पोरबंदर में है सुदामा को समर्पित दुनिया का एकमात्र मंदिर
गुजरात के पोरबंदर में भगवान श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को समर्पित दुनिया का एक मात्र मंदिर है। सुदामा ने आजीवन दरिद्रता में सात्विक जीवन जीया और ईश्वर से अखंड मित्रता भी निभाई। पोरबंदर सुदामा का जन्म स्थान है। वहां सोमाशर्मा नामक भृगुवंशी के घर सुदामा का जन्म हुआ था। कहते है सुदामा के पिता ने उन्हें बचपन में मध्य प्रदेश के उज्जैन में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में पढ़ने के लिए भेज दिया था। भगवान कृष्ण और अपने बड़े भाई बलराम भी गोकुल से मध्य प्रदेश के उज्जैन में सांदीपनि आश्रम में पढ़ने के लिए आए थे। आश्रम में ही कृष्ण और सुदामा एक दूसरे से पहली बार मिले और दोनों में जल्द ही गहरी मित्रता हो गई। हालांकि, आश्रम की शिक्षा पूरी होने के बाद श्रीकृष्ण और सुदामा दोनों अपने-अपने घर चले गए।
शिक्षा पूरी होने के बाद सुदामा ने कई सालों के बाद शादी कर ली और अपना जीवनयापन करने लगे। उनका जीवन दरिद्रता में कट रहा था, जबकि श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बन गए थे। तब सुदामा की पत्नी ने आग्रह किया कि आप अपने मित्र श्रीकृष्ण के पास जाएं और मदद मांगें, लेकिन सुदामा ने कहा कि, मैं कृष्ण के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहता। तब उनकी पत्नी ने श्रीकृष्ण को भेंट देने के लिए चावल दिया। जब सुदामा द्वारका पहुंचे, तो उनका नाम सुनते ही श्रीकृष्ण उनका स्वागत करने के लिए महल के बाहर तक दौड़े चले आए और उन्हें गले से लगा लिया।
सुदामा को शर्म आ रही थी कि एक राजा को चावल कैसे भेंट दूं। वह चावल को श्रीकृष्ण से छिपाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कृष्ण ने सुदामा से चावल छीनकर उसे खाने लगे. इसके साथ ही श्रीकृष्ण ने अपनी मित्रता निभाते हुए सुदामा की गरीबी को दूर किया और झोपड़ी को महल में बदल दिया।
सुदामा मंदिर पोरबंदर शहर के केंद्र में 1902 से 1907 के बीच बनाया गया। कहा जाता है कि 13वीं शताब्दी में यहां सुदामा का एक छोटा मंदिर था। फिर वर्ष 1903 में पोरबंदर के महाराजा भावसिंहजी ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और छोटे मंदिर के स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान सौराष्ट्र ड्रामा कंपनी ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यहां आने वाले तीर्थयात्री सुदामा मंदिर जाने पर अपने कपड़ों पर ठप्पा लगाते है, क्योंकि यह कहा जाता है कि कोई भी तीर्थयात्रा सुदामापुरी जाने पर ही यात्रा पूरी होती है।
सुदामा मंदिर के बीच में सुदामा की एक मनमोहक मूर्ति है, जिसके दाहिनी ओर उनकी धर्मपत्नी सुशीलाजी की मूर्ति है और बाईं ओर राधा-कृष्ण की मूर्ति है। परंपरा के अनुसार, हर वर्ष सुदामा अन्नकूट उत्सव को नए साल के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। साथ ही अखातीज के दिन सुदामा मंदिर में एक भव्य उत्सव मनाया जाता है जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं।
पोरबंदर का दूसरा नाम सुदामापुरी है
सुदामा का द्वारका में आगमन और अस्मावती तट पर बसे इस छोटे से शहर में एक समृद्ध ‘सुदामापुरी’ बनी रही। हालांकि, इस जगह का पहला लिखित प्रमाण पोरबंदर के पास घुमली के एक दान पत्र में है, जो एक हजार साल पुराना है। पोरबंदर के मानसरोवर कुंड के शिलालेख में भी इसके बारे में साक्ष्य मिला है।