होली की पूर्व संध्या पर कवि सम्मेलन का आयोजन
होली से पूर्व अखिल भारतीय साहित्यक परिषद व कहलूर सांस्कृतिक परिषद के संयुक्त तत्वाधान में रविवार को वरिष्ठ नागरिक सभा के सभागार में एक साहित्यिक संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें डॉक्टर ए आर संख्यान मुख्याअतिथि तथा कमांडेंट सुरेंद्र शर्मा अध्यक्ष व आनंद सोहर तथा सुखराम आजाद विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। मंच संचालन रविंद्र भट्टा ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार रतन चंद निर्झर ने साहिर लुधियानवी की जयंती के उपलक्ष में उनके बारे पत्र वाचन किया। उन्होंने साहिर लुधियानवी को एक लोकप्रिय गीतकार बताया। इस अवसर पर साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु व गीतकार शैलेंद्र को भी उनके जन्म शताब्दी के उपलक्ष में स्मरण किया गया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर जयनारायण कश्यप को उनके साहित्य रचना तथा विशेष सहयोग के लिए स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। व्यापार मंडल के महामंत्री सुरेंद्र गुप्ता द्वारा उपलब्ध करवाया गया स्मृति चिन्ह विशेष रुप से सभी साहित्यकारों ने मुक्त कंठ से सराहया। इसके बाद सर्वप्रथम डॉक्टर जयनारायण कश्यप ने अपनी कविता प्रस्तुत की। उनकी पहाड़ी कविता थी, होली होए या होला, या रंगां रा डभोला या हो करोना बचाव जरूर करना, राजनेताओं को पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, इक्की हथे छुनछुना दुजे हथे ठूठा, जनता जो बकांदे गिद्गदा पांदे चुठा, कुलदीप चंदेल ने, होली खेलणे जाणा मेरी अमा जी, कांता बी औणी शांता बी औणी, औणियां सारियां सेहलडि़यां मेरियां, तथा सांढुए री नुलाडी़ है नी पुलदी, प्रतिभा शर्मा ने, बोल मेरीए अम्मा ,मैं कैं लग दी ति जो माडी़, मुंडू जमदे तू खुश होंदी मैं कैं लगदी तिजो माडी़, तथा छोड़ना ना साथ ईश्वर प्रतिभा हूं तुम्हारी जन्म दिया मानुष का, उस पर बनाया बेटी, सुरेंद्र गुप्ता ने, सोहनलाल द्विवेदी की कविता, लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती ,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, प्रदीप गुप्ता ने आजकल मौसम का नहीं है कोई ठिकाना ,नेता की तरह मिल जाता है उसे कोई बहाना, वे अपने होली साल भर मनाते हैं, खुशामद के रंग पत्नी पर हर पल बरसाते हैं, नरेंद्र गुप्ता ने, प्यास लगी थी गजब की, मगर पानी में जहर था ,हुनर सड़कों पर तमाशा करता है, किस्मत महलों में ऐश करती है, रतन चंद निर्झर ने, कोई बताए कहां है मेरा घर एक दिन में निर्वासित हो गई बाबुल की देहरी से, ओमकार कपिल ने मुकेश का गाया गीत, मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज ना दो, तथा जिस पथ पर चला उस पथ पर मुझे आंचल तो बिछाने दे, सुनाया। इसके बाद आनंद सोहर ने, चीन बोलता जो हमसे हाथ मिलाएगा उसे करोना हो जाएगा, रामपाल डोगरा ने होली की यादें पुराने शहर की, अश्विनी सुहेल ने, जबसे फागुन सिर चढ़ा मौसम हुआ हसीन तथा होली के इस रंग में देखो नन्यूसेंस ,वाइफ हस्बैंड में रहा नहीं कोई डिफरेंस, नवल कुमार ने दिल्ली दंगों पर कटाक्ष करते हुए कहा, धर्म के नाम पर लड़ने वालों, माना यह दुकान नहीं तुम्हारी जो जली है, दंगों में अंकित मरे या रतन हमीद या अब्दुल मरे, है तो भारत की संतान, सुखराम आजाद ने रूठो को मनाएं होली बिछडों को मनाए होली, रविंद्र भट्ट ने, मुझे नहीं सुनाई देती अब कोयल की कू कू, सुरेंद्र शर्मा ने, भेजे हैं जो फूल तुमने, मेरे खत के जवाब में वह आज भी महक रहे हैं मेरी किताब में, आखिर में डॉक्टर ए आर संख्यान ने फरमाया, आई होली आई रे वेश क्लेश भय मिटाने आई ,देखो होली आई रे आई सबको गले लगाने रंगों की डोली आई रे।
