इनके बगैर अधूरी है राम मंदिर आंदोलन की कहानी

अयोध्या राम मंदिर आंदोलन में कई लोगों की अहम भूमिका रही। कई चेहरे मशहूर हुए तो कई अनजान चेहरों ने अपना योगदान दिया। पर कुछ नाम ऐसे हैं, जिनके बगैर राम मंदिर आंदोलन की कहानी अधूरी है।
महंत रामचंद्र परमहंस
महंत रामचंद्र परमहंस भूमि विवाद और मंदिर आंदोलन से जुड़ने वाले शुरुआती लोगों में से थे। 1949 में जब अचानक विवादित ढांचे के अंदर से भगवान राम की मूर्तियां मिली थीं, तो उसने सबको चौंका दिया था। कहते हैं इन मूर्तियों को रखने वाले महंत रामचंद्र परमहंस ही थे। अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की जान महंत रामचंद्र दास परमहंस का एकमात्र स्वप्न था जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर। वो इसी सपने के साथ जिए और इसी स्वप्न को सच करने के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष करते रहे।
महंत रामचंद्र दास परमहंस इकलौती हस्ती थे, जो इस आंदोलन के हर पहलू से सीधे जुड़े हुए थे,चाहे संतों की धर्म संसद हो, राम भक्तों की रैली हो। सरकार के साथ वार्ता या फिर राम जन्मभूमि का मुकदमा, अयोध्या में जन्म स्थान पर रामलला के प्रकट होने से लेकर जन्मभूमि का ताला खुलवाने और फिर बाबरी ढांचे के विध्वंस तक महंत रामचंद्र दास परमहंस की सक्रिय भूमिका रही। हालांकि, मंदिर निर्माण का सपना संजोए रामचंद्र परमहंस का 2003 में निधन हो गया।
अशोक सिंघल
विश्व हिंदू परिषद को बड़ी पहचान दिलाने में अशोक सिंघल का सबसे बड़ा योगदान रहा। दुनियाभर में मंदिर निर्माण के पक्ष में माहौल बनाने और आंदोलन में उन्होंने अहम और आक्रामक भूमिका अदा की। सिंघल 1981 में वीएचपी से जुड़े थे और उनके नेतृत्व में ही 1984 में विशाल धर्म संसद का आयोजन किया गया। इसी धर्म संसद में राम मंदिर निर्माण को लेकर निर्णायक आंदोलन शुरू करने का संकल्प लिया गया था। 1989 में अयोध्या में विवादित स्थल के पास राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने में भी सिंघल का अहम योगदान था। 2015 में उनका भी निधन हो गया और अपनी आंखों से वो मंदिर बनते नहीं देख सके।
लालकृष्ण आडवाणी
बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन को राजनैतिक ताकत दी और इसका पहला श्रेय जाता हैं लालकृष्ण आडवाणी को। बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने ही 1989 में मंदिर निर्माण का प्रस्ताव पास किया और 990 में राम मंदिर निर्माण के लिए जगन्नाथ पुरी से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली। उनका लक्ष्य 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था और इसके लिए कई कार सेवक वहां जुटने लगे थे। हालांकि 23 अक्टूबर को बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार ने उन्हें रोक लिया और गिरफ्तार कर लिया, लेकिन जन समर्थन जुटाने में वह सफल रहे थे। इसके दो साल बाद 6 दिसंबर 1992 को जिस दिन विवादित ढांचा ढहाया गया था, उस दिन आडवाणी भी मौजूद थे। पार्टी, वीएचपी और बजरंग दल के अन्य नेताओं के साथ वहां मौजूद आडवाणी ने आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। इस मामले में आडवाणी पर साजिश का मुकदमा दर्ज किया गया, जो आज भी जारी है।
महंत अवैद्यनाथ
गोरखनाथ पीठ के प्रमुख मंहत अवैद्यनाथ इस आंदोलन में काफी योगदान रहा। उनके कहने पर ही 1984 की धर्म संसद में श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया था, जिसके वे अध्यक्ष रहे थे। सबसे पहले उन्होंने ही 1990 में हरिद्वार के संत सम्मेलन में 30 अक्टूबर को मंदिर निर्माण शुरू करने की तारीख तय की थी। हालांकि, तब यह काम पूरा नहीं हो सका था। फिर 1992 में एक बार फिर 6 दिसंबर को मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा शुरू करने का आह्वान भी उन्होंने ही किया था। 2014 में उनका निधन हो गया था और उनके बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखनाथ पीठ में उनकी गद्दी संभाली जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
कोठारी बंधु
सिर्फ 22 और 20 साल के दो भाई भाई राम और शरद कोठारी बंगाल के रहने वाले थे और बजरंग दल से जुड़े थे। 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में मंदिर निर्माण की तारीख के एलान और आडवाणी के रथ के पहुंचने की तारीख को देखते हुए दोनों भाई अयोध्या के लिए निकल पड़े थे। 22 अक्टूबर को दोनों भाईयों ने बनारस अयोध्या के लिए पैदल यात्रा शुरू की थी। अयोध्या में जारी कर्फ्यू के बीच दोनों सबसे पहले पहुंचने वालों में से थे। 30 अक्टूबर को जब वीएचपी और बजरंग दल के नेता विवादित ढांचे की ओर बढ़ रहे थे, तभी दोनों भाई ढांचे के ऊपर गुम्बद में चढ़ गए और वहां भगवा झंडा फहरा दिया। इसके बाद वहां मौजूद सुरक्षाबलों ने भीड़ को रोकने के लिए गोलीबारी कर दी और इसमें दोनों भाईयों की भी मौत हो गई।
इनके अलावा भी मंदिर निर्माण आंदोलन से कई ऐसे लोग जुड़े थे, जिनका इस आंदोलन में बड़ा योगदान रहा हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंबरा और विनय कटियार भी राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे रहे हैं।