हिमाचल में कांग्रेस से गहरी है वीरभद्र की जड़ें
- 83 की उम्र में कांग्रेस को बनाना पड़ा सीएम फेस
साल था 2017 का। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चूका था। भाजपा में सीएम फेस को लेकर दुविधा थी और अंतिम क्षण तक पार्टी सीएम फेस घोषित करने से बचती रही। उधर, कांग्रेस के सामने कोई दुविधा नहीं थी। 83 वर्ष के वीरभद्र सिंह पार्टी के सीएम कैंडिडेट थे और अकेले भाजपा से लोहा ले रहे थे। संभवतः इससे पहले और इसके बाद भी इतने उम्रदराज नेता को हिंदुस्तान में कभी भी, किसी भी चुनाव में सीएम फेस नहीं घोषित किया गया। दिलचस्प बात ये है कि इस निर्णय को लेकर शायद ही कांग्रेस आलाकमान के मन में कोई दुविधा रही हो, क्यों कि हिमाचल में कांग्रेस की जड़ें उतनी गहरी नहीं है, जितनी वीरभद्र सिंह की है। खेर, कांग्रेस चुनाव हार गई पर हिमाचल में वीरभद्र का जलवा अब भी बरकरार है। अब उम्र 85 की हो चुकी है, सेहत भी नासाज रहती है पर वीरभद्र का जुनून कायम है।
1962 में हुई चुनावी राजनीति में एंट्री :
प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की प्रेरणा से वीरभद्र सिंह ने राजनीति में आने का निर्णय लिया। नेहरू की बेटी और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गाँधी भी तब वीरभद्र से खासी प्रभावित थी। इंदिरा के कहने पर 1959 में वीरभद्र सिंह दिल्ली से हिमाचल लौटे और लोगों के बीच जाकर उनके लिए काम करना शुरू किया। वीरभद्र का ताल्लुख तो रामपुर- बुशहर रियासत से है लेकिन जल्द ही वे शिमला क्षेत्र में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा बन गए। नतीजन 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें महासू ( वर्तमान शिमला ) सीट से उम्मीदवार बनाया। 28 वर्ष के वीरभद्र आसानी से चुनाव जीत गए और पहली मर्तबा लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1967 और 1972 में वीरभद्र मंडी से चुनाव लड़ लोकसभा पहुंचे। हालांकि इमरजेंसी के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में वीरभद्र को हार का मुँह देखना पड़ा। पर उन्होंने अपनी निष्ठा नहीं बदली और इंदिरा गाँधी के वफादार बने रहे। 1980 में फिर चुनाव हुए और वीरभद्र सिंह एक बार फिर जीत कर लोकसभा पहुँच गए। 1982 में इंदिरा सरकार में उन्हें उद्योग राज्य मंत्री भी बना दिया गया।
1983 में हुई हिमाचल की सियासत में एंट्री :
वीरभद्र वर्ष 1962 से चुनावी राजनीति में है पर हिमाचल प्रदेश की सियासत में उनका आगमन हुआ वर्ष 1983 में। तब टिम्बर घोटाले के आरोप के चलते ठाकुर रामलाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और बतौर मुख्यमंत्री एंट्री हुई वीरभद्र सिंह की। वहीँ वीरभद्र सिंह जो 6 बार सीएम बने और जिनके बगैर हिमाचल की हर राजनैतिक चर्चा अधूरी है। वहीँ वीरभद्र सिंह, हिमाचल में जिनका मतलब कांग्रेस है और कांग्रेस का पर्याय वीरभद्र।1983 से अब तक यानी 2019 तक तक 36 वर्षों में वीरभद्र सिंह करीब 22 वर्ष सीएम रहे है।
वीरभद्र के बाद कोई नहीं कर पाया रिपीट: हिमाचल में हर पांच वर्ष में सत्ता परिवर्तन का रिवाज सा है। पर 1983 में सत्ता में आये वीरभद्र सिंह 1985 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर सत्ता में लौटे और दूसरी बार सीएम बने। इसके बाद से हिमाचल में कभी सरकार रिपीट नहीं हुई।
1993 में फिर की वापसी :
