OPS: कर्मचारियों के दिल में मलाल, सरकार की ओर से न ऐलान न इंकार
( words)
शिमला की कड़कड़ाती ठंड के बीच, हाथ में तिरंगा, सर पर सफेद टोपी और जुबां पर पुरानी पेंशन बहाली का नारा लिए कर्मचारी आगे बढ़ते जा रहे थे। मौसम पहले ही सर्द था और वाटर कैनन्स से हल्की बौछार भी हो रही थी। पुलिस के जवानों के साथ धक्का -मुक्की भी खूब हुई, पर अपने बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए वो आगे बढ़ते रहे। विपक्ष का जुबानी साथ तो मिला मगर सत्तासीन हुक्मरान इस दफे पिघले नहीं। हालांकि विधानसभा के बाहर कर्मचारियों ने और सदन के भीतर विपक्ष ने सरकार को घेरे रखा। खूब हो हल्ला हुआ, जमकर प्रदर्शन हुआ। ऐसा प्रदर्शन जैसा शायद ही कर्मचारियों ने प्रदेश में पहले किया हो। शहर में चार जगह बैरिकेड लगाए गए थे, भारी पुलिस बल तैनात था, इसके बावजूद प्रदर्शनकारियों को रोकने में सरकार का खुफिया तंत्र और सुरक्षा इंतजाम फेल हो गया। इस बीच मुख्यमंत्री कर्मचारियों को वार्ता के लिए बुलाते रहे लेकिन कर्मचारी वार्ता के लिए नहीं पहुंचे और प्रदर्शन जारी रखा। कर्मचारियों का कहना था कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अगर उनसे बात करनेे आते हैं, तो वह वापस चले जाएंगे, नहीं तो वहीं पर बैठे रहेंंगे। न तुम कम न हम ज्यादा होता रहा और हल नहीं निकला। देर रात तक कर्मचारी डटे रहे। फिर जब वापस लौटे तो हाथ में पुरानी पेंशन तो नहीं थी मगर एनपीएस कर्मचारी नेताओं सहित दो दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चुका था। इन कर्मचारियों की माने तो अब बस दिल में मलाल है और चुनाव का इंतजार है।
पहले से ही स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि बजट में भी पुरानी पेंशन के लिए कोई बड़ा ऐलान नहीं होगा, और हुआ भी ऐसा ही। पुरानी पेंशन को लेकर बजट में कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई। मगर बजट के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ओल्ड पेंशन स्कीम पर कुछ शब्द जरूर कहे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जाएगी, ये आश्वासन दिया गया। साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा कि वह कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार होगा। उन्होंने कर्मचारियों से बातचीत के लिए भी अपील की। सरकार अब भी चाहती है कि कर्मचारी आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाएं।
वित्तीय मजबूरी, वरना सरकार रिस्क क्यों लेगी :
पुरानी पेंशन सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि पुरे देश का एक बड़ा मसला बन गई है। हर तरफ कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। जब केंद्र सरकार नए पेंशन सिस्टम को भारत में लागु कर रही थी तो शायद ही किसी ने सोचा हो कि ये पेंशन केंद्र और प्रदेश की सरकारों के लिए इतना बड़ा सरदर्द बनेगी। आज वित्तीय परिस्तिथि ऐसी है कि अगर सरकारें चाहे तो भी एक दम जिन्न की तरह कर्मचारियों की इस चाह को पूरा नहीं कर पा रही। हिमाचल की भी वित्तीय स्थिति कुछ ऐसी ही है, वरना सरकार चुनावी वर्ष में कर्मचारियों की नाराजगी का इतना बड़ा रिस्क लेने की स्तिथि में कतई नहीं दिखाई देती।
गहलोत के निर्णय से जगी आस :
देश के सिर्फ दो राज्यों में पुरानी पेंशन है, इस बात से ये स्पष्ट होता है कि इसे लागू करना उतना आसान नहीं है। कुछ दिनों पहले तक पश्चिम बंगाल देश का इकलौता राज्य था जो पुरानी पेंशन दे रहा था। वहीँ वित्त वर्ष 2022 -23 के बजट में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ओपीएस लागू करके ये दिखा दिया कि सरकारें चाहे तो ये नामुमकिन भी नहीं हैं। गहलोत के इस निर्णय ने देशभर में कर्मचारियों में नई आस जगा दी है। हालांकि राजस्थान की वित्तीय स्थिति भी बेहतर नहीं है और राज्य पर करीब सवा चार लाख करोड़ का लोन है।
माननीयों के लिए पेंशन क्यों ?
