खोखला होता किन्नौर, अब मिशन ' NO MEANS NO '
प्रगति और विकास की दौड़ में तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ते हुए हम प्रकृति के लिए अपनी ज़िम्मेदारियों और समझ को पीछे छोड़ते जा रहे है। साल-दर-साल घायल होता हिमालय क्षेत्र आज हमारी उपलब्धियों के तमाम दावों को झुठलाने लगा है। ये दरकते पहाड़ विकास की तमाम नीतियों की खामियों को उजागर कर रहे और हम खामोश है। किसी ने सही कहा है कि अब साेया ताे सुन ले साथी कभी जाग न आएगी। लगता है किन्नौर की जनता ने ये बात गाँठ बांध ली है। मन में किन्नौर की वादियों को सुरक्षित रखने का दृढ़ निश्चय लेकर किन्नौर की जनता ने जिले में प्रस्तावित जंगी-थाेपन बिजली प्राेजेक्ट के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। स्थानीय लोगों के अनुसार पूर्व में स्थापित हुए पावर प्राेजेक्ट्स ने किन्नौर की स्थिति ख़राब कर दी है, आए दिन सामने आती प्राकृतिक आपदाओं ने लोगों की परेशानियों को बढ़ा दिया है। पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए जंगी-थाेपन बिजली परियाेजना के दायरे में आने वाले बाशिंदाें ने संबंधित बिजली परियाेजना प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हाथ में " NO MEANS NO, SAVE KINNAUR " के बैनर लिए इस क्षेत्र के युवा, बुद्धिजीवी समेत शिक्षाविध सड़कों पर उतर आए है। किन्नौरी बोली में क्यांग शब्द का इस्तेमाल करते हुए अपना संघर्ष शुरू कर दिया है। बता दें की क्यांग शब्द का हिंदी में अर्थ चिंगारी होता है।
ऊर्जा राज्य हिमाचल में भले ही बिजली उत्पादन की भारी क्षमता है, मगर प्रदेश के पहाड़ अब खोखले हाेने की कगार पर है। जिला किन्नौर की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। किन्नौर की जनता इससे परेशान है और अब यहां के लोगों ने इन पहाड़ों और प्रकृति को बचाने के लिए नाे माेर प्राेजेक्ट इन किन्नौर, नाे मींज़ नाे का नारा देकर संघर्ष शुरू कर दिया है। दरअसल एसजेवीएन के तहत सतलुज बेसिन पर प्रस्तावित 804 मेगावाट क्षमता वाली जंगी-थाेपन बिजली प्राेजेक्ट से सात गांव प्रभावित होंगे। फिलवक्त इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरु नहीं हुआ हैं पर निर्माण कार्य शुरु होने की स्थिति में सात गांव को खतरा हाे सकता है। कारण यह है कि जिस क्षेत्र में प्रोजेक्ट तैयार होना है वहां का पूरा एरिया चट्टानों से भरा है। रारंग गांव का पूरा क्षेत्र एनएच-5 के ऊपर ढांक पर बसा हुआ है। उसके बाद थाेपन, खादरा, आकपा, जंगी और लिप्पा गांव तक इस परियाेजना का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब पिछले साल एनएच-5 काे चाैड़ा करने के लिए यहां बलास्टिंग हाे रही थी तब भी रारंग गांव के कुछ लाेगाें के मकानाें में दरारें आ गई थी। इसी के साथ लोगों का मानना है कि परियाेजना शुरु हाेने से इन क्षेत्राें में प्राकृतिक जल स्राेत सूख जाएंगे, जिससे सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह से प्रभावित होगी। लोगों के मन में ये डर है कि प्रोजेक्ट बनने के बाद उन्हें विस्थापित किया जा सकता है। ऐसे में जंगी-थोपन बिजली परियोजना निर्माण कार्य शुरु होने से पहले ही सात गांव के लाेगाें ने एकजुट होकर संघर्ष का बिगुल बजा दिया है।
एसजेवीएन का दावा, कोई भी गांव नहीं होगा विस्थापित
