दिया था। सरकार ने पहले कर्मचारियों को 2.25 व 2.59 के गुणांक के तहत वेतन वृद्धि का विकल्प चुनने का ऑप्शन दिया। इसका अधिकतर कर्मचारियों ने विरोध किया। कर्मचारियों का कहना था कि इन गुणांक को चुनने से कई कर्मचारियों से रिकवरी बन रही है, क्योंकि सरकार ने अपने कर्मचारियों को आईएआर की दो किश्त दे रखी है। मांग उठी तो सरकार ने कर्मचारियों को तीसरा विकल्प भी दे दिया। सरकारी कर्मचारियों के पास अब कुल तीन विकल्प पे-कमीशन को लेकर हैं, जिनमें 2.59 और 2.25 का गुणांक या फिर तीसरा विकल्प 15 फीसदी वेतन वृद्धि का है। अभी तक लगभग 75 फीसदी कर्मचारियों ने यह विकल्प चुन लिया है, लेकिन 25 फीसदी कर्मचारी अभी भी इंतजार कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में जनवरी 2016 से ही कर्मचारियों व पेंशनरों को छठे वेतन आयोग के लाभ देय है। फिर भी इसके लिए कर्मचारियों का इंतजार लंबा होता जा रहा है। दरससल कर्मचारियों के विरोध के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कर्मचारियों को 15 फीसदी वेतन बढ़ोतरी का विकल्प तो दिया लेकिन 15 फीसदी बढ़ोतरी के विकल्प में ऐरियर नहीं देने का प्रावधान किया गया। इससे भी कुछ कर्मचारी खुश नहीं है और पंजाब की तर्ज पर वेतनमान की मांग पर अड़े हुए हैं। इस वजह से बहुत से कर्मचारियों ने सरकार द्वारा बार-बार वेतन वृद्धि का विकल्प मांगने के बावजूद ऑप्शन नहीं दिया। इसके अतिरिक्त दो साल के राइडर में फंसे कर्मचारी राइडर खत्म होने का इंतज़ार कर रहे है। दो साल पहले रेगुलर हुए कर्मचारियों की पे-फिक्सेशन कम ग्रेड पे पर हो रही है। इसी वजह से यह राइडर पर फैसला होने का इंतजार जारी हैं। सभी विभागाध्यक्षों को दिए निर्देश : सरकार ने एक बार फिर से ऑप्शन देने का समय दिया है। जाहिर है कि अब सभी कर्मचारियों से विकल्प मिलने के बाद ही सरकार छठे वेतनमान के लाभ अपने कर्मचारियों एवं पेंशनर को देने को लेकर फैसला लेगी। वित्त विभाग ने सभी विभागाध्यक्षों को निर्देश दिए है कि हर एक कर्मचारी से वेतन वृद्धि को लेकर ऑप्शन मांग कर विभाग को सूचित किया जाए।
पंजाब में अब पूर्व विधायकों को सिर्फ एक टर्म की पेंशन मिलेगी। इसके साथ-साथ पूर्व विधायकों को मिलने वाले फैमिली भत्तों में भी कटौती की जाएगी। किसी भी पार्टी का उम्मीदवार चाहे कितनी भी बार का विधायक रहा हो उसे एक ही पेंशन मिलेगी। इसी अनुपात में फैमिली पेंशन भी कम होगी। पंजाब की भगवंत मान सरकार के इस फैसले की कहीं प्रशंसा हो रही है तो कहीं निंदा। कोई इस फैसले को ऐतिहासिक फैसला बता रहा है तो किसी का मानना है कि इस फैसले से सरकार को ज्यादा लाभ नहीं मिलने वाला। बहरहाल, ये निर्णय अच्छा है या बुरा, इसे लेकर विश्लेषण जारी है। मगर ये स्पष्ट है कि पंजाब सरकार के इस फैसले के बाद बाकी राज्य सरकारों पर भी दबाव बनना शुरू हो गया है। इस फैसले का प्रभाव हिमाचल में भी देखने को मिल रहा है। यहां भी जनता कुछ ऐसा ही चाहती है, खासतौर पर प्रदेश के कर्मचारी ये मांग करने लगे है। दरअसल, पंजाब सरकार द्वारा ये फैसला पंजाब की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लिया गया है। फिलवक्त पंजाब की आर्थिक स्थिति बदहाल है। पंजाब पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। इसका जिक्र सीएम भगवंत मान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान भी कर चुके हैं। सरकार का मानना है कि इस फैसले के बाद विधायकों की पेंशन पर खर्च हो रहे पैसे को युवाओं व अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर खर्चा जा सकेगा। बता दें कि छह बार विधायक रहीं पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्ठल, लाल सिंह, सरवन सिंह फिल्लौर को हर महीने तीन लाख 25 हजार रुपये मिलते हैं। रवि इंद्र सिंह, बलविंदर सिंह को हर महीने दो लाख 75 हजार रुपये की राशि मिलती है। वहीं 10 बार के विधायक की पेंशन छह लाख 62 हजार प्रतिमाह है। अब सभी पूर्व व मौजूदा विधायकों को सिर्फ 75 हजार रुपये पेंशन मिलेगी। मान सरकार पांच साल में 80 करोड़ रुपये की बचत करेगी और यह राशि जन कल्याणकारी कार्यों में खर्च की जाएगी। इस फैसले में एक और पेच भी अटका हुआ है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस फैसले का पंजाब को कोई वित्तीय लाभ नहीं होगा क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब रिटायर होता है तो उसे उस समय के नियमों के मुताबिक ही पेंशन मिलती है। जब 2004 में सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की तो यह केवल नए कर्मचारियों पर ही लागू हुई न की पुराने कमचारियों पर। यही फार्मूला विधायकों की पेंशन पर भी लागू हो सकता है। हालांकि सरकार कानून बना कर ऐसा कर सकती है और विधानसभा में बहुमत होने के चलते आम आदमी पार्टी के लिए ये बिल्कुल भी मुश्किल नहीं होने वाला। क्या ये पुरानी पेंशन बहाल न करने का संकेत है ! नेताओं को मिलने वाली एक से अधिक पेंशन को लेकर लंबे समय से देश में बहस छिड़ी हुई है। वन पर्सन वन पेंशन की मांग कई संगठन उठाते रहे है। वहीं पिछले कुछ समय से देश के कई राज्यों में नई पेंशन के विरोध में भी कर्मचारी लामबंद होते दिखे है। कर्मचारियों का अक्सर ये सवाल रहा है कि जहां उन्हें नए पेंशन सिस्टम के जरिये एक पेंशन भी ढंग से नहीं मिल पाती वहीं नेताओं को दो तीन पुरानी पेंशन आखिर क्यों दी जाती है। कर्मचारियों को मनाने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने तो पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा भी कर दी। ऐसे में कई राज्यों पर पुरानी पेंशन बहाली को लेकर दबाव है। इस बीच अब पंजाब ने विधायकों की पेंशन और भत्तों में कटौती कर दी है। अब एक तरफ कर्मचारी इसे बड़ा निर्णय बता खुश हो रहे है तो दूसरी तरफ कुछ का मानना है कि सरकार द्वारा उनका एक बड़ा मुद्दा खत्म कर दिया गया है और शायद ये कर्मचारियों को पुरानी पेंशन न देने का एक संकेत हो सकता है।
हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने एक दफे फिर सरकार से नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का लाभ देने की गुजारिश की है। संगठन का कहना है कि सरकार अपना वादा पूरा नहीं कर रही है। चार साल पहले यह वादा कर्मचारियों के साथ किया गया था, लेकिन अभी तक सरकार ने इस वादे को पूरा करने की जहमत नहीं उठाई है। संगठन का आरोप है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने सत्ता में आते ही कर्मचारियों की मांग को पूरा करने का आश्वासन दिया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा ने उनकी मांग को पूरा नहीं किया है। वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष भी इस मांग को कई बार उठाया जा चुका है। जेसीसी की बैठक में भी इस मांग पर कमेटी गठन की बात कही गई थी, लेकिन अभी तक कोई कमेटी नहीं बनाई गई है। इससे कर्मचारियों में निराशा है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वर्तमान सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को हल्के में ना लें, क्योंकि उनकी संख्या 70 हजार के करीब है और यदि उनके परिवार के सदस्यों की संख्या को भी गिन लिया जाए तो यह 3 लाख के करीब हो जाती हैl यह संख्या मिशन रिपीट में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है l यदि सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता देती है व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ती है तभी मिशन रिपीट होगा l संगठन का दो टूक कहना है कि यदि नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता नहीं तो मिशन रिपीट भी नहीं। चार महीने में कमेटी तक नहीं बनी : 27 नवंबर 2021 को शिमला में हुई संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के डिमांड चार्टर में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को नंबर चार पर रखा गया था l बैठक में इस हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने व संगठन के पदाधिकारियों को भी इसमें शामिल किये जाने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन चार माह बीत जाने पर भी कमेटी का गठन नहीं हो पाया है l 2008 में शुरू हुआ ये मसला : संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार तत्कालीन भाजपा सरकार ने लोक सेवा आयोग,अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया था। निश्चित वैधानिक प्रक्रिया को पूरा करने के बाद भी कमीशन पास कर्मचारियों को प्रदेश के इतिहास का सबसे लंबा अनुबन्ध काल दिया गया। उसके बाद आई सरकारों ने अनुबंध अवधि को कम जरूर किया, लेकिन कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से अपना कर्मचारी नहीं माना। सरकार कर्मचारी के सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से कर रही है, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। संघ का कहना है कि यह लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रोमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए ना की नियमितीकरण की तिथि से। पूर्व में भी सरकार ने एडहॉक और टेन्योर बेसिस पर नियुक्त कर्मचारियों की सेवाओं को प्रमोशन के लिए योग्य माना है तो अनुबंध पर दी गई सेवाओं को क्यों योग्य नहीं माना जा रहा? 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान का प्रश्न : गर्ग हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग का कहना है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं। कर्मचारियों का चयन भर्ती एवम पद्दोनत्ति नियमों के अनुसार हुआ है, इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है। सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे।
कर्मचारी लहर : बोले क्या लोन लेकर नई बसें खरीदने के लिए बुलाई गई थी बैठक ? हिमाचल परिवहन निगम के 12 हजार कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरेंगे। हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम के निदेशक मंडल (बीओडी) में कर्मचारियों की सुनवाई न होने से संयुक्त समन्वय समिति के नेता भड़क गए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि एचआरटीसी निदेशक मंडल की बैठक से निगम कर्मचारियों को निराशा हाथ लगी है। कर्मचारी बहुत लंबे समय से अपने देय वित्तीय भुगतानों की अदायगी की आस लगाए बैठे थे परंतु इससे संबंधित एक मामला भी बैठक में नहीं उठाया गया। इससे कर्मचारियों में रोष है। कर्मचारियों ने सरकार से सवाल किया है कि क्या यह बैठक केवल लोन लेकर नई बसें खरीदने के लिए बुलाई गई थी ? निगम में पहले ही बसों का भारी भरकम बेड़ा उपलब्ध है उनमें से सैकड़ों बसें अभी भी बिना प्रयोग के वर्षो से खड़ी है। पहले इन खड़ी बसों को संपूर्ण उपयोग में लाने की योजना पर कार्य किया जाना चाहिए था। विदित रहे कि निगम प्रबंधन से कर्मचारी संशोधित वेतनमान और भत्ते मांग रहे हैं। साथ ही अनुबंध में चालक-परिचालकों को दो साल में रेगुलर करने का मामला भी गरमाया हुआ है। इस बीच हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम कर्मचारी संघों की संयुक्त समन्वय समिति ने साफ शब्दों में ऐलान कर दिया है कि अप्रैल के दूसरे हफ्ते में समिति के नेताओं की अहम बैठक बुलाकर भावी रणनीति बनाकर निगम प्रबंधन पर दबाव बनाया जाएगा। संयुक्त समन्वय समिति के सचिव खेमेंद्र गुप्ता ने कहा कि बीओडी में निगम के कर्मचारियों की मांगों पर कोई गौर नहीं किया गया। इस कारण से समिति की बैठक अप्रैल दूसरे हफ्ते में बुलाकर आंदोलन की रणनीति बनेगी। 36 माह का ओवर टाइम नहीं मिला : पथ परिवहन निगम के कर्मचारियों का कहना है कि संशोधन वेतनमान और भत्ते देने का मामला निगम प्रबंधन से उठाया गया था परंतु बीओडी में इस अहम मसले पर कोई फैसला नहीं लिया गया। इसके अलावा अनुबंध पर लगे चालकों और परिचालकों ने दो साल की अवधि सितंबर में पूरी कर ली है और उनको मार्च अंत तक रेगुलर नहीं किया गया है। निगम कर्मचारियों को 36 माह का ओवर टाइम नहीं मिला है। निगम के पेंशनरों को भी वित्तीय लाभ देने से वंचित रखा गया है। एचआरटीसी को विभाग का दर्जा दिया जाए : संयुक्त समन्वय समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि नई बसें खरीद कर बेड़े में वृद्धि तो की जा रही है और नए डिपो भी राजनीतिक उद्देश्य के लिए धड़ाधड़ खोले जा रहे हैं। परंतु मूलभूत संसाधन तथा सुविधाओं के नाम पर वर्तमान संसाधनों के धागे को ही खींचा जा रहा है। परिवहन मंत्री ने स्वयं माना कि एचआरटीसी की 90 प्रतिशत बसें घाटे में जनहित में चलाई जा रही है। इस घाटे के लिए कर्मचारियों को उनके अधिकारियों से वंचित किया जा रहा है। क्या घाटे के लिए कर्मचारियों को भूखे पेट कार्य करने को मजबूर किया जा सकता है? परिवहन मंत्री मानते है कि यह परिवहन निगम (एचआरटीसी) जनहित में कार्य कर रहा है, तो एचआरटीसी को भी अन्य जनहित में चलाए जा रहे विभागों की भांति विभाग का दर्जा देकर रोडवेज बना दिया जाना चाहिए, ताकि कर्मचारियों के देय वित्तीय लाभों की अदायगी समयानुसार की जा सके।
पंजाब की भगवंत मान सरकार ने राज्य में ग्रुप सी और डी के 35,000 अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने का फैसला किया है। सीएम मान ने कहा कि इस संबंध में मुख्य सचिव को निर्देशित कर दिया गया है। ऐसी संविदात्मक और आउटसोर्सिंग भर्तियों को समाप्त करने का निर्देश दिया गया है। सीएम भगवंत मान ने कहा कि उन्होंने मुख्य सचिव को कहा है कि अगले विधानसभा के सत्र से पहले इस कानून का मसौदा बनाकर भेजा जाए, ताकि सरकार विधानसभा में उसे मंजूर करके लागू कर सके। पंजाब की सत्ता संभालने के बाद भगवंत मान लगातार फैसले ले रहे हैं। अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में मान सरकार ने 25 हजार सरकारी पदों को भरने को हरी झंडी दे दी थी। 15000 पद बोर्ड, निगमों व विभागों के भरे जाएंगे, जबकि 10 हजार पद पंजाब पुलिस में भरे जाएंगे। इसके अलावा आज मान सरकार ने शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर हर वर्ष सार्वजनिक अवकाश की भी घोषणा की है। भगवंत मान ने आज विधानसभा में कहा कि पहले सिर्फ नवांशहर में छुट्टी होती थी। कहा कि भगत सिंह पूरे देश के हैं। उनके शहीदी दिवस पर पूरे पंजाब में छुट्टी होगी। वहीं, भगवंत मान सरकार अब भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की तैयारी में है। शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर मान एक नंबर जारी करेंगे। यह नंबर उनका खुद का होगा। इस नंबर पर कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकारी दे सकता है। भगवंत मान ने कहा कि इस नंबर पर आने वाली शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में किसी भी तरह का भ्रष्टाचार सहन नहीं किया जाएगा। इससे पहले पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी कह चुके हैं कि आप की सरकार में और कुछ सहन हो सकता है भ्रष्टाचार नहीं।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास (एचपीटीडीसी) निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने जयराम सरकार से 2004 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार द्वारा बंद की गई कारपोरेट सेक्टर के कर्मचारियों की पेंशन को बहाल करने की मांग की है। एसोसिएशन का कहना है कि उस समय कारपोरेट सेक्टर के लेफ्टआउट 6730 रिटायर कर्मचारी सालों से पेंशन बहाली की राह ताक रहे हैं, लेकिन आज दिन तक निराशा ही हाथ लगी है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जयराम सरकार उनकी इस महत्वपूर्ण मांग को समझेगी और पूरा करने का प्रयत्न करेगी। एसोसिएशन ने कहा कि पेंशन के अलावा रिटायरमेंट पर इस वर्ग को न तो ग्रेच्युटी मिलती है और न ही अन्य देय लाभ। सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए और 2007 व 2017 के चुनावी वादों को पूरा करे। एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार मनमोहन धनी ने बताया कि इस समय बचे हुए कर्मचारियों की संख्या 6730 है, जो पेंशन न मिलने के कारण बुढ़ापे में आर्थिक तंगी के कारण अनेकों समस्याओं से जूझ रहे हैं।
पुलिस जवानों से किया गया वादा सरकार अब तक पूरा नहीं कर पाई है। पुलिस पे बैंड की अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई है, जिससे प्रदेश के पुलिस जवान निराश है। पुलिस जवानों का कहना है कि वे अब हताश हो चुके हैं, उनका मनोबल पूरी तरह टूट चुका है। बता दें कि पूर्ण राज्यत्व दिवस के समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ये घोषणा कि थी कि पुलिस कांस्टेबल को अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों के समकक्ष हायर पे बैंड के लिए पात्र माना जाएगा, यानि हायर पे बैंड के लिए समय अवधि को घटाकर 8 से 5 साल किया जाएगा, हालांकि अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। सीएम की घोषणा के बाद भी अभी तक पुलिस पे-बैंड की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। पुलिस पे-बैंड की फाइल अभी तक विभागों में ही घूम रही है। पुलिस जवानों का कहना है कि सरकार को पुलिस पे बैंड स्केल की नोटिफिकेशन जल्द जारी करनी चाहिए।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं दिख रहे। नई भर्ती न होने से बेरोजगार अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश सरकार से खासा नाराज़ है और संघ ने कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च निकालने का फैसला लिया है। संघ का कहना है कि यह रोष मार्च नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गलत नीतियों के खिलाफ निकाला जा रहा है। संघ ने आरोप लगाया है कि ये दोनों नेता पिछले दरवाजे से हुई शिक्षकों की भर्तियों का समर्थन कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, महासचिव राजेश धीमान तथा मीडिया प्रभारी प्रकाश चंद ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 176 कमीशन पास भाषा अध्यापकों को एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नहीं भेजा है, जो कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है। उन्होंने कहा कि 2555 एसएमसी शिक्षकों की भर्तियां कांग्रेस एवं भाजपा सरकारो ने ही की थी। ये दोनों सरकारें एसएमसी पॉलिसी की क्लाज नंबर 9 और 10 का उल्लंघन करके एसएमसी शिक्षकों को सेवा विस्तार देती रही। यही कारण है कि बेरोजगार अध्यापक संघ कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च रैली निकाल रहा है। यह रोष मार्च सुबह 11 बजे और शाम तीन बजे के बीच होगा। रोष मार्च हर जिला में तब तक जारी रहेंगे, जब तक 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक नहीं पहुंच जाते। इस मार्च में बेरोजगारों के अभिभावक भी हिस्सा लेंगे। बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी, उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए।
बिजली बोर्ड के 33 उप केंद्रों को निजी हाथों में देने का विरोध शुरू हो गया है। बिजली बोर्ड यूनियन के महासचिव हीरा लाल वर्मा ने कहा बोर्ड ने पिछले दिनों ऊना वृत्त के तहत 33 केवी विद्युत उपकेंद्रों को ठेके पर देने के लिए निविदा मांगी है। इससे कर्मचारियों में आक्रोश है। यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप खरवाड़ा ने कहा कि विद्युत उपकेंद्रों के रखरखाव व मरम्मत का कार्य ठेके पर देने से इसकी सही मरम्मत नहीं होती है और लागत भी तीन गुना अधिक होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि बोर्ड प्रबंधन संपत्तियों को संभालने में विफल रहा है। 35-40 लाख रुपये अधिक खर्च कर जो मानव रहित विद्युत उपकेंद्र बनाए गए हैं, उन्हें स्काडा साफ्टवेयर न चलने से मानवयुक्त विद्युत उपकेंद्र मे बदल दिया है। परिचालन-रखरखाव के लिए विद्युत उप केंद्र अब ठेके पर दिए जा रहे हैं। इससे प्रबंधन वर्ग की लापरवाही साफ झलकती है। उन्होंने बोर्ड प्रबंधन से नई भर्ती कर इन उपकेंद्रों को स्वयं चलाने की मांग की है। यूनियन विद्युत उपकेंद्रों को ठेके पर देने का विरोध करेगी। बोर्ड प्रबंधन ने फैसला वापस नहीं लिया तो यूनियन आंदोलन करने से गुरेज नहीं करेगी।
प्रदेश के एनएचएम कर्मचारियों में एक दफे फिर सरकार के प्रति रोष उभर आया है। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का मानना है कि प्रदेश सरकार लगातार उन्हें ठग रही है। आश्वासनों के बावजूद भी प्रदेश सरकार अपने ही वायदे से मुकर जाती है, जिसके चलते एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों में प्रदेश सरकार से नाराज है। राज्य स्वास्थ्य समिति (एनएचएम) अनुबंध कर्मचारी संघ के महासचिव गुलशन कुमार व प्रेस सचिव अनमोल राज कौंडल ने जारी बयान में प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव सहजल से नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि हरियाणा सरकार एनएचएम के कर्मचारियों को पहली जनवरी 2018 से रेगुलर पे स्केल दे रही है। मणिपुर सरकार ने भी इन कर्मचारियों को जनवरी 2022 से नियमित कर दिया है। पर हिमाचल प्रदेश सरकार उनकी अनदेखी कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार विधानसभा सत्र में इसका प्रावधान कर सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि तीन फरवरी को एनएचएम अनुबंध कर्मचारी संघ की राज्य सचिवालय में स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया था कि जब तक वे नियमित नहीं हो जाते तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिलाने की बात सरकार के समक्ष रखेंगे। साथ ही सर्व शिक्षा अभियान की तर्ज पर कमेटी के माध्यम से प्रस्ताव बनाकर सरकार को 90 दिन के अंदर भेजने का भी फैसला हुआ था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि वह एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों के लिए कोई स्थायी पॉलिसी नहीं बना रहे हैं। सिर्फ अपनी पीठ थपथपा रही सरकार : संघ के पदाधिकारियों के अनुसार एनएचएम कर्मचारी विभिन्न स्वास्थ्य समितियों के तहत 23 वर्ष से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत सेवाएं दे रहे हैं। सरकार ने न तो आज तक इन कर्मचारियों का नियमितीकरण किया और न ही रेगुलर स्केल का लाभ दिया जा रहा है। हिमाचल में यह कर्मचारी लगभग दो वर्ष से करोना काल में अपनी सेवाएं पूरी निष्ठा से दी है। सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है, मगर जो लोग इसके लिए दिन रात मेहनत कर रहे है, उनका ज़िक्र भी नहीं हो रहा। राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने कहा कि अन्य विभागों के कर्मचारियों की तर्ज पर इन कर्मचारियों के लिए भी सरकार को जल्द स्थायी नीति बनानी चाहिए। इन कर्मचारियों द्वारा क्षय रोग, एचआईवी एड्स, शिशु स्वास्थ्य, कोविड-19 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के तहत अपना योगदान दिया जा रहा है। इन कर्मचारियों की नियमितीकरण की मांग जायज है। केंद्र के कर्मचारी है तो सातवां वेतन आयोग क्यों नहीं मिला : राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ के उप प्रधान डॉ अनुराग शर्मा का कहना है कि सरकार हमारी मांगें ये कह कर टाल देती है की हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है, अगर हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है तो हमें सातवां वेतन आयोग मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं है। हमें भले ही केंद्र प्रायोजित स्कीमों के अंतर्गत नियुक्ति दी गई हो मगर इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सिर्फ पैसा देता है। स्वास्थ्य राज्य का मसला होता है। हमें राज्य स्वास्थ्य समिति के तहत रखा गया था जिसके चेयरमैन मुख्य सचिव है। हमें राज्य सरकार के लिए नियुक्त किया गया है और हम काम भी राज्य सरकार का करते है न कि केंद्र सरकार के लिए, तो मसले भी राज्य सरकार को ही हल करने होंगे।
A committee would be constituted to look in to the matter of re-designating the Silai Adhiyapika (Tailoring Teachers) and to frame a policy for regularizing of their services. This was stated by the Chief Minister Jai Ram Thakur while addressing the delegation of Silai-Kataye Adhiyapika that called on the Chief Minister at Oak Over here today to thank him for increasing their honorarium by Rs. 900 per month. The delegation was led by the President of Bharatiya Mazdoor Sangh Madan Rana. Chief Minister said that the present State Government was committed for the welfare of the employees, particularly the para-workers employees in various departments. He said that the State Government would also ensure that 20 per cent of the seats of Panchayat Secretaries be filled amongst the Silai Teachers, for which notification would be issued soon. Jai Ram Thakur said that the Government was also ensuring women empowerment at all levels. He said that Mukhyamantri Grihini Suvidha Yojna, Beti Hai Anmol, Shagun Yojna etc. were aimed at this direction. He said that for the first time Gender Budgeting Component has been introduced in the budget for the financial year 2022-23. He said that honorarium of Asha Workers, Anganwari Workers, and mid day meal workers have been increased considerably in the budget 2022-23. Chief Minister said that with the increase of Rs. 900 per month, the Silai Teachers would now get honorarium of Rs. 7950 per month. He said that with this, the total increase of Rs. 1650 has been made in the honorarium of the Silai teachers during the tenure of the present State Government. He said that the daily wages of the daily wagers has also been enhanced by Rs. 50 per day. He said that with this the daily wagers would now get Rs. 1500 more every month. President BMS Madan Rana thanked the Chief Minister for being considerate towards the various demands of the working class. He said that the working class of the State would always remain indebted to the Chief Minister for the historic hike made by him in the honorarium of the para-worker and the daily wagers of the State. Deputy Speaker HP Vidhan Sabha Hans Raj, General Secretary BMS Yash Pal, President of Silai Teacher Association Sunita Rana was also present on the occasion among others.
