अकबर ने बसाया था फतेहपुर सीकरी नगर, बुलंद दरवाजा की विशेष पहचान
भारत का इतिहास गौरवमयी रहा है। कालांतर में यहां कई शासकों ने शासन किया और अपनी कला, संस्कृति, संस्कारों और परिपाटी की छाप छोड़ी। भारत के इतिहास के संबंध में सभी को जानकारी होनी चाहिए। क्यूंकि इतिहास ही हमें भारत के गौरव के बारे में बता सकता है। इतिहास से ही शिक्षा लेकर हम अपना भविष्य संवार सकते हैं। इसी कड़ी में फर्स्ट वर्डिक्ट निरंतर प्रयासरत है कि पाठकों को लगातार ऐसे स्थानों के बारे में अवगत करवाता रहे जो भारत में स्थापित हैं और अपनी ऐतिहासिक आभा लिए हुए हैं। जैसा कि विदित है कि भारत में मुगलवंश का आरंभ 1526 ईस्वी में हुआ जब बाबर ने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोधी को हराया। उसके बाद भारत में मुगलकाल की नींव रखी गई। हालांकि बाबर निर्माण के क्षेत्र में इतना पुरोधा नहीं रहा। उसे एक साम्राज्यवादी की संज्ञा ही दी जाती है। वह अपने शासनकाल में साम्राज्य का ही विस्तार करता गया, मगर निर्माण के क्षेत्र में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया। मगर बाबर के बाद जो शासक आए वह बेहद कला प्रेमी रहे और उन्होंने भरपूर निर्माण भी करवाए। इनमें से अकबर, जहांगीर, शाहजहां का नाम विशेषकर लिया जाता है। आज फर्स्ट वर्डिक्ट अपने सुधी पाठकों को फतेहपुर सीकरी के संबंध में प्रकाश डालेगा।
1571 में अकबर ने बसाया था नगर : माना जाता है कि फतेहपुर सीकरी को मुगल सम्राट अकबर ने सन 1571 में बसाया था। वर्तमान में यह आगरा जिला का एक नगरपालिका बोर्ड है। यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। यह यहां के मुगल साम्राज्य में अकबर के राज्य में 1571 से 1585 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही फिर इसे खाली कर दिया गया, शायद पानी की कमी के कारण। यह सिकरवार राजपूत राजा की रियासत थी जो बाद में इसके आसपास खेरागढ़ और मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में बस गए। फतेहपुर सीकरी मुसलिम वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण है।
54 मीटर ऊंचा बुलंद दरवाजा : फतेहपुर सीकरी मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि यह मक्का की मस्जिद की नकल है और इसके डिजाइन हिंदू और पारसी वास्तुशिल्प से लिए गए हैं। मस्जिद का प्रवेश द्वार 54 मीटर ऊंचा बुलंद दरवाजा है, जिसका निर्माण 1573 ईस्वी में किया गया था। मस्जिद के उत्तर में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है जहां नि:संतान महिलाएं दुआ मांगने आती हैं। आंख मिचौली, दीवान-ए-खास, बुलंद दरवाजा, पांच महल, ख्वाबगाह, जौधा बाई का महल,शेख सलीम चिश्ती के पुत्र की दरगाह, शाही मसजिद, अनूप तालाब फतेहपुर सीकरी के प्रमुख स्मारक हैं।
बाबर ने हराया था राणा सांगा को : मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को सीकरी नामक स्थान पर हराया था, जो कि वर्तमान आगरा से 41 किलोमीटर है। फिर अकबर ने इसे मुख्यालय बनाने हेतु यहां किला बनवाया, परंतु पानी की कमी के कारण राजधानी को आगरा का किला में स्थानांतरित करना पड़ा। आगरा से 37 किलोमीटर दूर फतेहपुर सीकरी का निर्माण मुगल सम्राट अकबर ने कराया था। एक सफल राजा होने के साथ-साथ वह कलाप्रेमी भी था। 1570-1585 तक फतेहपुर सीकरी मुगल साम्राज्य की राजधानी भी रहा। इस शहर का निर्माण अकबर ने स्वयं अपनी निगरानी में करवाया था। अकबर नि:संतान था। संतान प्राप्ति के सभी उपाय असफल होने पर उसने सूफी संत शेख सलीम चिश्?ती से प्रार्थना की। इसके बाद पुत्र जन्म से खुश और उत्साहित अकबर ने यहां अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया। लेकिन यहां पानी की बहुत कमी थी इसलिए केवल 15 साल बाद ही राजधानी को पुन: आगरा ले जाना पड़ा।
फतेहपुर सीकरी में अकबर के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी वर्तमान हैं। यहां की सर्वोच्च इमारत बुलंद दरवाजा है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है। 52 सीढिय़ों के पश्चात दर्शक दरवाजे के अंदर पहुंचता है। दरवाजे में पुराने जमाने के विशाल किवाड़ लगे हुए हैं। शेख सलीम की मान्यता के लिए अनेक यात्रियों द्वारा किवाड़ों पर लगवाई हुई घोड़े की नालें दिखाई देती हैं। बुलंद दरवाजे को, 1602 ई. में अकबर ने अपनी गुजरात-विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था। इसी दरवाजे से होकर शेख की दरगाह में प्रवेश करना होता है। बाईं ओर जामा मस्जिद है और सामने शेख का मज़ार। मजार या समाधि के पास उनके संबंधियों की कब्रें हैं। मस्जिद और मजार के समीप एक घने वृक्ष की छाया में एक छोटा संगमरमर का सरोवर है। मस्जिद में एक स्थान पर एक विचित्र प्रकार का पत्थर लगा है जिसकों थपथपाने से नगाड़े की ध्वनि सी होती है। मस्जिद पर सुंदर नक्काशी है। शेख सलीम की समाधि संगमरमर की बनी है। इसके चतुर्दिक पत्थर के बहुत बारीक काम की सुंदर जाली लगी है जो अनेक आकार प्रकार की बड़ी ही मनमोहक दिखाई पड़ती है। यह जाली कुछ दूर से देखने पर जालीदार श्वेत रेशमी वस्त्र की भांति दिखाई देती है। समाधि के ऊपर मूल्यवान सीप, सींग तथा चंदन का अद्भुत शिल्प है जो 400 वर्ष प्राचीन होते हुए भी सर्वथा नया सा जान पड़ता है। श्वेत पत्थरों में खुदी विविध रंगोंवाली फूलपत्तियां नक्काशी की कला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से हैं। समाधि में एक चंदन का और एक सीप का कटहरा है। इन्हें ढाका के सूबेदार और शेख सलीम के पौत्र नवाब इस्लामख़ाँ ने बनवाया था। जहांगीर ने समाधि की शोभा बढ़ाने के लिए उसे श्वेत संगमरमर का बनवा दिया था यद्यपि अकबर के समय में यह लाल पत्थर की थी। जहांगीर ने समाधि की दीवार पर चित्रकारी भी करवाई। समाधि के कटहरे का लगभग डेढ़ गज खंभा विकृत हो जाने पर 1905 में लॉर्ड कर्जन ने 12 सहस्त्र रुपए की लागत से पुन : बनवाया था। समाधि के किवाड़ आबनूस के बने है।