2019 में कांग्रेस के चेहरे थे, क्या बीजेपी देगी मौका ?
- कांग्रेस के दो लोकसभा प्रत्याशी अब भाजपा में हो चुके हैं शामिल
लोकसभा चुनाव का मंच सज चूका हैं और हिमाचल प्रदेश में भी दोनों तरफ से उम्मीदवारों को लेकर कयासबाजी जारी हैं। हर सीट पर कई चेहरे हैं, विशेषकर भाजपा में दावेदारों की कतार लम्बी हैं। 31 जनवरी तक भाजपा में उम्मीदवारों का पैनल तैयार होना हैं और पार्टी में अंदरखाते सियासी सरगर्मियां प्रखर हैं। पर भाजपा के दो चेहरे ऐसे हैं जिन पर विशेष तौर से राजनैतिक माहिरों की निगाहें टिकी हैं। ये चेहरे हैं पवन काजल और आश्रय शर्मा। ये दोनों वो नेता हैं जो 2019 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और अब भाजपा में हैं। तब दोनों ही हारे थे और रिकॉर्ड अंतर से हारे थे, पर अब दोनों ही अपनी राजनैतिक निष्ठा बदलकर भाजपा का दामन थाम चुके हैं। ऐसे में क्या भाजपा इन्हें टिकट देती हैं, ये चर्चा का विषय हैं। विशेषकर पवन काजल को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हैं।
2019 लोकसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश भी हवा के रुख के साथ ही चला था। तब प्रदेश की जनता का ब्रांड मोदी पर भरोसा बरकरार रहा और भाजपा ने क्लीन स्वीप किया। प्रदेश की चारों सीटें कांग्रेस हारी और वो भी रिकॉर्ड मार्जिन से। अब पांच साल में बहुत कुछ बदल गया हैं। तब प्रदेश में विपक्ष में बैठी कांग्रेस अब सत्ता के रथ पर सवार हैं। पर दिलचस्प बात ये हैं कि तब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले चार प्रत्याशियों में से दो अब भाजपाई बन चुके हैं। कांगड़ा से चुनाव लड़ने वाले पवन काजल और मंडी से प्रतयाशी रहे आश्रय शर्मा।
2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों में कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से भाजपा किशन कपूर ने 72.02 प्रतिशत मत हासिल कर इतिहास बना दिया था। तब कपूर को 7,25,218 वोट पड़े थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पवन काजल को 2,47,595 मतों पर ही सिमटना पड़ा था। अब पवन काजल बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और टिकट को लकर भी उनका नाम चर्चा में हैं। पर सवाल ये ही हैं की क्या भाजपा उन पर दांव खेलेगी या काजल प्रदेश की राजनीति में ही सिमित रहेंगे।
वहीँ, मंडी संसदीय हलके से 2019 में पंडित सुखराम के पोते आश्रय शर्मा भाजपा से टिकट मांग रहे थे, लेकिन जब बात नहीं बनी तो पंडितजी पोते सहित कांग्रेस में चले गए और दिल्ली से टिकट भी ले आएं। हालांकि आश्रय के पिता अनिल शर्मा भाजपा में ही बने रहे। लोकसभा चुनाव में हार के बाद आश्रय कांग्रेस में भी साइडलाइन दिखे और पंडित सुखराम के निधन के बाद भाजपा में लौट गए। बहरहाल ये देखना रोचक होगा कि क्या भाजपा आश्रय के नाम पर विचार करेगी।
दल न बदलते तो शायद मंत्री होते काजल !
पवन काजल यूँ तो भाजपा पृष्टभूमि से रहे हैं लेकिन भाजपा ने जब काजल की कद्र नहीं की तो 2012 में काजल ने कांगड़ा विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव जीतकर अपनी सियासी कुव्वत का अहसास करवा दिया। फिर वीरभद्र सिंह के कहने पर कांग्रेस में शामिल हो गए और 2017 का चुनाव कांग्रेस से लड़ा और जीते। वीरभद्र सिंह के निधन के बाद काजल कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना दिए गए। पर फिर 2022 के चुनाव के कुछ समय पहले भाजपा में शामिल हो गए। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और माहिर मानते हैं कि अगर काजल कांग्रेस में रहते तो कैबिनेट मंत्री होते। बहरहाल, काजल बड़ा ओबीसी चेहरा हैं और इसी बुनियाद पर लोकसभा टिकट के दावेदारों में उनका नाम भी शामिल हैं।