पुलिस जवानों से किया गया वादा सरकार अब तक पूरा नहीं कर पाई है। पुलिस पे बैंड की अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई है, जिससे प्रदेश के पुलिस जवान निराश है। पुलिस जवानों का कहना है कि वे अब हताश हो चुके हैं, उनका मनोबल पूरी तरह टूट चुका है। बता दें कि पूर्ण राज्यत्व दिवस के समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ये घोषणा कि थी कि पुलिस कांस्टेबल को अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों के समकक्ष हायर पे बैंड के लिए पात्र माना जाएगा, यानि हायर पे बैंड के लिए समय अवधि को घटाकर 8 से 5 साल किया जाएगा, हालांकि अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। सीएम की घोषणा के बाद भी अभी तक पुलिस पे-बैंड की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। पुलिस पे-बैंड की फाइल अभी तक विभागों में ही घूम रही है। पुलिस जवानों का कहना है कि सरकार को पुलिस पे बैंड स्केल की नोटिफिकेशन जल्द जारी करनी चाहिए।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास (एचपीटीडीसी) निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने जयराम सरकार से 2004 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार द्वारा बंद की गई कारपोरेट सेक्टर के कर्मचारियों की पेंशन को बहाल करने की मांग की है। एसोसिएशन का कहना है कि उस समय कारपोरेट सेक्टर के लेफ्टआउट 6730 रिटायर कर्मचारी सालों से पेंशन बहाली की राह ताक रहे हैं, लेकिन आज दिन तक निराशा ही हाथ लगी है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जयराम सरकार उनकी इस महत्वपूर्ण मांग को समझेगी और पूरा करने का प्रयत्न करेगी। एसोसिएशन ने कहा कि पेंशन के अलावा रिटायरमेंट पर इस वर्ग को न तो ग्रेच्युटी मिलती है और न ही अन्य देय लाभ। सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए और 2007 व 2017 के चुनावी वादों को पूरा करे। एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार मनमोहन धनी ने बताया कि इस समय बचे हुए कर्मचारियों की संख्या 6730 है, जो पेंशन न मिलने के कारण बुढ़ापे में आर्थिक तंगी के कारण अनेकों समस्याओं से जूझ रहे हैं।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं दिख रहे। नई भर्ती न होने से बेरोजगार अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश सरकार से खासा नाराज़ है और संघ ने कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च निकालने का फैसला लिया है। संघ का कहना है कि यह रोष मार्च नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गलत नीतियों के खिलाफ निकाला जा रहा है। संघ ने आरोप लगाया है कि ये दोनों नेता पिछले दरवाजे से हुई शिक्षकों की भर्तियों का समर्थन कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, महासचिव राजेश धीमान तथा मीडिया प्रभारी प्रकाश चंद ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 176 कमीशन पास भाषा अध्यापकों को एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नहीं भेजा है, जो कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है। उन्होंने कहा कि 2555 एसएमसी शिक्षकों की भर्तियां कांग्रेस एवं भाजपा सरकारो ने ही की थी। ये दोनों सरकारें एसएमसी पॉलिसी की क्लाज नंबर 9 और 10 का उल्लंघन करके एसएमसी शिक्षकों को सेवा विस्तार देती रही। यही कारण है कि बेरोजगार अध्यापक संघ कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च रैली निकाल रहा है। यह रोष मार्च सुबह 11 बजे और शाम तीन बजे के बीच होगा। रोष मार्च हर जिला में तब तक जारी रहेंगे, जब तक 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक नहीं पहुंच जाते। इस मार्च में बेरोजगारों के अभिभावक भी हिस्सा लेंगे। बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी, उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए।
प्रदेश के एनएचएम कर्मचारियों में एक दफे फिर सरकार के प्रति रोष उभर आया है। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का मानना है कि प्रदेश सरकार लगातार उन्हें ठग रही है। आश्वासनों के बावजूद भी प्रदेश सरकार अपने ही वायदे से मुकर जाती है, जिसके चलते एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों में प्रदेश सरकार से नाराज है। राज्य स्वास्थ्य समिति (एनएचएम) अनुबंध कर्मचारी संघ के महासचिव गुलशन कुमार व प्रेस सचिव अनमोल राज कौंडल ने जारी बयान में प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव सहजल से नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि हरियाणा सरकार एनएचएम के कर्मचारियों को पहली जनवरी 2018 से रेगुलर पे स्केल दे रही है। मणिपुर सरकार ने भी इन कर्मचारियों को जनवरी 2022 से नियमित कर दिया है। पर हिमाचल प्रदेश सरकार उनकी अनदेखी कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार विधानसभा सत्र में इसका प्रावधान कर सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि तीन फरवरी को एनएचएम अनुबंध कर्मचारी संघ की राज्य सचिवालय में स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया था कि जब तक वे नियमित नहीं हो जाते तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिलाने की बात सरकार के समक्ष रखेंगे। साथ ही सर्व शिक्षा अभियान की तर्ज पर कमेटी के माध्यम से प्रस्ताव बनाकर सरकार को 90 दिन के अंदर भेजने का भी फैसला हुआ था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि वह एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों के लिए कोई स्थायी पॉलिसी नहीं बना रहे हैं। सिर्फ अपनी पीठ थपथपा रही सरकार संघ के पदाधिकारियों के अनुसार एनएचएम कर्मचारी विभिन्न स्वास्थ्य समितियों के तहत 23 वर्ष से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत सेवाएं दे रहे हैं। सरकार ने न तो आज तक इन कर्मचारियों का नियमितीकरण किया और न ही रेगुलर स्केल का लाभ दिया जा रहा है। हिमाचल में यह कर्मचारी लगभग दो वर्ष से करोना काल में अपनी सेवाएं पूरी निष्ठा से दी है। सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है, मगर जो लोग इसके लिए दिन रात मेहनत कर रहे है, उनका ज़िक्र भी नहीं हो रहा। राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने कहा कि अन्य विभागों के कर्मचारियों की तर्ज पर इन कर्मचारियों के लिए भी सरकार को जल्द स्थायी नीति बनानी चाहिए। इन कर्मचारियों द्वारा क्षय रोग, एचआईवी एड्स, शिशु स्वास्थ्य, कोविड-19 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के तहत अपना योगदान दिया जा रहा है। इन कर्मचारियों की नियमितीकरण की मांग जायज है। केंद्र के कर्मचारी है तो सातवां वेतन आयोग क्यों नहीं मिला ? राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ के उप प्रधान डॉ अनुराग शर्मा का कहना है कि सरकार हमारी मांगें ये कह कर टाल देती है की हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है, अगर हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है तो हमें सातवां वेतन आयोग मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं है। हमें भले ही केंद्र प्रायोजित स्कीमों के अंतर्गत नियुक्ति दी गई हो मगर इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सिर्फ पैसा देता है। स्वास्थ्य राज्य का मसला होता है। हमें राज्य स्वास्थ्य समिति के तहत रखा गया था जिसके चेयरमैन मुख्य सचिव है। हमें राज्य सरकार के लिए नियुक्त किया गया है और हम काम भी राज्य सरकार का करते है न कि केंद्र सरकार के लिए, तो मसले भी राज्य सरकार को ही हल करने होंगे।
प्रदेश की राजधानी शिमला में 3 मार्च को पुरानी पेंशन बहाली के लिए हुए प्रदर्शन के न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के कई कर्मचारी नेताओं पर पुलिस द्वारा मामले दर्ज किये गए है, जिसकी कई कर्मचारी संगठन निंदा कर रहे है। तीन मार्च को शिमला टूटीकंडी में सभी कर्मचारी एकत्रित हुए थे और आगे बढ़ते हुए 103 टनल के पास एनपीएस कर्मचारियों ने हल्ला बोला। इस दौरान कर्मचारियों द्वारा यातायात बंद किया गया। पुलिस के जवानों ने कर्मचारियों को जब हटाने की कोशिश की तो कर्मचारियों और पुलिस के बीच धक्का-मुक्की हुई। इसके बाद प्रदर्शन में शामिल एनपीएस कर्मियों पर एफआईआर दर्ज की गई थी। प्रदेश के विभिन्न कर्मचारी संगठन एफआईआर का विरोध कर रहे है और एनपीएस कर्मचारियों का समर्थन। -राज्य बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष कुलदीप सिंह खरवाड़ा ने न्यू पेंशन कर्मचारी महासंघ के कर्मचारी नेताओं पर पुलिस मामले दर्ज करने की निंदा की है। उन्होंने सरकार से मांग की कि इन मामलों को तुरंत वापस लिया जाए। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि इन मामलों को वापस नहीं लिया गया तो प्रदेश स्तर पर कर्मचारी बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होंगे। - हिमाचल प्रदेश संयुक्त कर्मचारी महासंघ ने भी कर्मचारियों पर एफआईआर की निंदा की हैl महासंघ ने मांग की है की सरकार इसे तुरंत वापस करें और पुरानी पेंशन बहाली के लिए बात करें l -हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए किए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया है। समिति ने कर्मचारी नेताओं पर दर्ज किए केस की कड़े शब्दों में निंदा की है तथा मांग की हैं कि सरकार द्वारा मुकदमों को तुरन्त वापिस लिया जाए। इनका कहना है कि कर्मचारी अपनी जायज मांग को लोकतांत्रिक व शांतिपूर्ण तरीके से उठा रहे थे तथा उन्होंने किसी सम्पत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, इसके बावजूद भी कर्मचारियों पर मुकदमे दायर करना निंदनीय है। -राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज एफआईआर वापस लेने की आवाज उठाई। संघ के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने एफआईआर की कड़े शब्दों में निंदा की है। खंड अध्यक्ष बलदेव सिंह ने कहा कि कर्मचारी बड़े शांतिपूर्वक पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर एकत्रित होकर प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन फिर भी उनके खिलाफ केस दर्ज किए गए। -हिमाचल प्रदेश न्यू पेंशन स्कीम रिटायर्ड कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजीव गुलेरीया ने संघ की ओर से पुरानी पेंशन बहाली के लिए किए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया है। गुलेरिया ने कर्मचारी नेताओं पर दर्ज की गई एफआईआर की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को डराने-धमकाने के उद्देश्य से किए जा रहे मुकदमों को सरकार जल्द वापस ले। -ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टीचर ऑर्गेनाइजेशन ने भी एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज एफआईआर का विरोध किया है। संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अश्वनी कुमार ने बताया कि एनपीएस कर्मचारियों द्वारा पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर किया गया प्रदर्शन एक शांतिपूर्ण आंदोलन था। हिमाचल प्रदेश सरकार को चाहिए कि वे कर्मचारियों की मांग को माने और पुरानी पेंशन बहाल करें।
नौकरियां : 30 हजार नए पद भरे जायेंगे मानदेय : करीब डेढ़ लाख लोगों का बढ़ा मानदेय नीति : आउटसोर्स और एसएमसी के लिए नहीं बनी नीति सीएम जयराम ठाकुर ने अपने कार्यकाल के अंतिम बजट में कर्मचारी वर्ग को साधने की भी भरपूर कोशिश की है। बजट से जितना मांगा उतना भले न मिला हो, लेकिन कर्मचारियों की झोली खाली रही ऐसा नहीं कहा जा सकता। प्रदेश के पौने तीन लाख कर्मचारी हर बार की तरह इस बार भी बजट से कई उम्मीदें लगाए बैठे थे। कोई स्थाई नीति मांग रहा था, कोई पेंशन, कोई वेतन में बढ़ोतरी, तो किसी को पूर्णतः सरकारी कर्मचारी बनने की आस थी। मोटे तौर पर देखा जाए तो इस बजट में एक भी घोषणा ऐसी नहीं थी जो प्रदेश के हर कर्मचारी पर असर डालती, लेकिन अलग-अलग सभी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई। विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे लगभग 65 हजार अस्थाई कर्मचारियों के मानदेय में जयराम ठाकुर ने इजाफा कर राहत देने की कोशिश की है। पिछले कुछ समय में कर्मचारियों को काफी कुछ मिला है, नया वेतनमान, डीए, फैमिली पेंशन, दो साल का अनुबंध काल इत्यादि, शायद इसीलिए बजट में इस बार असंगठित वर्ग को राहत पहुंचाने का प्रयास रहा। कई कर्मचारी इस बजट की खुले दिल से प्रशंसा कर रहे है, तो कई अब भी दिल में मलाल लिए बैठे है। कर्मचारियों को क्या व कितना मिला और क्या नहीं, इस पर पेश है ये विश्लेषण आउटसोर्स कर्मचारी : न्यूनतम वेतन बढ़ा पर नीति नहीं बनी हिमाचल प्रदेश के 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों को बजट से काफी उम्मीदें थी। दरससल आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याएं हल करने के लिए बनाई गई कैबिनेट सब कमेटी की बैठक के दौरान कर्मचारियों को ये आश्वासन मिला था की उनके लिए बजट में पॉलीसी का प्रावधान किया जाएगा। ये बैठक कमेटी के अध्यक्ष व जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में हुई थी। आउटसोर्स कर्मचारी काफी हद तक आश्वस्त थे कि जैसा कहा गया है वैसा ही होगा। परन्तु इस बजट से प्रदेश के आउटसोर्स कर्मचारियों को झटका लगा है। बजट में इनके लिए न तो पॉलीसी का प्रावधान हुआ और न उस पर कोई चर्चा। हालाँकि, नीति तो नहीं मिली लेकिन आउटसोर्स कर्मियों के वेतन में न्यूनतम 4,200 रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी करने का प्रावधान जरूर किया गया है, जिसके बाद आउटसोर्स कर्मियों का न्यूनतम वेतन 10,500 रुपये प्रतिमाह हुआ है। बजट में कंपनियों द्वारा आउटसोर्स कर्मियों का शोषण कम करने के लिए पे-स्लिप देना अनिवार्य कर दिया गया है। इस पे-स्लिप में सर्विस प्रोवाइडर कर्मी को लिखित रूप से समस्त कटौतियां जैसे ईपीएफ इत्यादि एवं कर्मी को प्राप्त होने वाले कुल भुगतान को दिखाना होगा। श्रम विभाग इन दिशा निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करेगा। उधर,आउटसोर्स कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं है। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है कि उन्होंने हमेशा ही वित्तीय लाभ से अधिक नौकरी की सुरक्षा मांगी है। संघ का कहना है कि हमने प्रदेश सरकार से स्थायी नीति बनाने, समयावधि पूर्ण होने पर नियमित करने व समान वेतनमान की मांग की थी, जो पूरी नहीं हुई। आउटसोर्स कर्मचारी कई वर्षों से लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं, परंतु सरकार अभी तक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं बना पाई है। अलग-अलग विभागों में अलग-अलग नीतियां हैं। वेतन और मानदेय के मामले में भी असमानता की स्थिति बनी हुई है। बता दें की प्रदेश के विभिन्न विभागों में आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती न केवल पिछली सरकार ने की, बल्कि जयराम सरकार ने भी यह सिलसिला जारी रखा, लेकिन इनके लिए स्थायी नीति नहीं बनाई गई। शास्त्री व भाषाध्यापक को टीजीटी पदनाम, सरकार से खुश : इस बजट में शास्त्री व भाषाध्यापक को टीजीटी पदनाम देने का निर्णय लिया गया है जिससे ये शिक्षक काफी खुश है। 2010 के बाद नियुक्त सभी प्रवक्ताओं को पीजीटी नाम दिया गया था, जिसका प्रवक्ता संघ ने लंबे समय तक विरोध किया। हिमाचल प्रदेश सरकार ने पहली मार्च, 2019 को कैबिनेट में निर्णय कर स्कूल प्रवक्ता का पदनाम प्रवक्ता स्कूल न्यू किया। प्रवक्ताओं का नाम प्रवक्ता न कर प्रवक्ता स्कूल न्यू करने पर प्रवक्ता वर्ग में असंतोष था। अध्यापक लगातार न्यू शब्द हटाने की मांग कर रहे था। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के प्रदेश अध्यक्ष केसर सिंह ठाकुर ने बताया कि इस निर्णय से हिमाचल प्रदेश के 18000 शिक्षकों में खुशी की लहर है। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद, संयुक्त समिति शास्त्री व भाषाध्यापक ने भी प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का बजट में शास्त्री एवं भाषाध्यापकों को टीजीटी पदनाम की घोषणा का स्वागत किया है। इससे शास्त्री एवं भाषाध्यापकों का वनवास समाप्त होगा। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डा. मनोज शैल संयुक्त समिति ने कहा कि शास्त्री एवं भाषाध्यापकों की लंबित मांग को पूरा करने की ऐतिहासिक घोषणा मुख्यमंत्री ने बजट भाषण में की है। शास्त्री एवं भाषाध्यापक एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार पात्र होते हुए भी इससे वंचित थे और लगातार इसके लिए वर्षों से निवेदन कर रहे थे। एसएमसी शिक्षक : नहीं मिली नीति, नाखुश है शिक्षक : बजट में एसएमसी शिक्षकों का मानदेय 1000 रुपये प्रतिमाह बढ़ाने की घोषणा की गई है। इनकी सेवाएं पहले की तरह जारी रखी जाएंगी। इन्हें नहीं हटाया जाएगा। 1000 रु की वृद्धि से ये शिक्षक भी पूर्णतः संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे। 2555 एसएमसी शिक्षकों को भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बजट से कई उम्मीदें थी। यह कर्मचारी यह आस लगाए बैठे थे कि वे एसएमसी शिक्षकों के लिए अनुबंध या नियमित नीति लाई जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बता दें कि शिक्षा विभाग में एसएमसी शिक्षकों की नियुक्ति वर्ष 2012 में भाजपा की पिछली सरकार में हुई थी। ये नियुक्तियां वीरभद्र सरकार ने भी जारी रखी। 2017 में फिर भाजपा सरकार बनी और इसको चार साल पूरे हो चुके हैं पर अब तक इस सरकार में भी एसएमसी शिक्षकों के लिए कुछ खास नहीं हुआ, बस हर वर्ष इनके कार्यकाल को बढ़ा दिया जाता है। कंप्यूटर शिक्षक नाखुश, 1000 रुपये वेतन वृद्धि ऊंट के मुँह में जीरा : प्रदेश में तैनात कम्प्यूटर शिक्षकों ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया था कि पंजाब सरकार के फार्मूले पर उनकी सेवाएं भी अब रेगुलर की जाए, क्योंकि उन्हें बहुत वर्ष आउटसोर्स पर सेवाएं देते हुए हो गए हैं। पंजाब सरकार ने सोसायटी बनाकर ऐसे शिक्षकों की सेवाएं सोसायटी में ही रेगुलर कर दी है परन्तु हिमाचल में ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि इनके वेतन में 1000 रुपए की वृद्धि की गई है। प्रदेशभर के स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा प्रदान कर रहे अध्यापकों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बजट को निराशाजनक बताया है। प्रदेश कंप्यूटर शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष रोशन मेहता, महासचिव राकेश शर्मा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से स्थायी नीति की मांग की थी। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग में सबसे शोषित वर्ग में कम्प्यूटर अध्यापक आते हैं। सरकार ने 1000 रुपए की घोषणा करके ऊंट के मुंह में जीरा के समान कार्य किया हैं। पुरानी पेंशन : मिला सिर्फ समस्या सुलझाने का वादा कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग पुरानी पेंशन पर बजट में तो कोई प्रवधान नहीं हुआ, मगर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदन में ओल्ड पेंशन स्कीम पर समस्या सुलझाने का वादा कर कर्मचारियों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास किया है। उन्होंने सदन में कहा कि कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम के लिए आंदोलित हैं। वह कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार होगा। उन्होंने कर्मचारियों से बातचीत के लिए भी अपील की। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए। उधर, पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन में एनपीएस कर्मचारी नेताओं सहित आधा दर्जन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चूका है। इतने बड़े प्रदर्शन के बावजूद मुख्यमंत्री कर्मचारियों से मिलने नहीं गए। नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता : अधूरी रही मांग, हज़ारों कर्मचारी निराश नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग करने वाले कर्मचारी इस बजट से निराश नजर आ रहे है। हर बार की तरह इस बार भी उनकी मांग अधूरी रह गई। बजट से पहले हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने मांग की थी कि सरकार भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता देने के वायदे को पूरा करे। संगठन ने कहा की भाजपा ने चुनाव से पूर्व अनुबंध नियमित कर्मचारियों से वरिष्ठता का जो वादा किया था, उसे चार साल बीत जाने पर भी पूरा नहीं किया है। उन्होंने कहा की मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष इस मांग को 50 से अधिक बार उठाया जा चुका है। मुख्यमंत्री खुद भी कह चुके हैं कि आपकी यह मांग जायज है। जेसीसी की बैठक में भी इस मांग पर कमेटी गठन की बात कही गयी, लेकिन उस पर भी कोई कमेटी नहीं बनी। संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार तत्कालीन भाजपा सरकार ने लोक सेवा आयोग, अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया। निश्चित वैधानिक प्रक्रिया को पूरा करने के बाद भी कमीशन पास कर्मचारियों को प्रदेश के इतिहास का सबसे लंबा अनुबन्ध काल दिया गया। उसके बाद आई सरकार ने अनुबंध अवधि को कम किया लेकिन कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से अपना कर्मचारी नहीं माना। सरकार कर्मचारी के सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से कर रही है, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। यह लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विस को प्रमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए न कि नियमितीकरण की तिथि से। कर्मचारियों की ये मांग इस बजट में भी अधूरी ही रही। अच्छी पहल : 500 चिकित्सकों के पद भरेगी सरकार हिमाचल के स्वास्थ्य संस्थानों को सुदृढ़ करने के लिए चिकित्सा अधिकारियों के विशेषज्ञ काडर को बढ़ाने का फैसला लिया गया है। नए मेडिकल कॉलेज नाहन, चंबा, नेरचौक, और हमीरपुर में फैकल्टी और अन्य श्रेणियों के पद भरे जाएंगे। सीएम ने चिकित्सा अधिकारियों के 500 नए पदों को भरने की घोषणा की है। इससे प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधा तो सुधरेगी ही, साथ ही प्रदेश के मेडिकल संस्थानों से पास हुए डॉक्टरों को नौकरी भी मिल पाएगी। ये आम जनता की ही नहीं बल्कि प्रदेश के चिकित्सक संगठनों की भी मांग थी। फिलवक्त प्रदेश में करीब 2600 चिकित्सकों का काडर था, जो अब बढ़ा दिया गया है। ...................... इस बजट का मुख्य आकर्षण कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी रहा। सीएम ने करीब डेढ़ लाख कर्मियों, श्रमिकों, पैरा वर्करों आदि का मानदेय बढ़ाने की घोषणा की है। -आउटसोर्स कर्मियों के वेतन में न्यूनतम 4,200 रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी। प्रत्येक आउटसोर्स कर्मी को अब न्यूनतम 10,500 रुपये प्रतिमाह मिलेंगे। -दिहाड़ीदारों को 50 रूपए की बढ़ोतरी के साथ अब 350 रूपए प्रतिदिन दिहाड़ी मिलेगी। पंचायत चौकीदार के लिए नीति भी जल्द आएगी। -एसएमसी शिक्षकों के मानदेय में 1000 रूपए की बढ़ोतरी, यथावत रहेगी सेवाएं, बनेगी नीति। -आईटी टीचर्स के मानदेय में 1000 रूपए की बढ़ोतरी। पद बढ़ोतरी प्रतिमाह मानदेय आशा वर्कर 1825 4700 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता 1700 9000 मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता 900 6100 आंगनबाड़ी सहायिका 900 4700 सिलाई अध्यापिका 900 7950 मिड डे मील वर्कर 900 3500 राजस्व नम्बरदार 900 3200 जल रक्षक 900 4500 वाटर कैरियर 900 3900 पैरा फिटर / पंप ऑपरेटर 900 5500 पंचायत चौकीदार 900 6500 राजस्व चौकीदार 900 5000 मल्टी पर्पस वर्कर 900 3900 ............................................................................................................... खुला नौकरियों का पिटारा highlights आशा कार्यकर्ता : 780 पद - गृहरक्षकों की होगी भर्ती - भरे जायेंगे चतुर्थ श्रेणी के पद कर्मचारियों के साथ - साथ सरकार ने बजट में बेरोज़गारों का भला करने का प्रयास किया है। कुल 30 हजार पदों को भरने की बात कही गई है। स्वास्थ्य विभाग में विषेशज्ञ डॉक्टर, डॉक्टर, नर्सें, रेडियोग्राफर,ओटी सहायक, लैब तकनीशियन, डेंटल हाइजीनिस्ट, फार्मासिस्ट, एमआरआई तकनीशियन, ईसीजी तकनीशियन व अन्य तकनीशियनों के 500 से अधिक पद भरे जाएंगे। 780 आशा कार्यकर्ताओं के नए पद भरे जाएंगे। साथ ही 437 पद आशा फैसिलिटेटर व सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी के 870 पद भी भरे जाएंगे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत विभिन्न श्रेणियों के 264 पद भरे जाएंगे। हमीरपुर, नाहन, चंबा तथा नेरचौक में स्थित नए आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में समुचित फैकल्टी व अन्य श्रेणियों के पद भरे जाएंगे। इसके अतिरिक्त विभिन्न विभागों में खाली फंक्शनल पदों को भी सरकार भरेगी। जलशक्ति विभाग में पैरा फिटर, पंप ऑपरेटर तथा मल्टी टास्क पार्ट टाइम वर्कर के पद भरे जाएंगे। इसमें शिक्षा विभाग में विभिन्न शिक्षकों की भर्ती, पुलिस आरक्षी भर्ती, बिजली बोर्ड के तकनीकी पद जैसे लाइनमैन, जूनियर टी मेट इत्यादि, एचआरटीसी में ड्राइवर तथा कंडक्टर इत्यादि की आवश्यक भर्तियां, राजस्व विभाग के कर्मी, पशुपालन विभाग के डॉक्टर व कर्मी, शहरी निकायों के लिए स्टाफ, पंचायत सचिव, पंचायतों के लिए तकनीकी सहायक और ग्राम रोजगार सहायक, विभिन्न विभागों में लिपिक, जेओए आईटी, तकनीकी शिक्षा विभाग में विभिन्न श्रेणियों के अध्यापक एवं इंस्ट्रक्टर, रेशम विभाग के इंस्पेक्टर तथा विभिन्न विभागों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद भी भरे जाएंगे । आगामी वर्ष में शिक्षा एवं लोक निर्माण विभाग में अंशकालीन मल्टी टास्क वर्करों की भर्ती प्रक्रिया को पूर्ण किया जाएगा। गृह रक्षकों की आवश्यक भर्ती करने का भी सरकार ने निर्णय लिया है।
