कभी शिमला में टाइपराइटर बेचते थे सिनेमा के पहले 'सुपरस्टार' के एल सहगल

‘पूर्ण भक्त’ नाटक के लिए आए थे शिमला, महान संगीतकार हरिशचंद्र बाली ने पहचानी प्रतिभा
साल था 1935, सिल्वर स्क्रीन पर देवदास फिल्म की धूम थी और इसमें मुख्य किरदार निभाने वाले कुंदन लाल सहगल फिल्म उद्योग के पहले सुपरस्टार बन गए। इसके बाद कुंदन लाल सहगल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और शौहरत की बुलंदियां छूते चले गए। हिंदी सिनेमा के इस पहले सुपर स्टार का शिमला से गहरा नाता रहा है। साल 1928 में जम्मू से शिमला आने वाले कुंदन लाल सहगल के अभिनय और गायकी को गेयटी थियेटर शिमला और एमेच्योर ड्रामाटिक क्लब फागली ने पहचान दी। उन्हें फिल्मों में गाने का ब्रेक भी शिमला में मिला।
1928 में एमेच्योर ड्रामाटिक क्लब फागली ने कुंदन लाल सहगल को 'पूर्ण भक्त' नामक नाटक के मंचन के लिए शिमला बुलाया था। दरअसल नाटक में मुख्य भूमिका अदा करने वाले अभिनेता और गायक डायरिया के चलते बीमार पड़ गए। तब किसी ने कुंदन लाल सहगल का नाम सुझाया। सहगल नाटक देखने के लिए नियमित रूप से आते थे, इसलिए उन्हें नाटक की पंक्तियाँ और गाने याद थे। इसके साथ ही शुरू हुआ सहगल का दौर। नाटक को दर्शकों का जबरदस्त रिस्पांस मिला और दर्शक सहगल की अदाकरी और आवाज के मुरीद हो गए।
इस दौरान एक दिन जब वे गियेटी थियेटर के मंच पर गायन की प्रस्तुति दे रहे थे तो महान शास्त्रीय संगीतकार हरिशचंद्र बाली की निगाह उन पर पड़ी। वे सहगल को अपने साथ कलकता ले गए और फिल्म संगीत के जनक रायचंद बोरल से मिलवाया। सहगल और बीआर सरकार के स्टूडियो ‘न्यू थियेटर’ ने गायन के लिए करार हुआ और देखते ही देखते पूरा हिंदुस्तान उनकी गायकी का मुरीद हो गया।
शिमला में रहते हुए कुंदन लाल सहगल भराड़ी के कोडुमल भवन में रहते थे। दिलचस्प बात ये है उन्होंने साल 1928 से साल 1931 तक रेमिंगटन रैंड टाइपराइटर कंपनी में एक टाइपराइटर विक्रेता के रूप में कार्य किया। रेमिंगटन टाइपराइटर के विपणन का कार्य शिमला की ठाकर, स्पिंक एंड कंपनी करती थी जो किताबें, पोस्टर और तस्वीरें प्रकाशित करने का काम करती थी। कंपनी का कॉम्बेरमेयर ब्रिज के पास इमारत में फोटोग्राफिक स्टूडियो था।
देवदास फिल्म की सफलता के बाद साल 1936 में सहगल फिर शिमला आए और उनके सम्मान में समारोह हुआ। तब वह होटल ग्रांड में रूके। उनके सम्मान में कालीबाड़ी हॉल में एक चैरिटी शो आयोजित किया गया। सहगल ने अपने गीतों से शिमला का दिल जीत लिया। 18 जनवरी 1947 को जालंधर में 42 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।
- महाराजा राजेंद्र सिंह देव बहादुर ने उपहार में दिया सूट
गेयटी में एक नाटक में कुंदन लाल सहगल ने एक हिजड़े की भूमिका निभाई और गाया, "सैयां मोरे लाए रे बताशे की जोरी।" उनकी अदाकारी और गायकी स्थानीय लोगों के सर चढ़कर बोलने लगी। इत्तेफ़ाक़ से झालावाड़ के महाराजा राजेंद्र सिंह देव बहादुर ने भी उनकी ये परफॉरमेंस देखि और वे केएल सहगल से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें मॉल, शिमला के 'रैंकेन एंड कंपनी-टेलर्स एंड ड्रेपर्स' से खरीदा गया एक बहुत महंगा सूट उन्हें उपहार में दे दिया ।
- रेडियो सीलोन पर सात बज कर 57 मिनट पर बजता था सहगल का गीत
अपने दो दशक के सिने करियर में सहगल ने 36 फिल्मों में अभिनय किया, लगभग 185 गीत गाए, जिनमें 142 फिल्मी और 43 गैर-फिल्मी गीत शामिल हैं। सहगल 18 जनवरी, 1947 को केवल 43 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गए थे। सहगल की आवाज की लोकप्रियता का यह आलम था कि कभी भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय रहा रेडियो सीलोन कई साल तक हर सुबह सात बज कर 57 मिनट पर इस गायक का गीत बजाता था।
- रवीन्द्र संगीत गाने वाले पहले गैर बांग्ला गायक
रवीन्द्र संगीत गाने का सम्मान पाने वाले पहले गैर बांग्ला गायक थे। उस दौर में भारतीय फिल्म उद्योग मुंबई में नहीं बल्कि कलकत्ता में केंद्रित था। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस जमाने में उनकी शैली में गाना अपने आपमें सफलता की गारंटी मानी जाती थी। मुकेश और किशोर कुमार ने अपने करियर के आरंभ में सहगल की शैली में गायन किया भी था।