क्या इस बार केवल चखेंगे जीत का स्वाद ?
शाहपुर विधानसभा क्षेत्र की सियासत भी शाही है। भाजपा, कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, निर्दलीय सभी को इस सीट पर जनता का साथ मिला है। इस सीट के पचास साल के इतिहास पर निगाह डाले तो 1972 में यहाँ कांग्रेस जीती, 1977 में जनता पार्टी, 1982 में आजाद, 1985 में कांग्रेस, 1990 में जनता दल, 1993 में कांग्रेस, 1998 में भाजपा और 2003 में फिर कांग्रेस। यानी 1972 से 2003 तक यहाँ किसी पार्टी ने रिपीट नहीं किया। पर 2007 से 2017 तक हुए तीनों चुनाव यहाँ बीजेपी जीती।
ये तो बात हुई राजनीतिक दलों की। अब चेहरों पर आते है। कांग्रेस से यहां मेजर विजय सिंह मनकोटिया 1985, 1993 और 2003 में चुनाव जीते। पर ये ही मेजर मनकोटिया 1982 में निर्दलीय जीते थे, तो 1990 में जनता दल के टिकट पर। रोचक बात ये है कि वर्तमान में मेजर साहब भाजपाई हो चुके है। उधर भाजपा की बात करें तो 1998 से अब तक हुए 6 विधानसभा चुनाव में सरवीण चौधरी ही पार्टी का चेहरा रही है और 2003 के अलावा चार मौकों पर जीती है। वहीं वर्तमान चुनाव का परिणाम आना अभी बाकी है।
अब मौजूदा दौर में कांग्रेस की बात करते है। मेजर मनकोटिया के कांग्रेस से बाहर होने के बाद कांग्रेस में एंट्री हुई केवल पठानिया की। 2007 में केवल पहली बार चुनाव लड़े और तीसरे स्थान पर रहे। तब दूसरे नंबर थी बहुजन समाज पार्टी। उधर 2012 आते -आते मेजर साहब फिर कांग्रेस में आ चुके थे और फिर कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। पर 2017 तक फिर कांग्रेस और मेजर की राहें जुदा हो चुकी थी। ऐसे में 2017 में पार्टी ने फिर केवल पर दाव खेला। पर मेजर मनकोटिया भी निर्दलीय मैदान में थे। तब यहां केवल और मेजर की आपसी लड़ाई में बाजी सरवीण जीत गई। दिलचस्प बात ये है कि केवल तीसरे स्थान पर रहे।
मौजूदा चुनाव की बात करें तो इस बार मेजर विजय सिंह मनकोटिया मैदान में नहीं है। वहीं भाजपा से एक बागी उम्मीदवार सरवीण चौधरी के खिलाफ मैदान में उतरे है। ऐसे में कांग्रेस के केवल सिंह पठानिया क्या इस बार जीत का स्वाद चख पाएंगे, इस पर सभी की नजरें है। पर अगर केवल अभी भी नहीं जीते तो ये उनकी तीसरी हार होगी और ऐसे में उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठना भी लाजमी होगा। हालांकि मंत्री सरवीण चौधरी को लेकर इस क्षेत्र में एंटी इंकम्बेंसी जरूर दिखी है। पर ऐसा पिछले दो चुनाव में भी था लेकिन, बावजूद इसके सरवीण आसानी से जीती थी। ऐसे में अब आठ दिसम्बर को क्या नतीजा आता है, इसका अनुमान अभी से लगाना मुश्किल है।