कैबिनेट विस्तार..कई की उम्मीदें तार तार !
सुक्खू मंत्रिमंडल की नई और अब भी अधूरी तस्वीर सामने आ गई है। अब इस तस्वीर में भरे रंग प्रदेश के सामाजिक, भौगोलिक और राजनैतिक परिदृश्य से कितना मेल खा रहे है इस पर विश्लेषणों और टिप्पणियों का दौर जारी है। पिछले एक साल से जारी गहन चिंतन और मंथन के बाद सुक्खू सरकार क्या साध पाई और क्या नहीं इसका आंकलन किया जा रहा है। सवाल पूछे जा रहे है और जवाब ढूंढें जा रहे है। वो नेता जिनके धैर्य की परिकाष्ठा पार हो चुकी थी क्या अब वो संतुष्ट है ? वो मंडी और काँगड़ा लोकसभा की जनता जिनकी नज़रअंदाज़गी के चर्चे थे क्या अब ज़रूरी तवज्जों हासिल कर चुके है? क्या कांग्रेस की वो अंदरूनी खींचतान, वो एकतरफा झुकाव और कल्पित असंतुलन अब संतुलित है ? और सबसे बड़ा सवाल आखिर ये मंत्रिमंडल अब भी अधूरा क्यों है ? इन तमाम सवालों पर चर्चा करेंगे पर पहले सुक्खू सरकार की दो नई एंट्रीज पर गौर फरमाते है।
सुक्खू मंत्रिमंडल में दो नए चेहरे शामिल हुआ है। घुमारवीं से विधायक राजेश धर्माणी और जैसिंघपुर से विधायक यादविंदर गोमा। धर्माणी घुमारवीं विधानसभा से तीसरी बार मुख्यमंत्री चुन कर आए है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है और पहले सीपीएस भी रह चुके है। बिलासपुर जिले से सुक्खू सरकार में अब तक कोई भी मंत्री नहीं था। धर्माणी के मंत्री बनने के बाद बिलासपुर जिले को प्रतिनिधित्व मिल गया है। ये भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का भी गढ़ है और धर्माणी के मंत्री बनने के बाद यहाँ कांग्रेस के थोड़ा और मज़बूत होने की उम्मीद है। राजेश धर्माणी मुख्यमंत्री के करीबी माने जाते हैं। कहा जाता है कि इसी वजह से पूर्व वीरभद्र सरकार में वह मंत्री बनते-बनते रह गए थे और अब ये ही उनकी ताजपोशी के कई कारणों में से एक बना है। वहीँ दूसरा नाम यादविंदर गोमा का है। गोमा एससी कोटे से मंत्री बने है। मंत्रिमंडल विस्तार से पहले ही कयास जारी थे की कांग्रेस के राष्ट्रिय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के निर्देशानुसार हिमाचल को एससी कोटे से एक और मंत्री मिलेगा और हुआ भी ऐसा ही। गोमा महज़ दो बार के विधायक है और मंत्रिमंडल में उनकी एंट्री किसी लोटरी से कम नहीं है। साल 2012 में वह पहली बार चुनाव जीते। 2017 में हार गए, जबकि 2022 में गोमा दूसरी बार चुनाव जीते। गोमा की ताजपोशी के बाद प्रदेश के सबसे बड़े कांगड़ा जिले का भी कुछ अधिमान बढ़ा है काँगड़ा को दूसरा मंत्री मिल गया।
अब बात समीकरणों की। क्षेत्रीय लिहाज़ से देखें तो परिस्थिति में ज़्यादा अंतर् नहीं दिखता। काँगड़ा संसदीय क्षेत्र को अब दो मंत्री मिल गए है। मगर ये अब भी अपेक्षित अधिमान से कम है। उम्मीद दो की थी मगर मिला सिर्फ एक। वहीँ दूसरी तरफ जहाँ हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से पहले से ही मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों थे अब एक और मंत्री भी इस संसदीय क्षेत्र को मिल गया है। वहीँ शिमला संसदीय क्षेत्र की पहले से ही झोली ओवर फ्लो है और मंडी में कुछ नहीं बदला। पूरे मंडी संसदीय क्षेत्र से अब भी महज़ एक ही मंत्री है और वो है जगत सिंह नेगी। यहाँ उम्मीद थी की मंडी में बेहतर करने को पार्टी कुल्लू से विधायक और सीपीएस सूंदर सिंह ठाकुर को मंत्री बना सकती है मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। अब शिमला से 5 मंत्री है। हमीरपुर से तीन। काँगड़ा से दो और मंडी से एक। क्षेत्रीय संतुलन भले ही अब भी कुछ अटपटे दिखें मगर जातीय संतुलन काफी हद तक साध लिए गए है। इस कैबिनेट के कुल 11 मंत्रियों में से 6 क्षत्रिय है जिनमें एक ट्राइबल भी है, दो एससी एक ओबीसी और दो ब्राह्मण भी है।
अब बात करते है पार्टी के अंदरूनी गणित और असंतुष्ट नेताओं की । दो नए मंत्रियों में से धर्माणी सुक्खू के करीबी है। वहीँ दूसरी तरफ यादविंदर गोमा पहले होलीलोज के करीबी माने जाते थे मगर अब वे भी कमोबेश सुक्खू समर्थक ही दिखते है। यानि इस लिहाज़ से किसी और तबके को तवज्जो अब भी नहीं मिली। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने दबाव ज़रूर बनाया मगर मंत्रिमंडल विस्तार में उनकी चली हो ऐसा नहीं दिखता। मुकेश अग्निहोत्री फैक्शन भी विस्तार से नदारद है। वहीँ वो नेता जो खुले मंचों पर नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे थे अब भी नाराज़ ही है। इनमें दो नाम प्रमुख थे। धर्मशाला विधायक सुधीर शर्मा और सुजानपुर विधायक राजेंद्र राणा। सुधीर पूर्व सरकार में मंत्री रह चुके है ऐसे में इस बार उनका मंत्री न होना काफी अटपटा दिखता है। सुधीर पूरी उम्मीद में थे। सरकार के एक साल के कार्यक्रम पर सुधीर ने जनता भी एकत्रित की और समर्थकों ने उनके नारे भी लगाए। मगर फिर भी सुधीर की झोली खाली रही। सुधीर का इंतज़ार जारी है। माना जा रहा है की चुनाव से सुधीर की दूरी ही मंत्रिपद से उनकी दूरी का कारण बनी है। सुधीर ने साल 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था, इसके बाद धर्मशाला सीट पर हुआ उपचुनाव भी सुधीर नहीं लड़े थे। सुधीर शर्मा पर धर्मशाला नगर निगम में भी पार्टी विरोध गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं जिन्होंने उनका काम बिगाड़ा है। वहीँ राजेंद्र राणा भी मंत्री पद से अछूते ही है। हमीरपुर से मुख्यमंत्री स्वयं है और ऐसे में इसी क्षेत्र से एक और मंत्री का होना मुश्किल था। माना जा रहा है की महज़ क्षेत्रीय बाधाएं ही राणा के रस्ते में आई है। यानी ये नाराज़गी अब भी बरकरार है।
अब बात मंत्रिमंडल की एक खाली कुर्सी की। सुक्खू मंत्रिमंडल में पिछले एक साल से तीन कुर्सियां खाली थी विस्तार हुआ और अब एक खाली है। सरकार की क्या मजबूरियां है और सरकार क्या गुंजाइश बनाए रखना चाहती है ये कांग्रेस बेहतर जानती है। ये उम्मीद की एक किरण है, विरोध न करने की चेतावनी, या काबिल नेताओं की कमी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू बेहतर जानते है।