कई वर्षों से विवादों में रही जंगी-थोपन बिजली परियोजना को लेकर हल्ला बाेल के बीच एसजेवीएन ने दावा किया है कि काेई भी गांव विस्थापित नहीं हाेगा। एसजेवीएन का कहना है कि प्रोजेक्ट निर्माण कार्य शुरु होने में अभी तीन से चार साल लग सकते हैं। अभी प्रोजेक्ट प्रस्तावित है और निर्माण से पहले सर्वे किया जा रहा है। एसजेवीएन ने बताया कि जहां भी टनल, डैम, पावर हाउस स्थापित होंगे, सब जगहों का वैज्ञानिक तरीके से सर्वे हाे रहा है। सर्वे के बाद ही निर्माण कार्य शुरु हाेगा। एसजेवीएन का दावा है कि परियाेजना क्षेत्र में विकास ही हाेगा न कि विनाश। इसके साथ-साथ हिमाचल प्रदेश पावर पाॅलिसी के तहत प्रभावित गांव के परिवाराें काे नाैकरी भी दी जाएगी। एसजेवीएन का कहना है कि लोगों को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। उल्लेखनीय है कि 804 मेगावॉट की क्षमता वाली जंगी-थोपन बिजली परियोजना स्थापित करने के लिए प्रदेश सरकार के पास एसजेवीएन सहित चार पावर कारपोरेशन से ऑफर आया था। इसमें से एसजेवीएन के साथ एमओयू साइन किया गया। हालांकि इस परियोजना को स्थापित करने के लिए बीडिंग व प्रीमियम की शर्त नहीं हैं, लेकिन बिजली उत्पादन शुरू होने के 40 साल बाद परियोजना राज्य सरकार की होगी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक सरकारी शर्तों के अनुसार ही जंगी-थोपन बिजली परियोजना निर्माण कार्य शुरू होगा।
ऐसा रहा प्रस्तावित जंगी-थोपन बिजली प्रोजेक्ट का इतिहास
जंगी थोपन प्रोजेक्ट का काम 15 साल यानी वर्ष 2006 से लटका हुआ है। वर्ष 2006 में राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट का टेंडर किया था और ब्रेकल को ये प्रोजेक्ट मिला। ब्रेकल ने इसका काम अदानी कंपनी को दिया और अदानी कंपनी से अपफ्रंट मनी की 280 करोड़ की राशि सरकार को मिली। उसके बाद ये प्राेजेक्ट रिलायंस काे दिया गया, लेकिन अपफ्रंट मनी के चक्कर में रिलायंस कंपनी भी पीछे हट गई। इसके बाद इस मसले पर तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने 21 सितंबर 2016 को बड़ा फैसला लिया था। रिलायंस के पीछे हटने के बाद राज्य सरकार ने पीएसयू यानी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग के साथ समझौता करने का फैसला किया, जिसके बाद ये प्रोजेक्ट एसजेवीएन को सौंप दिया गया।
281 हेक्टेयर भूमि की आवशयकता, 5708 कराेड़ हाेंगे खर्च
जंगी-थाेपन बिजली परियोजना पर अनुमानित 5708 करोड़ रुपये व्यय होने है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक परियोजना के लिए अनुमानित 281.16 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी जिसमें से 247.12 हेक्टेयर भूमि वन भूमि होगी, जबकि 24.81 हेक्टेयर निजी भूमि तथा 9.23 हेक्टेयर बीआरओ व लोक निर्माण विभाग से उपलब्ध होगी। बता दें कि परियोजना के तहत जंगी गांव के नजदीक बांध प्रस्तावित है, जबकि भूमिगत पाॅवर हाऊस का निर्माण काशंग नाला में किया जाएगा। परियोजना से कानम, जंगी, रारंग, मूरंग, स्पीलो व अकपा पंचायतें प्रभावित होंगी। परियोजना के तहत बनने वाली सुरंग आधुनिक तकनीक टीवीएम से बनाई जाएगी। प्रदेश सरकार के ऊर्जा विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक परियोजना निर्माण के समय प्रभावितों के हितों का पूरी तरह से संरक्षण सुनिश्चित किया जाएगा।
आंदोलन की राह पर जनता, मंजूर नहीं प्रोजेक्ट, जारी रहेगा संग्राम
