धर्मशाला कांग्रेस का हाल, अपनी डफली अपना राग
( words)
अपनी डफली अपना राग..फिलवक्त ये ही धर्मशाला कांग्रेस की ग्राउंड रियलिटी है। यूँ तो कांग्रेस के पास न नेतृत्व की कमी है और न ही कांग्रेस के काडर पर कोई संशय, पर हावी अंतर्कलह से पार्टी की स्थिति सहज नहीं दिख रही। जैसे - जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे है टिकट दावेदारों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। इस फेहरिस्त में पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा, पूर्व मेयर देवेंद्र जग्गी और 2019 के उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी रहे विजय करण के नाम प्रमुख है। वहीं एक ख़ास नाम और है, वो है चंद्रेश कुमारी का। बीते दिनों सियासत में पचास साल पूरे हुए तो मैडम चंद्रेश ने पत्रकार वार्ता में ये कहकर कई चाहवानों की नींद उड़ा दी कि यदि आलाकमान चाहेगा तो वे चुनाव लड़ने को तैयार है। ये अलग बात है कि उसके बाद से चंद्रेश लगभग असक्रिय दिखी है।
सिलसिलेवार बात करें तो पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा से ही धर्मशाला कांग्रेस की चर्चा शुरू होना लाजमी है। 2012 में जब बैजनाथ सीट आरक्षित हुई तो सुधीर शर्मा ने धर्मशाला को कर्मभूमि बना लिया। चुनाव से महज 15 दिन पहले उन्हें धर्मशाला से प्रत्याशी बनाया गया, बावजूद इसके उन्होंने शानदार जीत दर्ज की। कांग्रेस की सरकार बनी और सुधीर मंत्री बन गए, वो भी दमदार। तब उन्हें वीरभद्र सिंह के बाद सबसे ताकतवर मंत्री माना जाता था। सुधीर के कार्यकाल में धर्मशाला में विकास भी खूब हुआ। चाहे स्मार्ट सिटी चुनने की बारी आई या नगर निगम बनाने की, धर्मशाला को तरजीह मिली। पर इस बीच जो लोग कभी सुधीर की परछाई लगते थे, वो ही रुस्वा होते गए। विधानसभा चुनाव आते -आते माहौल कुछ ऐसा बदला कि सुधीर खुद चुनाव हार गए।
किशन कपूर के सांसद बनने के बाद 2019 के उपचुनाव में सुधीर शर्मा ने सेहत का हवाला देकर चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। तब चुनावी रण में एंट्री हुई विजय करण की। विजय करण ने जोर तो खूब लगाया लेकिन उन्हें विजय नसीब नहीं हुई। हालात ये रहे कि निर्दलीय चुनाव लड़ रह राकेश चौधरी दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। जाहिर है कि विजय करण को कांग्रेस का भी पूरा साथ नहीं मिला। बहरहाल विजय करण ये कहकर टिकट की दावेदारी पेश कर रहे है कि जब बड़े -बड़े पीठ दिखा गए थे तब उन्होंने चुनाव लड़ा। पर विजय की राह आसान जरा भी नहीं दिख रही। वहीं धर्मशाला नगर निगम के पूर्व मेयर देवेंद्र जग्गी भी चुनाव लड़ने में रूचि दिखा रहे है और वे भी टिकट के दावेदार होने वाले है।
सुधीर ने लगाया अटकलों पर विराम :
धर्मशाला में कांग्रेस आलाकमान का टिकट रुपी आशीर्वाद किसको मिलता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। बहरहाल सुधीर का दावा मजबूत जरूर लग रहा है। सुधीर निर्वाचन क्षेत्र बदलने की अटकलों को भी सिरे से खारिज कर चुके है और धर्मशाला से चुनाव लड़ने का ऐलान भी। सुधीर ये भी खुलकर कह रहे है कि वे कांग्रेस में थे, है और रहेंगे। उधर, उनके विरोधी लामबंद होते दिख रहे है और बाहरी कार्ड को भी खूब हवा दी जा रही है। इस अंतर्कलह पर विराम लगाए बिना धर्मशाला में कांग्रेस की राह मुश्किल जरूर होगी।
सिलसिलेवार बात करें तो पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा से ही धर्मशाला कांग्रेस की चर्चा शुरू होना लाजमी है। 2012 में जब बैजनाथ सीट आरक्षित हुई तो सुधीर शर्मा ने धर्मशाला को कर्मभूमि बना लिया। चुनाव से महज 15 दिन पहले उन्हें धर्मशाला से प्रत्याशी बनाया गया, बावजूद इसके उन्होंने शानदार जीत दर्ज की। कांग्रेस की सरकार बनी और सुधीर मंत्री बन गए, वो भी दमदार। तब उन्हें वीरभद्र सिंह के बाद सबसे ताकतवर मंत्री माना जाता था। सुधीर के कार्यकाल में धर्मशाला में विकास भी खूब हुआ। चाहे स्मार्ट सिटी चुनने की बारी आई या नगर निगम बनाने की, धर्मशाला को तरजीह मिली। पर इस बीच जो लोग कभी सुधीर की परछाई लगते थे, वो ही रुस्वा होते गए। विधानसभा चुनाव आते -आते माहौल कुछ ऐसा बदला कि सुधीर खुद चुनाव हार गए।
किशन कपूर के सांसद बनने के बाद 2019 के उपचुनाव में सुधीर शर्मा ने सेहत का हवाला देकर चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। तब चुनावी रण में एंट्री हुई विजय करण की। विजय करण ने जोर तो खूब लगाया लेकिन उन्हें विजय नसीब नहीं हुई। हालात ये रहे कि निर्दलीय चुनाव लड़ रह राकेश चौधरी दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। जाहिर है कि विजय करण को कांग्रेस का भी पूरा साथ नहीं मिला। बहरहाल विजय करण ये कहकर टिकट की दावेदारी पेश कर रहे है कि जब बड़े -बड़े पीठ दिखा गए थे तब उन्होंने चुनाव लड़ा। पर विजय की राह आसान जरा भी नहीं दिख रही। वहीं धर्मशाला नगर निगम के पूर्व मेयर देवेंद्र जग्गी भी चुनाव लड़ने में रूचि दिखा रहे है और वे भी टिकट के दावेदार होने वाले है।
सुधीर ने लगाया अटकलों पर विराम :
धर्मशाला में कांग्रेस आलाकमान का टिकट रुपी आशीर्वाद किसको मिलता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। बहरहाल सुधीर का दावा मजबूत जरूर लग रहा है। सुधीर निर्वाचन क्षेत्र बदलने की अटकलों को भी सिरे से खारिज कर चुके है और धर्मशाला से चुनाव लड़ने का ऐलान भी। सुधीर ये भी खुलकर कह रहे है कि वे कांग्रेस में थे, है और रहेंगे। उधर, उनके विरोधी लामबंद होते दिख रहे है और बाहरी कार्ड को भी खूब हवा दी जा रही है। इस अंतर्कलह पर विराम लगाए बिना धर्मशाला में कांग्रेस की राह मुश्किल जरूर होगी।
