इस गांव में घर से भागे प्रेमी जोड़े को महादेव देते हैं शरण

अगर कोई प्रेमी जोड़ा देव शंगचूल महादेव की शरण में आ जाए तो कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता। देवता के आशीर्वाद से कई प्रेमी जोड़े सकुशल अपने घरों को लौटे हैं। हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू की सैंज घाटी के शांघड़ गांव में विराजे हैं शंगचूल महादेव, और ये मंदिर घर से भागे प्रेमी जोड़ों के लिए शरणस्थली है। पांडवकालीन शांघड़ गांव में स्थित इस महादेव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि किसी भी जाति-समुदाय के प्रेमी युगल अगर शंगचूल महादेव की सीमा में पहुंच जाते हैं, तो इनका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। यहां के लोग प्रेमी जोड़े को मेहमान समझ कर उसका स्वागत करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।
शंगचूल महादेव मंदिर की सीमा लगभग 128 बीघा का मैदान है और मान्यता है कि इस सीमा में पहुंचे प्रेमी युगल को देवता की शरण में आया हुआ मान लिया जाता है। इस सीमा में समाज और बिरादरी की रिवाजों को तोड़कर शादी करने वाले प्रेमी जोड़ों के लिए यहां के देवता रक्षक हैं।
दिलचस्प बात ये है कि यहां सिर्फ देवता का कानून चलता है।
प्रेमी जोड़े, जो मंदिर में आश्रय लेने आते हैं, वह यहां शादी कर सकते हैं और तब तक रह सकते हैं, जब तक प्रेमियों के दोनों तरफ के परिवारों के बीच सुलह नहीं हो जाती। तब तक जोड़े के लिए यहां रहने और खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की जाती है। इस मंदिर में आने वाले प्रेमी जोड़ों के लिए पुलिस भी दखलंदाजी नहीं कर सकती।
इस मंदिर के पीछे रोचक कहानी है। जनश्रुति के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रुके थे और उसी दौरान कौरव उनका पीछा करते हुए यहां तक पहुंच गए। पांडवों ने शंगचूल महादेव की शरण ली और रक्षा के लिए प्रार्थना की। इसके बाद महादेव ने कौरवों को रोका और कहा कि यह मेरा क्षेत्र है और जो भी मेरी शरण में आएगा उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। महादेव के डर से कौरव वापस लौट गए और इसके बाद से यहां परंपरा शुरू हो गई और यहां आने वाले भक्तों को पूरी सुरक्षा मिलने लगी।
शांघड़ पंचायत विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्र में होने के कारण भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जंगल की रखवाली करने वाले वन विभाग के कर्मचारियों व पुलिस महकमे के कर्मचारियों को यहाँ अपनी टोपी व पेटी उतारकर मैदान से होकर जाना पड़ता है।
देवता का ही फैसला सर्वमान्य
शांघड़ गांव में हर नियम और कानून का बेहद सख्ती से पालन किया जाता है। कोई भी व्यक्ति इस गांव में ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकता है। इसके साथ ही यहां शराब, सिगरेट और चमड़े का सामान लेकर आना भी मना है। यहां देवता का ही फैसला सर्वमान्य होता है। कहते हैं कि जब तक मामले का निपटारा न हो जाए ब्राह्मण समुदाय के लोग यहां आने वालों की पूरी आवभगत करते हैं और उनके रहने से खाने तक की पूरी जिम्मेदारी यहां के लोग ही उठाते हैं।
128 बीघा में एक भी कंकड़-पत्थर नहीं
कहते हैं अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय शांघड़ में भी बिताया और उन्होंने यहां धान की खेती के लिए मिट्टी छानकर खेत तैयार किए थे। वे खेत आज भी विशाल शांघड़ मैदान के रूप में यथावत हैं और इस 128 बीघा में एक भी कंकड़-पत्थर नहीं है और न ही किसी प्रकार की झाड़ियां। वहीं, आधा हिस्सा गौ-चारे के रूप में खाली रखा गया है। यह मैदान अपने चारों ओर देवदार के घने पेड़ों से घिरा है, मानो इसकी सुरक्षा के लिए देवदार के वृक्ष पहरेदार बन खड़े हों। वहीं, मैदान के तीन किनारों पर काष्ठकुणी शैली में बनाए गगनचुंबी मंदिर बेहद दर्शनीय हैं। इस मैदान में शांघड़वासी अपनी गायों को रोज चराते हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि इस मैदान में गाय का गोबर कहीं भी नहीं मिलता। भूमि की खुदाई, देवता की अनुमति के बगैर नाचना और शराब ले जाने पर भी पाबंदी है।
घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही
शांघड़ गांव में घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही है। यदि किसी का घोड़ा शंगचूल देवता के निजी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसके मालिक को जुर्माना देना पड़ता है या फिर देवता कमेटी की ओर से उस पर कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाती है।