जाने कौन जीत रहा है शांता कुमार की सीट पर ?
सुलह वो सीट है जिसने दो बार हिमाचल प्रदेश को मुख्यमंत्री दिया है। इसी सीट से चुनाव लड़कर वर्ष 1977 में शांता कुमार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। फिर 1990 में जब दूसरी बार शांता कुमार मुख्यमंत्री बने तब भी वे इस सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने थे। पर अगले ही चुनाव में, यानी 1993 में इसी सीट से खुद शांता कुमार चुनाव हार गए थे। यहाँ की सियासत बड़ी पेचीदा है। चालीस साल से यहाँ कोई भी नेता लगातार दो बार विधायक नहीं बन सका है। आखिर बार 1977 और फिर 1982 में चुनाव जीतकर शांता कुमार ने यहाँ रिपीट किया था, इसके बाद से हर पांच साल में जनता विधायक बदलती आ रही है। वहीँ 1985 से जो भी सुलह में जीतता है, सरकार भी उसी पार्टी की बनती है। सुलह की सियासत में कब क्या हो कोई दावे के साथ नहीं कह सकता। इस बार भी कमोबेश ये ही स्थिति है। सुलह सीट पर बेहद रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है।
पिछले 24 सालों में यहां कभी विधायक भाजपा नेता विपिन सिंह परमार रहे तो कभी पूर्व कांग्रेस नेता जगजीवन पाल। इस बार यहां भाजपा ने फिर से विधानसभा अध्यक्ष विपिन सिंह परमार को मैदान में उतारा है। पर कांग्रेस ने सबको चौकांते हुए पूर्व विधायक जगजीवन पाल का टिकट काटकर जगदीश सिपहिया पर दाव खेला है। इसके बाद वो ही हुआ जिसकी आशंका थी, जगजीवन पाल ने निर्दलीय ताल ठोक दी। यानी सुलह में कांग्रेस को बगावत का सामना करना पड़ा, जबकि भाजपा एकजुट दिखी। जाहिर है कांग्रेस की इस बगावत के बीच भाजपा यहाँ रिवाज़ बदलने को लेकर आश्वस्त है। पर दिलचस्प बात ये है कि जगजीवन पाल के पक्ष में जहाँ इस क्षेत्र में सहानुभूति भी दिखी है, वहीं कांग्रेस का एक खेमा भी उनके साथ चला है। ऐसे में निर्दलीय होने के बावजूद उनका दावा कमतर नहीं है।
जानकार मान रहे है कि सुलह में मुख्य मुकाबला भाजपा के विपिन सिंह परमार और निर्दलीय जगजीवन पाल के बीच देखने को मिल सकता है। यानी कांग्रेस का दाव यहाँ उल्टा पड़ा सकता है। बहरहाल मतदान हो चुका है और नतीजा आने पर आठ दिसम्बर को ही ये तय होगा कि कांग्रेस ने भूल की है या समझदारी। एक और दिलचस्प बात, अगर जगजीवन पाल सुलह में जीत जाते है तो वे इतिहास रच देंगे। दरअसल सुलह में आज तक कोई निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव नहीं जीता है।