मुसाफिर भारी या अब दयाल प्यारी की बारी ?

साल था 1982, प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार का निर्वाचन क्षेत्र रहे पच्छाद में एक सरकारी मुलाजिम राजनीति में आने का फैसला कर चुका था। राजनीतिक दलों ने भरोसा नहीं जताया तो निर्दलीय ही चुनावी समर में उतर गया और जीतकर विधानसभा पंहुचा। हम बात करे रहे है गंगूराम मुसाफिर की। इस बीच प्रदेश कांग्रेस में टिम्बर घोटाले पर बवाल मचा और मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल को हटाकर आलाकमान ने वीरभद्र सिंह को सीएम बना दिया। मुसाफिर की वीरभद्र सिंह से खूब जमी और वीरभद्र उन्हें कांग्रेस में ले आएं। इसके बाद 1985 से लेकर 2007 तक हुए 6 विधानसभा चुनाव मुसाफिर कांग्रेस टिकट पर लड़े और जीते भी। पर सातवीं बार विधायक बनने के बाद गंगूराम मुसाफिर को लेकर क्षेत्र में खासी एंटी इंकमबैंसी पनप चुकी थी। नतीजन 2012 का चुनाव वे हार गए। उनकी हार का सिलसिला भी जीत की तरह चला आ रहा है, मुसाफिर 2017 का विधानसभा चुनाव और 2019 का उपचुनाव भी हार चुके है।
गंगूराम मुसाफिर के नाम हार की हैट्रिक दर्ज हुई तो स्वाभाविक है आलाकमान का भरोसा भी कम हुआ। ये ही कारण रहा कि इस बार कांग्रेस ने लगातार 9 बार मुसाफिर को टिकट देने के बाद उनका टिकट काट दिया। पार्टी ने मौका दिया दयाल प्यारी को। वो ही दयाल प्यारी जो 2019 के उपचुनाव में भाजपा की बागी थी और डेढ़ साल पहले ही कांग्रेस में आई है। पर दयाल प्यारी के आने के बाद से ही उनके और मुसाफिर के बीच तल्खियां दिखती रही। नतीजन दयाल प्यारी को टिकट दिए जाना मुसाफिर को मंजूर नहीं था और मुसाफिर भी बगावत कर मैदान में कूद गए। ख़ास बात ये है कि मुसाफिर को तीन बार हरा चुकी पच्छाद की जनता में इस बार उनको लेकर साहनुभूति दिखी है।
उधर भाजपा ने उपचुनाव जीतकर पहली बार विधायक बनी रीना कश्यप को फिर मैदान में उतारा है। रीना को लेकर थोड़ी एंटी इंकमबैंसी है लेकिन कांग्रेस की बगावत में भाजपा को जीत की किरण जरूर दिख रही है। पर इस चुनाव में एक और ट्विस्ट है, वो है राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी की मौजूदगी। यहाँ राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी ने दमखम से चुनाव लड़ा है, और ये कहना बेहद मुश्किल है कि उन्होंने किसके वोट बैंक में सेंध लगाई है। ऐसे में इस रोचक मुकाबले में कुछ भी मुमकिन है। बहरहाल पच्छाद में निगाहें गंगूराम मुसाफिर पर रहने वाली है और ये देखना रोचक होगा कि क्या अपना पहला चुनाव बतौर निर्दलीय जीते मुसफिर अब अपना ग्यारहवां चुनाव भी निर्दलीय जीत पाएंगे।