16 मार्च को करेंगे बाडुबाड़ा देव अपनी यात्रा प्रारम्भ
दाड़लाघाट से बाडुबाड़ा देव की यात्रा 16 मार्च को प्रारम्भ होगी। यह यात्रा होली उत्सव के आसपास के दिनों में मार्च महीने में शुरू होती है और बाडुबाड़ा देव का डेढ़ महीने का प्रवास लोगों के घरों में उनकी मन्नतें पूर्ण करने हेतु देवजात्रा के रूप में होता है। यह देव यात्रा अप्रैल तक रहेगी तथा यात्रा के दौरान यह देव सोलन, शिमला सहित बिलासपुर में अपनी जात्रा पूर्व नियोजित कार्यक्रम अनुसार करेंगे। इस देवता की पूजा अर्की सहित सोलन जिला के कई क्षेत्रों में प्रमुख रूप से पूजा जाता है। इस देवता का प्रमुख मूल स्थान माँगल के मन्झयाटल धार के पूर्वी किनारे की ऊंची चोटी पर स्थित है जबकि इसकी अन्य पूजाएं और रथ अर्की के दाड़लाघाट और मंडी सुकेत के नालनी बटवाड़ा तथा अन्य क्षेत्रों में स्थापित है। यह रथ चक्रधारी देव है और फाल्गुन मास के पश्चात वैशाख तक इस देव की जात्रा का आयोजन किया जाता है। एक किंवदंती के अनुसार बाडुबाड़ा देव सुकेत के निर्माता पराक्रमी वीरसेन है जिन्होंने 8वी सदी में सुकेत की भी स्थापना की थी इसकी राजधानी पांगणा मंडी में थी इस वीर योद्धा ने चंबा सुकेत कल्लु,मंडी क्षेत्रों को जीता था हिस्ट्री ऑफ हिल स्टेट शिमला बाघल हुचीसन के अनुसार इस योद्धा ने कई किले जीते थे जिसमें श्रीगड़, नारायणगढ़, रघुपुर, जज माधोपुर बगा कोट, मनाली, चन्जयला, रायसन आदि है। इन किलों के स्वामी इनके अधीन हुए तथा अनेक लोक देवों के रूप में प्रतिष्ठित हुए वीरसेन के गीत घर घर गाये जाते है। माँगल क्षेत्र के पार सतलुज की तलहटी बाडु में इसका ऐतिहासिक मन्दिर होने के कारण ही इसे बाडु बाड़ा का नाम दिया गया। बाडुबाड़ा देव कमेटी के प्रधान हेतराम तथा सचिव श्याम चौधरी ने बताया कि यहां दाड़लाघाट में इसका आम भव्य मंदिर बनाया गया है,हर वर्ष मार्च में इसकी यात्रा शुरू होकर शिमला, सोलन, अर्की, बिलासपुर से होकर लोगो की जो मन्नत होती है उनके घरों में जाकर यह उन्हें आशीर्वाद देते है और मन्नते पूरी करते हैं। स्थानीय ओर बाहरी लोगों में इस देव के प्रति अपार श्रद्धा देखी जा सकती है। बाड़ू बाड़ा देव का मूल स्थान मंडी है और सक्रांति के दिन दाड़लाघाट में इसके देव स्थल पर लोगो का हुजूम अपनी श्रद्धा और मनोकामना की पूर्ति होते देख इस देव स्थल में अपनी आस्था के प्रति नतमस्तक दिखते है। उन्होंने कहा कि जब देव जात्रएं सम्पन्न हो जाती हैं तो देवता का रथ अपने स्थान पर आ जाता है और उसी रोज से मंदिर में भगवद् कथा का आयोजन किया जाता है।
