मकर सक्रांति के अवसर पर महिला साहित्यकार संस्था बिलासपुर द्वारा गोष्ठी का आयोजन
बिलासपुर में मकर सक्रांति के अवसर पर महिला साहित्यकार संस्था बिलासपुर द्वारा गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें महिलाओं ने जहां लोहड़ी पर अपनी रचनाएं प्रस्तुत की तो वहीं वर्तमान समय को इंगित करती हुई रचनाओं का भी वाचन किया। इस आयोजन में सहयोगी सदस्य सुशील पुंडीर, गोविंद घोष तथा अरुण डोगरा रीतू भी उपस्थित रहे। सर्वप्रथम अध्यक्ष शीला सिंह द्वारा द्वीप प्रज्वलित किया गया और उसके बाद बैठक आरम्भ हुई। बैठक में पारित किए गए प्रस्तावों की जानकारी देते हुए संस्था की महासचिव शालिनी शर्मा ने बताया कि संस्था द्वारा निर्धारित किए गए साल के 4 कार्यक्रमों का आयोजन भव्य एवं सुनियोजित तरीके से किया जाएगा। इसके बाद संस्था की अध्यक्ष शीला सिंह ने कहा कि इस समय बिलासपुर जिला में नशे के बढ़ते दूर प्रभाव को दुष्प्रभाव को कम करने के लिए भी कार्य करने की आवश्यकता है ताकि युवाओं का सही मार्गदर्शन किया जा सके । उन्होंने बताया कि आने वाली गोष्ठियों में नवोदित रचनाकारों को भी शामिल किया जाएगा और संस्था की सदस्यता भी बढ़ाई जाएगी। उन्होंने इस अवसर पर सर्वसम्मति से सुमन डोगरा को प्रेस सचिव बनाए जाने पर उन्हें बधाई दी । एक अन्य पारित प्रस्ताव में बिलासपुर के युवा निर्देशक अभिषेक डोगरा द्वारा बिलासपुर कॉलेज का नाम नाटकों में राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के लिए उन्हें बधाई दी गई। वहीं सोलन में हाल ही में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में अभिषेक डोगरा को हिम अवार्ड मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त की गई। इस अवसर पर अपनी रचना पवित्र पर्व का वाचन करते हुए शीला सिंह ने कहा कि लोहड़ी अति पवित्र पर्व, पहचान हमारी संस्कृति की , पौष मास का अंतिम दिवस , सक्रांति माघ मास की । चाहे कथाएं कैसी भी हो जोड़ती प्यार और ममता से , उमंगी और निराली प्रथा यह बांधती एक भाव और समता से । आओ सभी यह पर्व मनाए , जीवंत रखें संस्कृति को, शुभ भावों से सिंचन करें , इस मानव संचित कृति को । इसके बाद संस्था की महासचिव शालिनी शर्मा ने अपनी मानव कविता में कुछ यूं कहा नदियां हांफती रही पेड़ों की लाशें ढोते-ढोते फोरलेन बनते रहे पहाड़ खाक होते होते,संस्था की उपाध्यक्ष सुधा हंस का अपनी कविता नजारा में कहना था कि सफीना रुक सा गया, यूं चलते-चलते, मानो जिंदगी ठहर गई हो एक पल के लिए , नम है जमी ,नम है आंखें, यूं रो रहा है आसमा जमी को गले लगा कर। बाद में सहयोगी सदस्य सुशील पुंडीर ने अपने ही अंदाज में पहाड़ी कविता पढ़ी। उनकी कविता का शीर्षक था,अपणी बोल्लिया दा मजा़ । उन्होंने कहा
अपणी बोल्लिया दा , मजा़ ई कुछ होर आ , बोल्ली कोई बी होए, पर केवल अपणी होए, बोल्ली किती दी बी होए
मण्डयाली,कहलूरी,चम्बयाली, कुल्लबी, काँगडी़ सारियाँ बोलियाँ बडी़याँ बाँकियाँ लगदियाँ, बडी़याँ छैल़ लगदियाँ, अपणी बोल्लिया दा मजा़ ई कुछ होर आ। अंत मे मूंगफली, रेवड़ी व गजक के वितरण के साथ संगोष्ठी सम्पन्न हुई।
