कामरु किला : इतिहास, आस्था और सौंदर्य से परिपूर्ण धरोहर

सांगला घाटी किन्नौर जिले की सबसे लावण्य घाटी है और यह पूरे वर्षभर अपने यौवन पर रहती है। यहाँ कल कल करती नदी मन को शांति प्रदान करती है और यहाँ की ठंडी फ़िज़ाओं में बैठ कर मानसिक तनाव खत्म हो जाता है। एक पुरानी लोकगीत की पंक्ति में कहा गया है "वाली शारे लोली शो, हाय सांगला देशआंग" यानी की किन्नौर की खूबूसरती में सांगला घाटी को बेहद उम्दा बताया गया है। सांगला घाटी की एक हल्की-सी ऊंची चोटी पर बसा है प्राचीन और सौंदर्य से परिपूर्ण कामरु गांव। सांगला बाजार से मात्र एक किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में बसा कामरु गांव दूर से ही दिखाई देता है। यह गांव हिमाचल प्रदेश के सबसे पुराने और ऐतिहासिक गांव में से एक है।
बुजुर्गों के अनुसार यह गांव पहले सामने वाली पूर्व दिशा की तरफ की पहाड़ी पर स्थित था, लेकिन शताब्दियों पहले आए भूकंप के बाद यह गांव इस चोटी पर बसा दिया गया था। वहीं कामरु गांव के देवता बद्रीविशाल हैं, जिन्हें श्री विष्णु का अवतार माना जाता है। देवता का मंदिर को कामरु किला के नाम से जाना जाता है, जिसका निर्माण 15वीं शताब्दी में किया गया है। कुल्लू और महासू के भांति किन्नौर के देवी देवता भी आपस में सगी संबंधी है, कोई किसी का पुत्र है, तो कोई किसी का मामा-भांजा। मनुष्य की तरह यहाँ भी देवी देवताओं के बीच रूठने मनाने का सिलसिला देखने को मिलता है। तीन साल में एक बार देवता के रथ को स्नान करवाने हेतु उत्तराखंड के बद्रीनाथ ले जाया जाता है। उत्तराखंड से भी भक्तगण हर साल देवता का आशीर्वाद लेने के लिए इस खतरनाक मार्ग को लांघते हुए सैकड़ों मील की यात्रा तय करते हुए यहां पहुंचते हैं।
कामरु गांव को यहां की स्थानीय बोली में 'मोने' कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार कुप्पा और सांगला गांव में पहले एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। इसमें देवता बैरिंगनाग, कमरुनाग और बद्री विशाल का प्रभुत्व था। झील को हटाने के लिए योजना के अनुरूप देवता बैरिंगनाग ने सांप और बद्री विशाल ने चूहे का रूप धारण किया और झील के धरातल में कई सुराख करके झील को खत्म कर दिया। झील के खत्म होने के बाद से यह क्षेत्र मैदानी और बेहद खूबसूरत दिखने लगा। इसे पाने के लिए दोनों देवताओं में जंग छिड़ गई जिसमें बैरिंग नाग विजयी हुए और उन्होंने देव बद्रीविशाल को इस जगह से जाने को कहा। कहा जाता है कि दोनों देव समझौते के अनुसार फिर देव बद्रीविशाल कामरु गांव की इस चोटी में बस गए। कमरुनाग पानी में रहना पसंद करते थे और जब इस जगह झील ही नहीं रही तो उन्होंने जिला मण्डी की सरनाउली नामक जगह में खुद को व्यवस्थित किया, यह स्थान आज कामरु नाग के नाम से विख्यात है। कामरु किला पहले रामपुर बुशहर रियासत का अंगभूत भाग था।
सात मंजिला यह किला तराशे गए पत्थरों और लकड़ी के मिश्रण से बना है। किले का स्थान, संरचना और बनावट कमाल की है। किले में ही कई शताब्दियों पहले आसाम से लाई गई माता कामाक्षा की मूर्ति स्थापित की गई थी। इस किले की प्राचीनता को देखते हुए अब पर्यटकों का अंदर प्रवेश वर्जित है। इस वजह से अब श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु माता कामाक्षा की मूर्ति को किले के बाहर प्रांगण में ही बने मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। रियासतों की समाप्ति के बाद अब किले के रखरखाव और सुरक्षा की जिम्मेवारी स्थानीय देवता बद्रीविशाल को सौंपी गई है। यह ऐसी जगह पर बनाया गया है कि दुश्मन यहां पहुंचने से पहले सौ बार अपनी बात पर मन करने को मजबूर हो जाए। यहां से सुरक्षा कर्मी दूर-दूर व चारों दिशाओं में अपने दुश्मनों पर पैनी निगाह रख सकते थे। किले के साथ ही नीचे की ओर तीन मंजिला जेल भी है। जहां उस अपराधी को रखा जाता होगा जिसने बहुत ही बड़ा गुनाह किया हो।
यहां होता था हर राजा का राज्याभिषेक
किले से जुड़े बहुत से मिथक और पौराणिक कथाएं हैं। यह बुशहर राजवंश की मूल सीट थी, जो यहाँ से शासन करती थी। राजधानी को बाद में सराहन और फिर रामपुर में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां अंतिम राजा पदम सिंह ने शासन किया था। वैसे इस किले में राज्याभिषेक होता था। कहा जाता है कि 121 राजाओं का राज तिलक इसी किले में जो हुआ था। यहां आखिरी बार वीरभद्र सिंह (हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री) के पिता पदम सिंह का राजतिलक हुआ था।