महालक्ष्मी के दर्शन मात्र से भाव-विभोर हो जाता है चित्त

मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है। इस मंदिर में माता महालक्ष्मी के दर्शन मात्र से ही चित्त भाव-विभोर हो जाता है। यहाँ महालक्ष्मी के अतिरक्त महाकाली और महासरस्वती की प्रतिमाएं भी स्थापित है। तीनों प्रतिमाओं का श्रृंगार सोने के नथ, सोने की चूड़ियां एवं मोतियों के हार सहित बहुमूल्य आभूषणों से किया गया है।
महालक्ष्मी की वास्तविक प्रतिमा को आवरण से ढंक दिया जाता है जिसके चलते अधिकांश दर्शनार्थी वास्तविक प्रतिमा के दर्शन नहीं कर पाते। रात के लगभग 9.30 बजे वास्तविक प्रतिमा से आवरण हटाया जाता है, जिसके 10 से 15 मिनट के बाद पुन: प्रतिमा के ऊपर आवरण चढ़ा दिया जाता है।
महालक्ष्मी मंदिर के निर्माण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी छुपी है। कहा जाता है कि बहुत समय पहले मुंबई में वर्ली और मालाबार हिल को जोड़ने के लिए दीवार का निर्माण कार्य चल रहा था। सैकड़ों मजदूर इस दीवार के निर्माण कार्य में लगे हुए थे, मगर नित दिन नई- नई बाधा आने से कार्य पूरा नहीं हो पा रहा था। सब परेशान थे, तभी प्रोजेक्ट के मुख्य अभियंता को एक सपना आया। सपने में मां लक्ष्मी प्रकट हुईं और कहा कि वर्ली में समुद्र के किनारे मेरी एक मूर्ति है, उसे वहां से निकालकर समुद्र के किनारे ही मेरी स्थापना करो। मुख्य अभियंता ने मजदूरों को स्वप्न में बताए गए स्थान पर जाने को कहा और मूर्ति ढूंढ लाने का आदेश दिया। आदेशानुसार कार्य शुरू हुआ और महालक्ष्मी की एक भव्य मूर्ति मिल गई। तदोपरांत समुद्र किनारे ही उस मूर्ति की स्थापना की गई और छोटा-सा मंदिर बनवाया गया। मंदिर निर्माण के बाद वर्ली-मालाबार हिल के बीच की दीवार भी आसानी से खड़ी हो गई। तब ब्रिटिश अधिकारियों को भी दैवीय शक्ति पर भरोसा करना पड़ा और इसके बाद तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी।
वर्ष 1831 में धाकजी दादाजी नाम के एक व्यवसायी ने छोटे से मंदिर को बड़ा स्वरूप दिया एवं इसका जीर्णोद्धार कराया गया। यहां महालक्ष्मी के अलावा महाकाली व माता सरस्वती की भव्य प्रतिमा भी स्थापित है।
मंदिर में एक दीवार है, जहां आपको बहुत सारे सिक्के चिपके है। भक्तगण अपनी मनोकामनाओं के साथ सिक्के चिपकाते हैं यहां।