2024 का रण : ये पांच फैक्टर तय करेंगे हिमाचल के नतीजे

* हिमाचल में दोनों दलों के पास गलती की गुंजाईश नहीं
चुनावी रुत है और देश में सियासी जोड़ तोड़, गुणा भाग आरंभ हो चूका है। हिमाचल प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। बेशक हिमाचल में सिर्फ चार लोकसभा सीटें हो लेकिन यहाँ मतदाता को अपने पाले में लाने को सियासी रस्साकशी भी खूब होगी और घोषणाएं भी। आदतन वादे भी होंगे और आदतन एतिबार भी। अपना काम को गिनाया ही जायेगा, पर ज्यादा जोर विरोधी की नाकामी पर होगा। लोकसभा चुनाव दस्तक दे चुके है और इस बार प्रदेश में मोदी फैक्टर का कितना असर होगा, इस पर सबकी निगाह रहेगी। क्या भाजपा एक बार फिर इतिहास रचेगी या कांग्रेस को जनता का समर्थन मिलेगा, इसका पूर्वानुमान सियासी पंडितों के लिए भी फिलवक्त मुश्किल है।
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को चारों खाने चित किया था। 2019 में तो भाजपा का क्लीन स्वीप ऐतिहासिक था और कई कीर्तिमान स्थापित हुए थे। तब मोदी लहर ऐसी चली कि चारों संसदीय क्षेत्रों के सभी 68 विधानसभा हलकों में भाजपा को लीड मिली थी। मोदी मैजिक के चलते करीब 4 लाख 77 हजार 623 मतों के अंतर से कांगड़ा से प्रत्याशी किशन कपूर ने अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी। पर 2019 में तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त करने वाली भाजपा का इसके बाद से ही हिमाचल में सियासी डाउनफॉल शुरू हो गया। हालांकि 2019 के अंत में हुए पच्छाद और धर्मशाला विधानसभा उपचुनाव तो भाजपा शानदार तरीके से जीती, लेकिन 2019 समाप्त होने के बाद भाजपा को हिमाचल में कोई बड़ी जीत नसीब नहीं हुई। पहले पार्टी सिंबल पर हुए चार नगर निगमों चुनाव में पार्टी का जादू फीका दिखा और दो नगर निगम कांग्रेस के खाते में चल गए। फिर 2021 के अंत में हुए तीन विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में सत्ता भी हाथ के निकल गई और 2023 में हुआ शिमला नगर निगम चुनाव भी भाजपा बुरी तरह हारी।
अब 2024 लोकसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चूका है और मोदी मैजिक के सहारे भाजपा एक बार फिर वापसी करने को जतन कर रही है। निसंदेह ये चुनाव पीएम मोदी के फेस पर होगा और ऐसे में भाजपा को एज मिल सकता है लेकिन बावजूद इसके ये तय है कि भाजपा की राह 2019 की तरह आसान नहीं होने वाली। नतीजा जो भी रहे पर इस बार कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी।
हिमाचल प्रदेश की चार सीटों पर लोकसभा चुनाव के नतीजे पांच महत्वपूर्ण फैक्टर पर निर्भर करेंगे। इसी से तय होगा कि भाजपा क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगाएगी या कांग्रेस वापसी करेगी। हालांकि अभी चुनाव में काफी वक्त शेष है और ऐसे में कई नए समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे, किन्तु कई मसले ऐसे है जो चुनाव नतीजों को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करेंगे।
1. मोदी फैक्टर : कायम या बेअसर ?
2019 में सभी 68 विधानसभा हलकों में लीड लेने वाली भाजपा 2022 के विधानसभा चुनाव में 25 सीट ही जीत पाई थी। ऐसा नहीं है कि विधानसभा चुनाव अकेले प्रदेश नेतृत्व ने लड़ा हो, तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नेताओं ने कई रैलियां की थी। केंद्र ने पूरी ताकत झोंकी थी पर नतीजा भाजपा के पक्ष में नहीं रहा। सोलन, सुजानपुर और शाहपुर में भाजपा पीएम की रैली के बावजूद हारी। ऐसे में सवाल है कि क्या अब मोदी मैजिक नहीं रहा ? तथ्यों पर निगाह डाले तो ऐसा कहना गलत होगा। दरअसल हिमाचल की अधिकांश आबादी पढ़ी लिखी है और यहाँ आम मतदाता समझता कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अंतर होता है और लोग बहुत सोच समझकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पीएम मोदी ने पालमपुर सहित कई स्थानों प्रचार किया था जहाँ भाजपा हारी, लेकिन जब 2019 में केंद्र सरकार चुनने का मौका आया तो हिमाचल के लोगों ने भरमौर से किन्नौर तक हर निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के पक्ष में मतदान किया। ऐसे में 2024 में मोदी फैक्टर कितना असरदार होता है, ये काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करेगा कि कांग्रेस या इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन होगा।
2 . आपदा राहत पर सियासत !
