जगदेव चंद-धूमल की सीट पर टेंशन में भाजपा
हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र वो सीट है जिसे चर्चा से बाहर नहीं रखा जा सकता। भाजपा के कद्दावर नेता स्व जगदेव चंद की ये सीट भाजपा का गढ़ रही है। खुद जगदेव चंद 1977 से 1993 तक पांच बार यहाँ से लगातार जीते। फिर 2012 में इसी सीट से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल चुनाव लड़े और विधानसभा पहुंचे। तब धूमल सीटिंग सीएम थे, हालांकि चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी और भाजपा विपक्ष में चली गई।
जगदेव चंद के निधन के बाद इस सीट पर दो महिलाओं का बारी-बारी कब्ज़ा रहा। दरअसल 1993 का चुनाव जीतने के बाद जगदेव चंद का निधन हो गया और इस सीट पर उपचुनाव हुए। तब प्रदेश में कांग्रेस की लहर थी और साहनुभूति के बावजूद कांग्रेस की अनीता वर्मा यहाँ से जीती। पर 1998 में अगले ही चुनाव में स्व जगदेव चंद की बहु उर्मिल ठाकुर ने भाजपा टिकट ये सीट जीती। 2003 में फिर अनीता वर्मा जीती और 2007 में उर्मिल ठाकुर। 2012 का चुनाव आते -आते जगदेव चंद के पुत्र नरेंद्र ठाकुर कांग्रेस का दामन थाम चुके थे और कांग्रेस ने उन्हें ही उम्मीदवार बनाया। उधर भाजपा से सीटिंग सीएम धूमल खुद हमीरपुर से मैदान में उतरे। जो संभावित था, वो ही हुआ और धूमल चुनाव जीत गए। पर असली ट्विस्ट आया 2017 में। माना जाता है कि धूमल एक बार फिर हमीरपुर से ही चुनाव लड़ने के इच्छुक थे। पर पार्टी ने उन्हें सुजानपुर से मैदान में उतारा, जहाँ उन्हें हार का सामना भी करना पड़ा। उधर हमीरपुर से भाजपा के उम्मीदवार थे नरेंद्र ठाकुर जो 2012 में धूमल के विरुद्ध चुनाव लड़े थे और कांग्रेस छोड़कर भाजपाई हो चुके थे। तब कांग्रेस ने कुलदीप सिंह पठानिया को मैदान में उतारा, पर जीत नरेंद्र ठाकुर की हुई।
इस बार भी हमीरपुर की सियासत बेहद रोचक है। दरअसल चुनाव के काफी वक्त पहले से यहाँ एक समाजसेवी नेता आशीष शर्मा सक्रिय दिख रहे थे और माना जा रहा था कि चुनाव आते-आते आशीष किसी राजनीतिक दल में शामिल हो सकते है। हुआ भी ऐसा ही। आचार सहिंता लगने के बाद आशीष कांग्रेस में शामिल हो गए लेकिन दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस उन्हें 48 घंटे भी नहीं भाई और वैचारिक असमानता का हवाला देते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ दी। आशीष के आने -जाने में कांग्रेस अंत तक कंफ्यूज रही और अंत में पार्टी ने पुष्पेंद्र वर्मा को टिकट दिया। जाहिर है इस स्थिति का असर पार्टी के प्रचार अभियान पर भी पड़ा। उधर आशीष शर्मा ने आखिरकार निर्दलीय चुनाव लड़ा और दमखम के साथ लड़ा। हमीरपुर सीट पर कभी कोई निर्दलीय नहीं जीता है, पर इस बार इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता।
उधर भाजपा की बात करें तो पार्टी ने फिर नरेंद्र ठाकुर को ही टिकट दिया है। माना जा रहा था कि अगर इस बार धूमल चुनाव लड़ते है तो हमीरपुर भी एक विकल्प होगा। पर धूमल ने चुनाव नहीं लड़ा। वहीं भाजपा की दो बार विधायक रही और नरेंद्र ठाकुर की भाबही उर्मिल ठाकुर का जिक्र भी यहाँ जरूरी है। दरअसल उर्मिल भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जा चुकी थी लेकिन कुछ माह पूर्व ही उनकी पार्टी में वापसी हुई। ऐसे में वे भी टिकट की दावेदार थी लेकिन बाजी उनके देवर नरेंद्र ठाकुर मार गए। बहरहाल इस दफा हमीरपुर विधानसभा सीट पर फिर कमल खिलता है या कांग्रेस कोई कमाल करती है, इससे ज्यादा चर्चा आशिष शर्मा की है। फिलवक्त इतना जरूर कहा जा सकता है कि हमीरपुर सीट से पहली बार किसी निर्दलीय के चुनाव जीतने की सम्भावना है। आशीष शर्मा ने क्षेत्र के सियासी समीकरणों को एक नया मोड़ दे दिया है। निसंदेह दोनों ही दलों की धुकधुकी बढ़ी हुई है और सभी को आठ दिसम्बर का इंतजार है।