शिमला की कड़कड़ाती ठंड के बीच, हाथ में तिरंगा, सर पर सफेद टोपी और जुबां पर पुरानी पेंशन बहाली का नारा लिए कर्मचारी आगे बढ़ते जा रहे थे। मौसम पहले ही सर्द था और वाटर कैनन्स से हल्की बौछार भी हो रही थी। पुलिस के जवानों के साथ धक्का -मुक्की भी खूब हुई, पर अपने बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए वो आगे बढ़ते रहे। विपक्ष का जुबानी साथ तो मिला मगर सत्तासीन हुक्मरान इस दफे पिघले नहीं। हालांकि विधानसभा के बाहर कर्मचारियों ने और सदन के भीतर विपक्ष ने सरकार को घेरे रखा। खूब हो हल्ला हुआ, जमकर प्रदर्शन हुआ। ऐसा प्रदर्शन जैसा शायद ही कर्मचारियों ने प्रदेश में पहले किया हो। शहर में चार जगह बैरिकेड लगाए गए थे, भारी पुलिस बल तैनात था, इसके बावजूद प्रदर्शनकारियों को रोकने में सरकार का खुफिया तंत्र और सुरक्षा इंतजाम फेल हो गया। इस बीच मुख्यमंत्री कर्मचारियों को वार्ता के लिए बुलाते रहे लेकिन कर्मचारी वार्ता के लिए नहीं पहुंचे और प्रदर्शन जारी रखा। कर्मचारियों का कहना था कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अगर उनसे बात करनेे आते हैं, तो वह वापस चले जाएंगे, नहीं तो वहीं पर बैठे रहेंंगे। न तुम कम न हम ज्यादा होता रहा और हल नहीं निकला। देर रात तक कर्मचारी डटे रहे। फिर जब वापस लौटे तो हाथ में पुरानी पेंशन तो नहीं थी मगर एनपीएस कर्मचारी नेताओं सहित दो दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चुका था। इन कर्मचारियों की माने तो अब बस दिल में मलाल है और चुनाव का इंतजार है। पहले से ही स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि बजट में भी पुरानी पेंशन के लिए कोई बड़ा ऐलान नहीं होगा, और हुआ भी ऐसा ही। पुरानी पेंशन को लेकर बजट में कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई। मगर बजट के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ओल्ड पेंशन स्कीम पर कुछ शब्द जरूर कहे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जाएगी, ये आश्वासन दिया गया। साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा कि वह कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार होगा। उन्होंने कर्मचारियों से बातचीत के लिए भी अपील की। सरकार अब भी चाहती है कि कर्मचारी आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाएं। वित्तीय मजबूरी, वरना सरकार रिस्क क्यों लेगी : पुरानी पेंशन सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि पुरे देश का एक बड़ा मसला बन गई है। हर तरफ कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। जब केंद्र सरकार नए पेंशन सिस्टम को भारत में लागु कर रही थी तो शायद ही किसी ने सोचा हो कि ये पेंशन केंद्र और प्रदेश की सरकारों के लिए इतना बड़ा सरदर्द बनेगी। आज वित्तीय परिस्तिथि ऐसी है कि अगर सरकारें चाहे तो भी एक दम जिन्न की तरह कर्मचारियों की इस चाह को पूरा नहीं कर पा रही। हिमाचल की भी वित्तीय स्थिति कुछ ऐसी ही है, वरना सरकार चुनावी वर्ष में कर्मचारियों की नाराजगी का इतना बड़ा रिस्क लेने की स्तिथि में कतई नहीं दिखाई देती। गहलोत के निर्णय से जगी आस : देश के सिर्फ दो राज्यों में पुरानी पेंशन है, इस बात से ये स्पष्ट होता है कि इसे लागू करना उतना आसान नहीं है। कुछ दिनों पहले तक पश्चिम बंगाल देश का इकलौता राज्य था जो पुरानी पेंशन दे रहा था। वहीँ वित्त वर्ष 2022 -23 के बजट में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ओपीएस लागू करके ये दिखा दिया कि सरकारें चाहे तो ये नामुमकिन भी नहीं हैं। गहलोत के इस निर्णय ने देशभर में कर्मचारियों में नई आस जगा दी है। हालांकि राजस्थान की वित्तीय स्थिति भी बेहतर नहीं है और राज्य पर करीब सवा चार लाख करोड़ का लोन है। माननीयों के लिए पेंशन क्यों ? सरकार की खराब वित्तीय स्तिथि का तर्क कर्मचारियों के गले से नहीं उतरता, वो भी तब जब माननीय खुद पुरानी पेंशन ले रहे हो। कर्मचारियों की घड़ी की सुई हर बार इसी बात पर आकर अटकती है कि अगर नई पेंशन अच्छी है तो माननीय खुद क्यों पुरानी पेंशन ले रहे है। जब सरकार ने कर्मचारियों को नई पेंशन देने का सोचा तो खुद क्यों नई पेंशन नहीं ली। ये तर्क - वितर्क का सिलसिला जारी है और तब तक जारी रहेगा जब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को मिल नहीं जाती। पुरानी पेंशन लिए बिना कर्मचारी मानेंगे नहीं, ये प्रदेश में हुए प्रदर्शनों से स्पष्ट हो गया है। अब ये देखना होगा कि इस निर्णय का सेहरा किसके सिर बंधता है। क्या जयराम सरकार कर्मचारियों की इस मांग को मानती है या नहीं, चुनावी वर्ष में इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों के शिमला जिला संयुक्त मंच इकाई ने 28-29 मार्च की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सिलसिले में कालीबाड़ी हॉल शिमला में जिलाधिवेशन का आयोजन किया। अधिवेशन में फैसला लिया गया कि अपनी मांगों को पूर्ण करने के लिए मजदूर व कर्मचारी हिमाचल प्रदेश में दो दिन की ऐतिहासिक हड़ताल करेंगे। मंच ने केंद्र सरकार को चेताया है कि अगर मजदूरों व कर्मचारियों की मांगों को पूर्ण न किया गया तो आंदोलन तेज होगा। अधिवेशन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,जिलाध्यक्ष कुलदीप डोगरा,महासचिव अजय दुलटा,रमाकांत मिश्रा,बालक राम,हिमी देवी,विनोद बिरसांटा,दलीप सिंह,सुनील मेहता,पूर्ण चंद,रंजीव कुठियाला,इंटक प्रदेश उपाध्यक्ष राहुल मेहरा,महासचिव बी एस चौहान,गौरव चौहान,नरेंद्र चंदेल,पूर्ण चंद,राहुल नेगी,एटक प्रदेश प्रेस सचिव संजय शर्मा,इंद्र सिंह डोगरा,मस्सी लाल,प्रेम सिंह,शिव राम,एचपीएमआरए प्रदेशाध्यक्ष हुक्म चंद शर्मा,केंद्रीय कर्मचारी समन्वय समिति वाइस चेयरमैन बलबीर सूरी,एजी ऑफिस एसोसिएशन उपाध्यक्ष राजेन्द्र,ऑडिट एंड अकाउंट्स पेंशनर एसोसिएशन के अध्यक्ष भारत भूषण आदि शामिल रहे। अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा एनपीएस कर्मियों के शांतिपूर्वक आंदोलन को पुलिस बल के ज़रिए कुचलने के घटनाक्रम की कड़ी निंदा की है व इसे प्रदेश सरकार की तानाशाही करार दिया है। उन्होंने एनपीएस कर्मियों से एकजुटता प्रकट की है व ऐलान किया कि 28-29 जनवरी की हड़ताल में ओल्ड पेंशन स्कीम एक प्रमुख मुद्दा बनेगा। उन्होंने केंद्र सरकार की मज़दूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों की खुली आलोचना की। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया कि अगर उसने पूँजीपतिपरस्त नीतियों को बन्द न किया तो आंदोलन तेज होगा। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की है कि मजदूर विरोधी चार लेबर कोड निरस्त किये जाएं। वर्ष 2003 से नियुक्त सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल की जाए। सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण बन्द किया जाए व नेशनल मोनेटाइजेशन पाइप लाइन योजना को वापिस लिया जाए। मजदूरों का न्यूनतम वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील कर्मियों को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में दो सौ दिन का रोजगार दिया जाए व छः सौ रुपये दिहाड़ी लागू की जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। आउटसोर्स व ठेका प्रथा पर रोक लगाई जाए। आउटसोर्स के लिए ठोस नीति बनाई जाए। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी बदलाव बन्द किये जाएं।
पुरानी पेंशन स्कीम बहाली को लेकर कर्मचारियों का प्रदर्शन उग्र होता दिख रहा है। प्रदेशभर से हजारों कर्मचारी विधानसभा का घेराव करने शिमला पहुंचे है और प्रदर्शन करते हुए विधानसभा के गेट तक पहुंच गए हैं। स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और एतिहातन विधानसभा के गेट पर ताला लगा दिया गया है। इससे पहले पुलिस ने कर्मचारियों को 103 टनल के पास रोकने के लिए पानी की बौछार की लेकिन कर्मचारी आगे बढ़ते चले गए। इससे पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर प्रदेशभर से शिमला पहुंचे कर्मचारी शिमला की टूटीकंडी क्रॉसिंग में जुटे और विधानसभा की तरफ कूच किया। कर्मचारियों ने ढोल नगाड़ों के साथ जमकर नारेबाजी की और चेताया की 'जो ओपीएस बहाल करेगा वो ही प्रदेश पर राज करेगा'। प्रदर्शन के चलते शिमला में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है और चौड़ा मैदान में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई। हालाँकि पुलिस बल भी कर्मचारियों को विधानसभा तक पहुँचने से नहीं रोक पाया।
प्रदेश के कॉलेजों में व्यावसायिक शिक्षा देने वाले वोकेशनल शिक्षक भी सरकार से पॉलिसी बनाने की मांग कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि हरियाणा व असम की तर्ज पर इन शिक्षकों के लिए भी हिमाचल में पॉलिसी तैयार की जाए, ताकि वोकेशनल शिक्षकों को भविष्य में नियमित किया जा सके और इन शिक्षकों को पदोन्नति के अवसर मिले। शिक्षकों का कहना है कि इस बजट सत्र में उन्हें उम्मीद ही नहीं बल्कि भरोसा है कि गठित कमेटी उनके भविष्य के बारे में सोचकर स्थायी नीति बनाएगी। हिमाचल प्रदेश बी. वॉक वोकेशनल संघ के अध्यक्ष कुश भारद्वाज ने आउटसोर्स पर कार्यरत हजारों वोकेशनल प्रशिक्षकों के लिए स्थायी नीति बनाने हेतु कमेटी का गठन करने हेतु सरकार का आभार जताया। उन्होंने कहा कि स्थायी नीति बनाने से प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ-साथ उनके परिवार भी लाभान्वित होंगे जिससे बढ़ती हुई महंगाई के दौर में आसानी से गुजारा कर पाएंगे। उन्होंने मांग की है की इस बजट सत्र के दौरान उनके लिए स्थाई नीति की घोषणा की जाए।
शारीरिक शिक्षा अध्यापक प्रदेश के स्कूलों में 100 विद्यार्थियों वाली शर्त को हटाने की मांग कर रहे है। अपनी मांगों को लेकर बीते दिनों राजकीय शारीरिक शिक्षा अध्यापक संघ का एक प्रतिनिधि मंडल शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर भी मिला। प्रतिनिधि मंडल ने शिक्षा मंत्री से आग्रह किया कि हिमाचल प्रदेश के सभी माध्यमिक विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा अध्यापकों के पदों को भरा जाये तथा 100 विद्यार्थियों वाली शर्त को हटाया जाए। संघ के अनुसार प्रदेश में शारीरिक शिक्षा अध्यापकों के 380 पद खाली चल रहे है जिन्हें अतिशीघ्र भरा जाना चाहिए। शारीरिक शिक्षा अध्यापक संघ के राज्य कोषाध्यक मनोहर लाल ठाकुर एवं जिला महासचिव गिरधारी शर्मा के बताया कि इसके अतिरिक्त संघ की मांग है की वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में डीपीई के पदों को सृजित किया जाए, जिससे फिट इंडिया प्रोग्राम को सफल बनाया जा सके। संघ चाहता है कि जिला सहायक शिक्षा अधिकारी एपीडीएओ के पदों को स्थाई किया जाए तथा एडीपीईओ के पदनाम बदल कर डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स ऑफिसर रखा जाए। इन सभी मांगों पर शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा गया। संघ के पदाधिकारियों का कहना है की मंत्री ने सभी मांगों को ध्यानपूर्वक सुना और उन्हें पूरा करने का भी आश्वासन दिया।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आंगनबाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन सम्बन्धित सीटू के बैनर तले हिमाचल प्रदेश के सैंकड़ों आंगनबाड़ी कर्मियों ने विधानसभा शिमला के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदेशभर के आंगनबाड़ी कर्मी पंचायत भवन शिमला में एकत्रित हुए व एक जुलूस के रूप में विधानसभा की ओर कूच किया। प्रदर्शन के दौरान यूनियन का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला व उन्हें बारह सूत्रीय मांग-पत्र सौंपा। मुख्यमंत्री ने आगामी बजट में कर्मियों की मांगों को पूर्ण करने का आश्वासन दिया। यूनियन ने चेताया है कि अगर बजट में मांगें पूर्ण न हुईं तो 28-29 मार्च को आंगनबाड़ी कर्मी राष्ट्रव्यापी हड़ताल में शामिल होकर आंदोलन तेज करेंगे। विदित रहे कि प्रदेशव्यापी हड़ताल के दौरान प्रदेश के अठारह हजार आंगनबाड़ी केंद्र बन्द रहे व लगभग सैंतीस हजार आंगनबाड़ी योजना कर्मी प्रदेशव्यापी हड़ताल पर रहे। ये है मुख्य मांगे : आंगनबाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन कि मांग है कि प्री प्राइमरी में तीस के बजाए सौ प्रतिशत नियुक्ति दी जाए। नियुक्ति प्रक्रिया में 45 वर्ष की शर्त को खत्म किया जाए। साथ ही प्री प्राइमरी कक्षाओं में छोटे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा केवल आंगनबाड़ी कर्मियों को दिया जाए क्योंकि वे पहले से ही काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इसके अलावा मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों में कार्यरत कर्मियों को पूर्ण कर्मी का दर्ज़ा दिया जाए व उन्हें आंगनबाड़ी कर्मियों के बराबर वेतन दिया जाए। आंगनबाड़ी कर्मियों को नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत वर्ष 2013 की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त किया जाए। सुपरवाइजर नियुक्ति में आंगनबाड़ी कर्मियों की नब्बे प्रतिशत भर्ती सुनिश्चित की जाए व इसकी पात्रता के लिए भारतवर्ष के किसी भी मान्यता प्राप्त विश्विद्यालय की डिग्री को मान्य किया जाए। वरिष्ठता के आधार पर मेट्रिक व ग्रेजुएशन पास तथा दस साल का कार्यकाल पूर्ण करने वाले कर्मियों की सुपरवाइजर श्रेणी में तुरन्त भर्ती की जाए। आंगनबाड़ी कर्मियों को अन्य राज्यों की तर्ज़ पर सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। उन्हें वर्ष 2013 व 2014 में हुए 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मी का दर्ज़ा दिया जाए व श्रम कानूनों के दायरे में लाया जाए। उन्हें हरियाणा की तर्ज़ पर साढ़े ग्यारह हजार रुपये वेतन दिया जाए। उनकी रिटायरमेंट की आयु अन्य राज्यों की तर्ज़ पर 65 वर्ष की जाए। अन्य राज्यों की तर्ज़ पर उन्हें दो लाख रुपये ग्रेच्युटी,तीन हज़ार रुपये पेंशन,मेडिकल व छुट्टियों आदि की सुविधा लागू की जाए। आईसीडीएस का निजीकरण मंजूर नहीं : यूनियन अध्यक्ष नीलम जसवाल व महासचिव वीना शर्मा ने कहा कि नन्द घर बनाने की आड़ में आईसीडीएस को वेदांता कम्पनी के हवाले करके निजीकरण की साजिश तथा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, पोषण ट्रैकर ऐप व बजट कटौती आदि मुद्दों पर अगर ज़रूरत हुई तो हरियाणा, दिल्ली, पंजाब,आंध्र प्रदेश आदि की तर्ज़ पर हिमाचल प्रदेश के आंगनबाड़ी कर्मी अनिश्चितकालीन आंदोलन करने से भी गुरेज नहीं करेंगे। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आईसीडीएस का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी वर्कर्स को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो आंदोलन और तेज होगा। उन्होंने नई शिक्षा नीति को भी वापिस लेने की मांग की है क्योंकि यह आइसीडीएस विरोधी है। इनके अनुसार नई शिक्षा नीति में आईसीडीएस के निजीकरण का एजेंडा छिपा हुआ है। आईसीडीएस को वेदांता कम्पनी के हवाले करने के लिए नंदघर की आड़ में निजीकरण को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा क्योंकि इस से भविष्य में कर्मियों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ेगा।
डॉक्टरों की पेन डाउन स्ट्राइक रंग लाई है और सरकार ने डॉक्टरों की लंबित मांगें मान ली है। अब हिमाचल प्रदेश में डॉक्टरों की नियमित भर्तियां साल में दो बार कमीशन के तहत होगी और हर वर्ष डॉक्टरों के लिए पर्याप्त भर्तियां निकाली जाएंगी। डॉक्टर एसोसिएशन की विधानसभा में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ दो घंटे तक बैठक हुई, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री राजीव सैजल, मुख्य सचिव, वित्त सचिव, स्वास्थ्य सचिव भी मौजूद रहे। मुख्यमंत्री ने चिकित्सकों की मांगों को तसाली से सुना भी और अधिकारियों को उनको पूर्ण करने के निर्देश भी दिए। खुद मुख्यमंत्री से सकरात्मक आश्वासन मिला तो डॉक्टरों ने भी पेन डाउन हड़ताल स्थगित कर दी। अब जल्द अनुबंध पर लगे डॉक्टरों के लिए नॉन प्रैक्टिस एलाउंस (एनपीए) की अधिसूचना भी जल्द जारी की जाएगी। वहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के हस्तक्षेप के बाद डॉक्टरों की मांगों पर एक कमेटी का गठन किया गया है। यह कमेटी स्वास्थ्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई है। इस कमेटी में 12 लोग है, मेडिकल ऑफिसर संघ के पांच प्रतिनिधि भी शामिल है। कमेटी को दो महीने के अंदर रिपोर्ट सरकार को सौंपनी होगी। इसके बाद सरकार की ओर से अगला कदम उठाया जाएगा। एसोसिएशन अध्यक्ष डॉ. राजेश सूद ने कहा कि दो महीने के भीतर मांगें पूरी नहीं होती हैं तो संघर्ष दोबारा शुरू होगा। एसोसिएशन महासचिव पुष्पेंद्र वर्मा ने कहा कि वेतन की सीलिंग को 2.18 लाख से बढ़ाकर 2,24,100 रुपये करने पर सहमति बन गई है। 20 फीसदी नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस भी 1 जनवरी 2022 से लागू होगा और इसे एनपीए को बेसिक का हिस्सा मानने पर सहमति बनी है। 4-9-14 पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इसकी अधिसूचना जल्द जारी होगी। चिकित्सकों का विशेषज्ञ भत्ता बढ़ाने, मेडिकल कॉलेज में काम कर रहे डॉक्टरों के लिए एकेडमिक भत्ते पर भी सहमति बनी है। कमेटी अपनी सिफारिशें आठ सप्ताह में पेश करेगी।
प्रदेश में 2009 की अधिसूचना को लागू भी किया गया और कर्मचारियों के साथ बैठकर कर वार्ता भी हुई लेकिन फिर भी पुरानी पेंशन बहाली के लिए शुरू हुई पदयात्रा को रोका नहीं जा सका। प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए कई फरमान भी जारी हुए, वेतन काटने और प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने के फरमान भी जारी किये गए, मगर पदयात्रा पर निकले कर्मचारियों के इरादे नहीं बदले। जाहिर है कर्मचारी अब रुकने वाले नहीं है और आर पार की लड़ाई के मूड में है। प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली के लिए पदयात्रा की जा रही है। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विभागों में तैनात सभी वर्ग के कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली के लिए राजधानी शिमला तक पैदल यात्रा पर निकल गए हैं। पदयात्रा की शुरुआत मंडी शहर के ऐतिहासिक सेरी मंच से हुई। नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले शुरू हुई इस पदयात्रा को कर्मचारियों का पूरा सहयोग मिलता हुआ दिखाई दे रहा है और जहां भी कर्मचारी पहुँच रहे है वहां उनका स्वागत किया जा रहा है। कर्मचारी बिलासपुर जिला मुख्यालय होते हुए 3 मार्च को शिमला पहुचेंगे और वहां पर विधानसभा का घेराव कर पुरानी पेंशन बहाली के लिए धरना प्रदर्शन किया जाएगा। स्पष्ट है ये मांग अब बड़े आंदोलन का रूप ले चुकी है। उधर मुख्यमंत्री कर्मचारियों की हड़तालों और प्रदर्शनों से नाराज़ है और कई तरह की चेतावनियां भी दी जा रही है। मगर कर्मचारी मानने को तैयार नहीं है। इस पदयात्रा को रोकने के लिए कई प्रयास भी किये गए। पत्र जारी कर कर्मचारियों को वार्ता के लिए बुलाया गया, कर्मचारी वार्ता के लिए पहुंचे भी परन्तु कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल पाया। इसके बाद सरकारी कर्मचारियों के धरने प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए सरकार ने फरमान जारी किया की सूबे के कर्मचारी अगर हड़ताल पर गए तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने सिविल सर्विस रूल्स 3 और 7 का हवाला देते हुए आदेश जारी किए हैं कि प्रदर्शन, बहिष्कार, पेन डाउन स्ट्राइक और इस तरह की अन्य गतिविधियों में शामिल सरकारी कर्मचारियों का वेतन काटा जाएगा और साथ ही कर्मचारियों पर अपराधिक मामला भी दर्ज होगा। पर सरकार की इस चेतावनी के बाद भी पदयात्रा जारी रही। हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी सरकार से तुरंत पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग कर रहे है। विधानसभा के शीत सत्र के दौरान पेंशन बहाली के लिए कमेटी के गठन की घोषणा की गई थी जो की अब तक पूरी नहीं हुई। कमेटी का गठन नहीं किया गया और अब कर्मचारी चाहते है की बिना कमेटी के गठन के सीधे पेंशन बहाली की घोषणा की जाए। इस मुद्दे पर सरकार का पक्ष है की वर्तमान वित्तीय परिस्थितियों के अनुसार फिलवक्त पुरानी पेंशन बहाल नहीं की जा सकती। हालांकि पेंशन बहाली से सरकार पूरी तरह इंकार भी नहीं कर रही। सरकार का कहना है की पहले कर्मचारी अपनी पदयात्रा समाप्त करे और फिर चर्चा के माध्यम से इस मसले का हल निकलने की कोशिश की जाएगी, परन्तु कर्मचारी अब चर्चा नहीं एक्शन चाह रहे है। कर्मचारियों को मिला विपक्ष का साथ : पुरानी पेंशन के मुद्दे को विपक्ष भी खूब भुनाने में लगा है। हर विधायक की जुबान पर पुरानी पेंशन का मुद्दा है। कांग्रेस अब कर्मचारियों को यकीन दिला रही है कि सत्ता वापसी की स्थिति में पुरानी पेंशन बहाल की जाएगी। दरअसल राजस्थान में कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली के बाद हिमाचल कांग्रेस के हौसले भी बुलंद हुए है। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री कह चुके है की कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो पुरानी पेंशन योजना बहाल करेगी। राजस्थान से कांग्रेस सरकार ने इसकी शुरुआत कर दी है। अन्य राज्यों को भी इसे लागू करना पड़ेगा। पदयात्रा के समर्थन में शिमला पहुंचेगे राजन सुशांत : पूर्व सांसद डॉ. राजन सुशांत भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग सरकार से कर रहे है। सुशांत का कहना है कि राजस्थान में 1 जनवरी 2004 से बंद पड़ी कर्मचारियों की ओपीएस को लागू करने की घोषणा की है, इसका वे स्वागत करते हैं और उम्मीद करते है की हिमाचल सरकार भी पेंशन बहाल करेगी। राजन सुशांत पूरी तरह कर्मचारियों के समर्थन है और पदयात्रा के समर्थन में वे शिमला भी पहुंचेंगे। चर्चा का वक्त गया, अब फैसले की घड़ी : प्रदीप नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है कि अब चर्चा के लिए कुछ शेष नहीं रहा है और फैसला लेने का वक्त है। वे कई बार मुख्यमंत्री, मंत्रियों व विधायकों तक अपनी मांग चर्चा के माध्यम से पहुंचा चुके है। पुरानी पेंशन की बहाली पर प्रदेश सरकार के ढुलमुल रवैये से परेशान सरकारी कर्मचारी भारी रोष के चलते राजधानी शिमला के लिए पैदल मार्च करने को मजबूर हैं। कर्मचारी बिलासपुर जिला मुख्यालय होते हुए 3 मार्च को शिमला पहुंचेंगे और वहां पर विधानसभा का घेराव कर पुरानी पेंशन बहाली के लिए धरना प्रदर्शन किया जाएगा। कर्मचारियों की पदयात्रा नेशनल हाईवे होकर ही जाएगी। इस दौरान उनके साथ कर्मचारी संगठन व अन्य संगठन भी जुड़ते जाएंगे। यह एक ऐतिहासिक धरना प्रदर्शन रहेगा।
आगामी बजट सत्र से हिमाचल प्रदेश में कार्यरत हजारों आउटसोर्स कर्मचारियों को काफी उम्मीदें है। ये कर्मचारी एक लम्बे समय से स्थाई नीति की मांग कर रहे है, मगर अब तक आश्वासनों के सिवा कुछ खास हाथ नहीं आया। अब बजट सत्र इनके लिए उम्मीद की नई किरण बनकर आया है। ये बजट इस सरकार के कार्यकाल का अंतिम बजट है और इसीलिए कर्मचारियों को इससे खूब उम्मीदें है। बीते 18 सालों से आउटसोर्स कर्मचारी प्रदेश के विभिन्न विभागों में ड्यूटी दे रहे हैं लेकिन उन्हें सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली कोई भी सुविधाएं नहीं मिलती। हालांकि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कैबिनेट की सब कमेटी का गठन जरूर किया गया परन्तु इस कमेटी की बैठक के बाद भी कर्मचारियों को बजट तक इंतजार करने का आश्वासन दिया गया। दरससल लम्बे समय से इन कर्मचारियों का ब्यौरा सरकार एकत्र करने का प्रयास कर रही है और इसी को विलम्ब का बड़ा कारण भी बताया जा रहा है। अब उम्मीद तो है परन्तु कर्मचारी पूरी तरह आश्वस्त हो ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसीलिए सरकार के आश्वासन के बाद भी आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ ने राज्य स्तरीय बैठक कर प्रदेश के 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति बनाने की मांग फिर दोहराई है। शिमला में आउटसोर्स कर्मचारियों के प्रतिनिधि जुटे और समस्याओं पर मंथन किया। हिमाचल आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ की मांग है कि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए बजट सत्र में किसी ठोस नीति का प्रावधान किया जाए। इन कर्मचारियों का कहना है कि यदि इस दफे भी इन कर्मचारियों को लटकाया गया तो ये सब मिलकर सरकार के खिलाफ संघर्ष का रास्ता अपनाएंगे। महासंघ का कहना है कि प्रदेश में विभिन्न कंपनियों व ठेकेदारों द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है। सरकार से ठोस नीति बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई फैसला नहीं लिया है । हर बार आश्वासन ही दिए गए। आउटसोर्स कर्मचारी सोसाइटी और कंपनियों के माध्यम से लगे हैं। ये कर्मी पिछले 18 साल से सरकारी विभागों में सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इन्हें स्थायी करने के बारे में सोचा नहीं जा रहा है। महासंघ का कहना है कि सोसाइटी या कंपनी विभाग की मांग के अनुसार पैनल बनाकर विभाग के पास नाम भेजती है। इसके बाद विभागीय कमेटी इंटरव्यू लेकर आउटसोर्स पर रखती है। पर इसके बाद भी इनको नियमित नहीं किया जा रहा। हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है कि प्रदेश के विभिन्न विभागों में हजारों कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा गया है लेकिन सरकार द्वारा इनके नियमितीकरण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और न ही इनके शोषण को कम करने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। इनका कहना हैं कि कोरोना काल जैसी विकट परिस्थिति में भी सरकार इनकी सेवाएं लेती रही, मगर जब बात इनकी मांगो को पूरी करने की आती हैं तो ये ही कर्मचारी सरकार की आंखों में चुभने लगते हैं। मुश्किल में कोई साथ नहीं देता : शैलेन्द्र हिमाचल आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा के अनुसार कुछ दिन पहले ही एक मामला सामने आया था जिसमें बिजली विभाग में नियुक्त एक आउटसोर्स कर्मचारी की करंट लगने से हालत गंभीर हो गई। उसे आईजीएमसी तक रेफर कर दिया गया मगर न तो ठेकेदार ने उसकी कोई सहायता की और न ही सरकार ने। इसी तरह आउटसोर्स पर तैनात नर्सेज, अध्यापक और जल शक्ति विभाग के कर्मचारियों के शोषण की खबर भी आये दिन सामने आती रहती है। कमीशन काटकर वेतन देते हैं ठेकदार : आउटसोर्स कर्मचारी वे कर्मचारी हैं जिनको सरकारी विभागों में अनुबंध आधार पर रखा जाता है। यानी कि ये सरकारी विभाग में तो हैं पर सरकारी नौकरी में नहीं हैं। इनकी नियुक्तियां या तो ठेकेदारों के माध्यम से की जाती है या किसी निजी कंपनी के माध्यम से। ये कर्मचारी काम तो सरकार का करते है मगर इन्हें वेतन ठेकेदार या कंपनी द्वारा मिलता है। न तो इन्हें सरकारी कर्मचारी होने का कोई लाभ प्राप्त होता है न ही एक स्थिर नौकरी। इन्हें जब चाहे नौकरी से निकाला जा सकता है। सरकार द्वारा वेतन तो दिया जाता है मगर ठेकेदार की कमिशन के बाद ही इन तक तक पहुंच पाता है। .......................................................................... मांग : वेतनमान में विसंगतियां दूर हो - हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने की सरकार से मांग फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ (एचपीएसएलए) ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि नए वेतनमान में विसंगतियों को दूर किया जाएं। संघ का कहना है कि हिमाचल सरकार का 1972 से कर्मचारियों से करार है कि पंजाब पे कमीशन को हिमाचल के कर्मचारियों पर यथावत रूप में लागू किया जाएगा, उसे सरकार पूरा करे। साथ ही संघ ने चेताया है कि यदि उनकी मांग नहीं मानी जाती तो जल्द ही एसोसिएशन जनरल हाउस बुलाकर सबकी सहमति से अगली रणनीति तैयार करेगी और सरकार को इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ का कहना है कि पंजाब में 2016 के बाद जितने भी नियमित कर्मचारी हैं उन सबको नियुक्ति की तिथि से गुणांक 2.59 और 2.25 दिए जा रहे हैं, जिनसे क्रमश: उनकी इनिशियल स्टार्ट 43000 और 47000 रुपए बनती है। इनकी मांग है कि जिस प्रकार पंजाब में बढ़े हुए ग्रेड पे 5400 के साथ 2016 में नियुक्त हुए नए प्रवक्ताओं को 47000 से इनिशियल स्टार्ट दिया है, इसी तरह हिमाचल में भी दिया जाए। संघ के प्रदेश महासचिव संजीव ठाकुर ने कहा कि पंजाब पे कमीशन को हिमाचल के कर्मचारियों पर यथावत रूप में लागू किया जाएं। ........................................................................................ पदोन्नति में समय अवधि कम करने पर जताया आभार फर्स्ट वर्डिक्ट . शिमला हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दुनी चंद ठाकुर एवं प्रदेश महामंत्री नेकराम ठाकुर ने बिजली बोर्ड में कार्यरत जूनियर टी मेट एवं जूनियर हेल्पर की पदोन्नति के लिए समय अवधि 4 वर्ष से 3 वर्ष करने पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का आभार व्यक्त किया है। उन्हें 14 फरवरी 2022 की बिजली बोर्ड की बीओडी की बैठक में स्वीकृति दी गई है जिसकी पुष्टि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी ने अपने प्रेस संबोधन में की है। तकनीकी कर्मचारी संघ ने भारतीय मजदूर संघ का भी धन्यवाद प्रकट किया है क्योंकि 8 फरवरी 2022 को भारतीय मजदूर संघ ने मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में ये मुद्दा उजागर किया था। इस बैठक में तकनीकी कर्मचारी संघ ने भी जूनियर टी मेट और जूनियर हेल्पर के विषय को बड़ी गंभीरता से रखा था जिस पर मुख्यमंत्री ने बिजली बोर्ड को उनकी घोषणा के अनुरूप आदेश करने के निर्देश दिए थे। इसके साथ ही प्रदेश अध्यक्ष ने हिमाचल सरकार वह बिजली बोर्ड प्रबंधन से यह भी मांग की है कि बिजली बोर्ड के कर्मचारियों को भी संशोधित वेतनमान तुरंत प्रभाव से दिए जाएं क्योंकि हिमाचल सरकार ने अन्य विभागों के कर्मचारियों को इस माह के वेतन को संशोधित वेतनमान के अनुसार वेतन देने के आदेश किए हैं जिस पर बिजली बोर्ड के कर्मचारी भी स्वभाविक तौर पर नए वेतन की आस लगाए हुए हैं। ............................................................................ पुरानी पेंशन : इंतजार की इन्तेहां हो गई, फिर विधानसभा घेराव की तैयारी फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला इंतजार की इन्तेहां हो गई है और अब कर्मचारी बात मानने के मूड में बिलकुल भी नजर नहीं आ रहे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए कर्मचारियों की अनगिनत याचनाएं धरी की धरी है पर सुनवाई होती नहीं दिख रही। सुनवाई होती भी है तो कच्चे पक्के आश्वासन कर्मचारियों को थमा दिए जाते है, पर मांग को पूरी तरह मानने से सरकार बचती हुई दिखाई दे रही है। प्रदेश के हर विधायक, हर मंत्री के दर पर दस्तक देने के बावजूद कुछ ठोस होता नहीं दिख रहा। इसी बीच विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने जा रहा हैं और संभवतः एक बार फिर कर्मचारियों का उग्र प्रदर्शन देखने को मिले। बस धर्मशाला के तपोवन की जगह कर्मचारी शिमला के चौड़ा मैदान में डेरा डालेंगे और पुरानी पेंशन के लिए विधानसभा का घेराव होगा। पुरानी पेंशन बहाली के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहा न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ अब प्रदेश सरकार से आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है। पुरानी पेंशन बहाली के लिए महासंघ ने प्रदेश के बजट सत्र के दौरान 3 मार्च को सरकार का घेराव करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय मंडी में आयोजित न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ की राज्य स्तरीय बैठक में लिया गया। बैठक में महासंघ के साथ जुड़े प्रदेश भर के पदाधिकारी व कर्मचारी पहुंचे और तय किया गया कि अब याचना नहीं रण होगा। रणनीति विधानसभा के घेराव की बनाई गई है। प्रदेश के हज़ारों कर्मचारियों से शिमला आने की दरख्वास्त की जा रही और महासंघ की माने तो अधिकतर की सहमति मिलती भी दिखाई देने लगी है। यानि एक बार फिर विधानसभा के शीतसत्र के दौरान दिखा दृश्य शिमला में बजट सत्र के दौरान देखने को मिल सकता हैं। अब तक गठित नहीं हुई कमेटी : 10 दिसंबर को धर्मशाला के दाड़ी मैदान में भी कर्मचारियों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन सरकार के सामने किया था। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए थे और अंत में सरकार को झुकना पड़ा और पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया गया। अलबत्ता कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है जिससे कर्मचारियों में नाराज़गी है। महासंघ का कहना है कि सरकार अब कमेटी के गठन को छोड़ पुरानी पेंशन बहाल करें। 2009 की अधिसूचना लागू ,पर कर्मचारी मांगे पुरानी पेंशन : हाल ही में सरकार द्वारा कैबिनेट बैठक के दौरान 2009 की अधिसूचना लागू करने को मंजूरी दी गई है। मगर उससे भी कर्मचारी पिघलते हुए नजर नहीं आ रहे। कैबिनेट के अप्रूवल के बाद एनपीएस के तहत आने वाले सभी कर्मचारियों के लिए मृत्यु व अपंगता पर फैमिली पेंशन का प्रावधान किया गया है, मगर कर्मचारी अपनी एक मात्र मांग पुरानी पेंशन बहाली पर अटके हुए है। सरकार को कोई वित्तीय घाटा नहीं होगा : प्रदीप न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना हैं कि बजट सत्र के दौरान शिमला में प्रदेश भर से एक लाख से अधिक कर्मचारी एकत्रित होंगे। पुरानी पेंशन के लिए मंडी से शिमला तक पैदल यात्रा निकाली जाएगी और फिर विधानसभा पहुंचकर बजट सत्र के दौरान सरकार का घेराव किया जाएगा। ठाकुर का कहना है कि धर्मशाला में रैली के बाद महासंघ की प्रदेश के सरकार के साथ बैठक भी हुई थी। बैठक में प्रदेश सरकार को सुझाव दिया गया था कि यदि सरकार पुरानी पेंशन बहाल करती है, तो सरकार को 2009 की अधिसूचना लागू की वृद्धि होगी। परन्तु 2 महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने अभी तक कमेटी तक का गठन नहीं किया है नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि कर्मचारियों के वेतन का 10 प्रतिशत पैसा जबरदस्ती कंपनी को दिया जा रहा है और सरकार अपना 14 प्रतिशत पैसा भी कंपनी को दे रही है जिससे सरकार और कर्मचारी दोनों को नुकसान हो रहा है। नई पेंशन स्कीम से सिर्फ और सिर्फ कंपनी को ही फायदा हो रहा है जो सही नहीं है l पुरानी पेंशन पर सियासत भी भरपूर : पुरानी पेंशन बहाली के मुद्दे पर सियासत भी तेज है। विपक्ष कर्मचारियों को आश्वासन देकर सत्ता वापसी की स्थिति में पेंशन बहाल करने के सपने दिखा रहा है और भाजपा कर्मचारियों को याद दिला रही है कि प्रदेश में एनपीएस लाने वाली कांग्रेस ही थी जो आज इसे कर्मचारियों के अधिकारों का हनन बता रही है। पेंशन के मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का कहना है कि इस वक्त कोई भी प्रदेश पुरानी पेंशन देने की स्थिति में नहीं है। जहां कांग्रेस की सरकार है वहां भी पुरानी पेंशन कर्मचारियों को नहीं मिल रही। ऐसे में पहले से वित्तीय घाटे में चल रहे हिमाचल प्रदेश के लिए भी पुरानी पेंशन की वापसी करवाना आसान नहीं होगा।
- पदनाम बदलने की मांग भी कर रहा हिमाचल प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ हिमाचल प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि फार्मासिस्टों का 2 साल का प्रोबेशन समय समाप्त किया जाए। फार्मासिस्ट लगभग साढ़े 9 वर्ष का अनुबंध काल पूरा कर नियमित हुए हैं। इसके अलावा इन फार्मासिस्टों को सितंबर 2012 से 16290 बेसिक के हिसाब से वेतन दिया जाना चाहिए। वहीं पंजाब की तर्ज पर पे फिक्सेशन के लिए तीनो गुणांक भी दिए जाए ताकि रिकवरी से बचा जा सके। इनकी मांग है कि इनका पदनाम भी फार्मासिस्ट से फार्मेसी अफसर और चीफ फार्मासिस्ट से चीफ फार्मेसी अफसर किया जाए। संघ के अध्यक्ष चमन ठाकुर व महासचिव मनोज शर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग में सितंबर 2002 में अनुबंध आधार पर 71 फार्मासिस्टों की भर्ती हुई थी जो कि अब 50 ही रह गए हैं। इनकी भर्ती हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड हमीरपुर से 4550 रुपये प्रतिमाह वेतन पर हुई थी। लगभग साढ़े नौ साल बाद जनवरी 2012 में नियमित हुए। इनको 11470 बेसिक पर नियमित किया गया। सितंबर 2012 में पंजाब की तर्ज पर वेतन आयोग की सिफारिशों का हिमाचल प्रदेश में पुन: निर्धारण किया गया था। इसमें इनिशियल वेतन पंजाब की तर्ज पर 16290 न देकर 14500 रुपये दो साल के राइडर के बाद मिला। अब हिमाचल प्रदेश सरकार ने जो पंजाब पे कमीशन के हिसाब से अधिसूचना जारी की है, उस तर्ज पर दोनों गुणांकों 2.25 और 2.59 से इन फार्मासिस्टों को लगभग दो लाख की रिकवरी देनी पड़ जाएगी और यदि 15 फीसदी वेतन वृद्धि का विकल्प भी होता है तब भी इस बेसिक के हिसाब से रिकवरी देनी होगी। संघ ने सरकार से मांग की है कि इनकी मांगों का निवारण जल्द से जल्द किया जाए।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता मांग रहे कर्मचारी सरकार के आगे गुहार लगा कर थक चुके है मगर सरकार की तरफ से अब तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल पाया। 27 नवंबर 2021 को हुई जेसीसी की बैठक में इन कर्मचारियों से ये वादा किया गया था कि उनकी मांगों को पूरा करने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा और फिर कर्मचारियों की ये मांग पूरी की जाएगी। न अब तक मांग पूरी हुई और न ही कमेटी का गठन। ये वादों का सिलसिला नया नहीं है, काफी पुराना है। ये वो ही कर्मचारी है जिनसे कहा गया था कि जाती हुई सरकार की बात मत सुनो आती हुई सरकार की मानो। ये शब्द पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान कहे थे। इन कर्मचारियों से वादा किया गया था कि भाजपा के सत्ता में आते ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने हेतु कार्य किया जाएगा। खैर ये बात काफी पुरानी हो गई है मगर इसके बाद हाल ही में मुख्यमंत्री द्वारा किया गया वादा भी पूरा नहीं हुआ है। जाहिर है ऐसे में कर्मचारियों में रोष है। इनका कहना है कि जहां हर कर्मचारी वर्ग की मांगें पूरी की जा रही तो फिर इन्हें अनदेखा क्यों किया जा रहा है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का एक प्रतिनिधि मंडल संगठन बीते दिनों प्रदेश महामंत्री अनिल सेन की अध्यक्षता और अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेश महामंत्री राजेश शर्मा की अगुवाई में अपनी प्रमुख मांग यानी नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवा काल में जोड़ने के संदर्भ में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला l मुख्यमंत्री से आग्रह किया गया कि कमेटी का गठन करके अतिशीघ्र उनकी मांग को पूरा किया जाए l हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वर्तमान सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को हल्के में ना लें, क्योंकि उनकी संख्या 70 हजार के करीब है और यदि उनके परिवार के सदस्यों की संख्या को भी गिन लिया जाए तो यह 3 लाख के करीब हो जाती है यह संख्या मिशन रिपीट में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है l यदि सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता देती है व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ती है तभी मिशन रिपीट होगा l नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता नहीं तो मिशन रिपीट भी नहीं । अतः सरकार अति शीघ्र अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ने की घोषणा करें । डिमांड चार्टर में नंबर चार पर थी मांग : 27 नवंबर 2021 को शिमला में हुई संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के डिमांड चार्टर में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को नंबर चार पर रखा गया था l बैठक में इस हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने व संगठन के पदाधिकारियों को भी इसमें शामिल किये जाने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन ढाई महीने बीत जाने पर भी कमेटी का गठन नहीं हो पाया है l हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि सरकार ने अनुबंध कर्मचारियों का कार्यकाल 3 से 2 वर्ष तो कर दिया परंतु उन कर्मचारियों का क्या कसूर जिन्होंने 8 वर्ष,6 वर्ष,5 वर्ष और 3 वर्ष का लंबा कार्यकाल अनुबंध पर काटा है l कमीशन पास करके क्या कोई गुनाह किया है : सेन हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश महामंत्री अनिल सेन ने कहा कि प्रदेश सरकार प्रदेश के विभिन्न विभागों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक स्थाई नीति बनाने जा रही है जो कि एक स्वागत योग्य कदम है, परंतु दूसरी तरफ प्रदेश के विभिन्न विभागों में संवैधानिक तरीके से कमीशन पास करके व बैच वाइज आधार पर भर्ती अनुबंध से नियमित कर्मचारियों की इस जायज मांग को लगातार दरकिनार कर रही है l प्रदेश सरकार यह बताएं कि अनुबंध से नियमित कर्मचारियों के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों? उन्होंने कमीशन पास करके कोई गुनाह किया है क्या? नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता न मिलने के कारण अनुबंध से नियमित कर्मचारी मानसिक पीड़ा और कुंठा में हैं l एक ही विभाग में एक ही पद पर 5 वर्षों से कार्यरत कर्मचारी जूनियर हो गया है,और सिर्फ 5 महीने तक रहने वाला कर्मचारी सीनियर हो गया है, यह कहां का न्याय है l जूनियर हुए सीनियर : वर्ष 2008 में बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया और हाल ही में ये दो साल हो गया है। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंधकाल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, इसी को लेकर संगठन को आपत्ति है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुक्सान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती l अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं।
कंप्यूटर प्रोफेशनल एसोसिएशन हिमाचल प्रदेश ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व तकनीकी शिक्षा मंत्री राम लाल मारकंडा से उनकी मांगें पूरी करने की गुहार लगाई है। एसोसिएशन ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में वर्ष 2017 से लंबे पीजीटी आईपी के केस को शीघ्र निपटाने तथा पीजीटी आईपी विषय के नियुक्ति एवं पदोन्नति नियमों में से 5 वर्ष के शैक्षणिक अनुभव की शर्त को हटाने की मांग की है। एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष पीयूष सेवल ने कहा कि वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में जहां लगभग हर विषय में सरकार द्वारा विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्तियां की जा रही है, वहीं कंप्यूटर अध्यापकों की नियुक्तियों का कहीं जिक्र तक नहीं किया जा रहा है। जबकि वर्तमान समय में कंप्यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी की महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ने हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में लेक्चर कंप्यूटर साइंस विषय के चल रहे 850 से अधिक रिक्त पदों को भरने, हिमाचल प्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर कंप्यूटर एप्लीकेशन के पदों को भरने व हिमाचल प्रदेश के सभी स्कूलों में कंप्यूटर की शिक्षा को अनिवार्य रूप से पहली कक्षा से शुरू करने, हिमाचल प्रदेश में टीजीटी कंप्यूटर साइंस के पदों को सृजित करके उनकी नियुक्तियां करने तथा हिमाचल प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी के उद्योगों को स्थापित करने की मांग की गई है।
हिमाचल मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन ने पिछले डेढ़ साल से मुख्य चिकित्सा अधिकारी, चिकित्सा अधीक्षक, उपनिदेशक के पदों के लिए विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक बुलाने में हुई देरी पर कड़ा विरोध जताया है। एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ सुशील शर्मा ने कहा कि मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व इसके समकक्ष पदों के कम से कम 12 से 15 पद खाली हैं और सरकार ने इन पदों पर चिकित्सकों को उनकी नियमित पोस्टिंग से वंचित कर दिया है। उन्होंने कहा कि खंड चिकित्सा अधिकारियों के लिए पिछले तीन वर्षों से कोई डीपीसी नहीं हुई है क्योंकि स्वास्थ्य विभाग में नियमित बीएमओ के लगभग 25-30 पद खाली पड़े हुए हैं। हिमाचल मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन ने कहा कि सरकार ने चिकित्सकों के नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस को पंजाब की तर्ज पर 25 प्रतिशत से कम कर 20 प्रतिशत कर दिया है जो चिकित्सकों के साथ अन्याय है। एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ सुशील शर्मा ने सरकार से सवाल किया है कि जब नॉन प्रैक्टिसिंग एलाउंस को पंजाब की तर्ज पर कम किया गया तो बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को पंजाब की तर्ज पर क्यों नहीं रखा गया। सरकार ने एनपीए घटाने के साथ-साथ बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को कम करते हुए 218000 कर दिया जो पंजाब में 237600 है। डॉक्टर शर्मा ने कहा कि यह सरासर और सीधा प्रदेश के चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। संघ के सभी सदस्यों ने एकमत से सरकार से मांग की है कि चिकित्सकों का एनपीए बढ़ाया जाए और बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को भी बढ़ाया जाए।
पीडब्ल्यूडी विभाग में कार्यरत कनिष्ठ अभियंता पदोन्नति न मिलने से परेशान है। इनका कहना है कि करीब बीस सालों से इस विभाग में कनिष्ठ अभियंताओं की पदोन्नति रुकी हुई हैं और कनिष्ठ अभियंता बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो रहे हैं। प्रदेश कनिष्ठ अभियंता संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजीव कुमार शर्मा ने बताया कि आगामी 31 जनवरी को एक कनिष्ठ अभियंता की सेवानिवृति है, जो पदोन्नति रहित है। प्रदेशाध्यक्ष राजीव कुमार शर्मा और प्रदेश महासचिव विजय धीमान ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार पदोन्नति के मामले में कनिष्ठ अभियंताओं से सौतेला व्यवहार कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पीडब्ल्यूडी में करीब दो दशकों से पदोन्नतियां नहीं हो रही है, जिससे यह वर्ग स्वयं को हताश और निराश महसूस कर रहे हैं। इंजीनियर राजीव कुमार ने कहा कि समाज शायद सोचता होगा कि इनके सेवा कार्यकाल में न जाने कौन सा अपराध हुआ है कि यह लोग कभी सहायक अभियंता ही नहीं बन पाए। उन्होंने कहा कि पीडब्ल्यूडी में सहायक अभियंताओं के करीब 30 पद रिक्त चल रहे हैं लेकिन सरकार और विभाग के आलाधिकारी इस पर कोई गौर नहीं कर रहे हैं। बीस सालों से पदोन्नति की राह देख रहे कनिष्ठ अभियंताओं की मानसिक परेशानी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है लेकिन कोई उम्मीद की किरण दिख नहीं रही है। राजीव कुमार ने कहा कि यदि सरकार पदोन्नतियों का द्वार खोलती है तो नए युवाओं को नौकरी का अवसर मिलेगा और इन्हें भी पदोन्नति का अवसर मिल पाएगा। प्रदेश कनिष्ठ अभियंता संघ ने सरकार से मांग की वे जल्द इनकी पदोन्नति की मांग पर गौर करें ताकि कनिष्ठ अभियंता बिना पदोन्नति के सेवानिवृत न हो।
रोजगार की आस में दिन रात मेहनत की, खूब पढ़ाई की पेपर भी निकाला मगर अब जीसी दो माह से ज्वाइनिंग नहीं हो पा रही है। ये कहना है जूनियर ऑफिस एसिस्टेंट जेओए अकाउंट पोस्ट कोड 815 के तहत भर्ती का इंतज़ार कर रहे युवाओं का। कुछ समय पहले जूनियर ऑफिस एसिस्टेंट जेओए अकाउंट पोस्ट कोड 815 के तहत 45 पदों में रोजगार को लेकर विज्ञापन आया और उसकी तैयारी में युवा जुट गए। फार्म भरा, परीक्षा दी, परीक्षा पास की जब लंबे अंतराल के बाद परीक्षा परिणाम आया तो अब ज्वाइनिंग लटक गई है। ऐसे में रोजगार की आस लगाए बैठे युवा अभी तक बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं, लेकिन उनकी ज्वाइनिंग नहीं हो रही है। आस लिए बैठे युवा भर्ती करने वाले संस्थान से संपर्क कर रहे हैं तो संस्थान भी उन्हें आज कल का बहाना बनाकर लटका रहा है। ऐसे में जेओए अकाउंटस पोस्ट कोड 815 के लिए परीक्षा देकर पास हो चुके अभियार्थी ज्वाइनिंग न होने से परेशान हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं हैं। जेओए जूनियर ऑफिसर एसिस्टेंट पोस्ट कोड 815 के तहत 18 जून 2020 को पोस्ट निकली थी और इसका विज्ञापन प्रकाशित व प्रसारित हुआ। एचपीएसएसबी ने 27 दिसंबर 2020 को प्रदेश के हर एक मुख्यालय में पेपर आयोजित हुआ। 31 मई 2021 को परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया। इसके बाद पांच जुलाई 2021 को डाक्युमेंट जांचे गए। 29 नवंबर को फाइनल रिजल्ट घोषित किया गया लेकिन उसके बाद अभी तक कोई ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है। प्रार्थी अजय कुमार, गुरमीत, अरविंद कुमार, पंकज, विशाल, मनीष ने बताया कि 29 नवंबर को फाइनल परीक्षा परिणाम घोषित हो गया पर अभी तक उनकी ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है। ऐसे में उन्हें परेशानी से दो चार होना पड़ रहा है। जब भी हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी चयन आयोग में पता करते हैं तो जवाब यही मिलता है कि 15 दिन में ज्वाइनिंग हो जाएगी पर ज्वाइनिंग नहीं हो रही है। इस लिए बोर्ड से आग्रह है कि जल्द से जल्द ज्वाइनिंग करवाई जाएं।
राज्य स्वास्थ्य समिति यानि एनएचएम अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ का कहना है कि उन्हें विभिन्न पदों पर सेवाएं देते हुए 23 वर्ष से अधिक समय हो गया है, लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से कोई लाभ नहीं दिया जा रहा है। महासंघ ने सरकार को स्थाई नीति बनाने का अल्टीमेटम दिया है। राज्य स्वास्थ्य समिति अनुबंध कर्मचारी संघ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर दो फरवरी को सांकेतिक हड़ताल की चेतावनी भी दी है। एनएचएम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन चंद शर्मा ने कहा कि सरकार कर्मचारियों को जब तक नियमित नहीं करती तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तत्त्वावधान में लगभग 1600 कर्मचारी पिछले 23 वर्षों से अपनी सेवाएं राज्य स्वास्थ्य समिति के अंतर्गत देते आ रहे हैं। इनके लिए न तो सरकार ने कोई स्थायी नीति बनाई और न ही स्थाई नीति बनाने की दिशा में कोई कारगर कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि एनएचएम कर्मचारी लंबे समय से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, इनमें से कुछ सेवानिवृत्त भी हो गए हैं, लेकिन आज तक सरकार कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति नहीं बना पाई हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार जल्द इनके लिए स्थाई नीति बनाने की अधिसूचना जारी नहीं करती है तो प्रदेश व्यापी हड़ताल की जाएगी जिसकी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की होगी। इनका कहना है कि न्यूनतम वेतन पर सेवाएं देने पर वर्ष 2016 में तत्त्कालीन सरकार ने मंत्रिमंडल में रेगुलर पे स्केल देने के लिए अधिसूचना जारी थी, लेकिन उसे सरकार ने लागू नहीं किया। वहीं जेसीसी की बैठक हुए डेढ़ माह हो गया है, लेकिन फाइल पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इनका आरोप है कि जब राज्य में कोई एचआर पॉलिसी ही नहीं है तो सेवानिवृत्ति की उम्र 58 की अधिसूचना सरकार कहां से लाई है ? स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग हिमाचल प्रदेश में हजारों पद खाली हैं जिनमें कर्मचारियों को मर्ज कर भरा जा सकता है। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि यदि सरकार उनके लिए कोई स्थाई नीति बनाती है तो वे सरकार का धन्यवाद करेंगे अन्यथा मजबूरन हिमाचल प्रदेश के समस्त एनएचएम कर्मचारी एक दिन की सांकेतिक हड़ताल करेंगे, जिसे लंबे समय तक भी जारी रखा जा सकता है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि अगर, इस हड़ताल के दौरान किसी भी प्रकार की कोई भी जानमाल की हानि होती है तो उसके लिए मात्र हिमाचल प्रदेश सरकार व प्रशासन जिम्मेवार होगा।
हिमाचल प्रदेश शिक्षक महासंघ ने पंजाब की तर्ज पर 15 फीसदी बढ़ोतरी के साथ वेतनमान को प्रदेश में लागू करने की मांग की है। महासंघ के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को वेतन विसंगतियों को लेकर हिमाचल और पंजाब के वेतनमान की तुलनात्मक रिपोर्ट सौंप कर पूरे मामले से अवगत कराया। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय सचिव पवन मिश्रा और शिक्षक महासंघ के प्रांत महामंत्री डॉ. मामराज पुंडीर ने बताया कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश के सभी कर्मचारियों की वेतन से संबंधित समस्याओं को दूर करने का आश्वासन दिया है। ये है मुख्य मांगे -पंजाब की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में भी 2.25, 2.59 और 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ वेतनमान को लागू किया जाए। -कर्मचारियों को आप्शन चुनने की एक महीने की अवधि को बढ़ाया जाए। -पंजाब में लागू वेतनमान को हिमाचल में यथावत लागू किया जाए। -प्रदेश में एक जनवरी 2016 में नियुक्त सभी वर्ग के अध्यापकों को पंजाब की तर्ज पर इनिशियल स्केल दिया जाए। कंप्यूटर और एसएमसी अध्यापकों के मसले भी उठाएं मुख्यमंत्री को अवगत करवाया गया है कि हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को भत्ते पंजाब के आधार पर नहीं दिए जाते हैं। इस कारण प्रदेश का कर्मचारी पिछड़ता जा रहा है। प्रदेश में कंप्यूटर और एसएमसी अध्यापकों का वर्ग ऐसा भी है जिनको पिछले 20 वर्ष और 10 वर्ष की सेवा के बाद भी करीब दस हजार वेतन ही दिया जा रहा है। महासंघ ने इन शिक्षकों के लिए नीति बना कर इन्हें नियमित अध्यापक के बराबर वेतन देने का प्रावधान करने की मांग भी रखी। - डॉ मामराज पुंडीर, प्रांत महामंत्री, शिक्षक महासंघ।
जब प्रदेश में कोरोना के मामले बढ़ते है तो जनता को घर में रहने की हिदायत देकर पुलिस जवानों को बाहर तैनात कर दिया जाता है, खतरे की आशंका हो तो इन्हें अलर्ट कर दिया जाता है, और जब सुरक्षा व्यवस्था पर आंच आए तो इन्हें सवालों के कठघरे में भी खड़ा किया जाता है। पुलिस के भरोसे हर आम नागरिक सुरक्षित महसूस करता है, परन्तु इन दिनों हिमाचल के पुलिस जवान स्वयं परेशान है। प्रदेश की सुरक्षा करने वाले पुलिस के जवान लगातार सरकार से अपने हितों की रक्षा की गुहार लगा रहे है। मगर न तो सरकार सुन रही है और न ही उनकी मांगों पर कोई फैसला होता दिखाई दे रहा है। बावजूद इसके आम कर्मचारियों की तरह पुलिस कांस्टेबल अपनी मांगों को लेकर न तो हो हल्ला मचा सकते है, न सड़कों पर निकल कर नारे लगा सकते है और न ही जमघट बना कर हड़ताल कर सकते है। अनुशासन के दायरों में बंधी पुलिस फ़ोर्स के लिए सरकार तक अपनी बात पहुंचा पाना ही एक बड़ी चुनौती है। विभिन्न माध्यमों से सन्देश पहुंचाने की कोशिश की जाती है। कभी बटालियन की मेस में खाना छोड़ दिया जाता है तो कभी सोशल मीडिया पर #justiceforpolice अभियान चलाया जाता है, मगर सवाल ये है कि क्या बिना संख्या बल दिखाए सरकार इनकी बात मानेगी। भाजपा सरकार के कार्यकाल का अंतिम वर्ष है। इस अंतिम वर्ष रिपीट की उम्मीद लिए सरकार हर तबके की समस्याएं हल करने की कोशिश कर रही है। कर्मचारी वर्ग को राहत पहुँचाने का सिलसिला भी जारी है। जेसीसी की बैठक के दौरान कई कर्मचारी वर्गों की मांगे पूरी हुई मगर जो हताश हुए उनमें से एक प्रदेश के पुलिस कांस्टेबल भी है। पुलिस जवानों को उम्मीद थी की बाकि अनुबंध कर्मचारियों की तर्ज पर उनका प्रोबेशन पीरियड भी घटाया जाएगा। 2015 बैच के बाद भर्ती हुए पुलिस कर्मियों का प्रोबेशन पीरियड 8 साल का है यानी उन्हें सेवाएं शुरू करने के 8 साल बाद हायर पे बैंड और ग्रेड पे मिलता है। पुलिस कर्मियों का कहना है कि 8 साल बहुत लम्बी अवधि है। किसी भी सरकारी कर्मचारी को नियुक्ति के तीन साल बाद ही हायर पे बैंड मिल जाता था परन्तु अब तो इसे भी घटा कर 2 वर्ष कर दिया गया है। परन्तु पुलिस कर्मियों को 8 वर्ष का इंतजार करना पड़ता है। अब आलम ये है कि पुलिस कांस्टेबल निरंतर सरकार पर अनदेखी का आरोप जड़ रहे है। करीब दो माह पूर्व पुलिस जवानों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से अन्य कर्मियों की तरह दो साल के बाद हायर पे-बैंड और 3200 ग्रेड-पे देने की मांग की थी जो पूरी नहीं हो पाई। इसके बाद सीएम के सरकारी आवास का घेराव कर सैकड़ों कांस्टेबल नाराजगी जताने पहुंचे। फिर इस मांग पर मंथन के लिए सीएम ने अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया। इस कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर मुख्यमंत्री को भेजी परन्तु अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया। ऐसे में 2015 बैच के बाद भर्ती हुए पुलिस कर्मियों ने मेस बंद कर दी। बता दें कि प्रदेशभर में 2015 बैच के बाद के करीब 5500 पुलिस कर्मी हैं, जिन्हें हायर-पे बैंड का लाभ नहीं मिल रहा है। जमकर हो रही सियासत पुलिस कांस्टेबल के इस मसले पर सियासत भी खूब हो रही है। भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे को पुलिस कर्मियों की इस स्थिति का ज़िम्मेदार बता रहे है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने भी पुलिस कर्मियों को हायर पे बैंड न मिलने के मसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। हालांकि कांग्रेस ने भी सत्ता रहते इस मसले पर कुछ नहीं किया था। वहीं पुलिस जवानों का कहना है कि हिमाचल पुलिस राष्ट्रपति कलर से सम्मानित पुलिस बल है, ये राष्ट्रपति कलर आसमान से गिर कर नहीं मिलता है। दशकों की मेहनत, ईमानदारी, स्वच्छ छवि से मिला है। पुलिस कर्मियों का कहना है कि अगर सरकार का सौतेला व्यवहार आगे भी जारी रहा, तो वे अनुशासन का ध्यान नहीं रखेंगे।
" वन विभाग में 35 साल सेवाएं देने के बाद मंडी के अमर सिंह वर्ष 2020 में रिटायर हुए। लगा पेंशन के सहारे बुढ़ापा स्वाभिमान के साथ गुजर जायेगा, पर जब हाथ में 1128 रुपये की पेंशन आई तो मानों पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ये ही कारण है कि अमर सिंह जैसे हजारों -लाखों मुलाजिम नई पेंशन योजना का विरोध करते है। वर्ष 1986 में डेली वेज पर भर्ती हुए अमर सिंह 2007 में नियमित हुए थे। नई पेंशन योजना का विरोध अमूमन देश के हर राज्य में हो रहा है और ये एक बड़े आंदोलन में तब्दील होता दिख रहा है। सरकारी मुलाजिमों को शिकवा ये भी है कि उन पर नई पेंशन थोपने वाले नेता खुद पुरानी पेंशन का सुख भोग रहे है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कालजयी पंक्ति है कि 'सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है'...इसी भावना और आशावाद के साथ लाखों मुलाजिम देश के अलग -अलग हिस्सों में पुरानी पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे है। " बेरोजगारी, महंगाई, बिजली, किसान, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, भ्रष्टाचार और राष्ट्रवाद; ये तमाम वो मुद्दे है जिनकी बिसात पर दशकों से देश में चुनाव लड़े जाते रहे है। पर बीते कुछ वक्त में इस फेहरिस्त में एक नए मुद्दे की एंट्री हुई है। अब पुरानी पेंशन की बहाली भी चुनाव के दौरान बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। देश के 5 राज्यों में इस वक्त चुनाव का माहौल है और अन्य मुद्दों के साथ-साथ पुरानी पेंशन का मुद्दा भी खूब गूँज रहा है। कहीं राजनैतिक दल पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा कर रहे है, तो कहीं इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे संगठन मुखर है। पंजाब में तो मुलाजिमों द्वारा बाकायदा घरों के बाहर तख्ती लटकाकर नेताओं को स्पष्ट सन्देश दिया जा रहा है कि 'मेरे घर वही वोट मांगने आएं, जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएं।' यूँ तो ये मुद्दा सभी राजनैतिक दलों के गले की फांस बनता दिख रहा है लेकिन यदि ये आंदोलन प्रखर होता है तो मुमकिन है कि सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हो। दरअसल केंद्र में तो भाजपा की सरकार है ही, देश के अधिकांश राज्यों में भी भाजपा ही सत्ता में है। साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव करते हुए नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) को लॉन्च किया। उन सभी सरकारी मुलाजिमों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। केंद्र की तर्ज पर राज्यों ने भी सरकारी क्षेत्र में नियुक्त होने वाले कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू कर दी। सिर्फ पश्चिम बंगाल ही देश में एकमात्र अपवाद है। शुरुआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब नई पेंशन स्कीम के नुकसान समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। धीरे- धीरे सभी राज्यों में कर्मचारी लामबंद होने लगे और संगठन बनाकर नई पेंशन स्कीम का विरोध शुरू हो गया। अब आहिस्ता- आहिस्ता ये विरोध आंदोलन का स्वरूप लेता दिख रहा है। फिलहाल देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली का मसला गूंजता दिख रहा है। कहते है दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, जाहिर है हर राजनैतिक दल उत्तर प्रदेश में बेहतर करने को प्रयासरत है। यहाँ भी मुलाजिमों का वोट हथियाने के लिए राजनैतिक दल पुरानी पेंशन की बहाली के ख्वाब दिखा रहे है। यूँ तो उत्तर प्रदेश में जाति -धर्म, विकास और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे सरकार बनाते -गिराते रहे है लेकिन अगर कर्मचारी फैक्टर चला तो समीकरण बन-बिगड़ सकते है। यूपी के अलावा पंजाब और उत्तराखंड में पुरानी पेंशन की बहाली एक बड़ा मुद्दा है। लगातार कर्मचारी पुरानी पेंशन की गुहार राजनीतिक दलों से लगा रहे है। यदि यहां भी राजनीतिक दल पेंशन का समर्थन करते है तो सत्ताधारी पार्टी को बैक फुट पर लाने का काम पुरानी पेंशन कर सकती है। हालांकि ये पहली बार नहीं जब राजनीतिक दलों ने अपने मेनिफेस्टो में पुरानी पेंशन बहाली को शामिल किया हो। इससे पहले भी कई बार इसे मुद्दा बनाया गया मगर विडंबना ये है कि अब तक पश्चिम बंगाल के अलावा किसी भी अन्य राज्य में पुरानी पेंशन नहीं दी जाती। कई राज्यों में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद भाजपा पुरानी पेंशन को बहाल नहीं करवा पाई जिसकी टीस कर्मचारियों में है। उधर, पंजाब में कांग्रेस की चन्नी सरकार हर वर्ग के लिए दिल खोलकर घोषणाएं करती दिखी है लेकिन पुरानी पेंशन पर खामोश है। यदि आम आदमी पार्टी या कोई अन्य दल इस मुद्दे पर मुलाजिमों को आश्वस्त करता है तो इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। गोवा और मणिपुर में भले ही पुरानी पेंशन को लेकर आंदोलन संगठित न हो, पर कम ही सही इसका असर जरूर देखने को मिल सकता है। पंजाब : कांग्रेस ने किया था वादा, पर पूरा नहीं किया पिछले कई साल से पंजाब में कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। पेंशन की मांग करने वाले एक संगठन, एनपीएस मुलाजिम पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष कमेटी ने तो एनपीएस वोटर जागरूकता पोस्टर अभियान की शुरुआत कर दी है। पंजाब के कर्मचारियों का कहना है कि अब तक किसी राजनीतिक दल ने चुनाव मेनिफेस्टो में पुरानी पेंशन की मांग को शामिल नहीं किया है और इसलिए यह पोस्टर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। हर पोस्टर में लिखा है कि " मैं साल 2004 के बाद भर्ती नई पेंशन स्कीम से पीड़ित सरकारी मुलाजिम हूँ। मेरे घर वही वोट मांगने आए, जो पुरानी पेंशन बहाल करवाए।" ये अभियान पंजाब चुनाव पर भी खासा असर डाल सकता है। पंजाब में सिर्फ कर्मचारी ही नहीं आम आदमी पार्टी के नेता भी पुरानी पेंशन को लेकर सरकार पर हमला बोल रहे है। आप का कहना कि पंजाब सरकार पेंशन भोगियों की कमाई पर सांप की तरह बैठी हुई है। आप के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता हरपाल सिंह ने आरोप लगाया कि पंजाब प्रदेश कांग्रेस ने 2017 में कांग्रेस सरकार बनने पर पंजाब में पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने का वादा किया था और राजनीतिक लाभ के लिए कर्मचारियों और पेंशन भोगियों के इस मुद्दे का इस्तेमाल किया। मगर अब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को दी नहीं। स्पष्ट है कि पंजाब चुनाव में भी ओपीएस पर खूब सियासत हो रही है। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के पंजाब राज्य के अध्यक्ष सुखजीत सिंह का कहना है कि पंजाब चुनाव में ओपीएस की मांग एक बड़ा मुद्दा साबित होगी। यहां कर्मचारी सिर्फ ये नहीं चाहते कि राजनीतिक दल इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करे बल्कि जो पार्टी इस मांग को 6 महीने में पूरा करने का दम रखेगी ,ताजपोशी उसी की होगी। सुखजीत सिंह ने बताया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी तो पहले ही सत्ता मिलने के बाद पुरानी पेंशन बहाली का वादा कर चुकी थी मगर अब सुखबीर सिंह बादल भी कर्मचारियों को ये आश्वासन दे चुके है। कांग्रेस भी कहीं न कहीं इस मांग से इत्तेफ़ाक़ रखती है पर वे अपने कार्यकाल में इस मांग को पूरा नहीं कर पाए। उत्तराखंड : खोखला आश्वासन नहीं, ठोस वादा चाहिए उत्तराखंड में भी पुरानी पेंशन लागू करने की मांग को लेकर कर्मचारी लंबे समय से संघर्षरत हैं। सड़कों से लेकर सरकार के दर तक कर्मचारी लगातार आंदोलन करते आए हैं। यहां अब आधुनिकता के साथ कर्मचारी आवाज बुलंद कर रहे हैं, इंटरनेट मीडिया को हथियार बनाकर हजारों कर्मचारी आंदोलन को धार दे रहे हैं। राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा यहां कर्मचारी की इस मांग को लेकर लामबंद है। हालांकि यहां सरकार के पास मुख्यमंत्री बदलते रहने का एक बहाना मौजूद है। उधर, कांग्रेस कर्मचारियों की नाराज़गी भुनाने को प्रयासरत है, पर कर्मचारियों को खोखला आश्वासन नहीं बल्कि ठोस वादा चाहिए। उत्तर प्रदेश : सपा ने किया वादा, देखना होगा भाजपा का इरादा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया है। पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलाजिमों से वादा किया है कि सपा सरकार बनने पर कर्मचारी-शिक्षकों की लंबे समय से चल रही मांग पुरानी पेंशन को बहाल किया जाएगा। इसके लिए जरूरत पड़ी तो कार्पस फंड बनाया जाएगा। जाहिर है यूपी में पुरानी पेंशन एक ऐसा मुद्दा है, जिससे प्रदेश के लगभग 28 लाख कर्मचारी, शिक्षक और पेंशनर्स जुड़ते हैं। यह ऐसा वर्ग है, जो समाज को दिशा देने का काम करता है, अगर यह वर्ग समाज न सही अपने परिवार की सहमति बना लेता है तो यह संख्या लगभग एक करोड़ की हो जाएगी। निसंदेह ऐसा हुआ तो सपा को फायदा हो सकता है। उधर सत्तारूढ़ भाजपा पर भी अब कर्मचारी वर्ग को साधने का दबाव है। हिमाचल में भी सियासी ताप बढ़ा सकता है ओपीएस का मुद्दा पुरानी पेंशन का मुद्दा हिमाचल की सियासत में भी भरपूर दमखम रखता है। इसका ट्रेलर बीते 10 दिसंबर को दिखा जब धर्मशाला के दाड़ी मैदान में कर्मचारियों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन सरकार के सामने किया। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए और अंत में सरकार को झुकना पड़ा और पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया। अलबत्ता कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है, लेकिन कर्मचारियों में कम से कम एक उम्मीद जगी है कि शायद संभावित सियासी नुक्सान को भांपते हुए प्रदेश सरकार उनके इस सबसे बड़े मसले को हल कर दे। हिमाचल प्रदेश में भी इस वर्ष के अंत में चुनाव होने है और कर्मचारी पहले ही पुरानी पेंशन की इस मांग को एक आंदोलन का रूप दे चुके है। कांग्रेस भी पूरी तरह पेंशन की मांग का समर्थन कर रही है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में भी ये मुद्दा सियासी ताप बढ़ा सकता है। सत्ता में तो वो ही आएगा जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएगा : बंधू पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में नई पेंशन का दर्द झेल रहे कर्मचारियों का बड़ा असर रहने वाला है। कई राजनीतिक दल हमें हल्के में लेने की गलती कर रहे है, क्यूंकि उन्हें लगता है कि हमारी संख्या कम है। मैं बता दूँ कि ऐसा समझना उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी बेवकूफी साबित होगी। आज पुरानी पेंशन एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुकी है और इन चुनावों में भी ये मुद्दा टर्निंग पॉइंट साबित होगा। सत्ता में तो वो ही आएगा जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएगा। -विजय कुमार बंधू, राष्ट्रीय अध्यक्ष, नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम
"जो पेंशन की बात करेगा, वो देश पर राज करेगा", ये नारा है उन लाखों कर्मचारियों का जो अपने हक की पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे है। पुरानी पेंशन बहाली सिर्फ हिमाचल ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक बड़ा मुद्दा बन गई है। प्रदेश में ये मुद्दा क्या स्तर रखता है इसकी झलक 10 दिसंबर को धर्मशाला के दाड़ी मैदान में देखने को मिली। उस दिन पूरा धर्मशाला पेंशन बहाली के नारों से गूँज उठा था। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए और अंत में सरकार को झुकना पड़ा। जो सरकार एक दिन पहले कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने से साफ इंकार कर चुकी थी उसी सरकार ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया। हालांकि वो कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है। पर कर्मचारियों में कम से कम एक उम्मीद जगी है कि शायद ये सरकार जाते-जाते उनके इस सबसे बड़े मसले को हल कर दे। हिमाचल प्रदेश का कर्मचारी वर्ग अब इस मांग को एक आंदोलन का रूप दे चुका है और सन्देश स्पष्ट है कि चुनावी वर्ष में यदि याचना से काम नहीं चला तो कर्मचारी संगठन रण के लिए तैयार है। पुरानी पेंशन प्रदेश एक ऐसा मुद्दा है जो सत्ता हिलाने की कुव्वत रखता है। लाखों कर्मचारियों का ये मुद्दा अक्सर चर्चा में बना रहता है। इस मुद्दे पर सियासत भी खूब होती है, आए दिन ओपीएस को लेकर किसी न किसी नेता का ब्यान सामने आता है। जाहिर है इनमें विपक्ष के नेता अधिक होते है, वो ही नेता जो सत्ता में रहते हुए चुप्पी साधे हुए थे और अब सरकार को घेरने में आगे रहते है। बहरहाल, यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ये मुद्दा फिलवक्त प्रदेश का एक ऐसा सियासी मुद्दा बन चुका है जो 2022 में 'मिशन रिपीट' या 'मिशन डिलीट' में बड़ी भूमिका निभाएगा। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ये किसी एक कर्मचारी संगठन का मुद्दा नहीं है, अपितु हर कर्मचारी संगठन की मांग में यह शामिल है। हिमाचल प्रदेश एक कर्मचारी बाहुल्य प्रदेश है और ऐसे में यह तय है कि चुनावी फिज़ा में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा जमकर गूंजने वाला है। पुरानी पेंशन के न होने से प्रदेश के कर्मचारी अपने रिटायरमेंट के बाद के भविष्य की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ होती है और जब कर्मचारी ही अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे है तो ऐसे में सरकार के भविष्य पर सवाल खड़े होते हैं। इस वक्त प्रदेश में करीब पौने तीन लाख कर्मचारी है जिनमें करीब एक लाख बीस हजार वो कर्मचारी है जिन्हें नए पेंशन सिस्टम के तहत पेंशन प्राप्त होती है या होगी। पुरानी पेंशन बहाली की मांग को प्रमुखता से उठाने वाला प्रदेश का सबसे बड़ा संगठन नई पेंशन स्कीम कर्मचारी संघ है जिसमें ये अधिकतर कर्मचारी जुड़े हुए है। सिर्फ यही नहीं बल्कि प्रदेश में कई अन्य संगठन भी है जो पेंशन बहाली की इस मांग को मुनासिब मानते है और इसके लिए संघर्षरत है। हिमाचल के राजनैतिक इतिहास की बात करें तो वर्ष 1993 में कर्मचारियों ने अपनी असल ताकत दिखाई थी और विरोध के चलते भाजपा दहाई का अंक भी पार नहीं कर पाई थी। जाहिर है वर्तमान सरकार भी कर्मचारियों की नाराजगी मोल लेने की स्थिति में नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मुद्दे पर एनपीएस कर्मचारियों को ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) कर्मचारियों का भी समर्थन मिल रहा है। यह आंदोलन धीरे- धीरे और अधिक उग्र होता जा रहा है और निसंदेह अगले विस चुनाव में यह प्रमुख मुद्दा हो सकता है। मिशन रिपीट के लिए प्रदेश की जयराम सरकार को इस दिशा में कुछ कारगर कदम उठाने होंगे। यदि सरकार ऐसा करने में कामयाब रही तो लाभ तय है और अगर कदम नहीं उठाए तो नुकसान होना भी तय है। 2004 में केंद्र ने लागू की नई पेंशन योजना साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ कर देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया है। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशी अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिटी कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशी इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल की गई है और एन्युटी राशी कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है। इसलिए कर्मचारी नहीं चाहते नई पेंशन स्कीम शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इकट्ठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशी को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानी कि पेंशन की कोई तय राशी नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। विरोध कर रहे कर्मचारियों का मानना है कि उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जो मृत्यु के बाद कर्मचारी के सर्विस बुक में दर्ज नॉमिनी को भी मिला करती थी। अब आश्वासन से काम नहीं चलेगा हिमाचल प्रदेश के दोनों मुख्य राजनैतिक दल यानी कि कांग्रेस और भाजपा पुरानी पेंशन की मांग को जायज भी ठहराते रहे है और इसे पूरा करने का आश्वासन भी देते रहे है। मसला ये है कि विपक्ष में रहते हुए तो दोनों ही इसे कर्मचारियों का अधिकार और हक़ बताते है लेकिन सत्ता में आकर इस मांग को पूरा नहीं करते। पर बीते कुछ समय में यह मुद्दा एक आंदोलन का रूप ले चुका है और ऐसे में दोनों ही दलों के लिए अब इसे ज्यादा लटकाकर रखना संभव नहीं होगा। 2022 चुनाव से पहले जहां सत्तारूढ़ भाजपा पर इस मांग को पूरा करने का दबाव है तो वहीं कांग्रेस को भी इस विषय पर स्पष्ट राय रखनी होगी। नई पेंशन स्कीम लागू होने के बाद केन्द्र में 10 वर्ष कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने शासन किया। जबकि 2014 से भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार का एकछत्र राज है। इसी तरह प्रदेश में दो मर्तबा वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस काबिज रही है और भाजपा का भी दूसरा टर्म है लेकिन किसी भी सरकार ने पुरानी पेंशन की बहाली के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किये। आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के हर कर्मचारी को पुरानी पेंशन देने के लिए सरकार एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए जो फिलवक्त प्रदेश सरकार की आर्थिक हालातों को देखते हुए संभव नहीं लगता। पेंशन पर कितना खर्च मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के हर कर्मचारी को पुरानी पेंशन योजना लागू करने पर एकमुश्त अनुमानित व्यय लगभग 2000 करोड़ रुपये होगा। प्रति वर्ष आवर्ती व्यय लगभग पांच सौ करोड़ होने का अनुमान है, जो फिलवक्त प्रदेश सरकार की आर्थिक हालातों को देखते हुए संभव नहीं लगता। इस पर नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का तर्क है कि सरकार हर साल अपना और कर्मचारियों का लगभग 1200 करोड़ रुपये की राशी एसबीआई फंड्स प्राइवेट लिमिटेड, एलआईसी पेंशन फंड्स प्राइवेट लिमिटेड और यूटीआई रिटायरमेंट सोल्यूशंस में जमा करती है। ये राशी पीएफआरडीए द्वारा एप्रूव्ड 31 : 35 : 34 के अनुपात में इन तीनों फंड्स में जमा की जाती है। प्रदीप का कहना है कि यदि सरकार डायरेक्ट इन कर्मचारियों को पेंशन देती है तो सरकार के 700 करोड़ रुपये बचेंगे, जो फायदे का सौदा है। नेताओं के लिए क्यों नहीं नई पेंशन स्कीम ? मई 2003 के बाद से माननीयों (सांसद व विधायकों ) को तो पेंशन का लाभ मिल रहा है, जबकि सरकारी कर्मचारी को एनपीएस का झुनझुना थमा दिया गया है। यदि यह योजना इतनी बढ़िया है तो सांसद व विधायकों को भी पेंशन के स्थान पर एनपीएस का ही लाभ देना चाहिए। यदि एक नेता पहले विधायक हो और फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बन जाए तो उसे दोनों तरफ से पेंशन मिलती है। इस देश में ये सुविधा सिर्फ और सिर्फ नेताओं को ही उपलब्ध है।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का तकनीकी कर्मचारी संघ की मुख्य मांग जूनियर टी मेट व जूनियर हेल्पर के पदोन्नति समय अवधि को 5 वर्ष से 3 वर्ष करने के लिये आभार व्यक्त किया है। साथ ही विद्युत बोर्ड के चेयरमैन आर डी धीमान का भी धन्यवाद किया है जिन्होंने तकनीकी कर्मचारी संघ की इस मांग के बारे में विद्युत बोर्ड की ओर से सही पक्ष रखा। संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर व प्रदेश महामंत्री नेक राम ठाकुर ने दोनों का आभार व्यक्त किया है। इस बीच हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने विद्युत बोर्ड प्रबंधक को यह पुनः स्मरण करवाया है कि वह तकनीकी कर्मचारी संघ के अन्य ज्वलंत मुद्दों का भी निराकरण करें अन्यथा तकनीकी कर्मचारी संघ विद्युत भवन के प्रांगण में विशाल धरना करेगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी विद्युत बोर्ड प्रबंधक वर्ग की होगी। संघ ने विद्युत बोर्ड प्रबंधक वर्ग से यह भी मांग की है कि बिजली बोर्ड के कर्मचारियों को भी जल्द से जल्द पंजाब बिजली विभाग के अनुरूप नए वेतनमान और भत्ते दिए जाएं।
हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद का कहना है कि देश के अन्य राज्यों में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी पदनाम दिया गया है, लेकिन हिमाचल में अभी तक यह व्यवस्था लागू नहीं हुई है। ऐसे में अध्यापक जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। उन्हें पूरे सेवाकाल में पदोन्नति का अवसर प्राप्त नहीं होता। ऐसे में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पदनाम दिलवाने के लिए लड़ाई अब तेज हो गई है। इस मांग के चलते हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल फिर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर और प्रधान शिक्षा सचिव रजनीश से मिला। प्रतिनिधिमंडल ने फिर मांग उठाई है कि शास्त्री व भाषा अध्यापकों को जल्द से जल्द टीजीटी का पदनाम दिया जाए। साथ ही चेताया है कि अगर एक महीने के अंदर उनकी मांग पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता हैं, तो फिर उन्हें सख्त कदम उठाना पड़ेगा। परिषद के प्रदेशाध्यक्ष मनोज शैल का कहना है कि शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों की यह मांग दशकों से चली आ रही हैं, लेकिन अब तक किसी भी सरकार की ओर से उनको पूरा नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री को इस बात से भी अवगत करवाया गया कि कई अवसरों पर परिषद ने उनसे इस मांग के बारे में अवगत कराया हैं, लेकिन इसके बावजूद यह मांग पूरी नहीं हो पाई है। सरकार से आश्वासन मिला था कि वित्तीय-वर्ष 2021-22 के बजट सत्र में शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों की चिरलंबित मांग पूरी करके उन्हें टीजीटी पदनाम दिला दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं भविष्य में जो भी भर्ती की जाए, उन्हें नियमों के आधार पर किया जाए। जैसा सम्मान अंग्रेजी पढ़ाने वालों को मिल रहा है, वैसा ही भाषा अध्यापक और संस्कृति पढ़ाने वालों को भी दिया जाए। भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पद नाम दिए जाने की मांग 1985 से चली आ रही है। सरकार को इस पर जल्द से जल्द उचित निर्णय लेना चाहिए।
हिमाचल पेंशनर्स संघ ने जेसीसी की बैठक न करवाने और पेंशनरों की पेंशन में संशोधन न किए जाने पर रोष व्यक्त किया है। संघ ने कहा कि मांगें पूरी न होने के चलते पेंशनरों में रोष है। इन मांगो को लेकर हाल ही में संघ ने एक ज्ञापन उपायुक्त हमीरपुर देवश्वेता बनिक के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को सौंपा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष योगराज शर्मा ने बताया कि प्रदेश सरकार ने अपने पूर्व वक्तव्य में कहा था कि प्रदेश के कर्मचारियों एवं पेंशनरों को जनवरी 2022 से नए वेतनमान, पेंशन प्रदान कर दिए जाएंगे, लेकिन पांच जनवरी को मंत्रिमंडल की बैठक में पेंशनरों की पहली जनवरी 2016 से पेंशन संशोधन के मामले पर विचार न करने पर प्रदेश के पेंशनर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। इसी उपेक्षा का हिम आंचल पेंशनर्ज संघ ने कड़ा संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रदेश के लाखों पेंशनरों के आशीर्वाद की सरकार को आवश्यकता नहीं है। संघ ने मांग की है कि पेंशनरों को पहली जनवरी 2016 से यथाशीघ्र पुनरावृत्ति पेंशन प्रदान की जाए, पेंशनरों के पांच, दस व 15 प्रतिशत पेंशन भत्ता को मूल पेंशन में बदला जाए, पेंशनरों का चिकित्सा भत्ता 1500 रुपए मासिक किया जाए, दो वर्ष के अंतराल में एक मूल पेंशन के बराबर तीर्थ यात्रा सुविधा प्रदान की जाए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने पेंशनरों की समस्याओं एवं मांगों के निदान हेतु यथाशीघ्र कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया, तो पेंशनर्ज अपनी मांगों के समर्थन में सड़कों पर निकलने के लिए बाध्य होंगें, जिसकी जिम्मेदारी सरकारी की होगी।
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में छठे वेतनमान की अधिसूचना जारी की गई है। अधिसूचना जारी होने के बाद प्रदेश के कर्मचारियों के बीच इसे लेकर दो धारणाएं बन चुकी है। कुछ कर्मचारी संगठन नए वेतनमान का खुले दिल से स्वागत कर रहे है, तो वहीं कुछ कर्मचारियों का कहना है की 6 वर्ष से देय वेतनमान की रिपोर्ट के सरकार द्वारा जारी पे रूल्स और पे मैट्रिक्स उनके लिए राहत नहीं बल्कि परेशानियां लेकर आए है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने करीब दो लाख नियमित कर्मचारियों के लिए नए संशोधित वेतनमान की अधिसूचना जारी की है। इसमें कर्मचारियों को अपना संशोधित वेतनमान लेने के लिए दो विकल्प दिए गए हैं। अधिसूचना के साथ ही कर्मचारियों की अलग-अलग बेसिक पे के हिसाब से पे मैट्रिक्स भी जारी किए गए हैं। कर्मचारियों को नए वेतन आयोग के लिए एक माह में दो में से एक विकल्प चुनना होगा। यदि किसी कर्मचारी ने दो में से एक विकल्प एक माह के अंदर नहीं दिया, तो स्वतः माना जाएगा कि उसने विकल्प चुन लिया है। 6 सालों के इंतज़ार के बाद मिले इस नए वेतनमान में कर्मचारियों को कई विसंगतियां नज़र आ रही है। सरकारी कर्मचारी जिस तरह से छठे वेतनमान से वित्तीय लाभ प्राप्त होने की गणना कर रहे थे, शायद उस तरह के वित्तीय लाभ उन्हें मिलते नहीं दिख रहे। ये ही कारण है कि हिमाचल का कर्मचारी इस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से पूर्ण संतुष्ट नज़र नहीं आ रहा। कर्मचारियों का कहना है की 6 वर्ष तक कर्मचारियों की बकाया राशी का जो ब्याज सरकार ने कमाया, ये लाभ उसके भी बराबर नही लग रहा। नए पे स्केल पर फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने कर्मचारियों की प्रतिक्रिया जानी और पाया कि एक बड़ा कर्मचारी वर्ग नए पे स्केल से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। यानी कर्मचारियों को उम्मीद से कम मिला है।कर्मचारियों को अपना संशोधित वेतनमान लेने के लिए केवल दो ही विकल्प दिए गए हैं। अगर वे वर्ष 2009 के नियमों को चुनते हैं तो उन्हें 31 दिसंबर, 2015 की बेसिक पे को 2.59 के फैक्टर से गुणा करना होगा। अगर वर्ष 2012 को चुनते हैं तो 2.25 फैक्टर को अपनाना होगा। अगर कोई अधिकारी/कर्मचारी 2009 के नियमों को आधार बनाकर लाभ लेना चाहता है और उसने 2012 के वेतन संशोधन का लाभ नहीं लिया है तो 31 दिसंबर 2015 को उसकी बेसिक पे पर फैक्टर 2.59 लगेगा। इसमें भत्ते और अन्य लाभ अलग से शामिल होंगे। वहीं अगर कोई कर्मचारी वर्ष 2012 के पुनर्संशोधन को आधार बनाकर नए वेतनमान का लाभ लेना चाह रहा है तो उसके लिए दो विधियां लगाई जाएंगी। पहली विधि के अनुसार 31 दिसंबर 2015 को लिए वेतन को आधार बनाएंगे तो बेसिक वेतन में फैक्टर 2.25 लगाया जाएगा। या फिर दूसरी विधि के अनुसार 31 दिसंबर 2015 की नोशनल पे को आधार बनाया जाएगा। ये विकल्प कर्मचारियों को दिए ज़रूर गए है लेकिन प्रदेश के कर्मचारियों को पंजाब की तर्ज पर सीधे 15 फीसदी वेतन वृद्धि वाला तीसरा विकल्प नहीं दिया गया है। प्रदेश के कर्मचारी लगातार ये मांग कर रहे थे की उन्हें वेतन वृद्धि का ये तीसरा विकल्प भी दिया जाए परन्तु ऐसा नहीं हुआ। राज्य के सरकारी कर्मचारियों की नाराज़गी का एक बड़ा कारण 4-9-14 जैसी एश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेशन स्कीम का लाभ खत्म होना भी है। तीन जनवरी, 2022 से 4-9-14 के लाभ कर्मचारियों को मिलना बंद हो गए है। इसे बंद करने को लेकर राज्य सरकार का तर्क है कि पंजाब में भी एक कमेटी बनाकर टाइम स्केल को सस्पेंड कर दिया है। जब यह कमेटी पंजाब में रिपोर्ट देगी और उसके बाद यदि पंजाब सरकार टाइम स्केल को बहाल करेगी, तो हिमाचल सरकार भी इस बारे में विचार कर सकती है। इससे पहले भी यही प्रक्रिया रखी गई थी। बता दें कि एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन स्कीम पे-कमीशन का पार्ट नहीं होती। इसके बावजूद इस बार एक अलग नोटिफिकेशन के जरिए इसे पे कमीशन से जोड़ दिया गया है। इसके बंद होने से सर्विस के चार, नौ और चौदह साल पूरे करने पर कर्मचारियों को मिलने वाला इन्क्रीमेंट अब नहीं मिल पाएगा। नाराज़गी का एक और कारण डीए कम मिलना भी है। प्रदेश में अधिकारीयों को डीए 31 प्रतिशत और कर्मचारियों को 28 प्रतिशत ही मिल पाया है। कुछ कर्मचारियों का ये भी मानना है की इस पे स्केल से सिर्फ उन कर्मचारियों को फ़ायद होगा जिनका वेतन पहले से ज्यादा है। कम वेतन वाले कर्मचारियों को इसमें कोई लाभ नहीं होने वाला। एनपीए घटने से नाखुश है प्रदेश के चिकित्सक नए वेतनमान में प्रदेश के चिकित्सकों को मिलने वाला एनपीए घटा दिया गया है। नॉन प्रैक्टिस अलाउंस हिमाचल में स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य शिक्षा विभाग, आयुर्वेद विभाग और पशुपालन विभाग के डॉक्टरों को मिलता है। एनपीए को 25 प्रतिशत से घटा कर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया है। इस पर भी शर्त लगाई गई है की यह बेसिक प्लस एनपीए मिलकर 218600 रुपए प्रति माह से ऊपर नहीं जाना चाहिए। नए वेतनमान में जारी इस बदलाव को लेकर प्रदेश के चिकित्सक खासे नाराज़ है। हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ के प्रदेश प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ राजेश राणा व प्रदेश महासचिव डॉ पुष्पेंद्र वर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ वेतन आयोग की सिफारिशों से खासा नाखुश है। उन्होंने कहा की प्रदेश सरकार ने वादा किया था की वे डॉक्टरों के नॉन प्रैक्टिस अलाउंस को पंजाब की तर्ज पर कम नहीं करेंगे पर अब इसे कम कर दिया गया है। लेकिन आगे नॉन प्रैक्टिस अलाउंस के बारे में अधिसूचना जारी करते हुए बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को पंजाब से भी कम करते हुए 218000 कर दिया जो कि पंजाब में 237600 है। संघ ने सरकार से पूछा है की यहां क्यों पंजाब की सिफारिश को दरकिनार किया गया। संघ का आरोप है की यह प्रदेश के चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। डॉ पुष्पेंद्र वर्मा का कहना है की प्रदेश के चिकत्सक सरकार के इस दोगले रवैय से खासे नाराज़ है और इसे अपने प्रति एक अन्याय पूर्ण फैसला मान रहे है। चिकित्सक संघ 4-9-14 के टाइम स्केल पर कैंची चलने से भी नाराज़ है। संघ ने कहा कि बरसों बरसों तक चिकित्सकों की तरक्की का एकमात्र विकल्प 4-9-14 टाइमस्केल ही था जो चिकित्सकों को इस सरकारी नौकरी की तरफ आकर्षित कर रहा था और उनके प्रमोशन ना होने पर उनको दिलासा भी दे रहा था लेकिन इस पर कैंची चलाना चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। छोटे कर्मचारियों की उम्मीदों पर फेरा पानी नई पेंशन स्कीम कर्मचारै महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है कि नए वेतनमान में बहुत सारी विसंगतियां हैं जिन्हें दूर किया जाना बहुत आवश्यक है l जहां एक ओर अधिकारी वर्ग को वेतनमान से 20 हजार या इससे अधिक वेतन वृद्धि हो रही है l वही छोटे कर्मचारियों की उम्मीदों पर नए वेतनमान ने पानी फेरा है l सरकार को जल्द से जल्द सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए त्रुटियों को दूर करना चाहिए l नियमितीकरण तिथि से मिले संशोधित वेतनमान प्रदेश स्कूल लेक्चरर संघ के प्रदेश प्रधान केसर सिंह ठाकुर का कहना है कि सरकार ने कर्मचारी हित में दो विकल्प जारी कर उनको अपनाने की स्वतंत्रता दी है। ये कर्मचारी हित का सराहनीय फैसला है। हिमाचल स्कूल लेक्चरर संघ ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। साथ ही हम मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की है कि नए वेतनमान के निर्धारण में 2016 व उसके बाद अनुबंध से नियमित हुए प्रवक्ताओं को संशोधित वेतनमान नियमितीकरण की तिथि से दिया जाए। इन प्रवक्ताओं को दो साल का नियमित सेवाकाल पूरा करने पर 5400 रुपये ग्रेड पे प्रदान किया गया है जिससे नए वेतन निर्धारण में भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। 15 प्रतिशत वेतन वृद्धि का विकल्प भी लागू हो गैर शिक्षक कर्मचारी महासंघ का कहना है कि वे प्रदेश सरकार के छठे वेतनमान से नाराज़ है और चाहते है कि सरकार इसमें मौजूद विसंगतियां दूर करे। संघ के प्रधान कुलदीप चंद्र ने कहा कि वेतन आयोग की सिफारिशों में बहुत विसंगतियां हैं, इस कारण गैर शिक्षक को इसका कोई लाभ नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने सार्थक पहल नहीं की तो संघ आंदोलन से गुरेज नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि हमारी मांगों में 2.25 का फैक्टर देना है तो 10300-3200 का स्केल पार कर गए कर्मचारियों की फिटमेंट टेबल के अनुसार हो तथा जो कर्मचारी 10300 -3200 में नहीं आए उनके लिए भी व्यवस्था सरकार की ओर से की जाए, साथ ही 15 प्रतिशत वेतन वृद्धि के विकल्प को भी लागू किया जाए। लिपिकों को किया जा रहा शोषित लिपिक महासंघ का कहना है कि नए वेतनमान में लिपिक वर्ग से भेदभाव किया गया है। द्रंग प्रथम के अध्यक्ष विनोद जसवाल व जोगिन्द्र नगर के अध्यक्ष रवि बरवाल ने कहा कि 2006 से 2011 तक लिपिकों को कम ग्रेड पे से शोषित किया जा रहा था। उन्होंने प्रदेश सरकार से पंजाब की तर्ज पर 15 प्रतिशत वेतन के विकल्प पर विचार करने की मांग की। जेबीटी शिक्षकों को मिले पंजाब की तर्ज पर स्केल जेबीटी शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष हेमराज ठाकुर का कहना है कि पूर्व में 2012 के स्केल में भी प्राथमिक शिक्षकों के साथ भेदभाव किया गया था तथा अभी तक प्रदेश में जेबीटी वर्ग के अलग-अलग दो स्केल प्रदान किए जा रहे हैं। प्रदेश के जेबीटी शिक्षकों को पंजाब की तर्ज पर स्केल नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश सरकार और वित्त विभाग को पंजाब वेतन आयोग या पंजाब सरकार के वेतन के आधार पर ही जेबीटी शिक्षकों के स्केल हिमाचल में जल्द निर्धारित करें। वेतन विसंगतियां दूर न हुई तो आंदोलन करेंगे। पशु चिकित्सकों के आर्थिक हितों का हुआ नुकसान प्रदेश वेटरनरी आफिसर्ज एसोसिएशन का कहना है कि प्रदेश सरकार को पशु चिकित्सकों के लिए अधिकतम मूल वेतन में वृद्धि, एनपीए को 25 प्रतिशत करने और एसीपीएस को बहाल करने पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। प्रदेश वैटरिनरी ऑफिसर्ज एसोसिएशन के राज्य अध्यक्ष डा. नीरज मोहन और महासचिव डा. मधुर गुप्ता ने हिमाचल सरकार से नए वेतनमान में मूल वेतन जमा एनपीए तय सीमा जो कि दो लाख 18 हजार को पंजाब में दिए गए वेतनमान के बराबर करने की मांग की है। उन्होंने कहा की नए वेतनमान में तय की गई सीमा से हिमाचल के पशु चिकित्सकों के आर्थिक हितों का नुकसान हुआ है। लाखों कर्मचारियों में निराशा : नरेंद्र प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है की प्रदेश सरकार को पंजाब-पे कमीशन को पूर्णतय: लागू करना चाहिए ताकि कर्मचारियों को पे कमीशन का पूरा लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि पिछले छह वर्षों से पंजाब के छठे वेतन आयोग के लागू होने का हिमाचल प्रदेश के लाखों कर्मचारी इंतजार कर रहे थे और उम्मीद थी कि उनके वेतनमान को पंजाब पे कमीशन की रिपोर्ट अनुसार लागू किया जाएगा। पांच जुलाई, 2021 को छठे पंजाब पे कमीशन की अधिसूचना जारी होने के साथ ही हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को भी इसी वेतन आयोग के अनुसार अपने वेतनमान में वृद्धि होने की आस थी, लेकिन प्रदेश सरकार ने पंजाब पे कमीशन को अपने हिसाब से तोड़ कर लागू किया है। इसके कारण लाखों कर्मचारियों में निराशा है। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष मुनीश गर्ग का कहना है की इस नए पे स्केल से सबसे अधिक नुकसान अनुबंध से नियमित हुए कर्मचारियों का ही हुआ है। 2012 में पंजाब में जो पे कमिशन की सिफारिशें कर्मचारियों के लिए तत्काल प्रभाव से लागू की गई उनको हिमाचल में अनुबंध से नियमित होने के 2 सालों के बाद से दिया गया। जो कर्मचारी 2016 या उसके बाद नियमित हुए हैं उनकी माँग है कि उनकी पे फिक्सेशन मे 2.59 फैक्टर के साथ एनहांस्ड ग्रेड पे मे भी 2.25 का विकल्प 2016 से दिया जाए जैसा की बाकी सभी नियमित कर्मचारियों को दिया जा रहा है। नाराज़गी के तीन बड़े कारण -पंजाब की तर्ज पर सीधे 15 फीसदी वेतन वृद्धि वाला तीसरा विकल्प नहीं दिया - तीन जनवरी, 2022 से 4-9-14 के लाभ कर्मचारियों को मिलना बंद - कम डीए मिलना भी नाराजगी का कारण
प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने एक स्वर में उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग की है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ ने कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से काम तो सभी विभाग लेते हैं, पर उन्हें कभी भी वक्त पर उसका मानदेय नहीं मिलता। उन्हें मात्र 7500 और सहायकों को 4500 रुपए पर जीवन गुजर-बसर करना पड़ता है, जो कि इस महंगाई के दौर में बहुत कम है। इस वेतन में गुज़ारा करना इन कर्मचारियों के लिए संभव नहीं है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ से भी ये मांग की है की उनके मानदेय में शीघ्र बढ़ोतरी की मांग को सरकार के समक्ष उठाया जाए। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ का कहना है कि आंगनबाड़ी केंद्र के लिए ग्रामीण हल्के में मात्र 750 रुपए किराया निर्धारित किया गया है, जो कि बहुत ही कम है ,इसे बढ़ाया जाना चाहिए। इसके साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने बहुत मेहनत करके प्री प्राइमरी कक्षाओं का संचालन शुरू किया था, परंतु अब सरकार एनटीटी अध्यापकों की भर्ती करके उनके साथ अन्याय करने जा रही है। संघ ने शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री से इस विषय में उचित कदम उठाने का आग्रह किया है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ का कहना है कि कोरोना काल में सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा कोविड योद्धा के रूप में फ्रंटलाइन पर कार्य किया गया, परंतु न तो उन्हें इसके लिए कोई प्रोत्साहन राशि दी गई और न ही फ्रंट लाइन कोविड कार्यकर्ताओं का दर्जा दिया गया। इससे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हताश हैं। संघ की अध्यक्ष ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरकार की विभिन्न योजनाएं टीकाकरण, पल्स पोलियो, वोटर लिस्ट सर्वे, जन्म-मृत्यु पंजीकरण सहित जनगणना के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं लेकिन आंगनबाड़ी में सेवाएं दे रहीं कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगों को पूरा करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग वे कई बार कर चुके हैं लेकिन अभी तक इसके बारे में कोई पहल नहीं की गई है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि आंगनबाड़ी के स्टाफ को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को न्यूनतम वेतन 18,000 और सहायिकाओं को नौ हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाए। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता संघ की वरिष्ठ उपप्रधान योग रानी का कहना है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी स्कूलों में तैनाती के साथ पदनाम भी दिया जाए। ये है तीन मुख्य मांगे - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को न्यूनतम वेतन 18,000 और सहायिकाओं को नौ हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाए - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी स्कूलों में तैनाती के साथ पदनाम भी दिया जाए
हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच ने प्रदेश सरकार से उनकी मांगों को जल्द पूरा करने की गुहार लगाई है। सेवानिवृत कर्मचारियों का कहना है की इस उम्र में सरकार उनका हक़ उनकी पेंशन उन्हें समय पर न देकर उनके साथ बड़ा अन्याय कर रही है। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच के प्रदेश महामंत्री रूप चंद शर्मा का कहना है कि प्रदेश सरकार जल्द से जल्द मंच की लंबित मांगों को पूरा करें अन्यथा आगामी विधानसभा चुनाव में इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए सरकार तैयार रहे। उन्होंने दो टूक कहा कि अभी तक मंच की मांगों को सरकार और निगम प्रबंधन अनसुना करता आया है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी वहां पर परिवहन के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को तमाम तरह की सुविधाएं मिल रही है लेकिन प्रदेश सरकार यह सेवानिवृत कर्मचारियों के लिए कुछ नहीं कर रही। प्रदेश महामंत्री ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार वहां पर राजस्थान परिवहन निगम को रोडवेज का दर्जा दिया गया है और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के सभी देय भत्ते ट्रेजरी के माध्यम से ही मिलते हैं, लेकिन केंद्र और प्रदेश में डबल इंजन की कहलाने वाली भाजपा सरकार परिवहन निगम से सेवानिवृत्त कर्मचारियों की सुध तक नहीं ले रही है। उन्होंने कहा की ये सब ज़्यादा समय तक नहीं चलेगा यदि सरकार उनकी मांगें जल्द पूरी नहीं करती तो वे उसे चुनाव के समय जवाब देंगे।
27 नवंबर 2021 को हुई जेसीसी की बैठक में कई घोषणाएं हुई। कर्मचारियों के खिले हुए चेहरे ये स्पष्ट दर्शा रहे थे कि अर्से बाद एक बड़ी राहत उन्हें मिली है। मगर कुछ चेहरे तब भी मायूस थे क्यूंकि उनकी मांगें अब भी अधूरी थी। इन कई अधूरी मांगों में से एक मांग है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग। ये मांग तो जेसीसी की बैठक में पूरी नहीं हो पाई थी मगर इसे पूरा करने के लिए कमेटी के गठन का आश्वासन ज़रूर कर्मचारियों को दिया गया था। ये आश्वासन अब तक आश्वासन ही है, हकीकत नहीं बन पाया। इस बेरुखी से कर्मचारी वर्ग में खासी नाराज़गी है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने सेनिओरिटी के विषय में कमेटी का शीघ्र गठन करने और उसमें हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के सदस्यों को शामिल करने का आग्रह किया। संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुनीष गर्ग,का कहना है कि जेसीसी की बैठक में सेनिओरिटी के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी के गठन की घोषणा हुई थी, लेकिन जेसीसी की मीटिंग के एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद भी कमेटी का गठन नहीं हुआ है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने सरकार से सवाल किया है कि कमेटी गठन में एक महीने से अधिक समय लगने का क्या कारण है। कब इसकी बैठक होगी और कब यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी। संघ का कहना है कि सरकार को तुरंत कमेटी का गठन करना चाहिए ताकि समय रहते इसकी सिफारिशों पर अमल हो सके। संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार लोक सेवा आयोग, अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवम पदोनित नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया गया। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रोमोशन और अन्य सेवालाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए, ना कि नियमितीकरण की तिथि से। पूर्व में भी सरकार ने एडहॉक और टेन्योर बेसिस पर नियुक्त कर्मचारियों की सेवाओं को प्रोमोशन के लिए योग्य माना है तो अनुबंध पर दी गई सेवाओं को क्यों योग्य नही माना जा रहा ? संघ का कहना है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं जो कि अन्याय है। कर्मचारियों ने कहा कि उनका चयन भर्ती एवम पदोनती नियमों के अनुसार हुआ है इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। हम पूरे नियमों के अंतर्गत नियुक्त हुए हैं, तो सरकार हमे पहले दिन से सरकारी कर्मचारी माने नाकि नियमितीकरण की तिथि से। उन्होंने कहा कि यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है इसलिए सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे। कमेटी में संगठन के सदस्यों को करें शामिल हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग, प्रदेश महासचिव अनिल सेन, प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय कुमार, प्रदेश प्रवक्ता विजय राणा, सचिव सुशील चंदेल, मोहन ठाकुर, प्रेस सचिव राकेश चौहान, प्रेमपाल पठानिया, आईटी सेल हेड संदीप चंदेल, जिला कांगड़ा अध्यक्ष सुनील पराशर, हमीरपुर जिलाध्यक्ष डॉ सुरेश कुमार, चम्बा जिलाध्यक्ष राजेंदर पॉल, मंडी जिला अध्यक्ष कृष्ण यादव, ऊना जिलाध्यक्ष संजीव बग्गा, शिमला जिलाध्यक्ष नंद लाल ने सामुहिक रूप से मांग की है कि सेनिओरिटी के लिए बनाई जा रही कमेटी में संगठन के सदस्यों को भी शामिल किया जाए ताकि वे अपनी मांग के समर्थन में उपयुक्त तथ्य प्रस्तुत कर सकें।
प्रदेश पदोन्नत स्कूल प्रवक्ता संघ ने मुख्याध्यापक से प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति में राइडर को न फॉलो करने पर रोष जताया है। संघ के अनुसार मुख्याध्यापक से प्रधानाचार्य पद की पदोन्नति पर इस वर्ग का 117 पदों का बैकलॉग चल रहा था। सरकार उसे शीघ्र भरने वाली भी थी, लेकिन स्कूली प्रवक्ता के एक वर्ग द्वारा सरकार को गुमराह करने पर अब जानकारी मिल रही है कि प्रवक्ता वर्ग से 100 व मुख्य अध्यापक पद वर्ग से भी 100 पद ही भरे जा रहे हैं। अगर विभागीय आंकड़ों को देखा जाए, तो 31 दिसंबर तक 190 प्रधानाचार्य मुख्य अध्यापक वर्ग से तथा 105 प्रवक्ता वर्ग से सेवानिवृत्त हुए हैं। अगर 117 के बैकलॉग को शामिल किया जाए, तो गत मार्च से लेकर दिसंबर तक स्कूली प्रधानाचार्य के 277 पद मुख्याध्यापक कोटे के खाली चले हुए हैं। इस प्रकार स्कूली प्रधानाचार्य के कुल 313 खाली पदों में से प्रवक्ता वर्ग के कोटे के मात्र 36 पद ही बनते हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति में कहीं भी राइडर की अनुपालना नहीं की जा रही है। प्रदेश पदोन्नत स्कूल प्रवक्ता संघ का आरोप है कि स्कूली प्रवक्ता का एक वर्ग सरकार से अपनी नजदीकी का नाजायज फायदा उठाकर 26000 के टीजीटी काडर के हितों पर कुठाराघात कर रहा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष यशवीर जम्वाल, अध्यक्ष कोर कमेटी केवल ठाकुर, मुख्य संरक्षक हरीमन शर्मा, महासचिव कमल किशोर शर्मा, कोषाध्यक्ष मदन लाल शर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष संदीप डडवाल, प्रदेश संयुक्त वित्त सचिव प्रीतम कौशल, प्रधान जिला बिलासपुर यशपाल रनौत, प्रधान सोलन नरेंद्र ठाकुर, प्रधान कांगड़ा प्रदीप धीमान, प्रधान मंडी दर्शन राणा, कुल्लू मनोज, चंबा मनोज, ऊना विवेक दत्ता, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हमीरपुर रविदास शर्मा, विक्रम वर्मा, अजय नंदा सहित अन्य पदाधिकारियों व सदस्यों ने सरकार से मांग की है कि उनके कोटे के खाली सभी पदों को सरकार अति शीघ्र भरें।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर व प्रदेश महामंत्री नेक राम ठाकुर ने संघ की मांगे पूरी न होने पर रोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि विद्युत बोर्ड का वर्तमान प्रबंध निकम्मा साबित हो गया है। उन्होंने कहा कि इनसे न कर्मचरियों के मसले सरकार के पास सही से रखे जा रहे है और न ही विद्युत बोर्ड की सही स्थिति सरकार के समक्ष रही जा रही है। उन्होंने कहा कि 22 दिसम्बर को नादौन में तकनीकी कर्मचारी संघ की कार्यसमिति में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि बोर्ड प्रबंधक को 15 दिनों का नोटिस दिया जाए, अगर विद्युत बोर्ड प्रबंधक इस समयावधि में तकनीकी कर्मचारी संघ द्वारा उठाए गए बिंदुओं का समाधान करने में असमर्थ रहता है तो 11 जनवरी को विद्युत मुख्यालय के प्रांगण में विशाल धरना दिया जाएगा। उसके बाद भी अगर बोर्ड प्रबंधक वर्ग की आंखे नहीं खुली तो उसी दिन से क्रमिक भूख हड़ताल शुरू की जाएगी।
आयुर्वेदिक विभाग के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों ने प्रदेश सरकार के प्रति रोष प्रकट किया है। इन कर्मचारियों का कहना है कि प्रदेश सरकार घोषणाएं तो करती है मगर वो घोषणाएं हकीकत नहीं बन पाती। हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ का कहना है कि साल 2017 में हिमाचल प्रदेश कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि जिन कर्मचारियों का 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो गया है, उन्हें नियमित किया जाएगा। इसके बाद 27 नवंबर 2021 को भी प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जिन कर्मचारियों का 4 वर्ष का दैनिक वेतन भोगी रूप में कार्य पूरा चुका होगा उनको नियमित किया जाएगा, लेकिन आयुर्वेद विभाग में अब भी ऐसे कर्मचारी है जो 12 वर्ष का पार्ट टाइम व 9 वर्ष दैनिक वेतन भोगी कार्यकाल पूर्ण कर चुके है, परन्तु अब तक नियमित नहीं हुए। हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ का कहना है कि आयुर्वेदिक विभाग में कर्मचारी 21 वर्ष से अधिक सेवा देने के उपरांत भी दैनिक वेतन भोगी पद पर ही रिटायर हो रहे है। ये चिंता का विषय है। हिमाचल प्रदेश के दैनिक मजदूर कई बार प्रदेश सरकार से नियमितीकरण की फरियाद कर चुके हैं, लेकिन इन कर्मचारियों को इनका हक़ नहीं मिल पाया है। प्रदेश सरकार की अनदेखी के चलते 21 वर्ष की सेवा देने के उपरांत भी आयुर्वेदिक विभाग के इन कर्मचारियों को नियमित करने के लिए कोई भी सराहनीय कदम नहीं उठाया गया है। इन कर्मचारियों को आयुर्वेद विभाग में नियमित करने की बजाय इनका शोषण हो रहा है। हम पर भी सरकार मेहरबान हो : तरसेम प्रदेश की भाजपा सरकार खुद को गरीब मजदूरों की हितैषी सरकार बताती है, लेकिन असल में प्रदेश के गरीब मजदूर के सथ अन्याय हो रहा है। बाकी कर्मचारियों की तर्ज पर ही हम पर भी सरकार मेहरबान हो। प्रदेश के आयुर्वेदिक विभाग में कार्यरत कर्मचारियों को प्रदेश सरकार के बनाए हुए नियमों के आधार पर बिना किसी शर्त से नियमित करने के आदेश जारी किये जाए ताकि इन कर्मचारियों का शोषण न हो। -तरसेम कुमार, प्रदेश अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ।
जेसीसी के फाइनल मिनिट्स सामने आने से शिक्षक वर्ग में निराशा है। शिक्षक वर्ग से जुड़े मुख्य सौ मुद्दों में से इक्का-दुक्का मुद्दों को ही जेसीसी में जगह मिली थी, जिसमें शिक्षक वर्ग से जुड़ी मांगें पूर्ण नहीं हुई हैं। शिक्षकों की अलग जेसीसी भी नहीं है। प्रदेश सरकार ने बजट सत्र के बाद शिक्षकों के मामले हल करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन किया था जिसके मुखिया प्रदेश के मुख्य सचिव हैं। वर्ष 2021 खत्म होने को है मगर हाई पावर कमेटी की शिक्षक संघों से वार्ता तक आयोजित नहीं हुई है। ऐसे में 70 हजार सरकारी शिक्षकों की मांगें कब पूर्ण होंगी, ये सवाल टीजीटी कला संघ ने प्रदेश सरकार से पूछा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कौशल ने कहा कि हाई पावर कमेटी की पहली बैठक दो दिसंबर को भी आयोजित नहीं हो सकी थी और इसके बाद भी शिक्षक संगठनों को अब तक अपना एजेंडा जमा करने और हाई पावर कमेटी की बैठक के लिए नहीं बुलाया गया है। जेसीसी में वेतन आयोग का अनुसरण केवल पे स्केल में करने के लिए कहा गया, जबकि सबसे अधिक आर्थिक नुकसान एचआरए आठ प्रतिशत पंजाब तर्ज पर न देना है। एरियर कैसे मिलेगा, इसकी रूपरेखा नहीं बताई गई। साथ ही 55 वर्ष आयु के बाद प्रमोशन के लिए विभागीय परीक्षा की शर्त हटानी बाकी है। पुरानी पेंशन बहाली मामला भी एक कमेटी के हवाले है। ऐसे में शिक्षक वर्ग के अनेक अन्य मामले न चर्चा में रखे गए थे और न ही उन पर काम शुरू हुआ। इसी तरह प्रदेश में पांच प्रतिशत डीए अब तक नहीं मिला और केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर अतिरिक्त तीन प्रतिशत डीए भी अभी घोषित नहीं हुआ है।
हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज न करने की मांग की है। संघ के अध्यक्ष केसर सिंह ठाकुर ने बताया कि अगर इस बार प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है, तो प्रवक्ता संघ इसका कड़ा विरोध करेगा। संघ के अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नति में प्रवक्ताओं को उनकी संख्या के अनुपात में बहुत कम अवसर प्राप्त हो रहे हैं। बड़े लंबे समय से प्रवक्ता संघ प्रवक्ताओं का पदोन्नति कोटा बढ़ाने की लगातार मांग कर रहे हैं। वे चाहते है की प्रधानाचार्य के पदोन्नति कोटे का अनुपात 95:5 किया जाए। प्रवक्ताओं का तर्क है कि प्रधानाचार्यों की पदोन्नति के लिए दो ही फीडिंग काडर हैं। इनमें स्कूली प्रवक्ता और उच्च विद्यालयों में कार्यरत मुख्याध्यापक शामिल हैं। इनका कहना है कि प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति के लिए इन दोनों फीडिंग काडर की वास्तविक संख्या के आधार पर पदों का बंटवारा होना चाहिए। संघ के पदाधिकारियों के अनुसार प्रवक्ताओं को पदोन्नति में हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों सूचियों में मुख्य अध्यापकों की संख्या बहुत अधिक रहती है जबकि प्रवक्ताओं को पदोन्नति सूचियों में बहुत कम स्थान प्राप्त होते है। 27 मार्च को जारी सूची में 96 मुख्य अध्यापकों को प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत किया गया था जबकि केवल 45 प्रवक्ताओं को ही पदोन्नत किया गया था। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने चेतावनी दी है कि अगर इस बार प्रधानाचार्य के रूप में होने वाले प्रमोशन में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है या विभाग द्वारा सिर्फ मुख्य अध्यापकों को ही प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत किया जाता है और प्रवक्ताओं को प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत करने के लिए सूची नहीं निकाली जाती है, तो संघ इसका कड़ा विरोध करेगा। संघ इस संबंध में संघर्ष करने में किसी भी तरह का कोई गुरेज नहीं करेगा जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी विभाग की होगी। सीएम की घोषणा तीन साल बाद भी लागू नहीं हुई हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के अनुसार मुख्यमंत्री द्वारा प्रवक्ताओं का पदोन्नति कोटा बढ़ाने की घोषणा के बावजूद विभाग की ओर से उस पर कार्रवाई नहीं की गई है। संघ के अनुसार 23 नवंबर 2018 को पालमपुर में आयोजित प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के राज्यस्तरीय सम्मेलन में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 10 प्रतिशत कोटा बढ़ाने की घोषणा की थी। लेकिन, घोषणा के तीन वर्ष बाद भी यह लागू नहीं हो पाई है, जो प्रवक्ता वर्ग के साथ बहुत बड़ा धोखा है। इनका आरोप है कि प्रदेश की नौकरशाही लगातार इसके बारे में भेदभाव कर रही है।
महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता बेरोजगार संघ ने प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ ने कहा कि 205 पदों पर भर्ती व पदोन्नति नियमों के आधार पर सिर्फ प्रशिक्षण प्राप्त महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की तैनाती नहीं की गई तो सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। संघ की उपप्रधान सुदर्शना ने कहा कि प्रदेश में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की संख्या करीब 6000 है। वे प्रशिक्षण के बाद भी घर बैठी हैं। उनके लिए भी कोई योजना बनाई जाए। सरकार नियमों के आधार पर अगर प्रशिक्षण प्राप्त महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को तैनाती नहीं दे सकती है तो जगह-जगह खोले गए इन प्रशिक्षण संस्थानों को भी तत्काल बंद करें। वर्ष 2018 में स्वास्थ्य विभाग के तहत 205 बहुउद्देशीय महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पदों को भरने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स से आवेदन मांगे गए थे, लेकिन कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर ने भर्ती एवं पदोन्नति नियमों को ताक पर रख कर फीमेल हेल्थ वर्कर्स के साथ जीएनएम व बीएससी नर्सिंग की आवेदकों के आवेदनों को भी स्वीकार कर लिया गया। उनका दावा है कि बीते 15 सितंबर को घोषित किए परिणाम में 95 फीसदी अभ्यर्थी जीएनएम व बीएससी नर्सिंग के ही उत्तीर्ण हुए हैं। महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता बेरोजगार संघ ने कहा कि प्रदेश में प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स की संख्या 6000 है, ये सारी महिलाएं इन दिनों बेरोजगार हैं। उन्होंने सरकार से मांग है कि जिस तरह पैरामेडिकल स्टाफ को 50 फीसदी बैचवाइज रखा जा रहा है उसी तरह एनएम महिलाओं को भी 50 फीसदी बैचवाइज रखा जाए। उन्होंने कहा कि हम पिछले कई सालों से अपने हक के लिए लड़ रही हैं, लेकिन प्रदेश सरकार हमारी मांगों की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है। सरकार द्वारा कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार हमारी मांगें नहीं मानती है तो वह आने वाले चुनावों का बहिष्कार करेंगी। उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि आरएंडपी रूल्स के आधार पर प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स की तैनाती की जाए।
'भाजपा सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हर कर्मचारी वर्ग की मांगें पूरी कर रही है, मगर हमें तो मानों सरकार अपना कर्मचारी समझती ही नहीं है ' जयराम सरकार से ये शिकवा है प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सेवाएं दे रहे 1421 कंप्यूटर शिक्षकों का। इनका प्रतिनिधित्व कर रहे कंप्यूटर शिक्षक संघ का कहना है कि सरकारी स्कूलों में तैनात कंप्यूटर शिक्षक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है। 20 सालों तक लगातार संघर्ष करने के बावजूद भी कंप्यूटर शिक्षकों की मांगें पूरी नहीं हो पाई है। पिछले करीब दो दशक से कम्प्यूटर अध्यापक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने कम्प्यूटर अध्यापकों के लिए नीति नहीं बनाई है। इनका कहना है कि सरकार हर वर्ग को राहत पहुंचा रही है, मगर इन्हें नहीं। सरकार करुणामूलक आधार पर नौकरियां दे रही है, कर्मचारियों को नया पे स्केल दे रही है, पीस मील वर्कर को कॉन्ट्रैक्ट पर ला रही है, मगर एमएससी एमसीए पास और 20 साल से सेवारत इन शिक्षकों के साथ मांगों पर अमल नहीं कर रही। राज्य के सरकारी स्कूलों में 1354 कम्प्यूटर शिक्षक शिक्षा दे रहे हैं तथा समस्त शिक्षक आर एंड पी नियमों का अनुसरण करते हैं। इनमें से 90 प्रतिशत कम्प्यूटर शिक्षक 45 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। कंप्यूटर शिक्षक संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि जब उक्त कम्प्यूटर शिक्षक नौकरी पर लगे थे तो उनका वेतन मात्र 2400 रुपए था और 20 सालों के बाद 13000 तक पहुंचा है। अब भी प्रदेश सरकार वेतन बढ़ाने तक ही पहुंची है। कम्प्यूटर शिक्षक इतने कम वेतन पर बच्चों की पढ़ाई के साथ परिवार का भरण पोषण भी नहीं कर पा रहे हैं तथा अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की कि कंप्यूटर शिक्षकों को शिक्षा विभाग में समायोजित किया जाए ताकि प्रदेश के कंप्यूटर शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित हो सके। बार-बार बढ़ा दिया जाता है एक्सटेंशन साल 2001 में सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा शुरू की गई थी और इसका जिम्मा कंपनी को सौंपा गया था। कंपनी की एक्सटेंशन को बार-बार बढ़ा दिया जाता है। कंप्यूटर शिक्षक संघ का कहना है कि आज दो दशक बीत जाने के बाद भी कंपनी की ओर से उनका शोषण ही किया जा रहा है। कंप्यूटर शिक्षक लगातार सरकार से नियमितीकरण की मांग करते आ रहे हैं लेकिन अभी तक मांग पूरी नहीं हो पाई है। पक्ष अब धैर्य टूट रहा है। कंप्यूटर शिक्षक अब इतिहास दोहराने की तैयारी में है। मांग पूरी न हुई तो शिक्षक सड़कों पर उतर आएँगे। सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा -राजेश शर्मा, प्रेस सचिव, कंप्यूटर शिक्षक संघ।
करीब 6 दशक के लगातार संघर्ष के बावजूद आज तक प्रदेश के होमगार्ड जवानों को उनका हक़ नहीं मिल पाया है। पुलिस की तर्ज पर गृहरक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी निभाते हैं, वर्दी भी खाकी पहनते है, ट्रेनिंग भी उतनी ही कठोर होती है, मगर सरकारी कर्मचारी होने के नाते इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। गृहरक्षकों ने अपने हक की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। इसका लाभ यह हुआ कि उनका वेतन बेहतर हो गया मगर ये अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं। सरकार आज तक इनके लिए नियमितीकरण की नीति तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हर वर्ग को सहायता पहुंचाने की कोशिश में है। चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कर्मचारी फैक्टर को साधने के पूरे प्रयास किए जा रहे है। ऋण ले लेकर कर्मचारियों को खुश किया जा रहा है, मगर होमगार्ड जवानों का कहना है कि एक उनका वर्ग ही ऐसा है, जिसकी अब तक अनदेखी की गई है। होमगार्ड एसोसिएशन ने एक बार फिर सरकार से होमगार्ड के लिए स्थायी नीति बनाने की गुहार लगाई है। एसोसिएशन ने राज्य हाल ही में स्तरीय बैठक का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता एसोसिएशन अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा ने की और गृहरक्षकों को उनका हक़ दिलाने के लिए रणनीति बनाई। हिमाचल होमगार्ड एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा ने कहा कि प्रदेश में एक-दो विधायकों को छोडकऱ किसी भी विधायक व मंत्री ने होमगार्ड जवानों की बात आज तक नही सुनी है। उन्होंने कहा कि 58 वर्षों से होमगार्ड जवान सरकार से होमगार्ड जवानों के लिए अन्य विभागों के कर्मचारियों की तरह ठोस नीति बनाने व 12 माह का स्थायी रोजगार देने की मांग कर रहे हैं, मगर सरकार उनकी मांग को नजरअंदाज कर रही है। होमगार्ड जवान सभी विधायकों से लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक को मांगपत्र सौंप चुके है, मगर आज तक किसी ने उनकी नहीं सुनी। जोगिंद्र सिंह ने बताया की विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी महज नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री व चंबा सदर हलके के विधायक पवन नैय्यर ने होमगार्ड जवानों की बात की, जबकि किसी अन्य विधायक व मंत्री ने होमगार्ड जवानों की मांग नहीं उठाई। जोगिंद्र सिंह ने बताया की इतना ही नहीं कोरोना संकट में सेवाएं देने के लिए विभिन्न विभागों के कर्मचारियों की सरकार द्वारा खूब प्रशंसा की गई मगर होमगार्ड जवानों का कोई नाम तक नहीं लिया गया । महिला सशक्तिकरण के नारे तो बहुत दिए जा रहे हैं परंतु अस्पतालों में तैनात की गई महिला होमगार्ड जवानों की सेवाएं अब अस्पतालों में खत्म कर दी गई हैं। होमगार्ड जवानों की ठेका प्रथा के अनुरूप सेवाएं लेते हुए कभी होमगार्ड जवानों को पुलिस, कभी वन विभाग तो कभी अन्य विभागों के साथ अटैच किए जाने के बाद संबंधित विभागों का काम पूरा हो जाने के बाद घर पर बिठा दिया जाता है। स्थायी रोजगार न होने व ठोस नीति न होने के कारण होमगार्ड जवानों सहित उनके परिवारों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। सेवानिवृत्ति के बाद खाली हाथ घरों को लौटने पर होमगार्ड जवानों को दिहाड़ी मजदूरी करके परिवारों का भरण पोषण करना पड़ता है। लिहाजा सरकार प्रदेश में सेवारत होमगार्ड जवानों से न्याय करते हुए उन्हें जल्द 12 माह का स्थायी रोजगार दे। वहीं होमगार्ड जवानों के लिए ठोस नीति बनाए। मोरारजी देसाई के न्रेतत्व में हुई थी स्थापना गृह रक्षक को मूल रूप से 1946 में बॉम्बे प्रांत में बनाया गया था। किसी भी अप्रिय स्थिति में नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सेना, नौसेना, वायु सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के अलावा, जुड़वां स्वैच्छिक संगठन-नागरिक सुरक्षा और गृह रक्षक-को बनाया गया था। इसलिए, हर साल 6 दिसंबर को पूरे देश में संगठन के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। उस दिन 1946 में, बॉम्बे प्रांत में हो रहे नागरिक विकारों और सांप्रदायिक दंगों की उथल-पुथल के दौरान पुलिस के सहायक के रूप में प्रशासन की सहायता के लिए नागरिक स्वैच्छिक बल के रूप में, स्व. पुर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के न्रेतत्व में गृह रक्षक टुकड़ी की स्थापना की गई थी। कभी भी छिन्न जाता है रोज़गार गृहरक्षकों की मांगों को सरकार तक पहुँचाने के लिए गृहरक्षक संगठन की स्थापना छह दिसंबर 1962 को हुई थी। तब से लेकर गृहरक्षक पुलिस बल के साथ सहयोग के अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं के समय बचाव कार्यो में योगदान दे रहे हैं। मगर अब तक इनकी समस्याओं का हल नहीं हो पाया है। दरअसल गृहरक्षकों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं है जिसके चलते इनके रोज़गार की कोई तय अवधि नहीं होती, समय और ज़रूरत के हिसाब से इनकी सेवाएं ली जाती है। गृहरक्षकों को कई बार सेवाओं में भी ब्रेक दी जाती है, जिसके बाद इन्हें घर पर बैठना पड़ता है। अगर ड्यूटी नहीं लगी तो फिर वेतन भी नहीं मिल पाता है। गृहरक्षक थानों व चौकियों से लेकर कई विभागों में कानून व्यवस्था की सेवाएं दे रहे हैं। इनमें राष्ट्रपति आवास, हाईकोर्ट, राजभवन, जेलें, विजिलेंस, सीआइडी, शिक्षा विभाग, मंदिर, एफसीआइ, स्वास्थ्य संस्थान, ट्रेजरी, उपायुक्त कार्यालय, पर्यटन आदि विभाग शामिल हैं। प्रदेश से बाहर के राज्यों में भी इनकी चुनाव में ड्यूटी लगाई जाती है मगर सब सिर्फ ज़रूरत के हिसाब से। गृहरक्षकों ने हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी मगर अब तक कुछ हल नहीं निकला। सेवानिवृति के बाद बिगड़ती है स्थिति सेवानिवृत्ति के बाद गृहरक्षकों की हालत और बदतर हो जाती है। इन्हें सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर अन्य वित्तीय लाभ और पेंशन नहीं मिलती। इन्हें पेंशन सिर्फ मृत्यु की स्थिति में मिलती है। यदि अपनी सेवाओं के दौरान किसी गृहरक्षक की मृत्यु हो जाए तो उसके परिवार को पेंशन दी जाती है, पर कोई गृहरक्षक सही सलामत सेवानिवृत होता है तो उसके लिए पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है। इसके अतिरिक्त एक भी अवकाश नहीं है। भविष्य निधि, चिकित्सा प्रतिपूर्ति, हाउस लोन जैसे कई सुविधाएं उन्हें नहीं दी जाती है। जनजातीय क्षेत्रों में कार्यरत एक आईएएस अधिकारी से लेकर मनरेगा मजदूर को जनजातीय भत्ता मिलता है, लेकिन होमगार्ड जवान इससे महरूम है। सरकारी कर्मचारी की अन्य कोई सुविधाएं भी इन्हें नहीं मिल पाती ज़ाहिर है की ऐसी परिस्थितिओं में परिवार का भरण पोषण मुश्किल हो जाता है। ये है मुख्य मांग गृहरक्षकों की प्रमुख मांग है कि सरकार उनके लिए नियमितीकरण की नीति बनाए। पंजाब व हरियाणा की तरह वेतन देने की व्यवस्था की जाए। इन्हें संशोधित वेतनमान से वंचित रखा गया है। गृहरक्षकों को 1900 रुपये ग्रेड पे जबकि पुलिस कर्मियों की ग्रेड पे 3200 रुपये है, इन विसंगतियों को भी ठीक किया जाए। ड्यूटी के दौरान होमगार्ड जवान की मौत हो जाने पर पंजाब की तर्ज पर होमगार्ड जवान के परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए।
