अपना हक चाहिए, एमटीएस में 5 हज़ार की भीख नहीं : करुणामूलक संघ
करुणामूलक आश्रितों को क्रमिक अनशन पर बैठे 50 दिन से अधिक का समय बीत गया है, मगर सरकार ने अब तक इनकी सुध नहीं ली। न सरकार सुन रही है और न ये चुप बैठने को तैयार है। इन आश्रितों का कहना है कि ये अपनी हक़ की लड़ाई लड़ रहे है और आज नहीं तो कल सरकार को इनकी मांगें पूरी करनी ही होगी। पिछले कई दिनों से शिमला में करुणामूलक आश्रित अनशन पर बेठे हैं, तेज़ धुप, बारिश, और शिमला की ठण्ड भी इनके साहस को डिगा नहीं पा रही। इन आश्रितों के परिवार के लोग भी इनके सहयोग के लिए प्रदर्शन स्थल पर आते है और इनके साथ अनशन पर बैठते है, परन्तु व्यस्त सरकार और प्रशासन के पास इतना समय नहीं कि इन आश्रितों और उनके परिवारजनों की सुध ली जाए। इनकी मांग सिर्फ इतनी सी है कि समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के केस, जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं, उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत सभी को एक साथ नियुक्तियां दी जाए। यूं तो इनका प्रदर्शन करना नई बात नहीं है लेकिन ख़ास ये है कि इस बार करुणामूलक आश्रित आश्वासन के सहारे आंदोलन खत्म करने के मूड में बिलकुल नहीं दिख रहे है।संघर्ष जारी है, और करुणामूलक आश्रित हार मानने को बिलकुल भी तैयार नहीं। अपनी मांग सरकार तक पहुँचाने की कवायद में बीते दिनों करुणामूलक संघ के अध्यक्ष अजय कुमार की अध्यक्षता में करुणामूलक आश्रितों का एक प्रतिनिधिमंडल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष से भी मिला। इस दौरान महासंघ के अध्यक्ष के समक्ष करुणामूलक नौकरियां बहाल करने के लिए समर्थन की बात कही गई। महासंघ के अध्यक्ष ने करुणामूलक संघ की समस्याओं को गंभीरता से लिया और कहा कि उनकी मांगें जेसीसी मीटिंग के एजेंडे में लगी हैं व जल्दी मुख्यमंत्री से करुणामूलक नौकरी बहाली की मांग उठाई जाएगी।
साल 1990 में बनी थी नीति
साल 1990 में सरकारी कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य के लिए एक नीति बनाई गई। इस नीति के अंतर्गत यदि किसी भी सरकारी कर्मचारी की नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है तो, मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर आर्थिक रूप से कमजोर मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी दी जाती है ताकि कर्मचारी के परिवार को उसके जाने के बाद किसी भी तरह की दिक्क्तों का सामना न करना पड़े। सरकार ने इसके लिए वार्षिक आय सीमा का मापदंड तय किया हुआ है। इस आधार पर नौकरी के लिए कोई इंटरव्यू और लिखित परीक्षा नहीं देनी पड़ती। पर ये जितना आसान दिखता है उतना है नहीं, करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इसके लिए आवेदक को हर जिले में विभाग संबंधित डिवीज़न में आवेदन करना पड़ता है, फिर फाइल चीफ़ ऑफिस होकर सर्कल कार्यालय पर जाती है। उसके बाद विभाग के हेड ऑफिस शिमला पहुंचती है। आम तौर पर कई ऑब्जेक्शन लगते है व फाइल वापिस आ जाती है। ऐसे में फाइनल फाइल शिमला पहुँचते-पहुँचते एक डेढ़ साल लग जाता है। आश्रित की आधी उम्र तो फिर निदेशक द्वारा स्क्रीनिंग कमेटी बिठाई जाती है जहां ज्यादातर मामलों को स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा कुछ न कुछ ऑब्जेक्शन लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया जाता है, कुछ बचे हुए मामलों को अप्रूवल के लिए संबंधित विभाग वित्त विभाग को भेजते हैं। जैसी व्यवस्था है उसमें वित्त विभाग के पास नौकरी की यह फाइल कई सालों तक लटकी रहती है। वित्त विभाग कोई ऑब्जेक्शन लगाता है तो दोबारा यह फाइल उसी रूट से होते हुए वापस पहुंचती है।
ये चाहता है करुणामूलक संघ
समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के मामले जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत एक साथ नियुक्तियां दी जाएं। करुणामूलक आधार पर नौकरी की पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये प्रति सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए। योग्यता के अनुसार आश्रितों को बिना शर्त के सभी श्रेणियों में नौकरी दी जाएं। 5% कोटा शर्त को हटा दिया जाए ताकि विभाग अपने तौर पर नियुक्तियां दे सके। महिला आवेदकों की शादी के बाद उन्हें पॉलिसी से बाहर न किया जाए। जिन आवेदकों की आयु निकल गई है उन्हें वन टाइम सेटलमेंट दिया जाए।
गूंगी-बहरी और असंवेदनशील है जयराम सरकार : राजन सुशांत
बीते दिनों हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के संयोजक डॉ. राजन सुशांत का समर्थन भी करुणामूलक आश्रितों को मिलता दिखा। सुशांत आश्रितों से मिलने शिमला पहुंचे। करुणामूलक आश्रितों का समर्थन करते हुए सुशांत ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर जमकर निशाना साधा और सरकार को 25 सिंतम्बर तक करुणामूलक आश्रितों की मांगों को पूरा करने का अल्टीमेटम दिया। मांगें पूरी न करने पर प्रदेश भर में मंत्रियों व विधायकों के घेराव की चेतावनी दी गई। राजन सुशांत ने कहा कि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हुई है और उसे किसी का दुख-दर्द नजर नहीं आ रहा है। इतने दिनों से करुणामूलक आश्रित अनशन पर बैठे हैं लेकिन ये सरकार पूरी तरह से गूंगी-बहरी बनकर बैठी है और यदि सरकार 25 सितम्बर से पहले इनकी मांगों को पूरा नही करती है तो आम जनता के साथ मिलकर मंत्रियों-विधायकों का घेराव किया जाएगा। वहीं राजन सुशांत ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि सीएम विवेकहीन, अनुभवहीन और दिशाहीन हैं।
थोड़ी भी संवेदनशीलता नहीं दिखा रही सरकार
करुणामूलक आश्रितों को क्रमिक अनशन पर बैठे इतना समय हो गया है परन्तु सरकार हमारे लिए थोड़ी भी संवेदनशीलता नहीं दिखा रही है बल्कि हलकी फुलकी राहत के नाम पर हमें साधने की कोशिश की जा रही है। यदि सरकार हमें एमटीएस में नौकरी देने के बारे में सोच रही है तो वो गलत है। आश्रितों को एमटीएस के पदों पर नियुक्ति देने के निर्णय को हम कभी भी नहीं स्वीकारेंगे। करुणामूलक आश्रितों ने 15-16 वर्षो तक इंतज़ार किया है, लगातार संघर्ष किया है। अब एमटीएस की 5 हज़ार की नौकरी पर हम बिलकुल भी सहमत नहीं होने वाले है। सरकार अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है जो हम बिलकुल भी नहीं होने देंगे। करुणामूलक संघ ने तय किया है कि यदि सरकार जल्द उनकी मांगों को पूरा नहीं करती है तो वे शिमला के साथ - साथ काँगड़ा और हमीरपुर जिले में भी उपायुक्त कार्यालय का घेराव करेंगे।
- अजय कुमार, अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश करुणामूलक संघ