कुल्लू दशहरा: विजयदशमी से शुरू होता हैं देवपरंपरा का अद्भुत संगम

देश भर में दशहरा शुरू होने से पहले रामलीला का आयोजन किया जाता हैं। विजयदशमी यानि दशहरे के दिन पूरे देश में रामलीला समाप्त होती है। दशहरा उत्सव पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले जलाए जाते हैं। इसी के साथ दशहरे का भी समापन हो जाता है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में विजयदशमी से ही दशहरा उत्सव की शुरुआत होती है। हर साल मनाया जाने वाला कुल्लू दशहरा अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से शुरू होकर एक हफ्ते तक चलता है। इस बार कुल्लू दशहरे का आगाज 2 अक्टूबर को और समापन 8 अक्टूबर को होगा। दशहरा उत्सव जिला कुल्लू के मुख्य देवता भगवान रघुनाथ जी को समर्पित है। यहां हर साल अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। कुल्लू में विजयदशमी के बाद दशहरा मनाने के पीछे एक तर्क यह भी है कि विजयदशमी के दिन श्री राम की सेना ने रावण की सेना पर विजय पाई थी और आश्विन मास की पूर्णिमा की रात्रि रावण ने अपने प्राण त्यागे थे। पहले यहां दशहरा उत्सव विजयदशमी से लेकर पूर्णिमा तक मनाया जाता था, लेकिन बाद में इसका स्वरूप बदल गया और अब इसे 7 दिनों तक मनाया जा रहा है।
कुल्लू के रघुनाथ मंदिर के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने बताया कि दशहरा या विजयदशमी के दिन भगवान राम ने रावण को तीर मारा, लेकिन रावण की मृत्यु इस दिन नहीं हुई थी। रामायण के युद्ध के दौरान विजयदशमी के दिन भगवान राम ने रावण की नाभि पर तीर मारा था और रावण की सेना पर जीत हासिल की थी। तब से लेकर पूरे भारत में विजयदशमी का त्योहार मनाया जाता है, लेकिन रावण की मृत्यु विजयदशमी के पूर्णिमा के दिन हुई थी। हालांकि दशहरा उत्सव पहले विजयदशमी से लेकर पूर्णिमा तक मनाया जाता था, लेकिन बाद में सभी की सहमति से अब कुल्लू का विश्व प्रसिद्ध दशहरा 7 दिन तक मनाया जाता है।
आचार्य विजय कुमार ने बताया कि रामायण के अनुसार लंकापति रावण महान शिव भक्त होने के साथ-साथ महाज्ञानी और पंडित था। रावण को शास्त्रों से लेकर वेदों और राजनीति से लेकर संगीत तक का ज्ञान था। युद्ध में हारने के बाद रावण जब मृत्यु शय्या पर था तो भगवान राम ने लक्ष्मण को शिक्षा लेने के लिए भेजा था। आचार्य विजय कुमार ने बताया कि बाण लगने के बाद पूर्णिमा तक लक्ष्मण ने रावण से शिक्षा ली थी।