हिमाचल पथ परिवहन निगम की वर्कशॉप में तैनात डिप्लोमा और बिना डिप्लोमा प्राप्त सभी पीसमील वर्कर अनुबंध पर आएंगे। पांच साल सेवाएं देने वाले डिप्लोमा प्राप्त वर्कर जूनियर तकनीशियन की श्रेणी में आएंगे, जबकि 6 साल का अनुभव प्राप्त बिना डिप्लोमा प्राप्त वर्करों को टायरमैन और वाशरमैन बनाया जाएगा। इस महीने के अंत तक इन्हें अनुबंध पर लाया जाएगा। बता दें कि हिमाचल में पीसमील वर्करों की संख्या करीब 900 है। ये सभी कर्मचारी वर्कशॉप में सेवाएं दे रहे हैं। बसों की मरम्मत से लेकर बसों की साफ-सफाई करने का जिम्मा इन पर है। इनमें कई वर्कर ऐसे हैं, जिन्हें सेवाएं देते 8 से 10 साल हो गए हैं, लेकिन इन्हें 10 हजार के करीब मानदेय मिलता है। अब अनुबंध पर आने से इन्हें फायदा होगा। दो साल का अनुबंध कार्यकाल पूरा होने के बाद यह नियमित होंगे।
पेयजल योजनाओं को संचालित कर रहे ठेकेदार के माध्यम से रखे गए आउटसोर्स कर्मचारि वेतन न मिलने से परेशान चल रहे है। अपने मासिक वेतन का भुगतान समय पर करवाने की मांग को लेकर आउटसोर्स कर्मचारी राज्य विद्युत बोर्ड इंप्लाइज यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह खरवाड़ा के नेतृत्व में हमीरपुर उपयुक्त देवश्वेता बनिक से भी मिला । उपायुक्त को ज्ञापन सौंपकर समस्या के स्थायी समाधान की मांग की गई है। इन आउटसोर्स कर्मचरियों का कहना है की इन्हें करीब आठ माह से वेतन नहीं मिला है। मात्र पांच से छह हजार वेतन पर रखे कर्मचारियों को परिवार का पालन-पोषण करना मुश्किल हो गया है। वेतन का समय पर भुगतान होने व स्थायी नीति बनने से कर्मचारियों को राहत मिलेगी। खरवाड़ा ने कहा कि विभाग प्रति कर्मचारी 12 से 14 हजार रुपये का भुगतान करता है लेकिन कर्मियों को सिर्फ पांच से छह हजार मासिक वेतन दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नीति बनानी चाहिए। वेतन विसंगति को दूर करने का भी प्रावधान हो। वेतन की अदायगी सीधे कर्मियों के बैंक खाते में की जाए। इससे जहां वेतन प्राप्त करने वालों के पास वेतन अदायगी का प्रूफ होगा वहीं ठेकेदार के पास भी अदायगी का रिकार्ड रहेगा। इससे पहले भी जल शक्ति विभाग नादौन तथा धनेटा के तहत आउटसोर्स कर्मचारी मांगों के समर्थन में उपायुक्त को ज्ञापन सौंप चुके हैं। इसके बाद इन्हें कुछ महीने के वेतन की अदायगी की गई लेकिन अभी भी कई महीनों के वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। मामला प्रशासन के ध्यान में लाने के बाद ठेकेदारों ने नौकरी से निकालने तक की धमकी भी दी है।
मुख्यमंत्री ने जेसीसी की बैठक में कर्मचारियों के लिए अनुबंधकाल को तीन साल से घटाकर दो साल करने की घोषणा की थी, लेकिन सरकार द्वारा अनुबंध को घटाकर तीन साल करने के संंदर्भ में अभी तक आधिकारिक अधिूसचना जारी नहीं हुई है। प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी संगठन ने मांग उठाई है कि सरकार अनुबंधकाल को घटाने के बारे में जल्द से जल्द आधिकारिक अधिसूचना जारी करे। प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी संगठन का कहना है कि प्रदेश के वर्तमान में लगभग 6000 अनुबंध कर्मचारी चिंतित व निराश हो रहें हैं। प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के राज्य कार्यकारिणी के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार नड्डा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय पटियाल, कार्यकारी महासचिव सुनील कुमार शर्मा, वित्त सचिव अविनाश कुमार सैणी और मीडिया सचिव राकेश ठाकुर ने मुख्यमंत्री तथा कार्मिक विभाग से यह अपील की है कि अधिसूचना जल्द जारी की जाए तथा वित्तीय और वरिष्ठता लाभ 30 सितंबर 2021 को दो वर्ष का अनुबंध कार्यकाल पूरा करने वाले कर्मचारियों को पहली अक्तूबर 2021 से ही दिए जाएं।
प्रदेश के जेबीटी प्रशिक्षु अब आर पार की लड़ाई मूड में है। हिमाचल हाईकोर्ट की ओर से जेबीटी भर्ती में बीएड डिग्री धारकों को भी पात्र बनाने के फैसले पर हिमचाल के जेबीटी प्रशिक्षु नाराज़ चल रहे है। इस मसले पर सरकार जेबीटी प्रशिक्षुओं के पक्ष में ज़रूर नज़र आई थी मगर अब मानों ये मसला सरकारी दफ्तरों में पड़ी फाइलों की तरह धुल खाने लगा है। फैसला आने के बाद प्रदेश सरकार ने दोबारा रिव्यू पेटिशन डालने की बात कही थी लेकिन अब जेबीटी संघ ने प्रदेश सरकार पर देरी बरतने के आरोप लगाए हैं। इन प्रशिक्षुओं का कहना है की सरकार के ढीले रवैय के कारण ही जेबीटी के 40000 छात्र तथा उनके परिवारों को ये दंज झेलना पड़ रहा है। बता दें की हाल ही में प्रदेश हाईकोर्ट शिमला ने जेबीटी भर्ती मामलों पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि शिक्षकों की भर्ती के लिए एनसीटीई की ओर से निर्धारित नियम एलिमेंटरी शिक्षा विभाग के साथ अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग पर भी लागू होते हैं। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने याचिकाओं को स्वीकारते हुए प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह 28 जून, 2018 की एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार जेबीटी पदों की भर्ती के लिए नियमों में जरूरी संशोधन करे। कोर्ट के इस फैसले से अब जेबीटी पदों के लिए बीएड डिग्री धारक भी पात्र होंगे। कोर्ट के इस फैसले से जेबीटी डीएलएड प्रशिक्षित बेरोजगार संघ बेहद खफा है। संघ का कहना है की 30 नवंबर को जेबीटी के सभी छात्रों ने हिमाचल प्रदेश सचिवालय के सामने अपनी आवाज रखने के लिए संकेतिक धरना दिया जिसमें जयराम ठाकुर तथा शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर ने जेबीटी छात्रों को आश्वस्त किया की प्रदेश सरकार जेबीटी के साथ है और बहुत जल्द इस फैसले पर रिव्यु डाल दिया जाएगा या सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जाएगी। इस बात से सभी जेबीटी छात्र आश्वस्त हो गए की प्रदेश सरकार कुछ ना कुछ जरूर करेगी लेकिन हमेशा की तरह यह भी एक लारा ही लग रहा है। प्रशिक्षुओं का कहना है कि न तो प्रदेश सरकार ने अभी तक रिव्यू डाला है और ना ही सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है। बेरोजगार संघ ने प्रदेश सरकार से कहा है की वे पिछले 4 सालों से सरकार पर विश्वास जताए हुए है। परन्तु उन्हें अब तक सिर्फ धोका मिला है। संघ ने कहा कि जो लोग सरकार पर भरोसा करते है उन्हें सिर्फ धोखा ही दिया जाता है और जो लोग उग्र प्रदर्शन करते हैं उनकी मांगे पूरी कि जाती है। उन्होंने सरकार को चेताया कि यदि सरकार उचित कदम नहीं उठाएगी शिमला में जेबीटी के सभी साथी उग्र आंदोलन करेंगे और आंदोलन होता रहेगा जब तक उन्हें अपना हक नहीं मिल जाता। क्या है मांग संघ का कहना है कि बीएड को जेबीटी का लाभ देना उनके हकों के साथ खिलवाड़ है। यदि ऐसा ही करना था तो इनकी दो साल की पढ़ाई का क्या औचित्य रहेगा। अपने हकों के लिए जेबीटी प्रशिक्षु प्रदेश के हर कोने में जमकर गरज रहे है। इन प्रशिक्षुओं की मांग है की बीएड वालों को जेबीटी का लाभ नहीं मिलना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो जेबीटी को समय पर इनके प्रशिक्षण का लाभ नहीं मिल पाएगा। प्रदेश में 40 हजार युवाओं ने जेबीटी और डीएलएड डिप्लोमा किया हुआ है। भर्ती में देरी की वजह से उन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली है। यदि बीएड भी जेबीटी भर्ती के लिए पात्र माने जाते हैं, तो उनका नंबर ही नहीं आएगा। भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में बदलाव होने से जिला के डाइट संस्थान व निजी शिक्षण संस्थानों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसके साथ ही बीएड अभ्यर्थी भी जेबीटी पदों में आएंगे, तो उनका नंबर कई सालों बाद आएगा। ऐसे में मांग की जा रही है कि आरएंडपी रूल्स से कतई छेड़छाड़ न की जाए। दिल्ली एनसीटीई से भी मिले प्रशिक्षु जेबीटी प्रशिक्षुओं की तरफ से रवि नेगी, रोहित रमन टेगता, अभिषेक ठाकुर, ओमकार ठाकुर, मोहित ठाकुर दिल्ली एनसीटीई से भी मिले हैं। एनसीटीई के चेयरमैन संतोष सारंगी का कहना है कि जेबीटी का रिजल्ट जोधपुर हाई कोर्ट के निर्णय के अनुसार निकला जा सकता हैं। फिलहाल उस निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय से स्टे नही लगा हैं। संघ का कहना है कि कई विकल्प है परन्तु हिमाचल प्रदेश सरकार हमेशा की तरह हर मुद्दे पर लेट होती हैं और जब वह मुद्दा उनके हाथ से निकल जाता है तब जागती है। प्रदेश के छात्र पहले भी कई बार विभाग से मिले और उन्होंने कई बार आग्रह किया कि इस विसंगति को समय रहते दूर किया जाए लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी। जिस कारण नतीजा आपके सामने है। संघ का कहना है कि ये सिर्फ जेबीटी छात्रों के हित की बात नहीं है लेकिन प्रदेश सरकार की इज्जत और सम्मान की बात भी है। सरकार ने जेबीटी का पक्ष लिया और कोर्ट में सरकार हार गई जबकि इसके उलट राजस्थान, गुजरात, केरल तमिलनाडु, दिल्ली ने अपने छात्रों को न्याय दिलाया। संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि समय रहते हुए यहां सरकार कभी संजीदा नहीं हुई जिसका खामियाजा प्रदेश के छात्रों को भुगतना पड़ता रहा हैं। जेबीटी प्रशिक्षु रवि नेगी का कहना है कि अगर सरकार समय रहते हुए उचित कदम नहीं उठाएगी तो अब लड़ाई आर-पार की होगी।
आखिर सरकार को पीस मिल कर्मचारियों पर रहम आ ही गया। 20 दिन की हड़ताल और कई सालों के निरंतर संघर्ष के बाद सरकार ने पीसमील वर्करों को अनुबंध पर लाने की घोषणा की है। हिमाचल पथ परिवहन निगम के निदेशक मंडल की बैठक में पीसमील वर्कर के लिए योग्यता निर्धारित की गई है। जिस पीसमील वर्कर ने आईटीआई पास की है और पांच साल का अनुभव है और नॉन आईटीआई वालों के पास छह साल का अनुभव है उनकी योग्यता बनती है। सभी वैकेंसी के हिसाब से अनुबंध पर लिए जाएंगे। 1 दिसंबर 2021 तक पीसमील वर्कर के 663 पद खाली हैं और योग्य पीसमील वर्कर 755 हैं। 1 दिसंबर 2021 से 663 पीसमील वर्करों को अनुबंध पर लिया जाएगा। इसी के साथ ये भी फैसला लिया गया कि करूणामूलक नौकरी तीन माह के भीतर दी जाएगी। क्लास थ्री और क्लास फोर पोस्ट पर इन्हें लगाया जाएगा। बता दें कि पीस मिल वर्कर टूल डाउन हड़ताल कर रहे थे और उनके समर्थन में हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) के तकनीकी कर्मचारी भी उतर आए थे। इससे प्रदेश भर में एचआरटीसी की 28 वर्कशॉप में एक हजार बसें बिना मरम्मत खड़ी हो गई थी। एचआरटीसी ने कई रूटों को क्लब कर दिया था और करीब 200 रूट ठप हो गए थे, जिससे यात्रियों की दिक्कतें बढ़ गई थी। प्रदेश में परिवहन व्यवस्था चरमराने लगी थी, मगर समय रहते सरकार ने मुद्दे को सुलझाने के लिए एक पहल की। सरकार की इस पहल का कर्मचारियों ने स्वागत किया है। हिमाचल प्रदेश में साल 2008 से पीस मिल वर्करों की भर्ती की जा रही है, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। उस वक्त इन कर्मचारियों के लिए 8 साल के बाद अनुबंध पर लाने की पालिसी बनाई गई थी। यानी 8 सालों तक सेवाएं देने के बाद इन कर्मचारियों को अनुबंध पर लाया जाता था और अनुबंध काल पूरा होने के बाद इन्हें बतौर नियमित कर्मचारी नियुक्ति दी जाती थी। तदोपरांत पिछली सरकार में परिवहन मंत्री रहे जीएस बाली द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार आईटीआई डिप्लोमा धारकों को 5 साल बाद और गैर डिप्लोमा धारकों को 6 वर्षों के बाद अनुबंध पर लेने की नीति बनाई गई। कायदे से होना भी ऐसा ही चाहिए लेकिन जयराम सरकार ने अपने कार्यकाल में ये अवधि पूरी कर चुके लोगों को कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति नहीं दी। इसीलिए ये कर्मचारी लगातार संघर्ष कर रहे थे। सरकार ने इन कर्मचारियों को पहले भी आश्वासन दिए थे मगर मांग पूरी नहीं हो पाई थी। सरकार के साथ हुई पहले की बातचीत के दौरान आश्वासन दिया गया था कि इन कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने के लिए नीति बनाई जाएगी। इसके लिए 25 नवंबर तक का समय भी दिया गया था, लेकिन 25 नवंबर तक नीति नहीं बनी। कर्मचारियों की इस मांग के संबंध में 18 अक्तूबर 2021 को अतिरिक्त मुख्य सचिव परिवहन के साथ हुई वार्ता में अक्तूबर 2021 के अंत तक इसके बारे में निर्णय लेने का आश्वासन मिला था। इसके उपरांत 16 नवंबर 2021 को प्रबंध निदेशक के साथ हुई बैठकमें 26 नवंबर तक मामले को अंतिम रूप देने बारे आश्वासन मिला था। परिवहन मंत्री द्वारा समय-समय पर कर्मियों के साथ बैठक इन्हें अनुबंध पर लाने का आश्वासन दिया गया। परंतु हर स्तर पर अनेक बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद इस समस्या का समाधान नहीं हो पाया था। अब घोषणा हुई है, उम्मीद है कि सरकार इसे जल्द पूरा करेगी।
विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा है, और कर्मचारियों की अनसुनी फरियादों की लम्बी फेहरिस्त सरकार के सामने है। उम्मीदें बेतहाशा है और अपनी -अपनी मांगों को लेकर कर्मचारी संगठन नेताओं से मिलने की कवायद में जुटे है। जयराम राज में एक ऐसी ही अनसुनी फ़रियाद है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग। इसे लेकर वर्षों से चला आ रहा संघर्ष अब भी जारी है। जेसीसी की बैठक में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता मांगने वाले कर्मचारियों को वरिष्ठता तो नहीं मिल पाई थी, पर इसके लिए कमेटी के गठन का आश्वासन ज़रूर मिला था। अब कर्मचारियों को कमेटी के गठन का इंतज़ार है। दरअसल, आश्वासन तो लम्बे वक्त से मिलते ही आ रहे है सो अब कर्मचारी चाहते है कि तुरंत एक्शन हो। चुनाव अब नजदीक है और हाल फिलहाल सरकार के ग्रह भी रूठे -रूठे से दिखे है, सो कोशिश ये ही है कि सरकार पर दबाव बनाया जाएँ, और आशा ये है कि सरकार अब आश्वासन से आगे निकल एक्शन ले। बहरहाल विधानसभा के शीतकालीन सत्र में हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को पूरा करवाने हेतु एक बार फिर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से सर्किट हाउस धर्मशाला में मिला। संगठन ने कमेटी के गठन की घोषणा के लिए सीएम का आभार जताया, साथ ही ये भी याद दिलाया कि अभी सिर्फ घोषणा ही हुई है। संगठन ने कमेटी में हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के सदस्यों को शामिल करने की मांग भी की। दरअसल ये मसला शुरू हुआ 2008 में, जब बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंध काल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, जो संगठन के अनुसार सरासर गलत है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 8 वर्ष के बाद नियमित हुए, कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं और अब आने वाले समय में 2 वर्ष में कर्मचारी नियमित होंगे। ऐसे में ये नीति कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है। मान सम्मान का विषय, सीएम से हुई सकरात्मक बातचीत : गर्ग हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष मुनीष गर्ग और जिलाध्यक्ष सुनील पराशर का कहना है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं। कर्मचारियों ने कहा कि उनका चयन भर्ती एवम पदोन्नति नियमों के अनुसार हुआ है इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है। सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे। संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि उनकी मुख्यमंत्री से सकारात्मक माहौल में बातचीत हुई। प्रतिनिधिमंडल में जिलाध्यक्ष सुनील पाराशर,प्रदेश सचिव संदीप सकलानी, मनदीप,सुरेंद्र, कप, अश्विनी, शम्मी कुमार, शशि, विमल सागर दीपक भगसेन ,अनूप ,पवन, कुशल सहित अन्य शामिल रहे। आस : धूमल का वादा जयराम पूरा करेंगे ! जाती हुई सरकार की बात मत सुनो आती हुई सरकार की मानो, ये शब्द थे पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के l 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री ने सुजानपुर में ये वादा किया था l वादा था कि भाजपा के सत्ता में आते ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने हेतु कार्य किया जाएगा l जयराम सरकार के चार साल में इस विषय में कुछ नहीं हुआ, पर हाल ही में हुई जेसीसी बैठक में सरकार ने कमेटी गठित करने की बात कही है l इसके बाद कर्मचारियों में कुछ आशा जरूर जगी है। अब कर्मचारी चाहते है कि जल्द कमेटी गठित हो और मांग को पूरा किया जाए l
पुलिस कांस्टेबल के परिवारों के बाद अब होमगार्ड के जवानों के परिवार भी सड़कों पर आकर प्रदर्शन करने को मजबूर होने लगे है। होमगार्ड विभाग की महिला कर्मचारियों को आज भी मातृत्व अवकाश का लाभ और प्रसूति अवधि के वेतन का लाभ नहीं मिल रहा है। इन महिला कर्मचारियों का कहना है की यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहां भारत सरकार 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओं' का नारा बुलंद करती रही है वहीँ कुछ विभाग मातृत्व अवकाश का लाभ भी नहीं दे रहे। इनका कहना है कि यह हर महिला का अधिकार है और इसका लाभ सभी को मिलना चाहिए। निजी संगठनों और कंपनियों द्वारा भी मातृत्व लाभ दिया जाता था लेकिन यह बहुत दुखद है कि हिमाचल प्रदेश का होमगार्ड विभाग महिलाओं को मातृत्व लाभ नहीं दे रहा है। सिर्फ यही नहीं इन कर्मचारियों की और भी कई लंबित मांगें है जिनको लेकर हाल ही में होमगार्ड के जिला अध्यक्ष विजय धर्माणी की अध्यक्षता में एक प्रतिनिधिमंडल खाद्य आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग से मिला। इस दौरान उन्हें समस्याओं के बारे में अवगत कराकर स्थायी नीति बनाने के लिए आग्रह किया। जिला अध्यक्ष ने बताया कि मंत्री ने उनकी समस्याओं को सुना और आश्वासन दिया कि वह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष समस्याओं को उठाकर उनको हल करवाने का प्रयास करेंगे। उधर, हिमाचल होमगार्ड वेलफेयर एसोसिएशन के राज्य प्रचार सचिव विजय कुमार राणा ने बताया कि हमने हिमाचल प्रदेश के हर जिले से सभी विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री को अपनी समस्याओं से अवगत कराया है। सरकार को बने हुए चार साल हो चुके हैं लेकिन आज तक किसी ने भी हमारे बारे में कुछ भी नहीं सोचा। उन्होंने कहा कि अभी तक गृहरक्षक महिलाओं को मातृत्व अवकाश से भी वंचित रखा जा रहा है, जबकि अन्य सभी विभागों में सभी महिला कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश दिया जाता है। राणा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश के सभी विभागों के लिए पॉलिसी बनाई जा रही है। हम लोग भी पॉलिसी बनाने की आस लगाए बैठे हैं। कहा कि उन्हें सरकार से उम्मीद है कि उनकी समस्याओं का हल होगा।
हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने सरकार के प्रति गहरा रोष व्यक्त किया है। संगठन ने सरकार को चेतावनी दी है कि प्रदेश सरकार जल्द उन्हें वार्ता के लिए बुलाए और परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारियों की मांगें पूरी करें, अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच के प्रदेश अध्यक्ष बलराम पुरी ने कहा कि कल्याण मंच ने गत 25 जुलाई को मुख्यमंत्री व निगम प्रबंधन को एक मांग पत्र दिया था और अगस्त में होने वाले विधानसभा सत्र में धरना प्रदर्शन करने का नोटिस भी दिया था, जिस पर मुख्यमंत्री ने हस्ताक्षर युक्त पत्र द्वारा मंच को जानकारी दी कि सरकार आपकी मांगों पर विचार कर रही है और धरना-प्रदर्शन न करें तथा आपको जल्द वार्ता के लिए बुलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि अब कल्याण मंच द्वारा मुख्यमंत्री को इस बारे दो बार स्मरण पत्र दिए गए, लेकिन उन्हें अभी तक वार्ता के लिए नहीं बुलाया गया, जिसके लिए पेंशनरों में सरकार के प्रति रोष है। उन्होंने कहा कि गत 17-18 नवंबर को मंडी में प्रदेश अधिवेशन व 30 नवंबर को हमीरपुर में प्रदेश संचालन समिति ने यह प्रस्ताव पारित किया है कि अगर सरकार हमारी मांगों को हल नहीं करती और वार्ता के लिए नहीं बुलाती है, तो आगामी बजट सत्र शिमला में मंच विधानसभा के सामने प्रदर्शन करेगा और इनका प्रदर्शन अनिश्चितकाल तक जारी रहेगा। ये है मांगें - पेंशन के लिए बजट की समस्या का स्थायी हल -पेंशन हर माह के प्रथम सप्ताह में दी जाए - 2016-2017 से से सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को उनकी ग्रेच्युटी व लीव-इनकैशमेंट का भुगतान 31 दिसंबर से पहले हो - महंगाई भत्ते का बकाया 2015 से 2021 तक हो जो 46 प्रतिशत बनता है व आठ प्रतिशत अंतरिम राहत है, उसको जारी किया जाए - 2016 से लागू किए जाने वेतनमान को सरकार के कर्मचारियों को दिया जाए - 65, 70, 75 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके पेंशनरों को क्रमश: पांच, दस व 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर की जाए - संशोधित वेतनमान को पेंशन में जोड़ा जाए
20 सालों तक लगातार संघर्ष करने के बावजूद आज भी कंप्यूटर शिक्षकों की मांगें पूरी नहीं हो पाई है। पिछले करीब दो दशक से कम्प्यूटर अध्यापक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने कम्प्यूटर अध्यापकों के लिए नीति नहीं बनाई है। केवल आश्वासन देकर वोट लेने का काम किया है। यह कहना है कम्प्यूटर अध्यापक शिक्षक संघ हमीरपुर का। इनका कहना है कि प्रदेश सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों के बारे में नीति बनाने की बात कर रही है, लेकिन फैसला नहीं ले रही है। हर बार फैसले को टाला जा रहा है। राज्य के सरकारी स्कूलों में 1354 कम्प्यूटर शिक्षक शिक्षा दे रहे हैं तथा समस्त शिक्षक आर एंड पी नियमों का अनुसरण करते हैं। इनमें से 90 प्रतिशत कम्प्यूटर शिक्षक 45 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि जब उक्त कम्प्यूटर शिक्षक नौकरी पर लगे थे तो उनका वेतन मात्र 2400 रुपए था और 20 सालों के बाद 13000 तक पहुंचा है। अब भी प्रदेश सरकार वेतन बढ़ाने तक ही पहुंची है। कम्प्यूटर शिक्षक इतने कम वेतन पर बच्चों की पढ़ाई के साथ परिवार का भरण पोषण भी नहीं कर पा रहे हैं तथा अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की कि कंप्यूटर शिक्षकों को शिक्षा विभाग में समायोजित किया जाए ताकि प्रदेश के कंप्यूटर शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित हो सके। बार-बार बढ़ा दिया जाता है एक्सटेंशन साल 2001 में सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा शुरू की गई थी और इसका जिम्मा कंपनी को सौंपा गया था। कंपनी की एक्सटेंशन को बार-बार बढ़ा दिया जाता है। इनका कहना है कि आज दो दशक बीत जाने के बाद भी कंपनी की ओर से उनका शोषण ही किया जा रहा है। कंप्यूटर शिक्षक लगातार सरकार से नियमितीकरण की मांग करते आ रहे हैं लेकिन अभी तक मांग पूरी नहीं हो पाई है।
हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड के कर्मचारी बिजली संशोधन बिल 2021 का विरोध करने लगे है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश बिजली कर्मचारी यूनियन ने बिजली संशोधन बिल 2021 को संसद के इस शीतकालीन सत्र में चर्चा में लाने के विरोध में प्रदर्शन किया है। यहीं नहीं प्रधानमंत्री को प्रदेश सरकार के माध्यम से ज्ञापन भी भेजा गया। बोर्ड मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन कर नारेबाजी की गई। राज्य बिजली बोर्ड के प्रबंध निदेशक पंकज डडवाल के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा गया। इस बिल का विरोध करने की अपील की गई। यूनियन महासचिव हीरा लाल वर्मा ने कहा इस बिजली कानून को केंद्र सरकार द्वारा बिजली बोर्ड के निजीकरण के उद्देश्य से लाया जा रहा है। इससे बिजली बोर्ड के मुनाफे वाले क्षेत्र निजी हाथों में चले जाएगा और सब्सिडी खत्म हो जाएगी। इससे बिजली उपभोक्ताओं की बिजली दरें बढ़ने से अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इस सांकेतिक धरने के माध्यम से केंद्र सरकार को सचेत किया गया कि यदि केंद्र सरकार समय रहते इस बिजली बिल को वापस नहीं लेती तो बिजली कर्मचारी और अभियंता की समन्वय समिति दिल्ली में सत्याग्रह करेगी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार से मांग है कि बिजली कानून में व्यापक बदलाव वाले इस विधेयक को जल्दबाजी में पारित करने के बजाय इसे संसद की बिजली मामलों की स्थाई समिति के पास भेजा जाना चाहिए और समिति के सामने बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मियों को अपने विचार रखने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश बिजली कर्मचारी यूनियन का कहना है कि विद्युत अधिनियम 2003 में उत्पादन का लाइसेंस समाप्त कर बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन का निजीकरण किया गया, जिसके परिणामस्वरुप देश की जनता को निजी घरानों से बहुत महंगी बिजली की मार झेलनी पड़ रही है। अब बिजली (संशोधन) बिल 2021 के जरिये बिजली वितरण का लाइसेंस लेने की शर्त समाप्त की जा रही है, जिससे बिजली वितरण के पूरी तरह से निजीकरण का रास्ता साफ हो जाएगा। इस बिल में प्रावधान है कि किसी भी इलाके में एक से अधिक बिजली कंपनियां बिना लाइसेंस लिए कार्य कर सकेंगी और बिजली वितरण के लिए यह निजी कंपनियां सरकारी वितरण कंपनी का मूलभूत ढांचा और नेटवर्क इस्तेमाल करेंगी। निजी कंपनियां केवल मुनाफे वाले औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को ही बिजली देंगी जिससे सरकारी बिजली कंपनी की आर्थिक हालत और खराब हो जाएगी।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का आभार व्यक्त किया है। संघ का कहना है कि मुख्यमंत्री ने तकनीकी कर्मचारियों की मांगों को प्राथमिकता देते हुए उनका समय-समय पर निदान किया है जिसमें जूनियर टी मेट व जूनियर हेल्पर की पदौन्नति समय अवधि 5 वर्ष से घटाकर तीन वर्ष करना है। मुख्यमंत्री ने दो बार आधिकारिक घोषणा की है, इसके साथ ही भारतीय मजदूर संघ की बैठक में भी बोर्ड प्रबंधन को इसके एक सप्ताह में अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए हैं। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर ने कहा कि अभी भी अधिकारी इसकी अधिसूचना करने में जानबूझ कर विलंब कर रहे है ताकि प्रदेश सरकार की कर्मचारियों के बीच में छवि खराब हो। उन्होंने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि वह बोर्ड प्रबंधन को तकनीकी कर्मचारियों की अन्य मानी हुई मांगों को भी तुरंत पूरी करें। इनमें मुख्यतः एस एस ऐ नॉन आई टी आई से जे ई सब स्टेशन की समय अवधि 10 वर्ष से 5 वर्ष करना, सहायक लाइनमैन से लाइनमैन की पदौन्नति समय अवधि 4 वर्ष से 2 वर्ष करना, इलेक्ट्रीशियन, फिटर, स्टोर कीपर व हेल्पर सब स्टेशन की ग्रेड पे विसंगति दूर करना, सब स्टेशन व उत्पादन विंग में तकनीकी कर्मचारियों को मोबाइल भत्ता देना, मिनी माइक्रो पावर हाउस में कार्यरत कर्मचारियों को पदोन्नति लाभ देना, एम एन्ड टी व पावर हाउस में कार्यरत नॉन आई टी आई इलेक्ट्रीशियन की पदोन्नति समय अवधि 10 वर्ष से 7 वर्ष करना व बर्फीले क्षेत्रों में स्नो किट उपलब्ध करवाना इत्यादि है।
