मैडम स्टोक्स की सीट पर क्या है कांग्रेस के हाल ?
ठियोग कांग्रेस की दिग्गज नेता विद्या स्टोक्स का निर्वाचन क्षेत्र रहा है। हिमाचल प्रदेश में सेब लाने वाले सत्यानंद स्टोक्स की बहू विद्या स्टोक्स को ठियोग ही नहीं, बल्कि पूरे हिमाचल प्रदेश की राजनीति में सम्मान की नजर से देखा जाता रहा है। मैडम स्टोक्स सियासत का बड़ा नाम है और ऐसे में उनके निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा रहना स्वाभाविक है। ठियोग से विद्या स्टोक्स 1982, 1985, 1990, 1998 और 2012 में पांच बार चुनाव जीती। पर इसी ठियोग में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जमानत भी नहीं बचा पाई थी। दरअसल 2017 में कांग्रेस ने मैडम स्टोक्स को टिकट तो दिया, मगर उनका नामांकन पत्र अधूरा होने के कारण उसे रद्द कर दिया गया था। ऐसे में कांग्रेस के उम्मीदवार बने दीपक राठौड़, जिन्हें राहुल गांधी के करीबी माना जाता है। पर सिर्फ दिल्ली दरबार का करीबी होना हिमाचल की सियासी जमीन पर पाँव जमाने के लिए काफी नहीं होता। जिसका डर था वो ही हुआ, दीपक राठौर कुल कास्ट हुए करीब 58 हज़ार वोट में से करीब 9 हजार वोट ही पा सके और चुनाव हार गए। तब मुख्य मुकाबला माकपा के राकेश सिंघा और भाजपा के राकेश वर्मा के बीच हुआ जिसमें सिंघा को जीत मिली।
अब आते है मौजूदा चुनाव पर। वर्तमान विधायक माकपा के राकेश सिंघा ने एक बार फिर ठियोग से चुनाव लड़ा है। उधर पूर्व विधायक और 2017 में भाजपा प्रत्याशी रहे राकेश वर्मा का कुछ वक्त पहले स्वर्गवास हो गया। उनकी राजनीतिक विरासत को संभाला उनकी पत्नी इंदु वर्मा ने। इंदु वर्मा कुछ माह पूर्व कांग्रेस में शामिल हो गई थी और माना जा रहा था कि वे कांग्रेस की प्रत्याशी हो सकती है। पर ऐसा हुआ नहीं। कांग्रेस ने यहां से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर को अपना उम्मीदवार बनाया। नतीजन इंदु वर्मा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है। इन सबके बीच भाजपा की बात भी करते है। भाजपा ने यहां से अजय श्याम को मैदान में उतारा है। यहां बहुकोणीय मुकाबला है, पर रिवाज बदलने का दावा कर रही भाजपा के सामने यहां असल चुनौती ये मानी जा रही है कि नतीजा जो भी हो, सम्मानजनक हो।
जमीनी स्थिति की बात करें तो मौजूदा विधायक राकेश सिंघा को लेकर यहाँ कुछ एंटी इंकमबेंसी जरूर दिखी है, पर बावजूद इसके उनका दावा कमतर नहीं है। उधर कांग्रेस यहां 2017 की तरह कमजोर बिल्कुल नहीं दिख रही। इस बार कांग्रेस में भीतरघात की आशंका भी कम है। ऐसे में इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि कुलदीप राठौर इस सीट को फिर कांग्रेस की झोली में डाल सकते है। वहीं निर्दलीय चुनाव लड़ी इंदु वर्मा को लेकर क्षेत्र में खासी साहनुभूति दिखी है। साहनुभूति लहर अगर वोट में भी तब्दील हुई है तो उसके आगे किसी का भी टिकना मुश्किल है। भाजपा की बात करें तो सबकी लड़ाई में ही भाजपा शायद उम्मीद की किरण खोज रही हो। अजय श्याम की जय होगी, ऐसा मुश्किल लगता है।