अघंजर महादेव में 500 वर्षों से जल रहा है बाबा जी का अखंड धूणा

धर्मशाला से करीब 20 किलोमीटर दूर, धौलाधार की तलहटी में बसे खनियारा गांव में स्थित महादेव मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है। अघंजर महादेव के नाम से प्रसिद्ध इस प्राचीन मंदिर में शिव भक्तों की टोलियां निरंतर पहुंचती हैं। इस स्थान पर 500 वर्षों से बाबा श्री गंगा भारती जी महाराज का अखंड धूणा जल रहा है। माना जाता है कि इसी स्थान पर बाबा ने तपस्या की थी। यूँ तो इस मंदिर में साल भर श्रद्धालु आते रहते हैं, लेकिन विशेषकर सावन माह और महाशिवरात्रि पर्व पर यहाँ अधिक भीड़ देखने को मिलती है। माना जाता है कि मंदिर की स्थापना महाभारत कालीन है। दंतकथाओं के अनुसार, खनियारा गांव में महाभारत के वन पर्व में अर्जुन ने भगवान शिव से पशुपतास्त्र प्राप्त किया था। इसी स्थान पर पांडुपुत्र अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने भोलेनाथ की उपासना करने को कहा। अर्जुन ने यहीं बैठकर घोर तप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दिव्य शक्तियां प्रदान कीं। कहा जाता है कि भोलेनाथ कैलाश पर्वत की ओर इसी रास्ते से जाया करते थे और अर्जुन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें विजयश्री का आशीर्वाद दिया।
चट्टान के नीचे स्थित है प्राचीन शिवलिंग
मंदिर के समीप बहने वाली मांझी खड्ड के पास एक चट्टान के नीचे प्राचीन शिवलिंग स्थित है, जिसे गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां दूर-दराज़ से श्रद्धालु पूजा-अर्चना और जलाभिषेक करने पहुंचते हैं।
पांडवों ने की थी स्थापना
राजपाट त्यागने के बाद वनवास के दौरान अर्जुन ने हिमालय यात्रा करते हुए पुनः इसी स्थान पर गुप्तेश्वर महादेव के दर्शन किए। तत्पश्चात पांडवों ने यहां भगवान शिव का मंदिर अघंजर महादेव नाम से निर्मित किया।मंदिर के पुजारियों के अनुसार, 'अघंजर' का अर्थ है पाप को नष्ट करने वाला..‘अघ’ का अर्थ है पाप, और ‘अंजर’ का अर्थ होता है नष्ट हो जाना। महाभारत युद्ध में अपने ही गुरुओं, भाइयों और पूर्वजों का संहार करने के पश्चात पांडव इस पाप से मुक्त होना चाहते थे। इसी उद्देश्य से अर्जुन के कहने पर इस स्थान पर भगवान शिव के एक और मंदिर की स्थापना की गई।
बाबा गंगा भारती जी का इतिहास
प्राचीन ऐतिहासिक अघंजर महादेव का इतिहास बाबा गंगा भारती जी, महाराजा रणजीत सिंह, और पांडुपुत्र अर्जुन से जुड़ा हुआ है। मंदिर से जुड़ी अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह उदर रोग से पीड़ित थे। जब उन्होंने अपनी व्यथा बाबा गंगा भारती जी को बताई, तो बाबा जी ने तीन चुल्लू पानी पिलाकर उन्हें पूरी तरह ठीक कर दिया। इस पर प्रसन्न होकर महाराजा ने बाबा जी को अपना रेशमी दुशाला भेंट किया।बाबा जी ने वह दुशाला अपने हवन कुंड (धूणे) में डाल दिया। थोड़ी देर बाद उसी धूणे से सैकड़ों एक जैसे दुशाले निकालकर बाबा जी ने कहा—"पहचान कर अपना दुशाला उठा लो।" यह चमत्कार देखकर महाराजा चकित रह गए और बाबा जी की शरण में आ गए। इसके पश्चात महाराजा रणजीत सिंह ने बाबा जी को मंदिर निर्माण हेतु भूमि दान की। यही वह स्थान है जहां बाबा गंगा भारती जी ने जीवित समाधि ली थी। आज मंदिर परिसर में बाबा जी का समाधि स्थल भी स्थित है।