इस गांव में बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है
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-प्रवेश के लिए लेनी पड़ती है इजाजत, नशेड़ियों के लिए गांव के दरवाजे बंद
कुल्लू घाटी का एक ऐसा गांव जहाँ आज भी बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है। यहाँ तंबाकू, शराब और चमड़े से बनी वस्तुओं पर सख्त प्रतिबंध है। इस गांव का नाम है परभी, जिसने अपनी सांस्कृतिक विरासत को सजोए रखा है। कभी पार्वती घाटी के मलाणा गांव में भी बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित था, लेकिन अब वहां बाहरी लोगों को गांव में प्रवेश करने से नहीं रोकते हैं। पर वक्त के साथ भी परभी गांव के नियम-कायदे नहीं बदले।
बर्फ से लकदक सफेद फुंगानी पर्वत के आँचल में बसे परभी गांव ने अपनी पुरातन जीवनशैली को संरक्षित रखा है। गांव में पारंपरिक काठकूणी शैली में बने घर मौजूद हैं, जिनकी बालकनियों में लकड़ी के छत्ते हैं। अनाज के भंडारण के लिए घरों के बरामदों में रखे बड़े लकड़ी के बक्से, घरों में देसी मधुमक्खी के लकड़ी के छ्ते और घरों के सामने एक लाइन से लटके हाथ से बुने हुए पारंपरिक कपड़े और पट्टू ; ये आपको एक अलग दुनिया में ले जाते है, मानो सदियों पहले यहाँ वक्त की सुई थम गई थी। यहाँ आटा पिसाई के लिए आज भी घराट का इस्तेमाल होता हैं। गांव में मंदिर के पास एक प्राकृतिक पेयजल स्रोत है ,जहाँ आज भी जूते पहनकर जाने की मनाही है।
परभी गांव में एक पहाड़ी किले के अवशेष भी मौजूद है, जिसे परभी गढ़ के नाम से जाना जाता है। कहते है सदियों पहले कबीलों के स्थानीय सरदार पहाड़ की चोटियों पर निगरानी टावरों के रूप में ऐसे गढों का निर्माण करवाते थे। इस किले के अवशेष अब भी आपको अतीत में खींच ले जाते है। यहाँ के ग्रामीणों के लिए परभी गढ़ एक पवित्र स्थान है और ग्रामीण हर साल इस गढ़ की यात्रा करते हैं। गांव में मां फुंगणी का मंदिर है, जिसकी खास मान्यता है।
परभी गांव अब तक सड़क से नहीं जुड़ा है। गांव तक पहुंचने के एक घंटे की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। कुल्लू से लगभग 14 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव तक पहुंचने के लिए पहले कराल गांव पहुंचा जा सकता है। कराल गांव से खड़ी चढ़ाई के साथ परभी का रोचक सफर शुरू होता है। आसपास बर्फ से ढकी चोटियों के साथ ऊंचाई पर जाते -जाते कुदरत के नज़ारे और मनमोहक होते जाते हैं। बाहरी लोगों को गांव में प्रवेश करने से पहले ग्रामीणों से अनुमति लेनी पड़ती है। साथ ही गांव के बाहर लगे चेतावनी बोर्ड की पालना सुनिश्चित करनी होती है।