प्रस्तावित जंगी-थोपन जल विद्युत परियोजना को लेकर जंगी, रारंग व आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने जमकर विरोध करना शुरु कर दिया है। हाल ही में जल विद्युत परियोजना के प्रबंधन द्वारा जंगी-थोपन परियोजना के निर्माणाधीन स्थल पर सम्बंधित पंचायतों के एनओसी के बिना मशीनों को काम के लिए उतारा गया जिस पर ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया। वैसे तो पहाड़ की टूट फ़ूट प्रकृति का चक्र है लेकिन बीते वर्षों मे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ने से लोगों में डर है। जंगी व रारंग के ग्रामीणों की माने ताे विरोध की शुरुआत तब हुई जब परियोजना प्रबंधन ने बिना पंचायत एनओसी काम शुरू करना चाहा। ग्रामीणाें ने बताया कि बिना पंचायत की अनुमति के बड़ी-बड़ी मशीनें लाई गई। हालांकि एसजेवीएन का तर्क है जंगी-थाेपन जल विद्युत परियोजना प्रबंधन द्वारा केवल सर्वे किया जा रहा है और सर्वे के लिए एनओसी की जरूरत नहीं होती। पर ग्रामीण इस तर्क को सफ़ेद झूठ करार दे रहे है। ग्रामीणों ने सड़क पर उतर कर इसका विरोध किया है। ग्रामीणों व प्रबंधन के बीच नोकझोंक भी जारी है।परियोजना प्रबंधन द्वारा फिलहाल सर्वे के काम को भी रोक दिया गया है आगे की कार्रवाई सरकार के दिशा-निर्देशों के बाद ही शुरू होगी।
हमें किसी भी कीमत पर पावर प्रोजेक्ट मंजूर नहीं है, विकास के नाम पर विनाश होते हुए हम देख नहीं सकते। हमारी पंचायत इस बात पर अड़ी हुई है कि परियोजना का निर्माण होने नहीं दिया जाएगा। इस क्षेत्र में सिंचाई का एक मात्र साधन प्राकृतिक जल स्त्राेत है, साथ ही गांव चट्टानों पर बसे हुए है। यदि प्राेजेक्ट निर्माण कार्य शुरु हाेगा ताे संभवत: पूरे का पूरा क्षेत्र उजड़ जाएगा। इसके लिए सबकाे राजनीति से उठकर संघर्ष करना हाेगा, तभी जल, जंगल और जमीन काे हम बचा पाएंगे।
-राजेंद्र नेगी, प्रधान ग्राम पंचायत रारंग।
संघर्ष समिति रारंग ने यह ठान लिया है कि जंगी-थोपन बिजली परियोजना को किसी भी सूरत में शुरु होने नहीं दिया जा सकता। क्षेत्र काे बचाने के लिए सबको एकजुट होकर प्रोजेक्ट का विरोध करना होगा। हम पिछले साल से ही आंदोलन की राह पर अग्रसर है, लेकिन कुछ लोग इसमें भी राजनीति कर रहे हैं, जो बिल्कुल गलत है। हम प्रकृति को बचाने के लिए राजनीति से ऊपर उठ कर संघर्ष करना हाेगा। रारंग, खादरा और अकपा गांव की जनता ने विद्युत परियोजना प्रबंधन को पहले ही चेतावनी दे दी है कि प्रोजेक्ट का काम शुरू हुआ तो अंजाम भुगतने के लिए वे तैयार रहें। हमने कह दिया है कि NO MEANS NO
-सुंदर नेगी, उपाध्यक्ष संघर्ष समिति रारंग।
सीधी सी बात है कि थाेपन से लेकर जंगी तक का एरिया पावर प्राेजेक्ट के लिए अनुकूल नहीं हैं, यह क्षेत्र काफी संवेदनशील है, जहां पर छाेटे-छाेटे पहाड़ हैं। प्रोजेक्ट बनने से ये क्षेत्र कभी भी उजड़ सकते हैं। हमारा यही मानना है कि जंगी-थाेपन बिजली परियाेजना का भार सहने के लिए प्राकृतिक एवं भाैगाेलिक दृष्टि से इन पहाड़ों में क्षमता नहीं हैं। हमने पहले दिन से इसका विरोध किया है, जाे अंतिम चरण तक जारी रहेगा। यह प्राेजेक्ट न ताे न्याय संगत है और न ही प्रकृति के अनुकूल। प्राकृतिक जल स्त्रोत से ही हमारे क्षेत्र में कृषि एवं बागवानी होती है। यदि बिजली परियोजना का निर्माण कार्य शुरु हाेगा ताे सब कुछ लुप्त हाे जाएगा जिसे हम होने नहीं देंगे।
-राेशन लाल नेगी, अध्यक्ष संघर्ष समिति जंगी।