राष्ट्रीय अध्यक्ष की सीट पर क्या हार रहे है प्रदेश महामंत्री ?
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इसी सीट से तीन बार विधायक रहे। 1993 में इसी सीट से वे पहली बार विधानसभा पहुंचे और विपक्ष के नेता भी बन गए। हम बात कर रहे है बिलासपुर सदर सीट की। ये खुद नड्डा की सीट रही है तो ऐसे में जाहिर है यहाँ भाजपा की जीत - हार को भी सीधे नड्डा की राजनैतिक प्रतिष्ठता से जोड़ा जायेगा। इतिहास पर नज़र डाले तो भाजपा की स्थापना के बाद से ही इस सीट पर पार्टी का दबदबा रहा है। 1982 से 2017 तक हुए 9 विधानसभा चुनावों में 6 बार भाजपा तो 3 बार कांग्रेस को इस सीट पर जीत मिली है। जेपी नड्डा ने खुद इस सीट से चार दफा चुनाव चुनाव लड़ा है। 1993 और 1998 में नड्डा ने इस सीट पर जीत दर्ज की लेकिन 2003 के विधानसभा चुनाव में नड्डा को हार का सामना करना पड़ा था। 2007 में जेपी नड्डा ने इस सीट से अपना आखिरी चुनाव लड़ा था तब नड्डा ने फिर फतह हासिल की थी। 2012 में इस सीट पर कांग्रेस के बंबर ठाकुर ने जीत हासिल की थी। वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के सुभाष ठाकुर ने कांग्रेस के बंबर ठाकुर को मात देकर जीत दर्ज की और ये सीट फिर भाजपा की झोली में चली गयी।अब आते है मौजूदा चुनाव पर। इस बार भाजपा ने सीटिंग विधायक सुभाष ठाकुर का टिकट काटकर प्रदेश महामंत्री त्रिलोक जम्वाल पर दांव खेला है। इसके बाद भाजपा सुभाष ठाकुर को तो मनाने में कामयाब रही लेकिन एक अन्य टिकट के चाहवान सुभाष शर्मा ने निर्दलीय ताल ठोक दी। यानी इस बार नड्डा के घर में भी बगावत को भाजपा रोक नहीं पाई। उधर कांग्रेस ने गहन चिंतन मंथन के बाद बम्बर ठाकुर को ही टिकट दिया है। अब भाजपा की बगावत का कितना लाभ बम्बर ठाकुर को मिलता है, ये तो चुनाव के नतीजे ही बताएँगे। बहरहाल इस सीट पर कांटे का मुकाबला है और यदि कांग्रेस जीत दर्ज करती है तो स्वाभाविक है भाजपा के भीतर भी कई सवाल उठेंगे।