अर्की : खींचतान के कीचड़ में कैसे खिलेगा कमल ?
1993 से 2003 तक अर्की में लगातार तीन चुनाव हारने के बाद भाजपा बैकफुट पर थी। अर्की कांग्रेस का वो किला था जिसे फतेह करना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती थी। तब 2007 के चुनाव में भाजपा ने एक कर्मचारी नेता गोविन्द राम शर्मा को आगे किया और करीब डेढ़ दशक बाद अर्की में कमल खिला। 2012 के विधानसभा चुनाव में भी गोविन्द राम शर्मा फिर एक बार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। पर इसके बाद 2017 में पार्टी ने सबको चौंकाते हुए गोविन्द राम शर्मा का टिकट काट कर रतन सिंह पाल को मैदान में उतारा और भाजपा अर्की का चुनाव हार गई। हालांकि हार के बावजूद रतन सिंह पाल के लिए ये चुनाव ठीक ही रहा क्यों कि अर्की से खुद वीरभद्र सिंह मैदान में थे और तब भी रतन पाल की हार का अंतर करीब 6 हज़ार वोट ही था। पर भाजपा के टिकट वितरण को लेकर तब खूब सवाल उठे। बताया जाता है तब बगावत साधने को पार्टी ने गोविन्द राम शर्मा को आश्वस्त किया था कि सरकार बनने की स्थिति में उन्हें किसी बोर्ड निगम में तैनाती मिलेगी। सरकार तो बनी लेकिन गोविन्द राम शर्मा को कोई उपयुक्त पद नहीं मिला, न सरकार में और न संगठन में। वही रतन सिंह पाल को हिमाचल प्रदेश कोआपरेटिव डेवलपमेंट फेडरेशन का चेयरमैन बनाया गया। रतन पाल को प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष का दायित्व भी मिला। गोविन्द राम शर्मा एक किस्म से साइडलाइन कर दिए गए।
माना जाता है कि इसी वर्ष हुए स्थानीय निकाय चुनाव के टिकट वितरण में भी रतन सिंह पाल की खूब चली। जिला परिषद में पार्टी के कई दिग्गजों के टिकट कटे जिसका खामियाजा भाजपा ने भुगता। हालांकि अंत में इन्ही दिग्गजों के सहारे जिला परिषद् पर भाजपा का कब्ज़ा तो हो गया लेकिन रतन सिंह पाल की कार्यशैली को लेकर पार्टी के भीतर सवाल उठने लगे। वर्तमान में अर्की भाजपा में गुटबाजी चरम पर है। पार्टी के कई नेता रतन सिंह पाल के खिलाफ मोर्चा खोलते दिख रहे है। विशेषकर स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी समर्थित उम्मीदवारों के फीके प्रदर्शन ने रतन पाल की मजबूत होती जड़ों को कुछ हद तक हिला दिया है। दूसरी तरफ गोविन्द राम शर्मा एक्शन में है। गोविन्द राम एक किस्म से खुलकर रतन सिंह पाल के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है । बताया जा रहा है कि उन्हें पार्टी के कुछ अन्य दिग्गजों का भी साथ मिला है। ऐसे में आगामी समय में अर्की भाजपा में खींचतान बढ़ना तय है। इस खींचतान के कीचड़ में 2022 में क्या कमल खिला पायेगा, ये फिलवक्त यक्ष प्रश्न है।
तेजी से बदले अर्की के समीकरण
बीत 6 माह में अर्की में तेजी से बदले राजनीतिक समीकरणों से भाजपा सकते में है। जिला परिषद चुनाव में पार्टी ने कुनिहार वार्ड से अमर सिंह ठाकुर और डुमहेर वार्ड से आशा परिहार को उम्मीदवार बनाने लायक नहीं समझा लेकिन जनता ने इन दोनों नेताओं को जीता कर भाजपा के रणनीतिकारों को आईना दिखा दिया। जैसे -तैसे पार्टी के बड़े नेताओं ने इन दोनों को मनाया ताकि जिला परिषद् पर पार्टी का कब्ज़ा हो सके। इसके उपरांत बीडीसी पर कांग्रेस ने कब्ज़ा कर भाजपा को एक और झटका दिया। अर्की नगर पंचायत चुनाव में भी भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। तब से अर्की भाजपा के लिए कुछ भी बेहतर होता नहीं दिखा रहा।
नगीन चंद्र पाल और गोविंद राम ने ही खिलाया कमल
1980 में भारतीय जनता पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक हुए 9 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चार बार जीत दर्ज की है। 1982 और 1990 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के नगीन चंद्र पाल ने जीत दर्ज की थी। जबकि 2007 और 2012 में गोविन्द राम शर्मा जीत दर्ज करने में कामयाब रहे।
वर्ष विधायक पार्टी
1967: हीरा सिंह पाल आजाद
1972: हीरा सिंह पाल लोक राज पार्टी
1977: नगीन चंद्र पाल जनता पार्टी
1982: नगीन चंद्र पाल भारतीय जनता पार्टी
1985: हीरा सिंह पाल कांग्रेस
1990: नगीन चंद्र पाल भारतीय जनता पार्टी
1993: धर्मपाल ठाकुर कांग्रेस
1998: धर्मपाल ठाकुर कांग्रेस
2003: धर्म पाल ठाकुर कांग्रेस
2007: गोविन्द राम शर्मा भारतीय जनता पार्टी
2012: गोविन्द राम शर्मा भारतीय जनता पार्टी
2017: वीरभद्र सिंह कांग्रेस
