हिमाचल: आज से होगा अंर्तराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेले का आगाज
आज यानी शुक्रवार से अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला शुरू हो रहा है, जो 5 नवम्बर तक चलेगा। यह मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है। हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री रेणुका जी में यह मेला मनाया जाता है। जनश्रुति के अनुसार इस दिन भगवान परशुराम जामू कोटी से वर्ष में एक बार अपनी मां रेणुका जी से मिलने आते है। हर किसी को इस वक्त का बेसब्री से इंतजार होता है, जब उनके आराध्य देव भगवान परशुराम अपनी मां से मिलने तीर्थ स्थल श्री रेणुका जी पहुंचते हैं। मां-बेटे के इस मिलन का गवाह बनने के लिए हर वर्ष काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
यह मेला श्री रेणुका मां के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा संगम है, जो असंख्य लोगों की अटूट श्रद्धा एवं आस्था का प्रतीक है। मां श्री रेणुका जी यहां नारी देह के आकार की प्राकृतिक झील, जिसे मां रेणुका जी की प्रतिछाया भी माना जाता है, के रूप में स्थित है। इसी झील के किनारे मां रेणुका जी व भगवान परशुराम जी का भव्य मंदिर स्थित हैं। 6 दिवसीय इस मेले में आसपास के कई ग्राम देवता अपनी-अपनी पालकी में सुसज्जित होकर मां-बेटे के इस दिव्य मिलन में शामिल होते हैं। कई धार्मिक अनुष्ठान सांस्कृतिक कार्यक्रम, हवन, यज्ञ, प्रवचन एवं हर्षोल्लास इस मेले का भाग है।
महाभारत और अन्य पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार महर्षि जमदग्नि तपस्या में लीन रहते थे। ऋषि पत्नी रेणुका पतिव्रता रहते हुए धर्म कर्म में लीन रहती थी। वे प्रतिदिन गिरि गंगा का जल पीते थे और उससे ही स्नान करते थे। उनकी पतिव्रता पत्नी रेणुका कच्चे घड़े में नदी से पानी लाती थी। सतीत्व के कारण वह कच्चा घड़ा कभी नहीं गलता था। एक दिन जब वह पानी लेकर सरोवर से आ रही थी तो दूर एक गंधर्व जोड़े को कामक्रीड़ा में व्यस्त देखकर वो भी क्षण भर के लिए विचलित हो गई और आश्रम देरी से पहुंची। ऋषि जमदग्नि ने अन्तर्ज्ञान से जब विलंब का कारण जाना तो वो रेणुका के सतीत्व के प्रति आशंकित हो गए और उन्होंने एक-एक करके अपने 100 पुत्रों को माता का वध करने का आदेश दिया, परंतु उनमें से केवल पुत्र परशुराम ने ही पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता का वध कर दिया।
इस कृत्य से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने पुत्र से वर मांगने को कहा तो भगवान परशुराम ने अपने पिता से माता को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगा। माता रेणुका ने वचन दिया कि वो प्रति वर्ष इस दिन डेढ़ घड़ी के लिए अपने पुत्र भगवान परशुराम से मिला करेंगी। तब से हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका से मिलने आते है और यह मेला आरंभ होता है। तब की डेढ़ घड़ी आज के डेढ़ दिन के बराबर है और पहले यह मेला डेढ़ दिन का हुआ करता था। जो वर्तमान में लोगों की श्रद्धा व जनसैलाब को देखते हुए कार्तिक शुक्ल दशमी से पूर्णिमा तक आयोजित किया जाता है।
