ट्रांसपोर्ट नगर शिलान्यास को 16 माह बीते, एक ईंट भी नहीं लगी

प्रस्तावित ट्रांसपोर्ट नगर के निर्माण की स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है। हालहीं में प्रदेश सरकार इसके निर्माण का ज़िम्मा शहरी विकास मंत्रालय से वापस लेकर परिवहन मंत्रालय को देने का निर्णय ले चुकी है। बीते 2 अगस्त को हाई कोर्ट में हुई सुनवाई में शहरी विकास मंत्रालय ने माननीय न्यायलय को भी औपचारिक तौर पर इस बात से अवगत करवाया है। इसके बाद कोर्ट ने 8 अगस्त को होने वाली अगली सुनवाई में इस हेतु परिवहन मंत्रालय का शपथ पत्र जमा करवाने के निर्देश दिए है। ऐसे में अगर कोई और नया ट्विस्ट नहीं आता है तो इस पुरे मामले से शहरी विकास विभाग लगभग अलग हो चूका है, साथ ही सोलन नगर परिषद् की भी अब इसमें शायद ही कोई भूमिका रहे। पर इस पुरे घटनाक्रम के बीच विस्थापित हुए लोगों की मुश्किलें अभी ही कम नहीं हुई है।
प्रदेश की नई सरकार के गठन के बाद सोलन के लिए एकमात्र महत्पूर्ण घोषणा ट्रांसपोर्ट नगर ही है। खुद सीम जयराम ठाकुर ने इसका शिलान्यास किया था, लेकिन अब तक कार्य शुरू नहीं हुआ।सवाल ये भी है कि जब सरकार के पास ट्रांसपोर्ट नगर हेतु बजट का प्रावधान ही नहीं है, तो शिलान्यास क्यों किया गया ?
समझिये क्या है ट्रांसपोर्ट नगर का मसला और क्यों अटका है इसका कार्य
- फोरलेन निर्माण की जड़ में आने के चलते चम्बाघाट स्थित मोटर मार्किट उजाड़ गया था। यहाँ सड़कों लोगों के परिवार पालते थे जो रातो रात सड़क पर आ गए। हालांकि सरकार के पास उन्हें विस्थापित करने हेतु पर्याप्त समय था लेकिन उपयुक्त कदम नहीं उठाये गए।
- 2017 विधानसभा चुनाव से पूर्व मांग ने तूल पकड़ा और राजनैतिक दलों ने इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल किया।
- प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद 14 अप्रैल 2018 को सीएम जयराम ठाकुर ने ट्रांसपोर्ट नगर का शिलान्यास किया।
- ट्रांसपोर्ट नगर के निर्माण का ज़िम्मा नगर परिषद् सोलन को दिया गया, किन्तु कई माह तक इसका कार्य शुरू नहीं हुआ।
- नगर परिषद ने 17 मई 2018 को एक मांग पत्र मोटर मार्किट एसोसिएशन को जारी किया था जिसमें 50 फीसदी लागत राशि की मांग की गई थी।
- एसोसिएशन का कहना था कि जब उन्हें दुकानें किराये पर मिलनी है तो वे आधी राशि का भुगतान किस आधार पर करें।
- कई माह बीतने के बाद भी ट्रांसपोर्ट नगर का काम शुरू नहीं हुआ।नगर परिषद् सोलन का कहना था कि उन्हें इस बाबत उन्हें फण्ड नहीं मिला, जिसके चलते वे काम शुरू नहीं कर पाए।
शुरुआत में ट्रांसपोर्ट नगर में करीब 250 दुकानें बनाई जानी थी जिसकी लागत करीब 17 करोड़ 60 लाख थी। बाद में शहरी विकास विभाग ने करीब 22 करोड़ की लागत से सिर्फ 100 दुकानें बनाने की योजना पेश की। यदि ट्रांसपोर्ट नगर में सिर्फ 100 दुकानें बनाई जाती है तो समस्या का स्थायी समाधान नहीं होगा क्यों कि ऐसे में मोटर मार्किट से जुड़े सभी लोगों को एक जगह पर स्थापित नहीं किया जा सकता।
- आखिरकार हताश होकर मोटर मार्किट एसोसिएशन ने कोर्ट का सहारा लिया। कोर्ट की फटकार के बाद नगर परिषद् ने ट्रांसपोर्ट नगर की डीपीआर तैयार करवाई।
- अब सरकार ने ट्रांसपोर्ट नगर के निर्माण का ज़िम्मा परिवहन मंत्रालय को दिया है, जिसके बाद संभवतः पूरी प्रक्रिया दोबारा शुरू होगी।
- टांसपोर्ट नगर की जमीन नगर परिषद् के नाम ट्रांसफर करवाई गई थी, इसे शायद फिर से ट्रांसफर किया जायेगा।
- नगर परिषद् द्वारा बनाई गई डीपीआर को शायद ही स्वीकृति मिले। 20 लाख से भी अधिक की राशि व्यय कर ये डीपीआर बनाई गई थी। ऐसे में ये राशि भी बर्बाद हो जाएगी।
कंट्रीब्यूशन राशि पर स्थिति स्पष्ट नहीं है
यदि मोटर मार्किट एसोसिएशन को दुकानें किराये पर दी जानी है, तो उनसे कंट्रीब्यूशन राशि किस आधार पर ली जा सकती है। यदि दुकानें लीज पर दी जानी है, तभी असोसिएशन कंट्रीब्यूशन राशि देने को राजी होगी।