उस्ताद विलायत खान का पता भी रहा है शिमला का परिमहल

सिर्फ 1 रुपये प्रति वर्ष की राजसी राशि पर डॉ परमार ने करवाया था उपलब्ध
हिन्दुस्तान के सबसे उम्दा सितार वादकों में शुमार उस्ताद विलायत खान का शिमला से एक अटूट नाता रहा है। 1960 के दशक के मध्य में, वे राजा पदमजीत सिंह के मेहमान के रूप में शिमला आए थे। उस्ताद विलायत खान कुछ वक्त स्ट्रॉबेरी हिल में रहे और फिर उन्होंने छोटा शिमला में ऐरा होल्मे कॉटेज किराए पर लिया। हिमाचल प्रदेश सरकार और तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ वाईएस परमार को इल्म था कि उस्ताद विलायत खान सरीखे कलाकार का शिमला में यूँ रहना कितना ख़ास था, सो उन्होंने उस्ताद को शिमला में रहने के लिए मनाने का फैसला किया। तब उन्हें जुब्बल के राजा के महलों में से एक, परिमहल, किराए पर उपलब्ध करवाया गया, वो भी सिर्फ 1 रुपये प्रति वर्ष की राजसी राशि पर। हिमाचल के साथ उनका एक और जुड़ाव था। दरअसल उनके नाम उस्ताद बंदे हसन खान कुछ सालों तक नाहन में दरबारी संगीतकार थे। उनके पिता के जल्दी देहांत के बाद उन्होंने अपने नाना और मामा से सितार बजाना सीखा था।
कहते है उस्ताद विलायत खान पोकर खेलने के शौक़ीन थे। फुर्सत में वे अपने दोस्तों के साथ संगीत और पोकर का आनंद लेते।शिमला के पुराने लोगों को उनकी कोबाल्ट-नीली मर्सिडीज अब भी याद है , जो अफ़गानिस्तान के राजा ने उन्हें उपहार में दी थी। उस दौरान कई शिष्य उनसे संगीत सीखने के लिए शिमला आते थे। कहते है उस दौरे में बनारस घराने के प्रसिद्ध कलाकार पंडित समता प्रसाद भी शिमला आए थे और आइरा होल्मे कॉटेज में उस्ताद विलायत खान के पास रुके थे। उस्ताद विलायत खान 1960 के दशक के अंत में कुछ वर्षों तक शिमला में ही रहे। तदोपरांत पारिवारिक कारणों से वे देहरादून और फिर अमेरिका जा बसे। जाते समय सिर्फ 1 रुपये प्रति वर्ष की राजसी राशि पर मिला परिमहल उन्होंने हिमाचल सरकार को लौटा दिया।
- अद्भुत है परिमहल, अब यहाँ सरकारी कार्यालय है
जिस परिमहल में उस्ताद विलायत खान रहते थे उसका संबंध जुब्बल के तत्कालीन शासकों से है। यह महल क्योंथल राज्य के पूर्व राज्य का हिस्सा रहा और जुब्बल रियासत के तत्कालीन शासकों के अंतर्गत आता था। ऐसा माना जाता है कि यह रानी का निवास स्थान हुआ करता था।
कसुम्पटी से आगे स्थित, यह अद्भुत संपत्ति अपने आप में इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना है। इस खूबसूरत ईमारत को धज्जी दीवार से बनाया गया है। फर्श से लेकर दूसरी मंजिल पर जाने वाली सीढ़ियों तक, इस इमारत में अधिकतर लकड़ी का काम किया गया है। एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस महल से पहाड़ों का अद्भुत 360 डिग्री का नज़ारा दिखाई देता था। 1979 में जिला सोलन के कसौली से राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण प्रशिक्षण संस्थान को यहां स्थानांतरित किया गया था, तब से यह इमारत स्वास्थ्य विभाग के अधीन है। आज, अधिकांश लोग इस ईमारत की भव्यता और इतिहास को भूल चुके हैं।
- ठुकरा दिए थे पद्मश्री और पद्मविभूषण सम्मान
उस्ताद विलायत खान भारत के पहले संगीतकार थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के बाद इंग्लैंड जाकर संगीत पेश किया था । विलायत ख़ाँ ने सितार वादन की अपनी अलग शैली, गायकी शैली, विकसित की थी जिसमें श्रोताओं पर गायन का अहसास होता था। उनकी कला के सम्मान में राष्ट्रपति फ़ख़रूद्दीन अली अहमद ने उन्हें आफ़ताब-ए-सितार का सम्मान दिया था और ये सम्मान पानेवाले वे एकमात्र सितारवादक थे।
उस्ताद विलायत खाँ ने 1964 में पद्मश्री और 1968 में पद्मविभूषण सम्मान ये कहते हुए ठुकरा दिए थे कि भारत सरकार ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान का समुचित सम्मान नहीं किया।