फतेहपुर के सियासी बवंडर से कैसे निकलेगी भाजपा
2022 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा-कांग्रेस को फतेहपुर उपचुनाव के इम्तिहान से भी गुजरना होगा। इस अनचाहे उप चुनाव से जो सियासी बवंडर बनता दिख रहा है उससे निकल पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा, विशेषकर भाजपा के लिए। यूँ तो भाजपा के पास सत्ता भी हैं, संगठन भी हैं और साधन भी हैं, पर अंतर्कलह और संभावित बगावत भाजपा को बेचैन कर रहे है। 2017 चुनाव में यहां से भाजपा ने कृपाल परमार को टिकट दिया था, पर तब बागी हुए बलदेव ठाकुर और राजन सुशांत ने पुरा खेल बिगाड़ दिया था। खुद पीएम मोदी ने यहां जनसभा की थी लेकिन तब बाजी कांग्रेस मार ले गई। अब फिर भाजपा के सामने 2017 की स्थिति है, कृपाल परमार पर पार्टी मेहरबान लग रही है और एक बार फिर वे भाजपा टिकट के सबसे मजबूत दावेदार दिख रहे हैं। हालांकि टिकट पर कोई निर्णय नहीं हुआ और सिर्फ कयास लग रहे है, बावजूद इसके परमार विरोधी खेमा अभी से एक्शन में है। विरोधी उन्हें बाहरी करार देकर उनके टिकट में रोड़ा अटकाने की फ़िराक में है। बीते दिनों मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम से पूर्व 'अबकी बार चक्की पार' के पोस्टर भी लग चुके है। ऐसे में भाजपा के लिए प्रत्याशी का चुनाव और उसके बाद की संभावित स्थिति से निपटना आसान नहीं होने वाला।
कांग्रेस की बात करें तो फतेहपुर में अर्से से स्व. सुजान सिंह पठानिया ही पार्टी का चेहरा रहे है। उनके रहते यहां से कोई और चेहरा नहीं उभरा। पार्टी में विवेक पधेरिया, निशावर सिंह, सूरजकांत, चेतन चंबियाल, वासु सोनी, रीता गुलेरिया जैसे कई नेता जरूर है पर फिलवक्त प्राइम फेस भवानी सिंह पठानिया ही बने हुए है, जो स्व. सुजान सिंह पठानिया के पुत्र है। अच्छी खासी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर भवानी अपने पिता की राजनेतिक विरासत को बढ़ाने फतेहपुर लौट आये है और मैदान में ठीके हुए है। दिलचस्प बात ये है कि वंशवाद के टैग के बावजूद भवानी ने बहुत कम समय में पार्टी के एक बड़े तबके को अपने साथ करने में सफलता हासिल कर ली है। परिवारवाद के नाम पर अब भी कुछ नेता उनके विरोध में है पर ये विरोध रंग लाता नहीं दिख रहा। ऐसे में भवानी का टिकट फिलहाल पक्का माना जा रहा है। बाकी सियासत में कुछ भी मुमकिन है। हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के मुखिया डॉ राजन सुशांत एलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी 2022 में सभी 68 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पर इस बीच उनके अपने गृह क्षेत्र फतेहपुर में उप चुनाव आ गया है। पांच बार के विधायक डॉ राजन सुशांत फतेहपुर से 2017 का चुनाव भी लड़े थे लेकिन तब जनता ने उन्हें नकार दिया था। अब फिर डॉ राजन सुशांत पूरी ऊर्जा के साथ मैदान में है। फतेहपुर निर्वाचन क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की बड़ी तादाद है, ऐसे में यदि अन्य दल राजपूत उम्मीदवारों को टिकट देते है तो राजन सुशांत को ब्राह्मण वोट से खासी आस रहेगी। साथ ही लगातार कर्मचारियों के मुद्दे उठाकर भी राजन सुशांत नए समीकरण साधने की कोशिश में है। निश्चित तौर पर डॉ राजन सुशांत की मौजूदगी इस उपचुनाव को और दिलचस्प बनाएगी।
पिछला उप चुनाव हारी थी भाजपा
करीब 12 साल बाद एक बार फिर फतेहपुर में उप चुनाव होने जा रहा हैं। इससे पहले 2009 में तत्कालीन विधायक डॉ राजन सिंह सुशांत के सांसद बनने के चलते उप चुनाव हुआ था। तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रो प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। बावजूद इसके भाजपा उप चुनाव हार गई थी और सुजान सिंह पठानिया के दम पर कांग्रेस ने कमाल कर दिखाया था।
बोर्ड निगमों में पद देकर मैनेज होगी बगावत
प्रदेश के निगमों व बोर्डों में कई ऐसे पद हैं जहां पर सरकार उपचुनाव को जहाँ में रखकर नियुक्तियां कर सकती है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। बीते दिनों सरकार ने तीन नियुक्तियां की है जिनमें से एक फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में है तो एक नजदीक लगते ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में। भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के भरयाल गांव निवासी ओमप्रकाश चौधरी को प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम कांगड़ा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। जबकि जवाली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा नेता संजय गुलेरिया को नेशनल सेविंग स्टेट एडवाइजरी बोर्ड का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। प्रदेश सरकार के लिए भी आगामी उपचुनाव प्रतिष्ठता का प्रश्न है, ऐसे में सरकार बोर्ड निगमों में खाली चल रहे पदों पर जल्द और नियुक्तियां कर सकती है।
