कान काट कर टैगिंग करने से पशु हो रहे कमज़ोर, पशुपालकों ने जताया विरोध
ग्राम पंचायत घणागुघाट में पशुपालक अपने पशुओं के कानों में टैग लगाने वाले सरकार के फरमान से कन्नी काट रहे हैं। पशुपालकों का मानना है कि इस प्रकार पशुओं के कान काट कर टैगिंग करने से उनके पशु कमजोर हो रहे हैं। गऊंओं ने चारा खाना तथा दूध देना कम कर दिया है। जिन लोगों ने अपने पशु खरीदने के लिए बैंक से लोन ले रखा है उनकी इंश्योरेंस करवाने हेतु भी उनके कान में टैग लगाया गया है और अब दूसरी बार गर्भाधान के समय टीकाकरण करने हेतु जब पशु चिकित्सालय से किसी कर्मचारी को बुलाया जाता है तो वह पहले टैगिंग करता है और उसके बाद टीकाकरण करता है, जिससे उनके पशु कमजोर हो रहे हैं, पशुपालकों का कहना है कि उन्होंने साठ-साठ हजार की एक गाय खरीदी है सरकार इस हेतु हमारी कोई सहायता नहीं कर रही है। वे यह भी कहते हैं कि वे सरकार की जनकल्याणकारी नीति का विरोध नहीं कर रहे हैं अपितु पशु के साथ हो रही इस क्रूरता का विरोध कर रहे हैं। उनके अनुसार सरकार टैगिंग के बदले अन्य विधियां भी अपना सकती है जैसे पशुओं का फोटो खींचना, पशुओं के गले में पट्टा डालना अथवा इस क्रूरता के अतिरिक्त कोई अन्य समाधान ढूंढना उन्हें मान्य है। पशुपालक सुखराम, हुकमचंद, भगतराम, जितेंद्र पाल, नानक चंद, दीप राम, लायक राम इत्यादि ने सरकार से मांग की है कि सरकार विभाग को किसी अन्य विधि से टैग करने या गले में पट्टा बांधने के निर्देश दें। ताकि बेजुबानों के साथ हो रहे इस अन्याय को रोका जा सके।
जब इस बारे पंचायत प्रधान धनीराम रघुवंशी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि लोग अब इस डर के मारे टीकाकरण हेतु अपने पशु चिकित्सालय छोड़कर अन्य पशु चिकित्सालय से कर्मचारी बुला रहे हैं ताकि उनके पशु इस प्रकार की टैगिंग से बच सकें। उन्होंने यह भी बताया की उनकी अपनी गाय का कान इस प्रकार की टैगिंग के कारण 3 महीने से ठीक नहीं हो रहा है उन्होंने कहा कि हम सरकार को इस प्रकार की टैगिंग न करने बारे एक प्रस्ताव भेज रहे हैं।
