कब तब जलेंगी मोमबतियां , कब तक मरेंगी बेटियां

कब तब जलेंगी मोमबतियां , कब तक मरेंगी बेटियां विषय को लेकर रविवार को पालिका क्लब में अखिल भारतीय साहित्यक परिषद व कहलूर सांस्कृतिक परिषद के संयुक्त तत्वाधान में एक साहित्यक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें सीआरपीएफ के सेवानिवृत कमांडेंट सुरेंद्र शर्मा मुख्यतिथि, सुखराम आजाद अध्यक्ष तथा सेवानिवृत डीपीआरओ आनंद सोहर व्याकुल विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। मंच संचालन रविंद्र भटटा ने किया। अखिल भारतीय साहित्यक परिषद के जिला अध्यक्ष कुलदीप चंदेल ने वर्ष भर चलने वाली साहित्यक गोष्ठियों के बारे प्रकाश डाला। सर्व प्रथम दिवंगत साहित्यकारों, डा। गंगा प्रसाद विमल, स्वयं प्रकाश तथा डा। नरेश कुमार के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धाजंलि दी गई। प्रथम सत्र में डा। जय नारायण कश्यप ने बेटियों की व्यथा तथा कुलदीप चंदेल ने महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर पत्रवाचन किया। रतन चंद निर्झर ने डा। गंगा प्रसाद विमल की साहित्यक यात्रा बारे प्रपत्र पढ़ा। कर्ण चंदेल ने महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों , दूराचारों हेतु समाज की चुप्पी को जि मेवार ठहराया। संगोष्ठी में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि बिलासपुर के चंगर सेक्टर में बन रहे शहीद स्मारक का नाम जनरल जोरावर सिंह कहलुरिया शहीद स्मारक रखा जाए। इसके बाद कविताओं का दौर चला। सुरेंद्र गुप्ता ने ।। हम भारत की हैं बेटियां, आगे ही बढ़ती जाएंगी, प्रदीप गुप्ता ने अपने भीतर गांव जिंदा रखना, नीम पीपल बरगद की छांव जिंदा रखना, हुसैन अली ने आज फिर पुराने वाब लिए बैठा हूँ, कुलदीप चंदेल ने कुंडियां जो जिउदे जालदे,कलजुगा रे राक्षस, ओंंकार कपिल ने अब तो बाजार में कम पडऩे लगी मोमबत्तियां, कब तक जलेंगी बेटियां, संजय शर्मा ने तुम आंखे मूंद लेते यह सोचकर, खैर मनाते हो, मेरे शहर में नहीं हुआ, शिव पाल गर्ग ने हुसन वालों से करना न , कभी उ मीदें वफा, कोई कह रहा था, मैं उठ कर आ गया। नरेंद्र गुप्ता ने थक गया हूं जिंदगी से, सुशील पुंडीर ने ऐ मारा व्यासपुर हा, रतन चंद निर्झर ने सड़क, श्याम सहगल ने तुम सामने बैठे रहो, मैं गीत गांऊ प्यार के, डा। जय नारायण कश्यप ने सड़कों पर जाउगो घसीटे, ओ बलात्कारी जालिम, जनता नहीं बक्शेगी, तथा हउं नी जाणंदा छत्त पताल, तरूण टाडू ने शील है संबल हमारा, कर्ण चंदेल ने मेरे दुश्मनों को महफूज रखना, हमीरपुर से आए संजीव शर्मा ने किसी पे एहसान जताने के बयान अच्छे नहीं होते, पंकज लदरौरी ने महफिल में हंसी हजारों हैं, याद उसी की क्यों आती है। आंनद सोहर व्याकुल ने अरमानों के नील गगन में, पंखों को केवल फैलाया भर था, गिद्धों ने हमला कर दिया, रविंद्र भटटा ने बीमार मानसिकता, सुखराम आजाद ने मेरे खत , जो तेरे तकिए के नीचे है। अंत में मुख्य अतिथि ने फरमाया कि तुने जो मुझे चांटा मारा है, दर्द उसका सहती रहूंगी, पापी को सजा दिलाने कैंडल मार्च निकालती रहूंगी।