गहरे है सीएम के कांगड़ा प्रवास के सियासी मायने

**कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते मुख्यमंत्री
**नेताओं की नाराज़गी बनी भाजपा की चुनौती
कांगड़ा... 15 विधानसभा क्षेत्रों वाला यह जिला वह तोता है जिसमें राजनीतिक दलों की जान अक्सर अटकी रहती है। हिमाचल की सत्ता पर काबिज़ होना है तो कांगड़ा की सियासी फ़िज़ाओं का रुख अपनी तरफ़ मोड़ना ही होगा। यही वजह है कि अक्सर भाजपा और कांग्रेस इस जिले और यहां की जनता को अपने पाले में लाने की जद्दोजहद में रहते हैं और एक-दूसरे पर इसकी अनदेखी के आरोप भी लगाते हैं। फिलहाल कांग्रेस सत्ता में है, तो ज़्यादातर कटघरे में खड़ी भी वही दिखती है। सवाल पूछा जाता है कि आखिर सरकार ने कांगड़ा के लिए किया क्या... पिछले दो वर्षों से भाजपा ने इस सवाल को अपना हथियार बना लिया है। सुक्खू कैबिनेट में कांगड़ा के मंत्रियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होना भी कांग्रेस के खिलाफ ही गया। हालांकि, बीते दिनों मुख्यमंत्री के शीतकालीन प्रवास ने काफी हद तक भाजपा के इस सवाल का जवाब दे दिया है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री का यह दौरा कांगड़ा में कांग्रेस की स्थिति को बेहतर करने में कारगर साबित हो सकता है।
दरअसल, मुख्यमंत्री पूरी सरकार को लेकर कांगड़ा पहुंच गए थे। उन्होंने पूरे 10 दिनों तक सरकार कांगड़ा से चलाई। धर्मशाला में अधिकारियों के साथ ज़रूरी चर्चाएं हुईं, बैठकें हुईं, यहाँ तक कि कैबिनेट की बैठक भी धर्मशाला में आयोजित हुई। मुख्यमंत्री कांगड़ा के अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में गए, लोगों की समस्याएं सुनीं और मौके पर ही उनका निपटारा किया। करोड़ों रुपए के विकास कार्यों का उद्घाटन व शिलान्यास भी किया गया। यहाँ तक कि इस बार राज्य स्तरीय पूर्ण राज्यत्व दिवस का आयोजन भी कांगड़ा के बैजनाथ में किया गया। जिन सरकारी कामों के लिए कांगड़ा की जनता को शिमला के चक्कर काटने पड़ते थे, मुख्यमंत्री ने उन्हें कांगड़ा में ही करवाने की कोशिश की। साफ़ शब्दों में कहें तो मुख्यमंत्री का यह शीतकालीन प्रवास सरकारी तो था, लेकिन इसकी राजनीतिक छाप गहरी होगी, यह तय है।
अब यह कांग्रेस के लिए कारगर कैसे होगा, वह आपको बताते हैं। धर्मशाला में शीतकालीन प्रवास की यह परंपरा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शुरू की थी। तब विधानसभा का शीतकालीन सत्र धर्मशाला में आयोजित होता था और मुख्यमंत्री का कार्यालय पूरे एक महीने के लिए शहर में शिफ्ट कर दिया जाता था। इस पहल का उद्देश्य था कि दूरदराज़ के वे लोग, जो शिमला नहीं आ सकते थे, उनकी समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर ही हो सके। मगर पिछले 15 सालों से यह परंपरा मानो ठंडे बस्ते में चली गई थी। विधानसभा का शीतकालीन सत्र तो धर्मशाला में होता रहा, मगर मुख्यमंत्री कार्यालय यहाँ शिफ्ट नहीं किया गया। आखिरी बार वीरभद्र सिंह ने ही धर्मशाला में कैबिनेट की बैठक की थी। अब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक बार फिर इस परंपरा को शुरू किया है। भले ही बहुत कम दिनों के लिए, लेकिन धर्मशाला को वास्तव में शीतकालीन राजधानी जैसा रूप दिया गया। 10 दिनों तक कांगड़ा प्रवास पर रहकर मुख्यमंत्री ने यह साबित कर दिया कि कांगड़ा उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है। इससे पहले कि भाजपा कुछ समझ पाती, मुख्यमंत्री आए और कांगड़ा को अपना बताकर निकल गए।
वैसे देखा जाए तो यह एकमात्र घटना नहीं है जिससे कांगड़ा में कांग्रेस की जड़ें मज़बूत होती दिख रही हैं। उपचुनावों में मुख्यमंत्री ने अपनी धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर को देहरा से चुनावी मैदान में उतारा और वह चुनाव जीत भी गईं। इसके बाद देहरा को खूब सौगातें मिलीं... देहरा में मुख्यमंत्री कार्यालय तक खोला गया। बता दें कि यह सौभाग्य तो मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र नादौन को भी प्राप्त नहीं हुआ। कांगड़ा को 'टूरिज्म कैपिटल' बनाना भी घोषित किया गया है । स्पष्ट है कि कांग्रेस सरकार कांगड़ा पर खूब प्यार बरसा रही है।
हालांकि, अब भाजपा के लिए समस्या जरूर खड़ी हो गई है। अब तमाम सवाल भाजपा पर दागे जाएंगे कि आखिर भाजपा ने कांगड़ा को क्या दिया? भले ही भाजपा विपक्ष में है, मगर भाजपा संगठन में कांगड़ा को कितनी तवज्जो दी जा रही है, यह बात मायने रखती है। दरअसल, जल्द ही भाजपा भी प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करने वाली है। मांग उठ रही है कि इस बार कांगड़ा से किसी नेता को यह पद दिया जाए। यदि भाजपा ऐसा करती है, तो यह कांगड़ा में उसकी जड़ों को मजबूत कर सकता है, लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ, तो आगामी चुनावों में उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
वैसे बता दें कि इन दिनों कांगड़ा में भाजपा की तरफ़ दबे पांव एक और बड़ी चुनौती भी आती दिख रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश चंद ध्वाला की नाराजगी और अन्य असंतुष्ट नेताओं के साथ उनकी गुप्त बैठकों की खबरें पार्टी के लिए एक और सिरदर्द बन रही हैं। यदि भाजपा इन अंतर्विरोधों को समय रहते सुलझाने में नाकाम रहती है, तो कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव कांगड़ा में भाजपा को और कमजोर कर सकता है।