कुल्लू की कला का ऑस्ट्रेलिया में जलवा, नग्गर की महिलाएं पहुंचीं फ्रेमेंटल

हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत अब विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ रही है। ऑस्ट्रेलिया के फ्रेमेंटल शहर, पर्थ में इन दिनों एक कार्यशाला और प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के नग्गर गांव की महिलाएं अपनी पारंपरिक हस्तकला की बारीकियों को सिखा रही हैं। ऑस्ट्रेलिया पहुंची हिमाचल के छोटे से गांव की महिलाओं ने अपनी पारंपरिक हस्तकला से सबका दिल जीत लिया है। 8 जून से शुरू हुई यह कार्यशाला 22 जून तक चलेगी , जिसमें कुलवी वाइंस संस्था जो हिमाचल के नग्गर गांव की पारंपरिक ऊन कताई, हथकरघा बुनाई और प्राकृतिक रंगाई की विलुप्त होती शैलियों को पुनर्जीवित कर सबके साथ सांझा कर रही है।
इस कार्यशाला में विशेष आकर्षण का केंद्र हैं कुल्लू के नग्गर गांव की दो हुनरमंद महिलाएं लता और सपना जो पहली बार विदेश यात्रा कर ऑस्ट्रेलियाई लोगों को अपनी समृद्ध लोककला और जीवनशैली से रूबरू करवा रही हैं। यह आयोजन न केवल शिल्प कौशल का प्रदर्शन है, बल्कि दो संस्कृतियों के बीच एक भावनात्मक और रचनात्मक सेतु भी बन गया है। इन महिलाओं ने न केवल अपनी कला सिखाई, बल्कि हिमाचली जीवनशैली, लोककथाएं, और पारंपरिक ज्ञान को भी गहराई से साझा किया और सपना बताती हैं कि आज वे क्राफ्ट की वजह से ही आज ऑस्ट्रेलिया पहुंची है। यहाँ के लोगों को पारंपरिक ऊन कताई, हथकरघा बुनाई और प्राकृतिक रंगाई सिखाया जा रहा है । यहाँ बनाए और लाये गये हिमाचली उत्पाद करे 90 प्रतिशत तक बुक हो चुके है। आने वाले समय में हिमाचली उत्पादों को विश्व भर में ले जाया जायेगा।
गौरतलब है कि यह कार्यशाला कला का आदान-प्रदान नहीं है, यह एक सांस्कृतिक संगम है। जब ऑस्ट्रेलियाई प्रतिभागी भारतीय चाय की चुस्कियों के साथ पहाड़ी संगीत की धुनों में बुनाई सीखते हैं, तब यह एहसास होता है कि भाषा, भौगोलिक दूरी या परंपराएं, कला के सामने कोई दीवार नहीं खड़ी कर सकतीं। कार्यशाला में स्थानीय ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने हिमाचली संस्कृति के प्रति जिस उत्साह और सम्मान को दर्शाया है, वह इस आयोजन की सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण है कार्यशाल में हिस्सा ले रही पश्चिम ऑस्ट्रेलिया की रहने वाली मैल ने संस्था ने अपनी पारंपरिक उन कताई, बुनाई और प्राकृतिक रंगाई की समृद्ध तकनीकों को हमारी समुदाय के साथ साझा किया। यहाँ इन शिल्पकलाओं पर केंद्रित अनेक कार्यशालाएं आयोजित की जा रही है , जिनमें स्थानीय लोग भाग लेकर इन पारंपरिक विधाओं की गहराई से जानकारी प्राप्त कर रहे है। इसके साथ ही एक प्रदर्शनी-सह-बिक्री केंद्र की स्थापना भी की गई है, जहां सभी उत्पाद प्रदर्शित किए जाएंगे और बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे। इन हस्तशिल्प उत्पादों का जितना महत्व हिमाचल में है, उतना ही उन्हें पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में भी सराहा जा रहा है। यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान न केवल एक समृद्ध अनुभव रहा, बल्कि दोनों समुदायों को एक-दूसरे की परंपराओं को समझने और सम्मान देने का अवसर भी मिला जाहिर है।