जिसने इस मंदिर में माथा नहीं टेका, वह वापिस नहीं लौटा
हिमाचल प्रदेश करोड़ों देवी- देवताओं के वास के लिए प्रसिद्ध है और शायद यही वजह है कि स्थानीय लोगों सहित बाहरी राज्यों के लोगों में भी इन देवी- देवताओं के प्रति अपार श्रद्धा है। इन देवी- देवताओं से जुड़े हर मंदिरों में लोगों की गहरी आस्था है और आज ऐसे ही एक मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। यह मंदिर है, तरंण्डा देवी मंदिर। हिमाचल प्रदेश जिला किन्नौर के एनएच-5 के किनारे स्थित इस मंदिर की मान्यता है कि यहां से गुज़रने वाले हर भक्त को मंदिर में माथा टेकना चाहिए,ऐसा न करने पर उसके साथ कुछ अनहोनी हो सकती है। यह मंदिर जिला शिमला रामपुर से करीब 40 किमी दूरी पर स्थित है।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि 1962 में जब भारत,चीन के बीच युद्ध हुआ तो सेना ने यहां के रास्ते से रोड़ बनाने की सोची ताकि बॉर्डर तक सेना को गोला बारूद और अन्य सामान पहुंचाया जा सके क्यूंकि पहले रोड़ सिर्फ रामपुर तक ही था। 1963 में सेना के GREF विंग ने यहां सड़क बनाने का काम शुरू किया लेकिन तरंण्डा के आगे रोड़ बनाना मुश्किल हो गया। उन दिनों यहां चट्टानें गिरने से आए दिन किसी न किसी मज़दूर की मौत हो जाती थी। ऐसे में परेशान सेना के लोग, गांव के लोगों के साथ गांव में बने मंदिर मां चंद्रलेखा के पास पहुंचे। सेना ने माता के समक्ष सारी व्यथा सुनाई। देवी ने बताया कि यहां पर किसी शक्ति का प्रकोप है। उससे बचने के लिए मुझे इस जगह स्थापित करो। मैं इस जगह स्थापित होना चाहती हूं। यहां मेरे नाम से मंदिर एक बनाओ सब कुछ ठीक हो जाएगा। बस फिर क्या था सेना के लोगों ने 1965 में मां का मंदिर यहां स्थापित करवाया और फिर सब कुछ ठीक हो गया।
विशेषताएं
- यह मंदिर ज़िला शिमला के रामपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर किन्नौर ज़िले के एनएच-5 के किनारे स्थित है।
- मंदिर की देखरेख सेना करती है। सेना के जवान यहां पूजा-पाठ का काम संभालते हैं।
- यहां से गुजरने वाली हर गाड़ी मंदिर में रुकती है।
- सब लोग तरंण्डा मां के इस मंदिर में माथा टेकते हैं फिर आगे बढ़ते हैं ताकि कोई अनहोनी न हो।
- मंदिर बनने के बाद आज तक वह कोई अनहोनी नहीं हुई।
- यह मंदिर दिखने में बहुत ही आकर्षित लगता है।
- हर नवरात्रो में सेना द्वारा यहाँ भण्डारा दिया जाता है।