कांग्रेस थिंक टैंक एक्शन में, अभी से बगावत साधने की कवायद शुरू

* न्यूनतम बगावत और न्यूनतम भीतरघात ही है जीत का मंत्र
* टिकट आवंटन से पहले ही सबको एकजुट करने की कोशिश
प्रदेश कांग्रेस में दिख रही खींचतान के चलते विधानसभा चुनाव से पहले घमासान होना तय लग रहा है। अमूमन हर चुनाव क्षेत्र में नेताओं के बीच अंतर्कलह चरम पर है। एक टिकट के लिए कई नेता आवाज़ बुलंद कर रहे है, जो कहीं न कहीं कांग्रेस के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। पार्टी आलाकमान इस स्थिति से वाकिफ है और इस संभावित घमासान काे थामने का मार्ग तलाश रहा है। बीते दिनों दिल्ली में हुई पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में इस पर गहन चिंतन -मंथन हुआ है और ऐसी संभावित सीटों को लेकर विशेष एक्शन प्लान तैयार किया गया है। पार्टी ने प्रदेश के दिग्गज नेताओं को संबंधित विधानसभा क्षेत्रों में टिकट के आवेदकों से बात करने का जिम्मा सौंपा है। जाहिर है टिकट आवंटन से पहले ही पार्टी ने संभावित बगावत रोकने के लिए दिग्गजों को ये जिम्मेदारी सौंपी है। ये मुहीम क्या रंग लाती है ये तो वक्त ही बताएगा, बहरहाल कांग्रेस ने समय रहते स्थिति को भाप कर डैमेज कण्ट्रोल जरूर शुरू कर दिया है।
दरअसल, हिमाचल प्रदेश में कई विधानसभा हलके ऐसे हैं जहां कांग्रेस में आवेदक अधिक हैं। इनमें शिमला शहर, कुटलैहड़, ठियोग, चौपाल, कसौली, धर्मशाला आदि क्षेत्र हैं। पार्टी थिंक टैंक को आशंका है कि इन सीटों पर अधिक विवाद हो सकता है, और सम्भवतः यहाँ से बागी उम्मीदवार भी मैदान में हो सकते है। ऐसा होता है तो पार्टी के लिए ये बड़ा झटका होगा। इसी के चलते वक्त रहते ही पार्टी ने सभी आवेदकों और नेताओं के साथ आवश्यक संवाद स्थापित करने की रणनीति बनाई है। अब कांग्रेस केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक से पहले ही सभी वरिष्ठ नेताओं को अपने समर्थकों से वार्ता कर रिपोर्ट हाईकमान को देनी होगी। ये सुनिश्चित करना होगा कि टिकट न मिलने पर पार्टी विरोधी गतिविधियों की आशंका पूरी तरह खत्म हो, साथ ही असंतुष्ट नेताओं को पार्टी प्रत्याशी के प्रचार के लिए भी तैयार करना होगा।
जद्दोजहद : हारने वाले वरिष्ठ या युवा !
हिमाचल प्रदेश के कई निर्वाचन क्षेत्र ऐसे भी है जहाँ अलबत्ता कांग्रेस में आवदेक एकाध ही है, लेकिन इनमें से भी किसी एक का चयन पार्टी के लिए सिरदर्द है। दरअसल कई वरिष्ठ नेता लगातार चुनाव हारते आ रहे है, लेकिन अब भी चुनाव लड़ने को तैयार है। वहीं इनके सामने युवा उम्मीदवार ताल ठोक रहे है। ऐसी सीटों पर टिकट आवंटन पार्टी के लिए असल सिरदर्द है। मसलन पच्छाद सीट पर गंगूराम मुसाफिर लगातार तीन चुनाव हार चुके है। उनके सामने दयालप्यारी भी टिकट की चाहवान है। यहाँ दोनों ही चुनाव लड़ने को तैयार है और किसी को भी मनाना पार्टी के सामने असली चुनौती है। ऐसी कई अन्य सीटें भी है जैसे की चौपाल, भटियात आदि, जहाँ वरिष्ठता और युवा में से चयन पार्टी के लिए सिरदर्द साबित होने वाला है।
मनाने का फार्मूला तैयार !
जिन नेताओं को पार्टी टिकट नहीं देती है उन्हें सरकार बनने पर बाेर्ड एवं निगमों में कुर्सी की पेशकश की जा सकती है। पार्टी ये भी ऐलान कर सकती है कि सरकार आने पर बोर्ड एवं निगमों की नियुक्तियों में हारने वाले उम्मीदवारों पर उन्हें वरीयता मिलेगी जिन्हें टिकट नहीं दिया गया। बशर्ते सभी पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में काम करें। वरिष्ठ नेताओं को निजी तौर पर अपने -अपने निष्ठावानों को मनाने का जिम्मा दिया जायेगा।