अद्धभूत है रेलवे ट्रैक पर बगैर इंजन दौड़ती ये ट्रॉली

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में जोगिंद्रनगर में अंग्रेजों के जमाने का एक पावर प्रोजेक्ट है जिसे शानन पावर प्रोजेक्ट ने नाम से जाना जाता है। शानन परियोजना को स्थापित करने के लिए 3 मार्च, 1925 को तत्कालीन पंजाब सरकार तथा मंडी के राजा के बीच समझौता हुआ था। 99 साल की लीज पर ये पंजाब सरकार के पास था और फिलवक्त हिमाचल सरकार इस पर कब्जे को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रही है। इस पावर प्रोजेक्ट का निर्माण ब्रिटिश राज में हुआ था और उस दौर इस प्रोजेक्ट को तैयार करने के लिए अंग्रेजों ने खड़ी पहाड़ी पर रेलवे ट्रैक तैयार करवा दिया था, जो आज भी अद्धभूत है। यह रेलवे ट्रैक खड़ी पहाड़ी से जब गुजरता है तो इस पर चलने वाली ट्राली में बैठे लोगों की सांसें थमने लग जाती हैं। दरसल बरोट में बांध बनाने के लिए 1926 में अंग्रेज इंजीनियर कर्नल बैटी ने एक रोप-वे ट्रॉली (हॉलेज ट्रॉली) का निर्माण किया था। इस ट्रॉली के जरिए बांध का सारा सामान जोगिन्द्र नगर से बरोट पहुंचाया गया था। यह ट्रॉली आज भी कार्य करती है। इसकी खासियत यह है कि यह बिना किसी इंजन के सहारे काम करती है। ये ट्रैक लगभग 9 किलोमीटर लम्बा है।
वर्तमान में यह ट्रॉली जोगिंद्रनगर के शानन पावर हाउस से बैंच कैंप, हैडगियर, कथयाडू (यह ट्रॉली का कंट्रोल प्वाइंट है) व जीरो प्वाइंट तक चलती है। पहले यह ट्रॉली बांध तक थी। कथयाडू से लेकर जीरो प्वाइंट के रास्ते को खूनी घाटी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां ट्रॉली लगभग 90 डिग्री के कोण पर चलती है।