हिमाचल के इस गांव में न तो मुर्गा पाला जाता है और न खाया जाता है

हिमाचल प्रदेश में एक गांव ऐसा भी है जहाँ न तो मुर्गा पाला जाता है और न ही खाया जाता है। दरअसल ऐसा देव मान्यता के चलते है। चंबा जिला के भरमौर उपमंडल के एक दुगर्म गांव कुगती में कार्तिक स्वामी का मशहूर मंदिर है, जिसे केलंग बजीर से नाम से ख्याति प्राप्त है। मुर्गा देवता के झंडे में विराजमान है, जबकि मोर उनका वाहन है। इसलिए इस गांव में न तो मुर्गा पाला जाता है और न ही खाया जाता है।
केलंग बजीर गद्दी समुदाय के अलावा कांगड़ा-चंबा और लाहौल-स्पीति के लोगों के ईष्ट देवता हैं। कार्तिक स्वामी भगवान शिव शंकर के ज्येष्ठ पुत्र हैं, जिन्हें देवभूमि हिमाचल प्रदेश में केलंग बजीर के नाम से पूजा जाता है। पवित्र मणिमहेश यात्रा के दौरान शिव भक्त इस मंदिर में पहुंच कर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते। श्रद्धालु पवित्र डल की परिक्रमा करने के उपरांत कार्तिक स्वामी के दर्शन करने के लिए अवश्य जाते हैं। जबकि लाहुल-स्पीति से कुगती होकर मणिमहेश यात्रा पर आने वाले शिव भक्त कार्तिक स्वामी के दर्शन करने के बाद मणिमहेश पहुंचते हैं।
सर्दियों में बर्फबारी होने के कारण नवंबर माह के आसपास केलंग बजीर मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, जो प्राचीन परंपरा के अनुसार अप्रैल में बैसाखी के दिन खोले जाते हैं। कहा जाता है कि मंदिर के कपाट बंद होने से पहले मंदिर में एक गड़वी (लोटा) में पानी भरकर रखा जाता है। जब मंदिर के कपाट दोबारा खुलते हैं, तो उस गड़वी में मौजूद पानी से यह अनुमान लगाया जाता है कि आने वाला साल क्षेत्र के लिए कैसा रहेगा। यदि गड़वी में पानी कम मिलता है, तो यह सूखे की आशंका को दर्शाता है, जबकि पानी भरा हुआ मिलने पर सुख-समृद्धि की संभावना मानी जाती है।
हर वर्ष जून माह में केलंग बजीर का जन्मोत्सव मनाया जाता है जो सात-आठ दिनों के लिए चलता है। इस दौरान कुगती पारंपरिक वाद्य यंत्रों से देवधुनों से अपनी अलौकिकता का अहसास करवाता है। इस बीच देवता के मंदिर में खेल का आयोजन भी होता है।