हिमाचल प्रदेश व हिमालयी क्षेत्रों के लिए वरदान सिद्ध होगी पिस्ता की खेती
पिस्ता जैसा कि नाम से हर कोई जानता है कि पिस्ता सभी सूखे फलों का राजा माना जाता है। पिस्ता एक ऐसा सूखा मेवा है जिसके बिना मेवे अधूरे हैं। भारत वर्ष में पिस्ते की वाणिज्यिक खेती दक्षिण भारत में शुरू की गई है, परन्तु जलवायु की प्रतिकूलता से उतना अच्छा उत्पादन नहीं हो पा रहा। भारतवर्ष पिस्ता फल का बहुत बड़ा आयातक देश माना जाता है, अधिकतर पिस्ता अमेरिका, ईरान तुर्की व अफगानिस्तान से आयात होता है। भारतवर्ष में अभी तक कुल खपत का 2 प्रतिशत भी उत्पादन नहीं हो पाया तथा सारा कारोबार आयात पर आधारित है। पिस्ता के लिए 3 डिग्री से 45 डिग्री सेल्शियस तक का तापमान जरूरी है जिसमे पिस्ता पौधे को अच्छे उत्पादन के लिए कम से कम 50 दिन 5 से 3℃ का तापमान चाहिए तथा अच्छे फूल व फल आने के लिए अधिकतर 45℃ तक का तापमान जरूरी है। डॉ विक्रम शर्मा पूर्व कॉफ़ी बोर्ड सदस्य व कृषि बागवानी पर पिछले 20 वर्षों से हिमालयी क्षेत्र के लिए शोध व प्रसार कार्य में जुटे हुए है, ने पिस्ता की वाणिज्यिक खेती के संदर्भ में बताया कि हमारा हिमालयी क्षेत्र जो जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड को पार करता हुआ उत्तर पूर्व तक जाता है पिस्ता की वाणिज्यिक खेती के लिए बहुत उत्तम है। उन्होंने बताया कि इन क्षेत्रों में पिस्ता के लिए वातावरण सम्बन्धी सभी जरूरी जरूरतें पूरी होती हैं, जिससे इसे इन क्षेत्रों में वाणिज्यिक तौर पर लगाना किसानों व बागवानों के लिए वरदान सिद्ध होगा। डॉ शर्मा ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने किसानों व युवाओं को आर्थिक स्वावलम्बन जागरूकता के तहत 5000 पौधे पिस्ता के मंगवाए हैं जो जल्द ही हिमालयी क्षेत्र के जागरूक किसानों व युवाओं को बाटें जाएंगे। डॉ विक्रम ने बताया कि पिस्ता एक बहुत ही सख्त प्रजाति का पौधा है जो स्त्री व पुरुष पौधों के रूप में तैयार किया जाता है, केवल स्त्री जातक पौधे में फल लगते हैं, इसकी खेती हिमालयी प्रदेशों के ज्यादातर हिस्सों में बड़ी आसानी से की जा सकती है। शर्मा ने बताया कि पिस्ता के साथ अन्य वाणिज्यिक फसलों जैसे, दालचीनी, अंजीर, कॉफ़ी, रेड ग्लोब अंगूर, कीवी फल, एवाकाडो जैसे फलों को भी बड़ी आसानी से उगाया जा सकता है। डॉ विक्रम ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1999 में हिमाचल प्रदेश में कॉफ़ी उगाने की शुरुआत की थी जो बहुत सफल रही, यंहा की कॉफ़ी अन्य भारत या देशों की कॉफ़ी से ज्यादा लाजवाब व खुशबूदार है क्योंकि यंहा तापमान का उतार चढ़ाव इसे ज्यादा एरोमा प्रदान करता है। हींग जैसे बहुमूल्य मसाले को भारत की धरती पर पैदा करने की भी कवायद डॉ विक्रम ने ही करीब 5 वर्ष पहले शुरू की थी, आज राष्ट्रीय स्तर के शोध संस्थान इसपर कार्य करने लग पड़े हैं जो हिमालयी क्षेत्र के बासिओं के लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि भारत में प्रथम हींग की खेती हिमाचल प्रदेश से शुरू हुई। उन्होंने बताया कि उससे पहले हींग देश में पैदा नहीं होता था, परन्तु इसकी जंगली प्रजातियां कश्मीर के करगिल, लेह व लद्दाख, हिमाचल के लाहौल स्पीति, किन्नौर व अरुणाचल में देखने को मिली हैं, हालांकि हींग की फेरूला असफाइटिडा प्रजाति करगिल क्षेत्र में कम मात्रा में जंगली रूप में देखने को मुझे मिली है परन्तु इस पर आजतक किसी ने शोध नहीं किया न ही किसी संस्थान ने इस ओर ध्यान दिया। डॉ विक्रम ने बताया कि 2014 के बाद उन्होंने पूर्णतः सक्रिय रूप से कृषि बागवानी शोध को अपना धेय बना लिया जिसका मुख्य कारण प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की किसानों की आय दौगुणी व आर्थिक स्वावलम्बन की नीति को पूर्ण करना है। वाणिज्यिक फसलों के संदर्भ में उन्होंने बताया कि हिमालयी क्षेत्र विश्व के उन उन्नत बागवानी व कृषि क्षेत्रों में से एक है जंहा किसी भी वैश्विक माँग की अच्छे से अच्छी फ़सल को सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। डॉ विक्रम ने कहा कि उनका मकसद सिर्फ अपनी आगामी पीढ़ी को आर्थिक स्वावलंबी बनाना व नशे जैसी विनाशक लत से दूर रखना है। उन्होंने बताया कि जल्द ही पिस्ता के पौधे पहुंच जाएंगे तथा उन्हें किसानों व युवाओं में बांट दिया जाएग्स ताकि किसान व युवा अत्यधिक वैश्विक मांग की फसल उगा कर अपने अंदर होंसला पैदा कर सकें। डॉ विक्रम ने बताया कि उत्पादन के बाद भी उनका वैश्विक बाजार तक उत्पादों को पहुंचाने के लिए किसानों के साथ सहयोग जारी रहेगा ताकि किसानों को सही दाम मिल सकें।