सरकार की खराब वित्तीय स्तिथि का तर्क कर्मचारियों के गले से नहीं उतरता, वो भी तब जब माननीय खुद पुरानी पेंशन ले रहे हो। कर्मचारियों की घड़ी की सुई हर बार इसी बात पर आकर अटकती है कि अगर नई पेंशन अच्छी है तो माननीय खुद क्यों पुरानी पेंशन ले रहे है। जब सरकार ने कर्मचारियों को नई पेंशन देने का सोचा तो खुद क्यों नई पेंशन नहीं ली। ये तर्क - वितर्क का सिलसिला जारी है और तब तक जारी रहेगा जब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को मिल नहीं जाती। पुरानी पेंशन लिए बिना कर्मचारी मानेंगे नहीं, ये प्रदेश में हुए प्रदर्शनों से स्पष्ट हो गया है। अब ये देखना होगा कि इस निर्णय का सेहरा किसके सिर बंधता है। क्या जयराम सरकार कर्मचारियों की इस मांग को मानती है या नहीं, चुनावी वर्ष में इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा।
पहले से ही स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि बजट में भी पुरानी पेंशन के लिए कोई बड़ा ऐलान नहीं होगा, और हुआ भी ऐसा ही। पुरानी पेंशन को लेकर बजट में कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई। मगर बजट के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ओल्ड पेंशन स्कीम पर कुछ शब्द जरूर कहे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जाएगी, ये आश्वासन दिया गया। साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा कि वह कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार होगा। उन्होंने कर्मचारियों से बातचीत के लिए भी अपील की। सरकार अब भी चाहती है कि कर्मचारी आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाएं।
वित्तीय मजबूरी, वरना सरकार रिस्क क्यों लेगी :
पुरानी पेंशन सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि पुरे देश का एक बड़ा मसला बन गई है। हर तरफ कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। जब केंद्र सरकार नए पेंशन सिस्टम को भारत में लागु कर रही थी तो शायद ही किसी ने सोचा हो कि ये पेंशन केंद्र और प्रदेश की सरकारों के लिए इतना बड़ा सरदर्द बनेगी। आज वित्तीय परिस्तिथि ऐसी है कि अगर सरकारें चाहे तो भी एक दम जिन्न की तरह कर्मचारियों की इस चाह को पूरा नहीं कर पा रही। हिमाचल की भी वित्तीय स्थिति कुछ ऐसी ही है, वरना सरकार चुनावी वर्ष में कर्मचारियों की नाराजगी का इतना बड़ा रिस्क लेने की स्तिथि में कतई नहीं दिखाई देती।
गहलोत के निर्णय से जगी आस :
देश के सिर्फ दो राज्यों में पुरानी पेंशन है, इस बात से ये स्पष्ट होता है कि इसे लागू करना उतना आसान नहीं है। कुछ दिनों पहले तक पश्चिम बंगाल देश का इकलौता राज्य था जो पुरानी पेंशन दे रहा था। वहीँ वित्त वर्ष 2022 -23 के बजट में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ओपीएस लागू करके ये दिखा दिया कि सरकारें चाहे तो ये नामुमकिन भी नहीं हैं। गहलोत के इस निर्णय ने देशभर में कर्मचारियों में नई आस जगा दी है। हालांकि राजस्थान की वित्तीय स्थिति भी बेहतर नहीं है और राज्य पर करीब सवा चार लाख करोड़ का लोन है।
माननीयों के लिए पेंशन क्यों ?
सरकार की खराब वित्तीय स्तिथि का तर्क कर्मचारियों के गले से नहीं उतरता, वो भी तब जब माननीय खुद पुरानी पेंशन ले रहे हो। कर्मचारियों की घड़ी की सुई हर बार इसी बात पर आकर अटकती है कि अगर नई पेंशन अच्छी है तो माननीय खुद क्यों पुरानी पेंशन ले रहे है। जब सरकार ने कर्मचारियों को नई पेंशन देने का सोचा तो खुद क्यों नई पेंशन नहीं ली। ये तर्क - वितर्क का सिलसिला जारी है और तब तक जारी रहेगा जब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को मिल नहीं जाती। पुरानी पेंशन लिए बिना कर्मचारी मानेंगे नहीं, ये प्रदेश में हुए प्रदर्शनों से स्पष्ट हो गया है। अब ये देखना होगा कि इस निर्णय का सेहरा किसके सिर बंधता है। क्या जयराम सरकार कर्मचारियों की इस मांग को मानती है या नहीं, चुनावी वर्ष में इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा।