कभी ‘घराट’ के इर्द गिर्द घूमती थी पहाड़ की जिंदगी

हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में परंपरागत घराट का चलन सदियों से चला आ रहा हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लोग गेहूं की घराट से पिसाई करते हैं। इनसे जो आटा निकलता है उसकी तुलना चक्की के आटे से नहीं की जा सकती। इस आटे को चक्की के आटे से ज्यादा बेहतर माना जाता है। यही वजह है कि आज भी ग्रामीण लोग घराट के आटे का ही इस्तेमाल करते हैं, हालांकि अब इसका चलन काफी कम होता जा रहा है।
प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में वो दौर भी था जब घराट ग्रामीण लोगों के लिए आर्थिकी का मुख्य साधन बना। लोग अपने खेतों में पारंपरिक अनाजों और गेंहू, कोदा का उत्पादन कर उसे पानी से चलने वाले घराटों में पीसकर आटा तैयार करते थे। इन घराटों में पिसा हुआ आटा कई महीनों तक तरोताजा रहता था। खास बात यह थी कि आटे की पौष्टिकता बनी रहती थी और मिलावट के नाम पर कुछ नहीं होता था। शायद यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग स्वस्थ रहते थे और सेहत का राज भी हुआ करता था। इन घराटों में लोग कोदा, गेहूं, मक्का, चेस्टन जैसे स्थानीय अनाज पीसा करते थे। घराट संचालक घराटों में गेहूं पीसने के साथ ही बिजली उत्पादन के क्षेत्र में भी कार्य करते थे, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में इससे रोजगार भी सृजित होते थे। किन्तु जब से अत्याधुनिक मशीनों का निर्माण हुआ, तब से उन मशीनों पर लोगों ने जाना बंद कर दिया। ग्रामीण क्षेत्रों में अब कम ही घराट नजर आते हैं। अब घराट विलुप्त होने की कगार पर है।