1990 के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। खुद वीरभद्र सिंह भी जुब्बल कोटखाई से चुनाव हार गए थे। ऐसा लगने लगा था कि शायद ही वीरभद्र इसके बाद कभी सीएम बने। ऐसा इसलिए भी था क्योकि तब पंडित सुखराम और विद्या स्ट्रोक्स का भी हिमाचल और कांग्रेस में ख़ासा दबदबा था। पर जो आसानी से हार मान ले, वो वीरभद्र सिंह नहीं बनते। हार के बाद वीरभद्र ने संगठन में अपनी जड़े और मजबूत की और विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बने रहे। शांता सरकार की गिरती लोकप्रियता को भी उन्होंने जमकर भुनाया। 1993 में शांता सरकार गिरने के बाद जब चुनाव हुए तो वीरभद्र सिंह तीसरी बार प्रदेश के सीएम बने। 1998 में भी कांग्रेस प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई लेकिन पंडित सुखराम के सहयोग से सरकार भाजपा की बनी। 2003 में फिर वीरभद्र सिंह की वापसी हुई और वे दिसंबर 2007 तक हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे। 2007 में सत्ता से बहार होने के बाद वीरभद्र सिंह ने केंद्र का रुख किया और 2009 से 2012 तक केंद्र में मंत्री रहे।
2012 में कई नेताओं के मंसूबों पर फेरा पानी:
2012 विधानसभा चुनाव के वक्त वीरभद्र सिंह की आयु 78 के पार थी। केंद्र में मंत्री होने के चलते शायद ही किसी को वीरभद्र के लौटने की उम्मीद रही हो। कांग्रेस में भी कई चाहवान सीएम की कुर्सी पर आँखें गड़ाए बैठे थे। पर वीरभद्र को तो अभी दिल्ली से शिमला वापस लौटना था। चुनाव से पहले वीरभद्र ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और हिमाचल लौट आये। कहते है कि वीरभद्र ने दिल्ली दरबार को स्पष्ट कर दिया था कि सीएम तो वे ही होंगे, चाहे पार्टी कोई भी हो। तब भी हिमाचल में माइनस वीरभद्र कांग्रेस की ख़ास हैसियत नहीं थी। सो आलाकमान झुका और वीरभद्र सिंह की लीडरशिप में चुनाव लड़ा गया। सत्ता परिवर्तन का सिलसिला भी बरकरार रहा और वीरभद्र सिंह रिकॉर्ड छठी बार सीएम बन गए।
इतिहास पढ़ाना चाहते थे, इतिहास बना दिया:
शिमला का बिशप कॉटन स्कूल हिमाचल का ही नहीं अपितु देश के प्रतिष्ठित स्कूलों में शुमार है। स्कूल के दाखिला रजिस्टर में नंबर 5359 के आगे नाम लिखा है वीरभद्र सिंह। उस दौर में जब रामपुर- बुशहर रियासत के राजकुमार वीरभद्र ने बिशप कॉटन स्कूल में दाखिला लिया था तो किसी ने नहीं सोचा होगा कि स्कूल का नाम उस शख्सियत से जुड़ने जा रहा है जो आगे चलकर 6 बार हिमाचल का सीएम बनेगा।
स्कूल पास आउट करने के बाद वीरभद्र ने दिल्ली के सैंट स्टीफेंस कॉलेज में हिस्ट्री होनोर्स में बीए और एमए की। हसरत थी हिस्ट्री का प्रोफेसर बन छात्रों को पढ़ाने की। पर देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। जो वीरभद्र छात्रों को इतिहास पढ़ाना चाहते थे, उन्होंने खुद इतिहास बना दिया। सबसे अधिक समय तक हिमाचल का सीएम रहना का रिकॉर्ड वीरभद्र सिंह के ही नाम है। वे करीब 22 वर्ष और कुल 6 बार हिमाचल के सीएम रहे है।
श्री कृष्ण परिवार की 122 वीं पीढ़ी होने का दावा
वीरभद्र सिंह का परिवार बागवान श्री कृष्ण के वंशज होने का दावा करता है। दरअसल,रामपुर बुशहर रियासत में एक स्थान आता है सराहन। राज परिवार का दावा है कि ये सराहन पहले सोनीपुर के नाम से जाना जाता था और भगवान् श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युमन की रियासत का हिस्सा था।
- वीरभद्र सिंह का विवाह दो बार हुआ। 20 साल की उम्र में जुब्बल की राजकुमारी रतन कुमारी से उनकी पहली शादी हुई। किन्तु कुछ वर्षों बाद ही रतन कुमारी का देहांत हो गया। इसके बाद 1985 में उन्होंने प्रतिभा सिंह से शादी की। प्रतिभा सिंह भी मंडी से सांसद रह चुकी है। वीरभद्र और प्रतिभा के पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी वर्तमान में शिमला ग्रामीण से विधायक है।