आपदा में केंद्र से हिमाचल को क्या मिला, ये फिलवक्त हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी सियासी जिरह है। पीएम मोदी ने हिमाचल आपदा पर कुछ नहीं कहा और न ही हिमाचल को स्पेशल पैकेज मिला है, इस मुद्दे पर कांग्रेस हमलावर है। हालंकि ये मौजूदा स्थिति है और लोकसभा चुनाव में अभी वक्त है। ऐसे में संभव है तब तक स्थिति परिस्थिति बदल जाएगी। पर बहरहाल आपदा राहत पर सियासी संग्राम प्रखर है और निसंदेह अगर आज चुनाव होता है तो मतदाता के लिए ये भी एक बड़ा फैक्टर हो सकता है।
3 . महिला आरक्षण फैक्टर :
मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल पास किया है। 2024 में महिलाओं को इसका लाभ नहीं होगा लेकिन भाजपा इसका पूरा लाभ लेने की कोशिश में है। जाहिर सी बात है की आधी आबादी को साधने में इसका भरपूर इस्तेमाल होगा। हालांकि कांग्रेस इसे तुरंत लागू करने की वकालत कर भाजपा को घेर रही है। ऐसे में ये फैक्टर कितन असरदार होगा, ये देखना रोचक होगा। यदि महिला वोटर्स का झुकाव भाजपा की तरफ रहा तो नतीजे निसंदेह व्यापक तौर पर प्रभावित होंगे।
4. सुक्खू सरकार का कामकाज :
प्रदेश की सुक्खू सरकार का कामकाज भी लोकसभा चुनाव में मतदाता का निर्णय प्रभावित करेगा। हालांकि मोटे तौर पर हिमाचल का मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनाव का फर्क भी समझता है और वोट भी उस आधार पर करता है। फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सुक्खू सरकार को लेकर यदि एंटी इंकम्बैंसी या प्रो इंकम्बैंसी, जैसा भी माहौल बनता है इसका असर लोकसभा के नतीजों पर भी होगा। यहाँ ध्यान में ये भी रखना होगा कि अब तक जमीनी स्तर पर मोदी सरकार को लेकर पहले जैसी प्रो इंकम्बैंसी नहीं दिख रही है, ऐसे में प्रदेश सरकार और स्थानीय चेहरे ही संभवतः 2024 में नतीजे तय करेंगे। वहीँ ओपीएस बहाल करने का कांग्रेस को कितना लाभ होता है, ये देखना भी रोचक होने वाला है।
5 . चेहरे तय करेंगे नतीजा !
ये कहना गलत नहीं होगा कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता ने पीएम मोदी के नाम पर मतदान किया था। पर माहिर मान रहे है कि 2024 की जंग में पीएम मोदी तो चेहरा होंगे ही, लेकिन कैंडिडेट पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। दस साल से भाजपा केंद्र की सत्ता में है और ऐसे में प्रो इंकम्बैंसी संभवतः पहले की तरह न दिखे। ऐसी स्थिति में सही टिकट वितरण जरूरी हो जाता है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश की करीब एक तिहाही सीटों पर बगावत झेली पड़ी थी, जिसका खामियाजा पार्टी ने भुगता। लोकसभा चुनाव में ऐसी किसी गलती की गुंजाईश नहीं होगी। वहीँ 2019 में चारों सीटें जीतने के बाद भाजपा 2021 में मंडी संसदीय उपचुनाव भी हार चुकी है। ऐसे में मंडी में तो पार्टी को कोई मजबूत चेहरा देना ही होगा, साथ ही अन्य तीन में से दो सांसदों के टिकट कटने की भी अटकलें लग रही है। ऐसी ही स्थिति कांग्रेस में है। मंडी से बेशक प्रतिभा सिंह दमदार चेहरा है लेकिन अन्य तीन संसदीय क्षेत्रों में पार्टी के पास कोई तय चेहरा नहीं दिखता। दिलचस्प बात ये है की तीनो संसदीय क्षेत्रों में सीटिंग विधायकों के चुनाव लड़ने की अटकलें है। पर माहिर भी मानते है कि यदि कांग्रेस मजबूत चेहरे उतारती है तो मुकाबला कड़ा होगा और भाजपा की राह मुश्किल जरूर हो सकती है।