जेसीसी के बाद से हिमाचल में कर्मचारियों के मसलों पर खूब सियासत हो रही है। कर्मचारी हितेषी बनने के लिए पक्ष और विपक्ष में होड़ सी लगी हुई है। कोई मांगें पूरी कर खुद को कर्मचारी हितेषी बता रहा है, तो कोई कर्मचारियों की आवाज़ बन कर। मंज़िल एक ही है बस रास्ता अलग है। कर्मचारियों का सबसे बड़ा मसला यानी की पुरानी पेंशन की बहाली तो मानो नेताओं के रडार पर है। आए दिन ओपीएस को लेकर किसी न किसी नेता का ब्यान वायरल हो जाता है। जहां कांग्रेस कर्मचारियों के लिए भाजपा सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रही है, वहीं भाजपा सरकार बार -बार कांग्रेस को ये याद दिला रही है कि प्रदेश में ओपीएस उन्हीं की सरकार की देन है। हाल ही में सामने आए अपने एक बयान में कैबिनेट मंत्री राकेश पठानिया ने न सिर्फ कांग्रेस पर कर्मचारियों को गुमराह करने के आरोप लगाए, बल्कि कर्मचारियों को ये याद भी दिलाया की उनकी समस्या का बीजारोपण कांग्रेस द्वारा ही किया गया था। एनपीएस कर्मचारी हो या पुलिस कर्मचारियों इन सभी को इस परिस्थिति में पहुंचाने के लिए उन्होंने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि ओल्ड पेंशन की बात करें तो सबसे पहले हिमाचल ने ही कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देना बंद किया था, उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। मुकेश तब मंत्री थे और अब राजनीति कर रहे हैं। उस समय क्यों कुछ नहीं किया। उन्होंने ये भी कहा चुनावी वर्ष है इसलिए विपक्ष के नेता व विक्रमादित्य झूठी बयानबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस केवल झूठ फरेब की राजनीति कर रही है। विक्रमादित्य को नहीं पता कि पिता ने कहां साइन किए। अब कम से कम झूठ बोल कर कर वीरभद्र सिंह की आत्मा को दुखी न करें। सिर्फ वन मंत्री राकेश पठानिया ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का भी कुछ ऐसा ही मानना है। वे भी अपने भाषण के दौरान ये कह चुके है। उधर, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री केंद्र की तत्कालीन अटल सरकार की ओर से पुरानी पेंशन स्कीम खत्म करने का आरोप लगा कर मौजूदा सरकार को घेरने का प्रयास करते है तो वहीं सीएम जयराम ठाकुर का कहना है कि केंद्र ने तो इस स्कीम को 2004 में बदला, लेकिन हिमाचल की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे 2003 में ही हिमाचल में लागू कर दिया था। बहरहाल कर्मचारियों की ये महत्वपूर्ण मांग सिर्फ सियासत का मसला बन कर रहेगी या सरकार इस मुद्दे पर सचमें अमल करेगी ये बड़ा सवाल है। 2004 में केंद्र ने लागू की नई पेंशन योजना साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया है। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशि अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिटी कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशि इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल कि गई है और एन्युटी राशि कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है। इसलिए कर्मचारी नहीं चाहते नई पेंशन स्कीम शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इकट्ठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानि पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। विरोध कर रहे कर्मचारियों का मानना है की उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर ने प्रदेश के कर्मचारी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने तकनीकी कर्मचरियों की मांगों को प्राथमिकता देते हुए उनका समय-समय पर निदान किया है। जिसमें जूनियर टी मेट व जूनियर हेल्पर की पदौन्नति समयावधि 5 वर्ष से घटा कर तीन वर्ष करना है। प्रदेश अध्यक्ष में कहा कि अभी भी अधिकारी इसकी अधिसूचना करने में जानबूझ कर विलंब कर रहा है ताकि प्रदेश सरकार की कर्मचारियों के बीच में छवि खराब हो। उन्होंने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि वह बोर्ड प्रबंधन को तकनीकी कर्मचरियों की अन्य मंगों को भी पूरा करें। HPSEB | HIMACHAL NEWS
जेबीटी बनाम बीएड केस में उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद प्रदेश में जेबीटी प्रशिक्षुओं द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन किये गए। बीएड को जेबीटी पदों के लिए योग्य करार देने पर जेबीटी प्रशिक्षु भड़क उठे। हाल ही में प्रदेश हाईकोर्ट शिमला ने जेबीटी भर्ती मामलों पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि शिक्षकों की भर्ती के लिए एनसीटीई की ओर से निर्धारित नियम एलिमेंटरी शिक्षा विभाग के साथ अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग पर भी लागू होते हैं। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने याचिकाओं को स्वीकारते हुए प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह 28 जून, 2018 की एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार जेबीटी पदों की भर्ती के लिए नियमों में जरूरी संशोधन करे। कोर्ट के इस फैसले से अब जेबीटी पदों के लिए बीएड डिग्री धारक भी पात्र होंगे। कोर्ट के इस फैसले से जेबीटी डीएलएड प्रशिक्षित बेरोजगार संघ बेहद खफा है। संघ का कहना है कि बीएड को जेबीटी का लाभ देना उनके हकों के साथ खिलवाड़ है। यदि ऐसा ही करना था तो इनकी दो साल की पढ़ाई का क्या औचित्य रहेगा। अपने हकों के लिए जेबीटी प्रशिक्षु प्रदेश के हर कोने में जमकर गरज रहे है। इन प्रशिक्षुओं की मांग है की बीएड वालों को जेबीटी का लाभ नहीं मिलना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो जेबीटी को समय पर इनके प्रशिक्षण का लाभ नहीं मिल पाएगा। प्रदेश में 40 हजार युवाओं ने जेबीटी और डीएलएड डिप्लोमा किया हुआ है। भर्ती में देरी की वजह से उन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली है। यदि बीएड भी जेबीटी भर्ती के लिए पात्र माने जाते हैं, तो उनका नंबर ही नहीं आएगा। भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में बदलाव होने से जिला के डाइट संस्थान व निजी शिक्षण संस्थानों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसके साथ ही बीएड अभ्यर्थी भी जेबीटी पदों में आएंगे, तो उनका नंबर कई सालों बाद आएगा। ऐसे में मांग की जा रही है कि आरएंडपी रूल्स से कतई छेड़छाड़ न की जाए। पिछले तीन सालों से यह विवाद चलता आ रहा है और इस कारण कमीशन और बैचवाइज दोनों प्रकार से भर्तियां रुकी हुई है। प्रदेश सरकार इस मसले पर जेबीटी के प्रशिक्षुओं के साथ नज़र आ रही है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जेबीटी प्रशिक्षुओं को आश्वासन दिया है कि जेबीटी के भर्ती नियमों में कोई बदलाव नहीं होगा। वर्तमान नियमों से ही भर्ती होगी। अब तय हुआ है कि सरकार जेबीटी प्रशिक्षुओं के हक़ की लड़ाई लड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट में सीधे जाने के बजाय राज्य हाईकोर्ट में ही रिव्यू पेटिशन फाइल की जाएगी। इस पुनर्विचार याचिका में राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले के कंटेंट को प्रयोग किया जाएगा। यदि फिर भी बात नहीं बनी तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी, लेकिन इतना तय है कि जेबीटी के भर्ती नियम नहीं बदले जाएंगे। पर समस्या यहां हल नहीं हुई। जेबीटी प्रशिक्षुओं का समर्थन करने से बीएड प्रशिक्षु सरकार से नाराज़ हो गए है। बीएड डिग्री धारक संगठन इस विषय पर सरकार का विरोध करने लगा है। संगठन के मंडी जिलाध्यक्ष भूपिद्र पाल ने कहा कि एनसीटीई के मानदंडों के अनुरूप 28 जून 2018 की अधिसूचना को प्रदेश सरकार आज तक लागू नहीं कर पाई है और अब कोर्ट के आदेश पारित होने के बाद भी सरकार बीएड डिग्री धारकों के हकों के खिलाफ कदम उठाने जा रही है, जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि बीएड डिग्री धारकों का मानना है कि हाइकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते वक्त तमाम पहलुओं पर सुनवाई की है। कोर्ट के आदेश के बाद इसका जेबीटी डिग्री धारकों पर ज्यादा असर भी नहीं पड़ने वाला है क्योंकि फैसले में कहीं भी जेबीटी अभ्यर्थियों को प्राथमिक कक्षाओं को पढ़ाने के लिए मना भी नहीं किया है। सरकार लगभग 2000-3000 जेबीटी टेट पास लोगों के हित के लिए अगर हजारों बीएड डिग्री धारकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जा रही है तो इसका संगठन मुंह तोड़ जवाब देगा। बीएड डिग्रीधारक लता शर्मा, रूपाली शर्मा, शेखर, रजनीश शर्मा, अंजना ठाकुर, रश्मि शर्मा, प्रोमिला, विजय, आशा सोनी, माया, कांता इत्यादि का कहना है कि सरकार को जब एनसीटीई की सब शर्तें मान्य है तो बीएड वाली शर्त क्यों मान्य नहीं। Himachal Pradesh News | JBT Teachers
एचआरटीसी को हिमाचल प्रदेश की जीवन रेखा माना जाता है। आज हिमाचल के लगभग हर कोने तक एचआरटीसी की बसें पहुँचती है। हिमाचल के दूर दराज़ क्षेत्रों तक पहुँचने वाली इन बसों को सड़क तक पहुँचाने में पीस मिल कर्मचारियों का बड़ा योगदान रहता है। ये पीस मिल वर्कर एचआरटीसी में मकैनिक, कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन, टायर मैन, कुशन मेकर्स, बसों की सीटें बनाने वाले, वेल्डर एवं पेंटर के रूप में कार्य करते हैं। प्रदेश की जनता की सहायक एचआरटीसी बसों को सड़कों तक पहुँचाने वाले ये कर्मकारी सरकार से खूब खफा है। पीस मील कर्मचारियों का कहना है की सरकार उन्हें लगातार आश्वासन के झूले झूला रही है मगर उनकी मांगे पूरी नहीं कर रही। कर्मचारियों की सरकार के साथ हुई पहले की बातचीत के दौरान आश्वासन दिया गया था कि उन्हें अनुबंध पर लाने के लिए नीति बनाई जाएगी। इसके लिए 25 नवंबर तक का समय भी दिया गया था, लेकिन 25 नवंबर तक नीति न बनने के बाद अब पीस मील वर्करों ने आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। एचआरटीसी पीस मील कर्मचारी संघ धर्मशाला डिवीजन प्रधान संजीव कुमार ने बताया कि पांच व छह सालों के बाद भी उन्हें अनुबंध में नहीं लाया जा सका है। पीस मील वर्कर को अनुबंध में लाने की उम्मीद जेसीसी की बैठक में थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। लंबे समय से पीस मील कर्मचारी अपनी मांगों को उठा रहे हैं। कई बार ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन मांग को नहीं माना गया है। अंत में करीब एक हजार पीस मील कर्मचारियों को हड़ताल का सहारा लेना पड़ा। सुनील कुमार बताते है कि कर्मचारियों कि इस मांग के संबंध में 18 अक्तूबर 2021 को अतिरिक्त मुख्य सचिव परिवहन के साथ हुई वार्ता में अक्तूबर 2021 के अंत तक इसके बारे में निर्णय लेने का आश्वासन मिला था। इसके उपरांत 16 नवंबर 2021 को प्रबंध निदेशक के साथ हुई बैठक जिसमें 26 नवंबर तक मामले को अंतिम रूप देने बारे आश्वासन मिला था। परिवहन मंत्री द्वारा समय-समय पर कर्मियों के साथ बैठक में सितंबर 2021 तक इन्हें अनुबंध पर लाने का आश्वासन दिया गया है। जबकि पूर्व में लगभग 450 पीसमील कर्मचारियों को अनुबंध पर लिया जा चुका है और शेष बचे 950 पीसमील कर्मचारि अब भी इंतज़ार कर रहे है। परंतु हर स्तर पर अनेक बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद इस समस्या का समाधान नहीं निकाला जा रहा जिस कारण पीस मील कर्मचारी अनिश्चितकालीन काम छोड़ो आंदोलन पर चले गए, जिससे कर्मशालाओं में बसों के रखरखाव व मरम्मत का कार्य प्रभावित हो रहा है तथा आने वाले समय में परिवहन व्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। संयुक्त समन्वय समिति भी साथ एचआरटीसी कर्मचारियों की संयुक्त समन्वय समिति भी पीस मील कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन कर रही है। संयुक्त समन्वय समिति के सचिव खेमेन्द्र गुप्ता ने एचआरटीसी प्रबंधन व सरकार को चेताया है कि अगर एचआरटीसी में कार्यरत कर्मचारियों को पीस मील से अनुबंध पर लाने की घोषणा जल्द नहीं की जाती है तो फिर एचआरटीसी के सभी कर्मचारियों द्वारा सरकार और एचआरटीसी प्रबंधन के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जाएगा। हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति के अध्यक्ष प्यार सिंह ठाकुर भी मानते है कि सरकार व निगम प्रबंधन एचआरटीसी पीस मील कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने के लिए गंभीर नहीं है। बार-बार आश्वासनों का झुनझुना इन कर्मचारियों को दिया जा रहा है। परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति द्वारा पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने के लिए बहुत लंबे समय से मांग की जा रही है। संयुक्त समन्वय समिति ने सरकार व निगम प्रबंधन से अनुरोध किया है कि पीस मील कर्मचारियों को पूर्व निर्धारित नीति अनुसार ही शीघ्र अनुबंध पर लाने की औपचारिकताएं पूरी कर इन्हें अनुबंध पर लाया जाए अन्यथा निगम का प्रत्येक कर्मचारी इनके पक्ष में एक बड़े आंदोलन करने के लिए विवश होगा, जिससे होने वाली किसी भी प्रकार की हानि के लिए सरकार व निगम प्रबंधन जिम्मेदार होंगे। जयराम सरकार ने नहीं दी अब तक कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति हिमाचल प्रदेश में साल 2008 से पीस मील वर्करों की भर्ती की जा रही है, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। उस वक्त इन कर्मचारियों के लिए 8 साल के बाद अनुबंध पर लाने की पॉलिसी बनाई गई थी। यानी 8 सालों तक सेवाएं देने के बाद इन कर्मचारियों को अनुबंध पर लाया जाता था और अनुबंध काल पूरा होने के बाद इन्हें बतौर नियमित कर्मचारी नियुक्ति दी जाती थी। तदोपरांत पिछली सरकार में परिवहन मंत्री रहे जीएस बाली द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार आईटीआई डिप्लोमा धारकों को 5 साल बाद और गैर डिप्लोमा धारकों को 6 वर्षों के बाद अनुबंध पर लेने की नीति बनाई गई। कायदे से होना भी ऐसा ही चाहिए लेकिन समस्या यह है कि जयराम सरकार ने अपने कार्यकाल में ये अवधि पूरी कर चुके लोगों को अब तक कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति नहीं दी है। पीस मिल कर्मचारी की आवाज़ लगातार हुक्मरानो तक पहुंचाने वाले संगठन पीस मिल कर्मचारी संघ द्वारा सरकार से इन कर्मचारियों को अविलंब अनुबंध में शामिल करने की मांग लगातार उठाई जा रही है। एचआरटीसी पीस मिल कर्मचारी संघ का कहना है कि एचआरटीसी के 28 डिपुओं में कार्यरत पीस मिल कर्मचारियों की दुर्दशा पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा। संघ का कहना है कि सरकार द्वारा इन कर्मचारियों को प्रति कार्य के आधार पर वेतन दिया जाता है जो नाममात्र वेतन है और उस आय से कर्मचारियों के लिए परिवार चलाना बहुत मुश्किल हाे जाता है। इसके कारण कर्मचारियों को परेशानियों से दो चार होना पड़ रहा है। 8 से 10 घंटे ड्यूटी, पर सुविधा नाममात्र पीस मिल कर्मचारी संघ का कहना है कि इनके लिए कोई सरकारी सुविधा उपलब्ध नहीं है। ये रेगुलर कर्मचारियों की तरह ही 8 से 10 घंटे ड्यूटी दे रहे है मगर रेगुलर कर्मचारियों की तरह सरकारी नौकरी के कोई भी लाभ इन्हें नहीं दिए जाते। कोरोना काल में भी इन कर्मचारियों ने अपनी पूरी सेवा दी है। बसों का मैकेनिकल कार्य किया और उनको रोड पर पहुंचाया। ये कर्मचारी अपनी नौकरी से नाखुश है क्योंकि इन्हें इनका मासिक वेतन भी कई बार पूरा नहीं दिया जाता। Himachal Pradesh News | Himachal Government Employee's News
हाल ही में हुई जेसीसी कि बैठक में कर्मचारियों का अनुबंध काल एक बार फिर घट गया है परन्तु अब भी अनुबंध सेवा काल को नियमित सेवा काल से जोड़ने की मांग पूरी नहीं हो पाई है। कर्मचारियों को उम्मीद थी कि अन्य मांगों के साथ उनकी इस मांग को भी मुख्यमंत्री पूरा करेंगे परन्तु इनके हाथ निराशा लगी। मांग तो पूरी नहीं हुई बस इसे जल्द पूरा करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी के गठन की बात कही गई और वो भी अब तक नहीं हो पाया है। नियुक्ति की तारीख से वरिष्ठता लाभ नहीं मिलने पर अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के तेवर कड़े हो गए हैं। संघ ने दो टूक कहा कि अनुबंध सेवाकाल दो वर्ष करने से भाजपा के वोट बैंक में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होगी बल्कि प्रदेश के 70 हजार से अधिक कर्मचारियों को वरिष्ठता लाभ नहीं देने पर सरकार को वर्ष 2022 के चुनावों में नुकसान उठाना पड़ेगा। संघ ने सरकार से पूछा है कि आठ से तीन वर्षों तक अनुबंध पर रहने वाले कर्मचारियों को किस बात की सजा दी जा रही है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग और महामंत्री अनिल सेन का कहना है कि अनुबंध सेवाकाल से वरिष्ठता का लाभ देने के लिए अगर कमेटी का गठन करना ही था तो एक महीने पहले ही इसका गठन क्यों नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि करीब 3 वर्ष पहले धर्मशाला के जोरावर मैदान में एनपीएस की रैली के दौरान मुख्यमंत्री ने ओपीएस पर कमेटी गठित करने की बात कही थी, लेकिन उस कमेटी का गठन आज तक नहीं हो पाया है। उन्होंने आशंका जाहिर की कि कहीं वरिष्ठता के मसले पर भी ऐसा ही न हो। संघ का कहना है कि एक ईमानदार कर्मचारी के लिए मानदेय से ज़्यादा मान सम्मान मायने रखता है, बस इसी मान सम्मान को ठेस पहुंचती है जब कोई जूनियर कर्मचारी सरकार की ढुलमुल और भेदभावपूर्ण नीतियां के कारण सीनियर हो जाए l पैमाना यदि कार्य कुशलता हो तो कोई आपत्ति नहीं पर यदि सरकार की नीति के चलते ऐसा हो, तो आपत्ति जायज है l संघ का कहना है कि सरकारें अनुबंध काल 8 से 6, 6 से 5, 5 से 3 और 3 से 2 वर्ष तो करती रहीं और वरिष्ठता नियमितीकरण की तारीख से देती रहीं। पर इसमें उन कर्मचारियों का क्या कसूर जिन्होंने 8 वर्ष, 6 वर्ष, 5 वर्ष और 3 वर्ष का लंबा अनुबंध काल काटा है। यह कर्मचारी वरिष्ठता न मिलने से सरकार से नाराज हैं। संघ के अनुसार इनकी संख्या करीब 70 हजार है। इसका खामियाजा प्रदेश सरकार को 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ सकता है। इनकी मांग है कि सरकार को अति शीघ्र अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता देने की घोषणा करनी चाहिए। ये है पूरा मसला दरअसल ये मसला शुरू हुआ 2008 में, जब बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंध काल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, जो संगठन के अनुसार सरासर गलत है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पातीl अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। मौलिक और समानता के अधिकार का हनन अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 8 वर्ष के बाद नियमित हुए, कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं और अब आने वाले समय में 2 वर्ष में कर्मचारी नियमित होंगे। ऐसे में ये नीति कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है। भारत के संविधान में समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। कर्मचारियों को अलग अलग अंतराल में नियमित करने से असमानता फैली है। सरकार को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करके इस असमानता को तुरंत खत्म करना चाहिए। संघ की मांग है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को पूरा करने के लिए जल्द से जल्द कमेटी का गठन किया जाए। Himachal Pradesh News | JCC Meeting News Updates
जेसीसी बैठक के बाद कांग्रेस (Congress) लगातार जयराम सरकार को कर्मचारी हितैषी न होने का दावा कर रही है। कांग्रेस नेता एवं कर्मचारी कल्याण बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष ठाकुर सुरिंद्र सिंह मनकोटिया का कहना है कि हाल ही में हुई जेसीसी बैठक (JCC Meeting) का कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं हुआ है। जिस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ढिंढोरा सरकार द्वारा पीटा जा रहा है, उसमें तो पहले ही पांच साल का विलंब हो चुका है। मनकोटिया ने जयराम सरकार पर आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री की ओर से ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू न कर सिर्फ 2009 की नोटिफिकेशन को मानकर कर्मचारियों के हितों के साथ कुठाराघात किया है। 2009 की नोटिफिकेशन तो ओल्ड पेंशन स्कीम का ही एक हिस्सा है। हजारों आउटसोर्स कर्मचारी जो सरकारी कर्मचारी के बराबर काम करते हैं, इसके लिए कोई नीति न लाकर सरकार ने कर्मचारी हितैषी न होने का प्रमाण दिया है। सरकार ने मकान भत्ता, कंपनसेटरी भत्ता, कैपिटल भत्ता, ट्राइबल भत्ता, विंटर भत्ता, दैनिक भत्ता आदि कई भत्तें हैं जो पिछले चार साल से नहीं बढ़े हैं ,उन पर कोई बात न करके कर्मचारियों को निराश किया है। करुणामूल्क आधार पर नौकरी पाने वाले लगभग 4500 युवा लगभग 80 दिन से हड़ताल पर चल रहे हैं, इसके बारे में कोई पॉलिसी न लाकर सरकार बहरी बनी हुई है। सुरिंद्र सिह मनकोटिया का कहना है कि रात दिन लोगों की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभालने वाली पुलिस को सरकार ने इनकी आठ साल की अवधि को दूसरे समकक्ष कर्मचारियों के बराबर कम न करके पुलिस वर्ग में निराशा पैदा की है और यह निराशा पुलिस कर्मियों के मुख्यमंत्री से मिलने से भी झलक रही है। 4-9-14 वर्ष बाद मिलने वाली वेतन वृद्धि जैसी जटिल समस्या को सरकार हल नहीं कर पाई है, जिससे हजारों कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है। सुरिंद्र सिह मनकोटिया का कहना है कि सरकार ने होमगार्ड, पैरा पंप आपरेटर, पैराफिटर, सिलाई अध्यापक, पंचायत चौकीदार, एसएमसी टीचर, आंगनबाड़ी वर्कर, आंगनवाड़ी वर्कर्स व हेल्पर, आशा वर्कर, एससीवीटी लैब तकनीशियन, अध्यापक, पीस मील वर्कर्स आदि बहुत सी ऐसी श्रेणियां हैं, जिनके प्रति मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का रवैया उदासीन रहा है, जबकि ये श्रेणियां कई सालों से पिस रही हैं। Himachal Pradesh | Government Employee News | JCC Meeting News Update
सरकार को उम्मीद थी कि जेसीसी की बैठक के बाद स्थिति बेहतर होगी। आर्थिक व्यय ज़रूर बढ़ेगा पर कर्मचारियों को साधने में कामयाबी मिलेगी। कर्मचारी भी खुश होंगे और विरोधी भी खामोश हो जाएंगे। पर हुआ कुछ और। जिन कर्मचारियों को सरकार ने सौगातें दी वो तो आधे अधूरे संतुष्ट हुए पर जिनके लिए सरकार कुछ नहीं कर पाई उनका गुस्सा दोगुना हो गया। प्रदेश में चार साल के लम्बे अंतराल के बाद भाजपा सरकार द्वारा कर्मचारियों के लिए जेसीसी की बैठक का आयोजन किया गया। कर्मचारियों की उम्मीदें आसमान छू रही थी। कर्मचारियों को लगा कि जो पिछले चार साल में नहीं हो पाया वो शायद अब हो जाए। उनकी सभी मांगे शायद सरकार पूरी कर दे। सरकार ने कोशिश भी की। कई मांगों को पूरा करने की घोषणा की गई। जेसीसी बैठक में मुख्यमंत्री ने पंजाब की तर्ज पर कर्मचारियों के लिए बहुप्रतीक्षित नए वेतनमान की घोषणा की, अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण की अवधि भी तीन वर्ष से घटाकर दो वर्ष करने की घोषणा हुई, सभी पेंशनरों और पारिवारिक पेंशनभोगियों को एक जनवरी 2016 से संशोधित पेंशन और अन्य संबंधित लाभ की घोषणा जैसी कई अन्य छोटी बड़ी मांगें पूरी करने की घोषणाएं हुई। पर कर्मचारी पूरी तरह संतुष्ट हुए ऐसा बिलकुल नहीं कहा जा सकता। तर्क दिए गए की जिस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बात सरकार ने कही है उसमें तो पहले ही पांच साल का विलंब हो चुका है। ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू न कर सिर्फ 2009 की नोटिफिकेशन की घोषणा करना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है और अनुबंध काल घटाने की घोषणा तो भाजपा अपने 2017 के दृष्टि पत्र में ही कर चुकी थी। जेसीसी की बैठक से लम्बे समय से नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग कर रहे कर्मचारी निराश घर लौटे, करुणामूलक आश्रितों का अनशन भी नहीं टूटा और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए भी नीति नहीं बन पाई। बड़ा बवाल तो उनकी तरफ से किया गया जिनकी मांगों का ज़िक्र तक मुख्यमंत्री करना भूल गए। बैठक के बाद सरकार के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले भारतीय मजदूर संघ के बैनर तले प्रदेश के आशा वर्करों, आंगनबाड़ी वर्करों और कई संगठनों ने शिमला में विशाल रैली निकाली और सचिवालय गेट पर घंटों जमकर प्रदर्शन किया। पीस मिल कर्मचारी हड़ताल पर बैठ गए और यहां तक की पुलिस कर्मचारियों ने भी मुख्यमंत्री आवास का घेराव कर लिया। यानी की मोटे तौर पर देखा जाए तो सरकार की मुश्किलें कम होने के बजाए और अधिक बढ़ गई। अब मुख्यमंत्री द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पीस मिल वर्कर समेत असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों व अन्यों की मांगों पर गंभीरता से विचार करने के लिए सभी विभागों को इन मांगों को अध्ययन करने के निर्देश दिए गए। पुलिस के कर्मचारियों की समस्या का हल निकालने की बात भी मुख्यमंत्री द्वारा कही गई है। पर असल सवाल ये है कि इन समस्याओं के हल के लिए सरकार आखिर वित्तीय सहायता लाएगी कहां से। आर्थिक तंगी बड़ी चुनौती कर्मचारियों की नाराज़गी मात्र ही सरकार की मुख्य समस्या नहीं है। सरकार ने कर्मचारियों की जेसीसी बैठक तो करवा ली, लेकिन बैठक में लिए गए फैसलों को धरातल पर उतारने के लिए 18 से 20 हजार करोड़ रुपये की रकम जुटाना 62 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबी सरकार के लिए चुनौती होगा। इन फैसलों से इतर सड़कों पर उतर चुके असंतुष्ट कर्मचारियों और कामगारों को न्यायोचित वित्तीय लाभ देना भी आसान नहीं होगा। अगले वित्तीय वर्ष में केंद्र से लगभग 12 हजार करोड़ रुपये कम ग्रांट मिलेगी। राजस्व घाटा अनुदान, जीएसटी प्रतिपूर्ति आदि में कटौती हो रही है। नए वेतन अगर छह हजार करोड़ रुपये चाहिए तो इसके एरियर के लिए 12 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा रकम देनी होगी। एरियर की ज्यादा किश्तें बनाई तो भी कर्मचारी संतुष्ट नहीं होंगे। चुनावी साल से पहले पंजाब के बाद हिमाचल को नए वेतनमान देने की बाध्यता है। ऐसे में सरकार ये सब कैसे मैनेज करती है ये भी बड़ा सवाल है। सरकार कर्मचारियों की मांगें पूरी करनी की कोशिश कर रही है मगर इन मांगों को पूरा करने के लिए सरकार के पास संसाधनों की कमीं है ये स्पष्ट है। हर कर्मचारी को संतुष्ट कर पाना संभव भी नहीं लगता। सरकार नहीं कर्मचारी हितेषी कर्मचारियों की बढ़ती नाराज़गी के चलते विपक्ष को सरकार के खिलाफ मुद्दा मिल गया है। कांग्रेस के नेताओं के अनुसार मुख्यमंत्री कर्मचारी हितैषी नहीं है और जेसीसी की बैठक से कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कर्मचारियों को ये यकीन दिलाने की कोशिश की जा रही है की जो अब तक नहीं हुआ वो आगे भी नहीं होगा। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता व शिलाई से विधायक हर्षवर्धन चौहान ने तो ये तक कह दिया की जेसीसी की बैठक के बाद अराजकता फ़ैल गई है। कर्मचारियों के मुद्दों पर अपनी सियासी रोटियां खूब सेकी जा रही है। खैर वजह कोई भी हो मगर कर्मचारियों की बात हो रही है ये बड़ी बात है । उम्मीद्द है कि अब इस सियासी दबाव के बीच कर्मचारियों का बेड़ा पार हो जाए। मुख्य लंबित मांगे -पुरानी पेंशन बहाल की जाए - नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए - करुणामूलक आश्रितों को वन टाइम सेटलमेंट के तहत नौकरियां दी जाए - पुलिस कॉन्स्टेबलों के प्रोबेशन पीरियड को घटाने की मांग - एचआरटीसी के पीस मिल कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने की मांग - आशा वर्करों, आंगनबाड़ी, आउटसोर्स, सिलाई-कढ़ाई कर्मचारियों को सरकार के नियमित कर्मचारियों की तर्ज पर वित्तीय लाभ देने की मांग | Himachal News Updates | Himachal Pradesh Govt. Employees News
हिमाचल पथ परिवहन निगम में कार्यरत पीस मील वर्कर टूल डाउन हड़ताल पर बैठ गए हैं। परवाणू में भी कर्मचारियों ने वर्कशाप में काम बंद कर दिया है। पीसमिल कर्मचारियों ने मांग की है कि जब तक उन्हें अनुबंध पर नही लिया जाता, तब तक उनकी हड़ताल जारी रहेगी। हिमाचल प्रदेश पीसमील वर्कर कर्मचारी मंच परवाणू के प्रधान सुनील पुंडीर ने बताया कि अगस्त में भी कर्मचारियों को अनुबंध पर करने की मांग को लेकर टूल डाउन हड़ताल की गई थी। 17 अगस्त से 24 अगस्त तक चली हड़ताल को परिवहन मंत्री और निगम प्रबंधन के आश्वासन के बाद वापस लिया गया था। लेकिन मंत्री और प्रबंधन का आश्वासन झूठा निकला है। ऐसे में पीस मील वर्कर खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज से पूरे प्रदेश में पीसमील वर्कर अनिश्चितकालीन टूल डाउन स्ट्राइक बैठेंगे।
हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने सरकार से प्रधानाचार्य के पदोन्नति कोटे का अनुपात 95:5 करने की मांग की है। स्कूल प्रवक्ता संघ का कहना है की प्रदेश के स्कूलों में प्रधानाचार्य के पद खाली होने