कितना टिकाऊ है इंडिया गठबंधन ?

- मध्यप्रदेश में ही कांग्रेस सपा आमने सामने , उत्तर प्रदेश में क्या होगा ?
- क्या दिल्ली पंजाब में साथ लड़ सकते है कांग्रेस और आप ?
- ममता और लेफ्ट, यानी आग और पानी !
केंद्र में भाजपा का विजयरथ रोकने के लिए 28 विपक्षी पार्टियों ने मिलकर इंडिया गठबंधन बनाया है। इस गठबंधन कि खूबसूरत मजबूरी देखिये कि जो पार्टियां राज्यों में एक दूसरे के खिलाफ लड़ रही है, वो भी केंद्र की सत्ता के लिए एकसाथ आ गई है। मसलन दिल्ली और पंजाब से कांग्रेस सरकार का टिकट काटने वाली आम आदमी पार्टी भी इस गठबंधन में शामिल है। बंगाल में जिस लेफ्ट को ममता दीदी की टीएमसी ने सत्ता से बेदखल किया वो भी टीएमसी के साथ इसका हिस्सा है। ऐसे में ये गठबंधन कितना टिकेगा, इस पर पहले दिन से ही सवाल उठते रहे है। इस बीच 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव आ गए और तल्खियों की झलकियां दिखने लगी। कारण बना मध्य प्रदेश में सीटों का बंटवारा और किरदार है कांग्रेस और समाजवादी पार्टी।
मध्य प्रदेश में राजनीतिक मजबूरी और यूपी में मुस्लिम वोट बैंक के चक्कर में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी आमने-सामने हैं। उत्तर प्रदेश में तो मतभेद अपेक्षित था लेकिन दरार मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सामने आ जाएगी, ये शायद ही किसी ने सोचा हो। सपा सात सीटें चाहती थी और कांग्रेस देने को तैयार नहीं थी। इसक बाद सियासी वार हुए, पलटवार हुए और अखिलेश ने कह दिया कि अगर प्रदेश स्तर पर गठबंधन नहीं होगा तो देश स्तर पर भी नहीं हो सकता। हालांकि अब अखिलेश के तेवर नरम है, लेकिन माहिर मान रहे है कि एमपी में जो कांग्रेस और सपा के बीच घटा है वो झलकी भर है। अभी गठबंधन के और सहयोगी अपने अपने राज्यों में आमने -सामने होंगे। वो कहते है न अभी तो इब्दिता है रोता है क्या, आगे आगे देखिये होता है क्या.....
बात विस्तार से होगी तो लम्बी चल पड़ेगी, इसलिए सिर्फ बात करते है इस गठबंधन के उन सहयोगियों की जो अपने अपने राज्यों में आमने सामने है। इंडिया गठबंधन के साथी कांग्रेस और आप का साथ आना माहिरों को 'आग और पानी' के साथ आने जैसा लग रहा है। दरअसल, अब तक कांग्रेस की सियासी जमीन छीन कर ही आप की जमीन तैयार हुई है। साल 2012 के अंत में आम आदमी पार्टी अस्तित्व आई थी और दस साल में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पा चुकी है। दो राज्यों में आप की सरकार है - दिल्ली और पंजाब। खास बात ये है कि इन दोनों ही राज्यों में आप ने कांग्रेस को न सिर्फ सत्ता से बेदखल किया है बल्कि एक किस्म से उसकी जमीन ही कमजोर कर दी है। दिल्ली में कांग्रेस की पतली हालत किसी से छिपी नहीं है और वहां तो मुकाबला ही अब आप और भाजपा में दिखता है। वहीँ पंजाब में पिछले साल विधानसभा चुनाव जीतने के बाद आप ने लोकसभा उपचुनाव जीतकर भी कांग्रेस को झटका दिया है। हालांकि पंजाब में अब भी मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच ही है लेकिन कांग्रेस निसंदेह पहले से खासी कमजोर है। कैप्टेन अमरिंदर सिंह का विकल्प अब तक पार्टी के पास नहीं दिखता। पर पंजाब में भाजपा और अकाली दल भी कमजोर है और ये ही कांग्रेस के लिए राहत की बात है। विशेषकर अकाली दल के एनडीए से बाहर आने के बाद समीकरण बदल चुके है। यानी मुख्य मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच हो सकता है। जाहिर है दोनों ही दल एक दूसरे के लिए सीटें नहीं छोड़ेंगे। ऐसे में इनके बीच गठबंधन की सम्भावना मुश्किल लगती है।
इसी तरह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सबसे ताकतवर नेता है। कांग्रेस और लेफ्ट मिलकर ममता के सामने लड़ते रहे है। ममता और लेफ्ट क्या साथ आ सकते है, ये बड़ा सवाल है। ममता लेफ्ट को लेकर किसी भी तरह का लचीला रुख अपनाएगी, ये मुश्किल लगता है।
अब फिर कांग्रेस और सपा पर लौटते है। केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है जहाँ विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी है सपा। कांग्रेस की मौजूदा हालत को देखते हुए सपा उसे कितनी सीटें देती है, ये देखना रोचक होगा।
सीटों के बंटवारें में पेंच फंसना तय है। दरअसल कांग्रेस का मानना है कि प्रदेश के मुसलमानों ने कांग्रेस पर भरोसा जताना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि कांग्रेस ने प्रदेश के मुस्लिम वोटरों को लुभाना शुरु भी कर दिया है। पार्टी पश्चिमी यूपी में मुस्लिम नेताओं पर फोकस कर रही है। यूपी में कांग्रेस नेतृत्व का ये भी मानना है कि मुसलमान अच्छी तरह से जानते हैं कि केंद्र में बीजेपी का एकमात्र विकल्प कांग्रेस है, न कि सपा या कोई अन्य क्षेत्रीय पार्टी। सपा भी समझ रही है कि अगर मुस्लिम वोट बंटा तो बेशक कांग्रेस को कुछ ज्यादा हासिल न हो लेकिन उसको नुक्सान होगा। इसी बिसात पर कांग्रेस संभवतः ज्यादा सीटें चाहेगी। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में सीटों का बंटवारा बड़ा पेचीदा होने वाला है।
बहरहाल कांग्रेस समेत कई ऐसा विपक्षी पार्टियां हैं जो इस बात को मानती हैं कि आने वाला लोकसभा चुनाव में उनके लिए करो या मरो वाली स्थिति होगी। पर सियासत में अपनी जमीन कोई किसी के लिए नहीं छोड़ता। यानी इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि सीट बंटवारे को लेकर गठबंधन में रार लगभग तय हैं। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन टूट जाता है, या कुछ प्लस माइनस होकर टिका रहता है।