हौसला टूटा सा है, सरकार सुनती नहीं और आस जाती नहीं

हज़ारों लोग जो सरकार की अनदेखी से रुष्ट है, हौंसला भी टूटा सा है पर आस है कि जाती नहीं। इसी उम्मीद में कि आज नहीं तो कल सरकार उनकी बात सुनेगी जरूर, मगर सरकार है कि सुनती नहीं। हम बात कर रहे है हिमाचल प्रदेश में पिछले 20 दिनों से अधिक समय से हड़ताल पर बैठे हुए करुणामूलक आश्रितों की। वो आश्रित जिन्हें कायदे से कई सालों पहले नौकरी मिलनी थी। न जाने कितने धरने, कितने प्रदर्शन, कितने मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर इन लोगों ने काटे, यहां तक की आमरण अनशन भी किया और क्रमिक अनशन को भी काफी समय हो गया है, मगर हाथ आया सिर्फ और सिर्फ आश्वासन।करुणामूलक आश्रितों को क्रमिक अनशन पर बैठे 20 दिन से अधिक का समय बीत चुका है, मगर अब तक सरकार द्वारा इनके लिए कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।
करूणामूलक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार ने बताया कि आश्रित लंबे अरसे से करुणामूलक आधार पर भर्तियां करने की मांग कर रहे हैं और इस दौरान विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री से मिलकर भी काफी बार बात को उनके समक्ष रखा गया है। पर हर बार केवल आश्वासन ही मिला है। इसके चलते करूणामूलक संघ 30 जुलाई से क्रमिक अनशन पर बैठा है। प्रदेश में करुणामूलक आधार पर 4500 आश्रितों को नौकरियां नहीं मिली है और विभागों, बोर्डों, निगमों में पद खाली चल रहे हैं। आश्रितों ने मांग की है कि करुणामूलक आश्रितों को वन टाइम सेटलमेंट के तहत सभी को एक साथ नियुक्तियां दी जाये। बता दें कि आश्रितों को 15 वर्ष से भी अधिक का समय आवेदन किए हुए हो गया है लेकिन अभी तक नौकरी नहीं मिली है।
साल 1990 में बनी थी नीति
साल 1990 में सरकारी कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य के लिए एक नीति बनाई गई। इस नीति के अंतर्गत यदि किसी भी सरकारी कर्मचारी की नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर आर्थिक रूप से कमजोर मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी दी जाती है ताकि कर्मचारी के परिवार को उसके जाने के बाद किसी भी तरह की दिक्क्तों का सामना न करना पड़े।
नौकरी पाने की प्रक्रिया बेहद जटिल
करुणामूलक आधार पर नौकरी हेतु सरकार ने वार्षिक आय सीमा का मापदंड तय किया हुआ है। इस आधार पर नौकरी के लिए कोई इंटरव्यू और लिखित परीक्षा नहीं देनी पड़ती। पर ये जितना आसान दिखता है उतना है नहीं, करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इसके लिए आवेदक को हर जिले में विभाग संबंधित डिवीज़न में आवेदन करना पड़ता है, फिर फाइल चीफ़ ऑफिस होकर सर्कल कार्यालय पर जाती है। उसके बाद विभाग के हेड ऑफिस शिमला पहुंचती है। आम तौर पर कई ऑब्जेक्शन लगते है व फाइल वापस आ जाती है। ऐसे में फाइनल फाइल शिमला पहुँचते - पहुँचते एक डेढ़ साल लग जाता है। फिर निदेशक द्वारा स्क्रीनिंग कमेटी बिठाई जाती ,है जहां ज्यादातर मामलों को स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा कुछ न कुछ ऑब्जेक्शन लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया जाता है, कुछ बचे हुए मामलों को अप्रूवल के लिए संबंधित विभाग वित्त विभाग को भेजते हैं। जैसी व्यवस्था है उसमें वित्त विभाग के पास नौकरी की यह फाइल कई सालों तक लटकी रहती है। वित्त विभाग कोई ऑब्जेक्शन लगाता है तो दोबारा यह फाइल उसी रूट से होते हुए वापस पहुंचती है। ऐसे में आश्रित की आधी उम्र तो फाइल अप्रूव करवाने में ही निकल जाती है।
अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं ले पाई सरकार
बता दें की इतने लम्बे समय तक क्रमिक अनशन पर बैठने के बावजूद भी करुणामूलक आधार पर सरकारी नौकरी देने के मामलों पर सरकार कोई अंतिम फैसला नहीं ले पाई है। प्रदेश के नए मुख्य सचिव रामसुभग सिंह ने हाल ही में विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ एक बैठक में करुणामूलक नौकरियों से जुड़े मामलों पर चर्चा की है। इस चर्चा में सभी विभागों में कितने-कितने मामले लंबित पड़े हुए हैं, उन पर जानकारी ली गई। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी विधानसभा में ऐलान किया था कि उच्चस्तरीय अधिकारियों की कमेटी बनाई जाएगी। इस घोषणा के बावजूद भी करुणामूलक संघ ने हड़ताल नहीं तोड़ी।
सालाना आय सीमा शर्त हटाने की मांग
संघ की मांग है कि समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के केसों को जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत सभी को एक साथ नियुक्ति दी जाएं। करुणामूलक आधार पर नौकरियों वाली पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये एक सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए।