ग़ालिब : जिसकी शायरी के बिना हर मोहब्बत अधूरी है, पढ़े 15 नायाब शेर
मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के वो महान शायर जिनकी शायरी के बगैर हर मोहब्बत अधूरी है। वो शायर जिन्हें उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना गया है। वो शायर जिसे फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी दिया जाता है।
ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्दू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता आज जानिए मिरज़ा ग़ालिब के वो 15 शेर है जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए है।
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तककौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
मेहरबान होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक्त
मैं गया वक्त नहीं हूँ की फिर आ भी न सकूँ
कितना खौफ होता है रात के अंधेरों में
पूछ उन परिंदो से जिनके घर नहीं होते
इस सादगी पे कौन न मर जाये ऐ खुदा
लड़ते है और हाथ में तलवार भी नहीं
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस काफिर पे दम निकले
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो