बौद्ध धर्म का प्रकाश स्तंभ है नॉर्बुलिंका मठ

धौलाधार की ठंडी और ताज़ी हवा के बीच, हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में बसा धर्मशाला शहर आज तिब्बती कला और संस्कृति का एक अद्भुत केंद्र बन चुका है। यहाँ स्थापित नॉर्बुलिंका ने न केवल तिब्बती शरणार्थियों की सांस्कृतिक विरासत को संजोया है, बल्कि उसे विश्व स्तर पर पहचान भी दिलाई है। 1980 के दशक की शुरुआत में, तिब्बती धर्म और संस्कृति विभाग के मंत्री कैलसांग येशी और उनकी पत्नी किम येशी ने तिब्बती कला को पुनर्जीवित करने का जो सपना देखा था, वह आज साकार हो चुका है। दशकों के कठिन दौर और विस्थापन के बाद झुकी हुई तिब्बती कला को पुनः उसकी पारंपरिक सुंदरता, गुणवत्ता और उत्कृष्ट कारीगरी के उच्चतम स्तर पर लौटाने के लिए उनका प्रयास निःसंदेह प्रेरणादायक है।
दलाई लामा के वित्तीय सहयोग से 1984 में नॉर्बुलिंका के लिए ज़मीन खरीदी गई, और 1988 में जापानी वास्तुकार काज़ुहिरो नाकाहारा के नेतृत्व में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ। नाकाहारा ने इस संस्थान को करुणा के देवता ‘अवलोकितेश्वर’ की आकृति में डिज़ाइन किया, जो इसके आध्यात्मिक महत्व को भी दर्शाता है। साल 1995 में, शांति गुरु दलाई लामा ने नॉर्बुलिंका का उद्घाटन किया। इस अवसर पर संस्थान का हृदय स्थल ‘देदन त्सुकलागखांग’ मंदिर भी पूरा हुआ। यह मंदिर पारंपरिक तिब्बती वास्तुकला और कला का अनूठा नमूना है। मंदिर के अंदर लगी 14 फुट ऊँची स्वर्णित तांबे की बुद्ध प्रतिमा, मास्टर शिल्पकार पेंबा दोर्जे और उनकी टीम की मेहनत और समर्पण की जीवंत मिसाल है।
मंदिर की भित्ति चित्रों में भगवान बुद्ध के जीवन के बारह प्रमुख प्रसंगों को चित्रित किया गया है। इसके अलावा, मंदिर की ऊपरी गैलरी में तेरह लामाओं की तस्वीरें तिब्बती इतिहास के गौरवशाली पन्नों को दर्शाती हैं। मंदिर में 16 फुट ऊँचा सिल्क और ब्रॉकेड से बना ‘सोलह अरहतो’ का एप्लीके एक कला का अद्भुत नमूना है, जो महीनों की मेहनत का परिणाम है। नॉर्बुलिंका का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक तिब्बती धार्मिक कला की रक्षा और विकास है। थंगका चित्रकला, लकड़ी की नक्काशी, मूर्तिकला, और थंगका एप्लीके जैसी कलाओं को यहाँ पारंपरिक विधियों से सिखाया जाता है। साथ ही, संस्थान ने आधुनिक डिज़ाइन के क्षेत्र में भी तिब्बती कला को नई पहचान दी है।
कपड़े, फर्नीचर, स्क्रीन प्रिंटिंग और होम डेकोर के माध्यम से तिब्बती डिज़ाइन को आधुनिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया गया है। इससे न केवल कला को बढ़ावा मिला है, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता भी सुनिश्चित हुई है। नॉर्बुलिंका में तिब्बती भाषा, साहित्य और संस्कृति के अध्ययन के लिए 1997 में एक कॉलेज की स्थापना की गई। यह न केवल कला का केंद्र है, बल्कि तिब्बती संस्कृति के संरक्षण, अध्ययन और शोध का भी प्रमुख केंद्र बन गया है। यहाँ युवा तिब्बती छात्र अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ते हैं, अपनी भाषा और इतिहास से परिचित होते हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान सुदृढ़ होती है।
नॉर्बुलिंका सिर्फ कला केंद्र नहीं, बल्कि रोज़गार और सामाजिक विकास का भी आधार है। यह संस्थान कलाकारों और समुदाय को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक साबित हुआ है। संस्थान के आसपास कैफे, दुकानें, रेस्तरां और आवासीय इलाके विकसित हो चुके हैं, जो इसे एक जीवंत सांस्कृतिक हब बनाते हैं। हालांकि संस्थान के पहले मास्टर कलाकार अब नहीं हैं, लेकिन उनके शिष्य उनकी विरासत को संभालते हुए नॉर्बुलिंका की कला को समृद्धि की नई ऊँचाइयों तक ले जा रहे हैं।
बेहद सुंदर है लोसेल डॉल म्यूज़ियम...
नॉर्बुलिंका परिसर में स्थित ‘लोसेल डॉल म्यूज़ियम’ तिब्बती जीवन, परिधान और लोककथाओं को रंगीन और जीवंत गुड़ियों के माध्यम से प्रदर्शित करता है। हर गुड़िया हस्तनिर्मित है और तिब्बती संस्कृति की विविधता को दर्शाती है। यह म्यूज़ियम बच्चों, इतिहासकारों और कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। धौलाधार की गोद में बसा नॉर्बुलिंका तिब्बती संस्कृति का वह दीपस्तंभ है, जिसने कला, संस्कृति और आध्यात्मिकता के माध्यम से अपने लोगों को जोड़े रखा है। यह संस्थान संघर्षों और कठिनाइयों के बावजूद सांस्कृतिक पुनर्जागरण की मिसाल कायम करता है। नॉर्बुलिंका की कहानी सिर्फ तिब्बती समुदाय की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की प्रेरणा है, जो अपनी पहचान और विरासत को संजोने का प्रयास करता है।