संतरे के सूखे छिलकों से बनाया बायो डीजल

- मंडी आईआईटी के शोधकर्ताओं ने किया कमाल
आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने संतरे के सूखे छिलकों से बायो डीजल बनाने में सफलता हासिल की है। खास बात यह है की भविष्य में इसका उपयोग कारखाने चलाने वाली उर्जा से लेकर वाहनों दौड़ने के लिए इस्तेमाल होने ईंधन के रूप में किया जा सकेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने यह कमाल कर दिखाया है। आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वेंकट कृष्णन, उनकी छात्रा तृप्ति छाबड़ा और प्राची द्विवेदी शामिल हैं। शोध के बारे में डॉ. वेंकट कृष्णन का कहना है कि पानी के साथ बायोमास, संतरे के छिलकों को गर्म करके प्राप्त होता है. इसे हाइड्रो थर्मल कार्बोनाइजेशन प्रक्रिया कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने बायोमास से प्राप्त रसायनों को बायोफ्यूल प्रीकर्सर में बदलने के लिए बतौर उत्प्रेरित संतरे के छिलके से प्राप्त हाइड्रोचार का उपयोग किया है. इसमें सूखे संतरे के छिलके के पाउडर को साइट्रिक एसिड के साथ हाइड्रोथर्मल रिएक्टर में कई घंटों तक गर्म किया। इससे उत्पन्न हाइड्रोचार को अन्य रसायनों के साथ ट्रीट किया गया ताकि इसमें एसिडिक सल्फोनिक, फॉस्फेट और नाइट्रेट फंक्शनल ग्रुप आ जाएं. इसी प्रकार से इन्होंने बायो डीजल का निर्माण किया है जो कि ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जैव ईंधन ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। जिसका देश के कुल ईंधन उपयोग में एक-तिहाई का योगदान है और ग्रामीण परिवारों में इसकी खपत लगभग 90 प्रतिशत है। जैव ईंधन का व्यापक उपयोग खाना बनाने और उष्णता प्राप्त करने में किया जाता है। उपयोग किए जाने वाले जैव ईंधन में कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला और सूखे गोबर आदि शामिल हैं। भारत में जैव ईंधन की वर्तमान उपलब्धता लगभग 120-150 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है। गौरतलब है कि आईआईटी मंडी का यह शोध देश में जैव ईंधन उद्योग के लिए शुभ संकेत है। यहां यह भी उल्लेख करना होगा कि हाल के वर्षों में भारत बायोमास से बिजली बनाने में अग्रणी देश बन गया है. 2015 में भारत ने बायोमास, छोटे जल विद्युत संयंत्र और कचरे से ऊर्जा संयंत्रों के माध्यम से 15 जीडब्ल्यू बिजली पैदा करने के लक्ष्य की घोषणा की। बता दें कि पांच वर्षों के अंदर हमारे देश ने 10 जीडब्ल्यू बायोमास बिजली उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर लिया है।